शिक्षाशास्त्र / Education

प्राच्य-पाश्चात्य विवाद क्या है? | प्राच्य-पाश्चात्य विवाद के मुख्य कारण

प्राच्य-पाश्चात्य विवाद क्या है? | प्राच्य-पाश्चात्य विवाद के मुख्य कारण

प्राच्य-पाश्चात्य विवाद क्या है?

(Oriental-Occidental Controversy)

इस विवाद का जन्म ईस्ट इण्डिया कम्पनी के 1813 के आज्ञा पत्र ( Charter Act, 1813) से हुआ। इस सम्बन्ध में निम्न दो कारक प्रमुख थे-

(1) प्रथम, इस आज्ञा पत्र में तो यह निर्देश दिया गया था कि ब्रिटिश कम्पनी शासित क्षेत्रों में शिक्षा की व्यवस्था करना कम्पनी का उत्तरदायित्व होगा परन्तु इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि शिक्षा का स्वरूप क्या होगा?

(2) द्वितीय, धारा 48 में जो एक लाख रुपये की धनरशि प्रतिवर्ष साहित्य के रख-रखाव और भारतीय विद्वानों के प्रोत्साहन और भारतीयों को पाश्चात्य् ज्ञान विज्ञान का ज्ञान कराने के लिए निश्चित की गई थी उसमें साहित्य और भारतीय विद्वान की व्याख्या नहीं की गयी थी।

परिणामतः कम्पनी के लोगों ने इन दोनों शब्दों का अर्थ अलग अलग लिया जिसके कारण दो वर्ग बन गए-एक प्राच्यवादी और दूसरा पाश्चात्यवादी।

(1) प्राच्यवादी वर्ग (Oriental Class)

प्राच्यवादी वर्ग में अधिकतर कम्पनी के वरिष्ठ एवं अनुभवी अधिकारी थे। ये 1813 के आज्ञा पत्र के साहित्य शब्द का तात्पर्य भारतीय साहित्यों से लगाते थे और भारतीय विद्वान का अर्थ भारतीय साहित्यों के विद्वानों से लेते थे। ये चाहते थे कि भारत में-

(i) भारतीय भाषाओं अर्थात् संस्कृत, हिन्दी और अरबी आदि के माध्यम से शिक्षा दी जाये।

(ii) भारतीय साहित्यों एवं ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा दी जाये।

(iii) भारतीयों को पाश्चात्य् ज्ञान-विज्ञान का सामान्य ज्ञान कराया जाए।

(2) पाश्चात्यवादी वर्ग (Occidental Group)

पाश्चात्यवादी दल में कम्पनी के नवयुवक कर्मचारी और मिशेनरी थे। सम्पूर्ण देश में यत्र – तत्र बिखरे हुए थे। अत: इस दल का न तो कोई संगठित स्वरूप था और न उनका कोई नेता ही था। फिर भी, उन्होंने प्राच्यवादियों की नीति का निम्न प्रकार कटु विरोध किया-

(i) उन्होंने यह विचार प्रकट किया कि प्राच्य शिक्षा-प्रणाली मरणासन्न अवस्था को प्राप्त कर चुकी है। और उसे पुनर्जोवन प्रदान करना मानव-प्रयास से बाहर की बात है।

(ii) अरबी, फारसी और संस्कृत के साहित्यों में पुरातन और निरर्थक विचारों के सिवा किसी प्रकार का उपयोगी ज्ञान नहीं मिलता है।

उपरोक्त स्थिति में भारतियों का मानसिक विकास करने के लिए अंग्रेजी के माध्यम पार्चात्य ज्ञान और विज्ञानों से अवगत कराया जाना आवश्यक है।

प्राच्य-पाश्चात्य विवाद के मुख्य कारण

(Main Reason of Oriental and Occidental Controversy)

प्राच्य-पाश्चात्य विवाद के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

प्राच्य-पाश्चात्य विवाद 1813 के चार्टर की 43वां धारा एवं शिक्षा के माध्यम के प्रश्न को लेकर उत्पन्न हुआ था। इसके बाद 1833 के चार्टर द्वारा भारतीय शिक्षा अनुदान की राशि 1 लाख से बढ़कर 10 लाख रुपये वार्षिक कर दिये जाने से रह विवाद उम्र रूप धारण कर गया था। जून, 1834 को गवर्नर जनरल के कानूनी सलाहकार के रूप में भारत आये लार्ड मैकाले को लार्ड बैंटिक ने लोक शिक्षा की समन्वय समिति का प्रधान नियुक्त किया और 1813 के चार्टर की 43वां धारा की व्याख्या एवं शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में कानूनी सलाह देने को कहा। लार्ड बैंटिक ने अपनी व्याख्या लेखबद्ध करके 2 फरवरी, 1835 को गर्वनर जनरल के पास भेज दी थी, जो बाद में ऐतिहासिक महत्त्व का शैक्षिक अभिलेख सिद्ध हुआ और मैकाले के विवरण पत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

शिक्षाशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!