प्रबंधन सूचना प्रणाली / Management Information System

प्रणाली विश्लेषण तकनीक या सिद्धांत | प्रणाली विकास के प्रति दृष्टिकोण या मॉडल | प्रबंध के प्रणाली दृष्टिकोण | प्रणाली दृष्टिकोण को लागू करने के लिए आवश्यक कदम या प्रक्रिया

प्रणाली विश्लेषण तकनीक या सिद्धांत | प्रणाली विकास के प्रति दृष्टिकोण या मॉडल | प्रबंध के प्रणाली दृष्टिकोण | प्रणाली दृष्टिकोण को लागू करने के लिए आवश्यक कदम या प्रक्रिया | System Analysis Techniques or Principles in Hindi | Approach or model to system development in Hindi | Systems Approach to Management in Hindi | Steps or process required to implement the systems approach in Hindi

प्रणाली विश्लेषण तकनीक या सिद्धांत (System Analysis Technique)

यहाँ प्रणाली कैसे कार्य करती है को दर्शाना उसका Model कहलाता है। एक प्रणाली में Input होते हैं जिन पर Processing होने पर उन्हें Output में बदला जाता है अतः

Input →     Process →

Output

यहाँ प्रणाली में एक से अधिक Input भी हो सकते हैं तथा विभिन्न Output भी प्राप्त किए जा सकते हैं। प्रणाली विश्लेषण तकनीक के अन्तर्गत निम्नलिखित विधि अपनायी जाती है –

(1) प्रणाली पर्यावरण (System Environment)– एक तथ्यों या तत्वों का समूह प्रणाली होती हैं और प्रत्येक प्रणाली प्रायः अपने उन्हीं तत्वों के साथ संबंध बनाते हुए कार्य करती है। प्रणाली के तत्वों में संबंध एक नियंत्रण रेखा में होते हैं अर्थात् यह किसी विशेष तत्वों से ही आकर्षित होती है, अन्य से नहीं, अर्थात् इसकी सीमा होती है और इस सीमा के बाहर के तत्वों या तथ्यों को प्रणाली का वातावरण कहते हैं अर्थात् ऐसे तत्व जिनसे प्रणाली का अन्तर्सम्बन्ध नहीं होता, प्रणाली के वातावरण का निर्माण करते हैं।

(2) उप प्रणाली (Sub System)- प्रणाली के हिस्से को उप प्रणाली कहते हैं जो स्वयं में एक प्रणाली होती है। इस उपप्रणाली को भी आगे छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटा जा सकता है उन्हें भी उपप्रणाली कहते हैं। प्रायः एक बड़ी प्रणाली को नियंत्रित करना मुश्किल होता है। अतः इस समस्या से बचने के लिए ही उसे छोटी-छोटी उपप्रणाली में बाँटा जाता है ताकि नियंत्रण रखा जा सके। ये सभी उपप्रणालियाँ आपस में संबंध बनाकर मुख्य प्रणाली के उद्देश्यक्षको पूर्ण करती हैं। उदाहरण के लिए कम्प्यूटर Input Device, CPU, Output Device सभी उपप्रणाली है जो कुल मिलाकर एक Computer System का निर्माण करती है।

(3) अधिकक्ष प्रणाली (Supra System) – उस इकाई को कहते हैं जो किसी प्रणाली व उसी प्रकार की समान प्रणालियों से मिलकर बनी है अर्थात ये समान महत्व वाली विभिन्न उपप्रणाली के संयोग से बनती हैं। उदाहरण के लिए प्रबंध को कई भागों में बाँटा जा सकता है, जैसे—संगठन, नियंत्रण, निर्देशन आदि। इन सभी का समान महत्व है तथा इनके संयोग से बनी प्रबंध प्रणाली को हम एक Supra System कह सकते हैं। उपप्रणालियों वाले System में नीचे वाली प्रणाली को उपप्रणाली कहते हैं तथा ऊपर वाली प्रणाली को Supra System कहते हैं।

प्रणाली विकास के प्रति दृष्टिकोण या मॉडल

(Approaches to System Development)

  1. परंपरागत दृष्टिकोण (Traditional Approach)- इस दृष्टिकोण के अन्तर्गत प्रणाली का विकास एक क्रम के अंतर्गत किया जाता है। इसके अंतर्गत प्रबंधक, प्रयोक्ता, प्रणाली विश्लेषक व प्रणाली डिजाइनर साथ-साथ काम करते हैं। इसमें एक क्रिया पूरी होने पर ही विकास चक्र की दूसरी क्रिया की जाती है। प्रत्येक स्तर पर किए गए कार्य को प्रबंधक व प्रयोक्ता जाँचते हैं तथा सही पाए जाने पर ही अगली क्रिया प्रारम्भ की जाती है तथा इस प्रकार प्रणाली का विकास किया जाता है। यह विधि प्रायः एक बड़ी प्रणाली के निर्माण के लिए अपनाई जाती है।

परम्परागत दृष्टिकोण प्रक्रिया- इसमें निम्न विकास प्रक्रिया अपनायी जाती है-

Preliminary Investigation

Requirement Analysis

System Design

System Acquisition

System Testing

System Implementation & Maintenance

एक stage का result सही होने पर ही अगली क्रिया की जाती है।

  1. आदिप्ररूपण दृष्टिकोण (Prototyping Approach)-परंपरागत दृष्टिकोण के अंतर्गत प्रणाली विकास करने में कई वर्ष लग जाते हैं। इससे बचने के लिए आदिप्ररूपण दृष्टिकोण को प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके अंतर्गत प्रणाली का एक संक्षिप्त रूप (Prototype) तैयार किया जाता है। जिसे संस्था में क्रियान्वित किया जाता है तथा उस पर काम करते हुए उसकी कमियाँ निकाली जाती हैं तथा सुधार किया जाता है। इन सुधारों से नया प्रोटोटाइप तैयार किया जाता है तथा पुनः यही प्रक्रिया अपनाई जाती है अन्ततः प्रणाली विकसित की जाती है। इसके साथ काम करते हुए नई-नई आवश्यकताओं को भी इसमें शामिल किया जाता है। अतः इसमें निम्न चार क्रमों में विकास प्रक्रिया की जाती है।

(i) सूचना प्रणाली की जरूरतों की पहचान करना।

(ii) प्रारंभिक आदिरूप को विकसित करना।

(iii) बनाए गए आदिरूप का परीक्षण करना तथा सुधार करना (यह तब तक किया जाता है जब तक पूर्ण प्रणाली तैयार नहीं हो जाती है।

(iv) तैयार प्रणाली की प्रयोक्ताओं व प्रबंधकों से अनुमोदन प्राप्त करना।

स्थिति जिसमें यह दृष्टिकोण उपयोगी है (Situation Where this Approach is Useful)

  1. जहाँ प्रयोक्ता अपनी जरूरतों व आवश्यकता को भली-भाँति नहीं जानते हैं।
  2. आवश्यकताओं को परिभाषित करना मुश्किल है।
  3. नई प्रणाली को शीघ्र प्रयोग में लाना हो।
  4. नई प्रणाली के परिणाम के जोखिम बहुत अधिक हों।

प्रबंध के प्रणाली दृष्टिकोण (System Approach to Management) –

एक संगठन कई विभिन्न उपप्रणालियों से मिलकर बनता है जिनमें प्रबंधकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्रबंधक को समस्या का समाधान इस प्रकार करना चाहिए कि विभिन्न प्रभावित होने वाले विभागों में समस्या को सुधारा जा सक अर्थात् यह एक साथ पूरी प्रणाली को लेकर चलता है। इसमें प्रबंधक समस्या को किसी एक विभाग के आधार पर नहीं सुलझाता क्योंकि एक विभाग की क्रियाएँ अन्य विभागों को प्रभावित करती हैं अन्तः प्रबंधक को समस्या का समाधान करते समय पूरी प्रणाली पर या विभिन्न उपप्रणालियों पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखना चाहिए न कि एकल विभाग को।

प्रणाली दृष्टिकोण को लागू करने के लिए आवश्यक कदम या प्रक्रिया (Essential Steps or Process to Implement System Approach)–

किसी समस्या को हल करने में प्रणाली दृष्टिकोण को लागू करने के लिए निम्न कदम उठाने होते हैं-

  1. समस्या को परिभाषित करना (Define the Problem)- सर्वप्रथम प्रबंधकों को समस्या को परिभाषित करना चाहिए अर्थात यह देखना चाहिए कि वास्तव में समस्या क्या है तथा कैसे यह समस्या संस्था को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए सुपुर्दगी में होने वाली देरी की समस्या को परिभाषित करने में देखना होता है। कि यह किस-किस प्रकार से संस्था को प्रभावित कर सकती है जैसे ख्याति (Goodwill) में कमी, विक्रय में कमी, डूबत (Bad Debts) हो जाना आदि।
  2. समस्या के कारणों को खोजना तथा उनका विश्लेषण करना (To Find Out Causes of Problem and Analyse Them) – इसके अंतर्गत समस्या के उत्पन्न होने के कारणों को खोजा जाता है तथा उनका विश्लेषण किया जाता है जैसे पूर्व उदाहरण में समस्या उत्पन्न होने के कारण-(i) अधिक क्रय आदेश प्राप्त होना, (ii) उत्पादन में कमी आना हो सकता है। अब इनके विश्लेषण में यह देखा जा सकता है कि उत्पादन में कमी के पीछे क्या कारण हैं जैसे बिजली की कमी के कारण या उत्पादन व्यवस्था का सही न होना आदि।
  3. वैकल्पिक उपायों को खोजना (To Search Alternative Measures ) – समस्या के कारणों का पता लगने के बाद प्रबंधकों को उनके उपायों को खोजना चाहिए। समस्या के उपाय विभिन्न हो सकते हैं अतः विभिन्न उपायों को खोजा जाता है या पता लगाया जाता है। जैसे आदेशों को रद्द करना, या दूसरी शिफ्ट चलाकर या ओवरटाइम से उत्पादन करना आदि।
  4. वैकल्पिक उपायों का मूल्यांकन (To Evaluate Alternative Measures) – विभिन्न उपायों का पता लगाने के बाद उनका मूल्यांकन किया जाता है अर्थात् यह देखा जाता है कि विभिन्न उपायों के क्या गुण तथा अवगुण हैं अर्थात उन्हें अपनाने के क्या-क्या प्रभाव पड़ेंगे।
  5. सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव (To Choose Best Alternate) – उपरोक्त मूल्यांकन होने के बाद उनमें से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव किया जाता है जिसे समस्या के समाधान के लिए अपनाया जाएगा।
  6. समाधान का क्रियान्वयन (Activation of Solution)- अन्ततः सुझाए गए सर्वश्रेष्ठ विकल्प को संस्था में अपनाया जाता है तथा समस्या को दूर किया जाता है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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