अर्थशास्त्र / Economics

परैटो अनुकूलतम | परैटो मानदण्ड | परैटो अनुकूलतम की दशाएँ

परैटो अनुकूलतम | परैटो मानदण्ड | परैटो अनुकूलतम की दशाएँ

परैटो अनुकूलतम (Pareto Optimum)

वी० परैटो सर्वप्रथम अर्थशास्त्री थे जिन्होंने उपयोगिता के क्रमवाचक विचार (ordinal concept of utility) के आधार पर कल्याणकारी अर्थशास्त्र का विचार प्रस्तुत किया। परैटो ने उपयोगिता की मापनीयता तथा उसकी अन्तर्वैयक्तिक तुलना के विचार को गलत सिद्ध किया तथा स्पष्ट किया कि पूर्ण प्रतियोगिता समाज को अनुकूलतम कल्याण की स्थिति को प्राप्त करने में सहायक होती है। अत: परैटो ने सामान्य अनुकूलतम (General optimum) का विचार प्रस्तुत किया। परैटो की सामान्य (अथवा सामाजिक) अनुकूलतम वह स्थिति है जिसके अन्तर्गत साधनों (inputs) अथवा उत्पादन (outputs) पुनराबंटन (re-allocation) द्वारा बिना कम से कम एक व्यक्ति को हीनतर (worse off) किए हुए किसी अन्य व्यक्ति को श्रेष्ठतर (better off) करना सम्भव नहीं होता है। जैसा कि परैटो ने स्वयं स्पष्ट रूप में लिखा है, “हम लोग अधिकतम सन्तुष्टि या कल्याण की स्थिति को परिभाषित करते हैं जिसके अन्तर्गत किसी प्रकार का ऐसा सूक्ष्म परिवर्तन करना असम्भव होता है कि स्थिर रहने वाली संतुष्टियों को छोड़कर, सभी व्यक्तियों की सन्तुष्टियाँ बढ़ जाएँ अथवा घट जाएँ। इस प्रकार परैटो अनुकूलतम की दशा में संसाधनों के पुनर्गठन द्वारा बिना किसी अन्य व्यक्ति के कल्याण को कम किए किसी अन्य व्यक्ति के कल्याण में वृद्धि करना असम्भव होता है। अत: यदि किसी स्थिति में समाज से वस्तुओं तथा सेवाओं अथवा उत्पादन के साधनों के विभिन्न प्रयोगों में पुनर्वितरण द्वारा कल्याण में वृद्धि सम्भव है तो वह अनुकूलतम दशा नहीं होगी।

परैटो मानदण्ड (Pareto Criterion)

परैटो के मानदण्ड के अनुसार यदि कोई परिवर्तन किसी को हानि नहीं पहुँचाता तथा कुछ लोगों को श्रेष्ठतर बनाता है, तो वह सुधार है। जैसा कि बॉमल (Baumol) ने स्पष्ट से व्याख्या निम्न शब्दों में की है : “कोई परिवर्तन जो किसी को हानि नहीं पहुँचाता तथा कुछ लोगों को (इनके स्वयं के अनुमान में) श्रेष्ठतर बनाता है, आवश्यक रूप से सुधार समझा जाना चाहिए।”

परैटो के इस विचार को एजवर्थ बाउले बॉक्स रेखाचित्र द्वारा सरलतापूर्वक समझा जा सकता है जो उपयोगिता की अमापनयीता तथा अन्तर्वैयक्तिक तुलना की असत्यता की मान्यता पर आधारित है। माना कि समाज में दो व्यक्ति A तथा B है जो वस्तु X तथा Y का उपभोग करते हैं। X तथा Y के विभिन्न संयोगों के उपभोग से प्राप्त होने वाले दोनों व्यक्तियों के सन्तोष के स्तर अनधिमान वक्रों द्वारा प्रदर्शित है। रेखाकृति में A तथा B व्यक्ति के मूल बिन्दु क्रमश: 0 तथा 0B हैं। अत: Ia1, Ia2, Ia2 क्रमश: A व्यक्ति के बढ़ते हुए सन्तोष को प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार Ial, la2, Ia3 , B व्यक्ति  की क्रमशः बढ़ती सन्तुष्टि को प्रदर्शित करते हैं। माना कि X तथा Y वस्तुओं का A तथा B व्यक्ति में वितरण की स्थिति K है जो स्पष्ट करता है कि A व्यक्ति के पास X वस्तु की OG तथा Y वस्तु की GK मात्रा है। इसी प्रकार B व्यक्ति के पास X वस्तु की KF तथा Y वस्तु की KE मात्रा है। इस प्रकार X तथाY वस्तु की कुल मात्रा A तथा B व्यक्तियों में वितरित है।

परैटो मानदण्ड के अनुसार यदि K बिन्दु से S बिन्दु की ओर कोई पुनर्वितरण होता है तो B व्यक्ति की सन्तुष्टि पूर्ववत् रहती है किन्तु A व्यक्ति के सन्तोष का स्तर पहले की अपेक्षा बढ़ जाता है क्योंकि B व्यक्ति एक ही अनधिमान वक्र I a1 पर रहता है (K तथा S, IaI, पर ही है) तथा A व्यक्ति Ia2 की अपेक्षा ऊँचे अनधिमान वक्र Ia2 पर पहुँच जाता है। अत: K बिन्दु परैटो के अनुसार सामान्य अनुकूलतम की स्थिति (position of general optimum) नहीं है।

इसी प्रकार यदि K से R की ओर कोई परिवर्तन किया जाता है तो भी A व्यक्ति का सन्तोष पूर्ववत् तथा B व्यक्ति का सन्तोष पहले की अपेक्षा बढ़ जाता है। अतः R तथा S दोनों स्थितियाँ K की अपेक्षा श्रेष्ठ है। दोनों व्यक्तियों के विभिन्न अनधिमान वक्रों के स्पर्श बिन्दु सामान्य अनुकूलतम के बिन्दु होते हैं। जिन्हें एक वक्र से जोड़ देने पर प्रसंविदा वक्र (contract curve) प्राप्त हो जाता है। इस वक्र पर यदि हम ऊपर अथवा नीचे की ओर चलते हैं तो एक के संतोष में वृद्धि होती है तो दूसरे के सन्तोष में कमी हो जाती है जिसके कारण इसे संघर्ष वक्र (conflict curve) भी कहते हैं। उपर्युक्त रेखाकृति विश्लेषण में R तथा S में से कौन सी स्थिति अपेक्षाकृत श्रेष्ठ है, इस प्रश्न का उत्तर परैटो का मानदण्ड प्रदान नहीं करता है।

परैटो के सामान्य अनुकूलतम को सैम्युल्सन द्वारा प्रस्तुत उपयोगिता सम्भावना वक्र (utility possibility curve) द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। “उपयोगिता सम्भावना वक्र वस्तुओं के एक निश्चित समूह से दो व्यक्तियों द्वारा प्राप्त उपयोगिताओं के विभिन्न संयोगों का बिन्दु पथ है।” रेखाकृति में X तथा Y अक्ष पर क्रमश: A तथा B व्यक्ति की उपयोगिता को प्रदर्शित किया गया है। CV वक्र दोनों व्यक्तियों द्वारा प्राप्त की जाने वाली उपयोगिताओं के विभिन्न संयोगों को प्रदर्शित करता है जो कि उन्हें वस्तुओं की एक निश्चित मात्रा के सम्मिलित रूप से उपभोग से प्राप्त होती है। दो व्यक्तियों में वस्तुओं की वितरित मात्रा में परिवर्तन के साथ उनकी उपयोगिताओं के स्तर भी परिवर्तित हो जाते हैं।

परैटो के मानदण्ड के अनुसार Q बिन्दु से E, D तथा S बिन्दु की ओर कोई परिवर्तन सामाजिक कल्याण में वृद्धि को प्रकट करता है क्योंकि इसके परिवर्तन स्वरूप A अथवा B अथवा दोनों की उपयोगिताओं में वृद्धि होती है। किन्तु Q बिन्दु से RS के बाहर की ओर किसी परिवर्तन के कल्याण पर प्रभावों को परैटो के मानदण्ड से ज्ञात नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार E बिन्दु परैटो अनुकूलतम की स्थिति को व्यक्त नहीं करता है तथा CV वक्र के RS भाग पर स्थित सभी बिन्दु परैटो अनुकूलतम की स्थितियाँ हैं किन्तु कौन सा बिन्दु श्रेष्ठतम है? परैटो मानदण्ड इसका उत्तर देने में असमर्थ रहता है क्योंकि इसके लिए कुछ मूल्यगत निर्णयों का आश्रय लेना आवश्यक है जिसको परैटो अपने विश्लेषण में समाविष्ट नहीं करते हैं।

परैटो अनुकूलतम की दशाएँ (Conditions of Pareto Optimum)

परैटो ने सामाजिक कल्याण को अधिकतम (अनुकूलतम) करने के लिए उत्पादन तथा विनिमय क्षेत्र की अनेक दशाओं की व्याख्या की है जिसके द्वारा उत्पादन तथा उनके वितरण को अधिकतम सामाजिक कल्याण के अनुरूप बनाने का प्रयत्न किया जाता है। यहाँ पर परैटो अनुकूलतम की विभिन्न दशाओं की व्याख्या करने के पूर्व उनकी मान्यताओं के विषय में जान लेना आवश्यक प्रतीत होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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