अर्थशास्त्र / Economics

परैटो के मानदण्ड की सीमित व्यवहारता | परैटो अनुकूलतम की अनिश्चितता | परैटो मानदण्ड तथा परैटो अनुकूलतम का आलोचनात्मक मूल्यांकन

परैटो के मानदण्ड की सीमित व्यवहारता | परैटो अनुकूलतम की अनिश्चितता | परैटो मानदण्ड तथा परैटो अनुकूलतम का आलोचनात्मक मूल्यांकन

परैटो के मानदण्ड की सीमित व्यवहारता

(Limited Applicability of Pareto’s Criterion)

परैटो के मानदण्ड की एक भारी कमी यह है कि यह उन नीति प्रस्तावों की सामाजिक वांछनीयता (social desirability) अर्थात् सामाजिक कल्याण पर उनके प्रभाव की जाँच नहीं करता जो समाज के एक वर्ग को लाभ परन्तु किसी दूसरे वर्ग को हानि पहुँचाते हैं। परन्तु ऐसे नीति परिवर्तन बहुत विरले (rare) हैं जो समाज के कुछ व्यक्तियों को हानि पहुँचाए बिना दूसरों को लाभ पहुँचाएँ। इसलिए परैटो के मानदण्ड का आर्थिक नीति-निर्धारण में सीमित व्यावहारिक महत्त्व है क्योंकि इसका प्रयोग उन नीति प्रस्तावों जिनसे विभिन्न व्यक्तियों के हितों का टकराव होता है की सामाजिक अनुकूलता की जाँच नहीं कर सकता। कल्याण अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ प्रो० पी०के० पटनायक के अनुसार, “जब विकल्पों की तुलना करनी होती है तो परैटो अनुकूलतम बुरी तरह असफल रहता है। दो विकल्पों के विषय में जब ही दो व्यक्तियों के हितों में टकराव होता है यह मानदण्ड उन विकल्पों की उत्कृष्टता के बारे में कुछ नहीं बता सकता चाहे समाज के अन्य व्यक्तियों के उन विकल्पों के लिए अधिमान कितने ही अधिक क्यों न हों।

उन नोति प्रस्तावों की सामाजिक वांछनीयता की जाँच करना जिनसे कुछ को हानि और कुछ को लाभ होता है तुष्टिगुणों की अन्तर्व्यक्त तुलना (inter personal comparison of utility) करने की आवश्यकता है जो परैटो मानदण्ड करना नहीं चाहता। अतएव परैटो मानदण्ड तुष्टिगुण के अन्तर्व्यक्त तुलना तथा आय वितरण के महत्त्वपूर्ण विषय की उपेक्षा करके सामाजिक कल्याण में वृद्धि अथवा कमी की बात करता है क्योंकि वह केवल उन परिस्थितियों पर विचार करता है जिनमें किसी व्यक्ति को हानि नहीं होती और परिणामस्वरूप आय-वितरण या तुष्टिगुण की अन्तर्व्यक्त तुलना का प्रश्न ही नहीं उठता।”

परैटो अनुकूलतम की अनिश्चितता

(Indeterminacy of Pareto-Optimality)

परैटो अनुकूलतम विश्लेषण की एक और कमी यह है कि इससे अधिकतम सामाजिक कल्याण के विश्लेषण में बड़ी अनिश्चितता रहती है। कारण यह है कि इस विश्लेषण में संविदा वक्र (contract curve) पर प्रत्येक बिन्दु परैटो मानदण्ड की दृष्टि से अनुकूल (optiman) है।

उदाहरण के लिए रेखाचित्र में संविदा वक्र CC पर प्रत्येक बिन्दु जैसे कि Q,R,S आदि संविदा वक्र के बाहर किसी बिन्दु जैसे कि K की तुलना में परैटो दृष्टि से श्रेष्ठ (Superior) हैं। जैसा कि उपर्युक्त विश्लेषण में समझाया गया हैं। किसी ऐसे नीति परिवर्तन और फलस्वरूप साधनों के पुनर्बण्टन जिससे संविदा वक्र के एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक गति होने पर एक व्यक्ति को लाभ तथा दूसरे को हानि पहुँचती है। इसका अर्थ यह है कि परैटो मानदण्ड के आधार पर संविदा वक्र पर स्थित सामाजिक विकल्पों की परस्पर तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि संविदा वक्र पर गति से एक व्यक्ति को लाभ और दूसरे को हानि होती है अर्थात् उसमें कल्याण या आय का पुनर्वितरण होता है।

यदि वर्तमान स्थिति ऐसी है कि किसी नये पदार्थ को उत्पन्न करके अथवा अप्रयुक्त साधन को उत्पादन के लिए प्रयोग करके सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जा सकती है तो हिक्स की समस्त दशाओं की पूर्ति नहीं होगी और इसलिए वर्तमान स्थिति परैटो अनुकूलतन अथवा अधिकतम  सामाजिक कल्याण की स्थिति नहीं होगी।

निष्कर्ष-

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि परैटो की दृष्टि से अधिकतम सामाजिक कल्याण तभी प्राप्त होगा जबकि सीमान्त दशाओं (दोनों प्रथम तथा द्वितीय क्रम की) एवं समस्त दशाओं की पूर्ति होती है। किन्तु यह परैटो अनुकूलतम (pereto optimum) भी कोई विशेष स्थिति (unique situation) नहीं है। कई स्थितियाँ अथवा बिन्दु परैटो अनुकूलतम होते हैं जिनमें सर्वश्रेष्ठ कौन सा है इसको परैटो के मानदण्ड द्वारा निर्धारित नहीं किया जा सकता। परैटो अनुकूलतम की दशाओं का समस्त विश्लेषण वर्तमान आय वितरण की मान्यता पर आधारित है। आय वितरण में परिवर्तन हो जाने से भिन्न-भिन्न परैटो अनुकूलतम प्राप्त होंगे जिनमें विभिन्न पदार्थों की पहले से भित्र मात्राएं उत्पादित की जायेंगी और परिणामतः साधनों का आवण्टन भी भिन्न होगा। परैटो ने कोई ऐसा मानदण्ड प्रतिपादित नहीं किया जिसके आधार पर यह निश्चित किया जा सके कि नया अनुकूलतम पहले के परैटो अनुकूलतम से श्रेष्ठ है या नहीं। ऐसा निश्चय आय वितरण के विषय में कुछ नैतिक निर्णयों के आधार पर किया जा सकता है। परन्तु नैतिक निर्णयों का परैटो के मानदण्ड में कोई स्थान नहीं है।

परैटो मानदण्ड तथा परैटो अनुकूलतम का आलोचनात्मक मूल्यांकन

Critical Evaluation of Pareto Critersion and Pareto Optimality)

परैटो का मानदण्ड तथा परैटो अनुकूलतम और उस पर आधारित अधिकतम सामाजिक कल्याण की अवधारणा का कल्याणकारी अर्थशास्त्र में महत्त्वपूर्ण अथवा व्यापार करने के लाभों तथा उससे सामाजिक कल्याण में वृद्धि परैटो अनुकूलतम की अवधारणा से स्पष्ट किया गया है। परन्तु परैटो अनुकूलतम जो कि उन नीतियों जिनसे कुछ व्यक्तियों चाहे वे धनी क्यों न हों को हानि होती है की वांछनीयता पर विचार नहीं करता, की भी कटु आलोचना की गई है। परैटो के कल्याणकारी मानंदण्ड तथा उस पर आधारित अनुकूलतम की अवधारणा की निम्न दृष्टिकोणों से आलोचना की जाती है :

  1. परैटो का मानदण्ड नैतिक निर्णयों से स्वतन्त्र नहीं (Pareto criterion is not free form value judgement)-‌ सर्वप्रथम परैटो के मानदण्ड पर यह अपत्ति की गयी है कि यह नैतिक निर्णयों (ualue judgements) से पूरी तरह स्वतन्त्र नहीं है। परैटो मानदण्ड के समर्थक यह दावा करते हैं कि यह कुशलता (efficiency) अथवा कल्याण (welfare) का एक वस्तुपरक मानदण्ड (objective criterion) है जिसमें व्यक्ति के नैतिक निर्णयों का कोई स्थान नहीं। किन्तु इस विचार को चुनौती दी गयी है। आलोचकों का कहना है कि परैटो की आधारभूत मान्यता कि अन्य व्यक्तियों की स्थिति पूर्ववत् रहते हुए कुछ व्यक्तियों को यदि लाभ होता है (अर्थात् उनके कल्याण में वृद्धि होती है) तो सामाजिक कल्याण में वृद्धि होगी, यह भी एक नैतिक निर्णय है जो सर्वमान्य नहीं। कारण यह है कि हम ऐसे नीति परिवर्तनों को अपनाने या लागू करने की सिफारिश करते हैं जो परैटो के मानदण्ड पर श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं, चाहे उन नीति परिवर्तनों से लाभ उठाने वाले व्यक्ति पहले ही धनी हों और पूर्ववत् स्थिति में बने रहने वाले व्यक्ति निर्धन। अतएव आर्थिक नीतियों के परिवर्तनों से किन व्यक्तियों को लाभ पहुँचता है और कौन पूर्ववत् स्थिति में रहते हैं को विचार में लाए बिना यह कहना कि यदि किसी नीति के अपनाने से अन्य व्यक्तियों को हानि पहुँचाये बिना यदि कुछ व्यक्तियों को लाभ पहुँचता है तो वह श्रेष्ठ है एक नैतिक निर्णय ही है। जो व्यक्ति कुछ थोड़े से व्यक्तियों के धनी बनने को सामाजिक कल्याण के लिए अच्छा नहीं समझते, वे परैटो के मानदण्ड को नैतिक दृष्टि से श्रेष्ठ नहीं समझते।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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