शिक्षाशास्त्र / Education

कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग (1917-1919) | सैडलर आयोग | आयोग के सुझाव व संस्तुतियाँ

कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग (19171919) | सैडलर आयोग | आयोग के सुझाव व संस्तुतियाँ

कलकत्ता, विश्वविद्यालय आयोग, 1917 1919

(Calcutta University Commission, 1917-1919)

सैडलर आयोग (Sadler Commission)

सन् 1913 के “शिक्षा-सम्बंधी सरकारी प्रस्ताव” में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा की उन्नति एवं विस्तार के लिए अनेक बहुमूल्य विचार व्यक्त किये गए थे किन्तु इन विचारों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए शिक्षाविदो की सम्मति की आवश्यकता थी अतएव, एक शिक्षा- आयोग की नियुक्ति का प्रस्ताव किया गया। किन्तु 1914 में आरंभ होने वाले विश्वयुद्ध ने आयोग की नियुक्ति को असंभव बना दिया और शिक्षा-सम्बन्धी सब सुधार कागज पर लिखे रह गए। विश्वयुद्ध की समाप्ति से कुछ पहले भारत सरकार ने ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग” की नियुक्ति की।

(1) नियुक्ति के कारण- सन् 1916 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उप कुलपति सर आसुतोष मुखर्जी ने विश्वविद्यालय में “स्नाकोत्तर विभाग” की स्थापना की। इस विभाग की स्थापना करके, सर आसुतोष मुखर्जी एक नवीन प्रयोग का उद्घाटन करने के लिये अत्यधिक उत्सुक थे। उसकी इच्छा थी कि स्नाकोत्तर-शिक्षण का कार्य विश्वविद्यालय में हो किया जाए। उनकी इस इच्छा की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट हुआ। अत: उसने स्नातकोत्तर शिक्षण के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय की क्षमता की जाँच करने के लिए 14 सितम्बर, सन् 1917 को “कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग” की नियुक्ति की। इस आयोग का अध्यक्ष-लीड्स विश्वविद्यालय (Leads University) का उपकुलपति डा० माइकेल सैडलर (Michael Sadler) था। अतः उसके नाम पर इस आयोग को “सैडलर आयोग” (Sadler Commission) भी कहा जाता है।

(2) जाँच का विषय- “आयोग” की जाँच का विषय था-“कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थिति एवं आशाओं की जाँच करना और उससे सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करने के लिये रचनात्मक नीति पर विचार करना।”

“आयोग” को मुख्य रूप से कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थिति की जाँच करने के लिए नियुक्त किया गया था। किन्तु उसे तुलनात्मक दृष्टि से अन्य विश्वविद्यालयों की भी जाँच करने का अधिकार प्रदान कर दिया गया था। उसने इस अधिकार के साथ-साथ शिक्षा के अन्य अंगों की जाँच करने के अधिकार का भी प्रयोग किया। उसने 17 माह तक अथक् परिश्रम करके मार्च, सन् 1919 ई० में सरकार को अपना प्रतिवेदन प्रेषित किया।

आयोग के सुझाव व संस्तुतियाँ

(Suggestions and Recommendations of The Commission)

“आयोग” ने शिक्षा के लगभग सभी अंगों के विषय में अपने विचार लेखबद्ध किए। हम कुछ महत्त्वपूर्ण अंगों पर उसके सुझावों और सिफारिशों पर प्रकाश डाल रहे हैं; जैसे-

(1) माध्यमिक शिक्षा- “आयोग” ने माध्यमिक शिक्षा को उच्च शिक्षा का मुख्य आधार मानकर, उसके सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिये-

(i) स्नातकों (Graduates) का पाठ्यक्रम 3 वर्ष कर दिया जाना चाहिए।

(ii) इण्टरमीडिएट की शिक्षा के लिए पृथक् इण्टरमीडिएट कॉलेजों की स्थापना की जानी चाहिए।

(ii) प्रत्येक प्रांत में “माध्यमिक और इण्टरमीडिएट शिक्षा-बोर्ड” (Board of Secondary and Intermediate Education) का निर्माण किया जाना चाहिए।

(iv) विश्वविद्यालयों में केवल इण्टरमीडिएट परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाना चाहिए।

(v) माध्यामिक स्कूलों और इण्टरमीडिएट कॉलजों के नियंत्रण और निरीक्षण का कार्य उक्त बोडों को सौंप दिया जाना चाहिए।

(vi) इण्टरमीडिएट कक्षाओं को विश्वविद्यालयों से पृथक कर दिया जाना चाहिए।

(vii) इण्टरमीडिएट कॉलेजों में शिक्षा का माध्यम- भारतीय भाषाएँ होनी चाहिए।

(2) कलकत्ता विश्वविद्यालय- “आयोग” ने कलकत्ता विश्वविद्यालय की विशाल छात्र- संख्या को ध्यान में रखकर अग्रलिखित सिफारिशें की-

(i) कलकत्ता नगर के सब कॉलेजों को इस प्रकार संगठित किया जाना चाहिए कि एक शिक्षण विश्वविद्यालय का निर्माण हो जाये।

(ii) ढाका में “सावास और शिक्षण” (Residential and Teaching) विश्वविद्यालय की शीघ्रातिशीघ्र स्थापना की जानी चाहिए।

(iii) कलकत्ता नगर के आस-पास के कॉलेजों को इस प्रकार संगठित किया जाना चाहिए कि उपयुक्त स्थानों पर क्रमशः विश्वविद्यालयों की स्थापना हो जायें।

(3) भारतीय विश्वविद्यालय- “आयोग” ने भारतीय विश्वविद्यालयों के सँगठन, शासन आदि के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिए-

(i) विश्वविद्यालयों में “पास कोर्स” (Pass Course) के अलावा “ऑनर्स कोर्स” (Honours Course) का भी प्रचलन कर दिया जाना चाहिए।

(ii) विश्वविद्यालयों में कृषि, कानून, डॉक्टरी, अध्यापन, इंजीनियरिंग आदि की शिक्षा की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।

(iii) छात्रों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए प्रत्येक विश्वविद्यालय में “शारीरिक प्रशिक्षण- संचालक” (Director of Physical Training) की नियुक्ति की जानी चाहिए।

(iv) विश्वविद्यालयों को सरकार के निरीक्षण से मुक्त होकर, अधिक स्वतंत्रता का उपभोग करना चाहिए।

(v) स्नातकों का पाठ्यक्रम 3 वर्ष कर दिया जाना चाहिए।

(vi) विश्वविद्यालयों में अरबी, फारसी और संस्कृत के अध्ययन के सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।

(4) स्त्री-शिक्षा- विश्वविद्यालयों में स्त्री-शिक्षा का विस्तार करने के उद्देश्य से दो मुख्य सुझाव दिए-

(i) कलकत्ता विश्वविद्यालय में “स्त्री-शिक्षा का विशिष्ट परिषद्” (Special Board of Women’s Education) की स्थापना की जानी चाहिए। इस “परिषद्” के द्वारा ्त्रियों को चिकित्सा-शिक्षा और शिक्षक-प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।

(ii) जो बालिकाएँ की 15-16 वर्ष की अवस्था तक बालकों से पृथक् शिक्षा प्राप्त करना चाहती हैं, उनके लिए “पर्दा-स्कूलों” (Purdah Schools) का प्रबन्ध किया जाना चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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