निर्धनता का विचार | भारत में निर्धनता का दृष्टिकोण | भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण | गरीबी का विचार | भारत में गरीबी का दृष्टिकोण | भारत में गरीबी के प्रमुख कारण

निर्धनता का विचार | भारत में निर्धनता का दृष्टिकोण | भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण | गरीबी का विचार | भारत में गरीबी का दृष्टिकोण | भारत में गरीबी के प्रमुख कारण

गरीबी अथवा निर्धनता का विचार

(The Concept of Poverty)-

गरीबी अथवा निर्धनता का आशय उस सामाजिक अवस्था पर जीवन से लिया जाता है जिसमें समाज का एक वर्ग अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता है और वह न्यूनतम जीवन-स्तर से भी निम्न जीवन-स्तर बिताता है। गरीबी का विचार सापेक्षिक विचार है जो उच्च जीवन-स्तर की तुलना में निम्न जीवन-स्तर के आधार पर गरीबी के बारे में सोचता है। भारत में गरीबी की परिभाषा उच्च जीवन-स्तर की तुलना में निम्न जीवन-स्तर को आधार मानकर चलती है क्योंकि भारत जैसे गरीब एवं निर्धन राष्ट्र में अच्छे और उच्च जीवन की कल्पना करना मजाक करने के समान लगता है। इसलिए भारतीय नागरिकों में केवल उन्हीं को निर्धन माना जाता है जो निर्धारित न्यूनतम जीवन-स्तर से भी निम्न स्तर का जीवन बिता रहे हैं। निरपेक्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि गरीब अथवा निर्धन लोग वे हैं जो भूखे, नंगे,निरक्षर, बड़ी-बड़ी बीमारियों से पीड़ित तथा अपाहिज होते हुए अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाते हैं; अपमान, निराशा के अभाव से उनकी मित्रता है तथा समृद्धि के प्रति ईर्ष्या है।

भारत में गरीबी अथवा निर्धनता का दृष्टिकोण

गरीबी अथवा निर्धनता का स्पष्ट रूप से अर्थ समझने के लिए आवश्क है कि इसका सापेक्षिक रूप काम में लिया जावे। वास्तव में हम गरीब अथवा निर्धन लोग उन्हें कहते हैं जो धनिकों की तुलना में काफी निर्धन हैं.अर्थात् जो अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाते हैं अथवा जो गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं।

गरीबी की रेखा के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों में काफी मतभेद हैं। आगे कुछ विद्वानों एवं संस्थाओं के विचार गरीबी की रेखा के सम्बन्ध में दिए गए हैं-

  1. भारतीय योजना आयोग ने ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति उपभोग 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति उपभोग 2100 कैलोरी के आधार पर गरीबी की रेखा खींची है।
  2. सातवीं पंचवर्षीय योजना में वर्ष 1984-85के मूल्यों के आधार पर गाँवों में जिन व्यक्तियों की प्रति व्यक्ति प्रति माह आय 107रुपये और शहरों में 122 रुपये से कम है उन्हें गरीब बताया गया है।
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के आधार पर जहाँ पर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष आय 2600 रुपयों से कम हो, उन्हें गरीब कहा जाएगा।

भारतीय योजना आयोग ने 11 मार्च, 1997 को सम्पन्न बैठक में निर्धनता रेखा निर्धारण हेतु अब लकड़ावाला फार्मूले को ही स्वीकार किया है। इस फार्मूले में शहरी निर्धनता के आंकलन के लिए औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तथा ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता के आंकलन हेतु कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों को आधार बनाया गया था। इस फार्मूले के आधार पर आंकलन से सभी राज्यों में अलग-अलग निर्धनता रेखाएँ अर्थात् कुल 32 निर्धनता रेखाएँ बनती हैं। परन्तु तीन नये राज्यों के निर्माण के बाद कुल निर्धनता रेखा 35 हो गयी है।

भारत में निर्धनता संबंधी अनुमान

वर्ष   निर्धनता अनुपात
ग्रामीण शहरी कुल राष्ट्रीय औसत
1973-74

1977-78

1983-84

1987-88

1993-94

1999-2000

2007(अनुमानित)

56.4

53.1

45.7

39.1

37.3

27.1

21.1

49.0

45.2

40.8

38.2

32.4

23.6

15.1

54.9

51.3

44.5

38.9

36

26.1

19.3

स्रोत- आर्थिक सर्वेक्षण भारत सरकार।

भारत में गरीबी अथवा निर्धनता के प्रमुख कारण

(Main Causes of Poverty in India)

भारत के सम्बन्ध में एक कहावत ही अधिक चरितार्थ है कि “भारत एक धनी देश है जिसमें निर्धन लोग निवास करते हैं।” इसका अभिप्राय यह है कि भारत में संसाधन बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं, लेकिन भारत सरकार वित्तीय एवं तकनीकी कठिनाइयों के कारण इन उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण रूप से विदोहन नहीं कर पा रही है। जिसके कारण भारत की राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय, जीवन-स्तर, शैक्षणिक-स्तर, राजनीतिक सुदृढ़ता इत्यादि अन्य राष्ट्रों की तुलना में बहुत कम है। लकड़ावाला फार्मूले के आधार पर 1994-95 में भारत की लगभग 35.88 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे रहती है। भारत में व्याप्त गरीबी के लिए निम्नलिखित कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं-

(1) वित्तीय साधनों की कमी- भारत प्रारम्भ से ही एक गरीब एवं निर्धन राष्ट्र रहा है जिसके कारण भारत के पास वित्तीय साधनों की कमी रही है। वित्तीय साधनों की कमी के कारण हम आर्थिक विकास सम्बन्धी योजनायें सुचारु रूप से क्रियान्वित नहीं कर सके हैं।

(2) तकनीकी ज्ञान का अभाव- किसी भी देश के सुव्यवस्थित आर्थिक विकास के लिए न केवल वित्तीय साधनों की आवश्यकता पड़ती है बल्कि तकनीकी ज्ञान भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए। तकनीकी ज्ञान के माध्यम से प्राकृतिक साधनों का पता लगाया जा सकता है और न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन को सम्भव किया जा सकता है। भारत में अभी तक तकनीकी ज्ञान का अभाव है।

(3) प्राकृतिक साधनों का समुचित उपयोग नहीं- भारत अभी तक उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का पूर्ण रूप से उपयोग नहीं कर पाया है जिसके कारण आर्थिक विकास की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। वर्तमान में भारत के सामने केवल यही समस्या नहीं है कि प्राकृतिक साधनों का विदोहन किया जावे बल्कि भारत को यह भी मालूम नहीं है कि किस स्थान पर कौन-कौन-से प्राकृतिक साधन उपलब्ध हैं? इनका पता लगाने के लिए हम विदेशों से विशेषज्ञों का आयात करते हैं।

(4) जनसंख्या में तेजी से वृद्धि- भारत की निर्धनता अथवा गरीबी का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी रहा है कि भारत में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है और हम इस तीव्र वृद्धि को रोकने में असमर्थ रहे हैं। वास्तव में गरीबी की रेखा से नीचे आने के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या जिम्मेदार है।

(5) बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोजगारी की समस्या- भारतीय अर्थव्यवस्था में यह समस्या भी बहुत गम्भीर रूप धारण कर चुकी है जिसको तत्काल हल करना सरकार के लिए एक असम्भव कार्य है। देश में बेरोजगारी के साथ-साथ अर्द्ध-बेरोजगारी भी बड़ी मात्रा में है।

(6) पूँजी निर्माण की धीमी गति- जैसा कि ऊपर बताया गया है कि भारत में निर्धन लोग निवास करते हैं। वे निर्धन हैं। इसलिए उनकी प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होने के कारण उनकी आय का एक बहुत बड़ा भाग उपभोग पर ही व्यय हो जाता है जिससे बचत नहीं हो पाती है और बचत नहीं होने से पूँजी निर्माण की दर धीमी रहती है।

(7) प्राकृतिक विपदाएँ- भारत में गरीबी अथवा निर्धनता को बढ़ाने में प्राकृतिक विपदाओं का भी हाथ रहा है। समय पर मानसून का न आना, अकाल तथा बाढ़ जैसी स्थितियों से अर्थव्यवस्था में काफी उथल-पुथल हो जाती है। कृषि फसलें समय पर सन्तोषजनक नहीं हो पाती हैं जिससे लोगों के रोजगार के अवसर समाप्त हो जाते हैं और गरीबी बढ़ती है।

(8) आर्थिक असमानता- आर्थिक असमानता का अभिप्राय सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का दो वर्गों-गरीबी और अमीरी के बीच बँट जाने से होता है। किसी भी अर्थव्यवस्था में जब एक बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो वह नियमित रूप से बनी रहती है और इसके परिणाम अच्छे नहीं होते हैं। धनी और अधिक धनी तथा निर्धन और अधिक निर्धन होते जाते हैं।

(9) उद्यमियों एवं साहसियों का अभाव- अनेक उद्योग एवं व्यवसाय इसी प्रकृति के होते हैं, जिनमें बहुत बड़ी मात्रा में पूंजी लगती है, जोखिम अधिक होता है तथा लाभ लम्बे समय में प्राप्त होते हैं जिसके कारण साहसी उद्यमी एवं उद्योगपति ऐसे व्यवसायों में प्रवेश नहीं करते हैं। इससे कृषि उत्पादन में बाधा पड़ती है और रोजगार के अवसर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, जिससे निर्धनता बनी रहती है।

(10) लघु पैमाने पर उत्पादन- भारत में उत्पादन सम्बन्धी सुविधाएं बड़ी मात्रा में उपलब्ध न होने के कारण उत्पादन का छोटा पैमाना काम में लिया जाता है जिसके कारण बड़े पैमाने के उत्पादन को मितव्ययितायें प्राप्त नहीं हो पाती हैं जिससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया में बाधा पड़ती है तथा गरीबी निरन्तर बनी रहती है।

(11) अंग्रेजों का साम्राज्य- भारत में आज जो गरीबी विद्यमान है, उसके लिए अंग्रेज भी जिम्मेदार हैं। वर्ष 1947 से पूर्व भारत अंग्रेजों के अधीन था और अंग्रेजों ने भारत के आर्थिक विकास के लिए कोई भी अच्छी नीति निर्धारित नहीं की, जिसके कारण भारत में गरीबी तभी से बनी हुई है।

(12) अस्पष्ट आर्थिक नीतियाँ- भारत सरकार के द्वारा समय-समय पर आर्थिक विकास सम्बन्धी जो नीतियाँ अपनायी जाती हैं, जैसे- औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति, विदेशी व्यापार नीति, तटकर नीति, मौद्रिक नीति इत्यादि ये सभी पूर्णतया स्पष्ट नहीं होती हैं जिसके कारण विकास में बाधा पड़ती है और पूँजीपति ऐसे उद्योगों में प्रवेश करने से हिचकिचाते हैं।

(13) पड़ोसी राष्ट्रों का शत्रुतापूर्ण व्यवहार- जब पड़ोसी एवं अन्य राष्ट्रों का व्यवहार शत्रुतापूर्ण होता है तो सरकार का ध्यान आर्थिक विकास से हटकर सुरक्षा में लग जाता है और सरकार अपने बजट का एक बड़ा भाग सुरक्षा पर व्यय करती है जिससे आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है और गरीबी में वृद्धि होती है।

(14) बाजार की अपूर्णतायें- भारत में सभी बाजार समान रूप से पूर्ण नहीं हैं, कुछ बाजार अधिक साधन-सम्पन्न हैं तो कुछ बाजारों में यातायात, सन्देशवाहन, बैंकिंग व बीमा सुविधाओं का काफी अभाव है जिसके कारण श्रमिक अधिक मजदूरी प्राप्त होने पर भी, कम सुविधाओं वाले स्थानों पर नहीं आते हैं। इसी प्रकार ब्याज की दर अधिक होने पर भी पूँजी की गतिशीलता नहीं बढ़ पाती है। ऐसा होने से आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है और गरीबी बढ़ती है।

(15) आर्थिक संगठनों का कमजोर होना- वर्तमान में देश में विभिन्न आर्थिक संगठन (बैंकिंग व बीमा कम्पनियाँ) जो कार्यरत हैं, वे काफी दुर्बल हैं। वे देश की आवश्यकता के अनुसार कृषि, उद्योग, यातायात व व्यापार के क्षेत्र में पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान करने की स्थिति में नहीं हैं जिससे आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है और दुर्बलता या गरीबी में वृद्धि होती है।

(16) असन्तुलित भुगतान सन्तुलन- स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर अब तक भारत का भुगतान सन्तुलन सदैव (केवल दो वर्षों को छोड़कर) असन्तुलित रहा है। भारत आर्थिक विकास की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात अधिक करता है और निर्यात कम, जिसके कारण विदेशी विनिमय की समस्या उत्पन्न होती है जिसे भारत सरकार सदैव सुधारने का प्रयास करती रहती है।

(17) बढ़ती हुई मुद्रास्फीति- साधारणतया प्रत्येक विकासशील देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति देखने को मिलती है जिसके कारण मुद्रा के मूल्य में कमी आती है और वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य बढ़ने लगते हैं जिससे गरीबों का शोषण होता है और निर्धनता बढ़ती है।

(18) प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय का कम होना- जैसा कि ऊपर बताया गया है कि भारत एक विकासशील राष्ट्र है। भारतीय कृषि मानसून पर आधारित है, तकनीकी ज्ञान का अभाव है, लोगों को रोजगार के अवसर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, उत्पादन कम होता है जिसके फलस्वरूप प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होती है फलतः कुल मिलाकर राष्ट्रीय आय भी बहुत कम होती है। भारत की प्रति व्यक्ति आय व राष्ट्रीय आय अन्य राष्ट्रों की तुलना में बहुत कम है।

(19) खर्चीले सामाजिक रति-रिवाज- भारत के नागरिक अशिक्षित, रूढ़िवादी व परम्परावादी हैं। प्रति व्यक्ति आय व जीवन-स्तर निम्न होने पर भी वे सामाजिक रीति-रिवाज एवं परम्पराओं, जैसे-दहेज, मृत्यु भोज इत्यादि पर बहुत अधिक खर्च करते हैं। इससे उनकी निर्धनता में निरन्तर वृद्धि होती है।

(20) शिक्षण एवं प्रशिक्षण सुविधाओं का अभाव- भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या की माँग के अनुसार विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय तथा प्रशिक्षण केन्द्र उपलब्ध नहीं हैं और जहाँ ये उपलब्ध हैं वहाँ ये सुविधाएँ काफी महँगी हैं जिसके कारण गरीब एवं निर्धन वर्ग के लोगों को ये सुविधायें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाती हैं जिससे उन्हें नौकरी के अच्छे अवसर प्राप्त नहीं हो पाते हैं और वे गरीब ही बने रहते हैं।

(21) जन-कल्याण कार्यों की कमी- यद्यपि भारत सरकार के द्वारा पंचवर्षीय योजनाओं में जन-कल्याण कार्यों, जैसे-सड़क, बिजली, पानी, अस्पताल, डाकघर इत्यादि पर ध्यान दिया गया है, लेकिन ये सुविधाएँ अभी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। इन सुविधाओं में वृद्धि होने से नागरिकों के जीवन-स्तर में वृद्धि होती है, औद्योगिक विकास के मार्ग खुलते हैं और आर्थिक विकास सम्भव होता है, लेकिन भारत में इस प्रकार की सुविधाओं का अभाव होने के कारण गरीबी अभी भी बनी हुई है।

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