शिक्षक शिक्षण / Teacher Education

सेमेस्टर प्रणाली क्या है? | इसकी सम्पूर्ण जानकारी | Semester System in Hindi

सेमेस्टर प्रणाली क्या है? | इसकी सम्पूर्ण जानकारी | Semester System in Hindi

विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों का आयोजन प्रायः वार्षिक, द्विवार्षिक, त्रिवार्षिक अथवा चतुर्वार्षिक स्तर पर किया जाता है। जैसे बी.एड. व एम.एड. के पाठ्यक्रम प्रायः एक वर्षीय होते है। हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रायः द्वि-वर्षीय होते हैं, स्नातक पाठ्यक्रम प्रायः त्रिवर्षीय होते है, जबकि चिकित्सा व अभियांत्रिकी के पाठ्यक्रम प्रायः चार अथवा पाँच वर्षीय होते हैं। सामान्यतः इस प्रकार के सभी पाठ्यक्रमों में मुख्य परीक्षा का आयोजन वार्षिक अथवा द्विवार्षिक स्तर पर किया जाता है, इन परीक्षाओं के द्वारा सम्पूर्ण वर्ष अथवा दो वर्ष, जैसी भी स्थिति हो, की अवधि में छात्रों के द्वारा अध्ययन किये गये पाठ्यक्रम में उनके ज्ञान, बोध व कौशल आदि का मूल्यांकन किया जाता है। जैसे हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट परीक्षाओं में प्राय दो वर्ष की अवधि में अर्जित ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है जबकि स्रातक या स्नातकोत्तर स्तर पर एक वर्ष में अर्जित ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है। इन परीक्षाओं में प्राप्त अंकों के आधार पर ही छात्रों को प्रमाणपत्र की उपाधि प्रदान की जाती है। यहां पर यह इंगित करना भी उचित ही होगा कि कुछ पाठ्यक्रमों में पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक या अर्द्धवार्षिक परीक्षाओं का भी आयोजन किया जाता है तथा कहीं-कहीं सतत्-आन्तरिक मूल्यांकन का प्रावधान भी हाता है परन्तु फिर भी मुख्य जोर वार्षिक अथवा द्वि-वार्षिक स्तर पर ली जाने वाली परीक्षाओं पर ही हता है। सम्पूर्ण पाठ्यवस्तु को दो वर्ष या एक वर्ष पढ़ाकर उससे परीक्षा लेने की इस प्रणाली में कई कामयाँ दृष्टिगोचर होती हैं। प्रथम, वार्षिक परीक्षा में सम्मिलित पाठ्यवस्तु अत्यधिक व्यापक व विस्तृत हा जाती है जिसका वार्षिक स्तर पर आयोजित परीक्षाओं के द्वारा समुचित मूल्यांकन सम्भव नहीं हो पाता है। द्वितीय, शैक्षिक कार्यक्रम की अवधि अधिक होने के कारण प्रायः छात्र परीक्षा के नजदीक आने पर हो तयारी प्रारम्भ करते हैं तथा बाह्य परीक्षा के लिए चयनित अध्ययन को अधिक वरीयता देते हैं। तृतीय, शिक्षा प्रक्रिया परीक्षा केन्द्रित हो जाती है जिसके कारण अध्यापकों व छात्रों का ध्यान ज्ञानाजन से हटकर परीक्षा उत्तीर्ण करने तक ही सीमित रह जाता है। शिक्षा प्रक्रिया के इन दोषों को दूर करके इस अधिक सक्रिय प्रभावशाली तथा उपयोगी वनाने की दृष्टि से सेमेस्टर प्रणाली को लागू करने का सुझाव दिया जाता है। विदेशों में तथा कुछ अभियान्त्रिकी संस्थाओं में सेमेस्टर प्रणाली को पहले ही सफलतापर्ड लागू किया जा चुका है।

सेमेस्टर प्रणाली के अन्तर्गत किसी उपाधि विशेष के लिए निर्धारित संपूर्ण पाठ्यक्रम को छह छह माह के कुछ खण्डों में विभक्त कर दिया जाता है जिन्हें सेमेस्टर कहते हैं। प्रत्येक सेमेस्टर के पाठ्यक्रम का शिक्षण करने के उपरान्त परीक्षा आयोजित की जाती है। स्पष्ट है कि सेमेस्टर प्रणाली में शिक्षा सत्र एक वर्ष/द्विवर्ष का न होकर मात्र छह माह का होता है तथा प्रत्येक छह माह के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम का अध्यापन, अध्ययन व परीक्षा सुनियोजित ढंग से इस छह माह की निर्धारित अवधि में सम्पादित की जाती है। अतः सेमेस्टर प्रणाली में एक वर्षीय पाठ्यक्रम को दो सेमेस्टरों में, द्वि-वर्षीय पाठ्यक्रम को चार सेमेस्टरों में तथा त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम को छह सेमेस्टरों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक सेमेस्टर के लिए अलग-अलग पाठ्यवस्तु निर्धारित रहती है जिसे छह माह की अवधि के अन्दर पढ़ाया जाता है तथा परीक्षा ली जाती है। यह परीक्षा पूर्णतः बाह्य अथवा पूर्णतः आन्तरिक अथवा बाह्य-आन्तरिक का मिलाजुला रूप हो सकती है। किसी पाठ्यक्रम उपाधि के लिए निर्धारित समस्त सेमेस्टरों की समाप्ति के उपरान्त उन सभी में अरजित शैक्षिक उपलब्धियों के योग के आधार पर छात्रों को श्रेणी प्रदान की जाती है।

सेमेस्टर प्रणाली वर्तमान में प्रचलित वार्षिक प्रणाली की कमियों को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम प्रतीत होता है। सेमेस्टर प्रणाली के अनेक लाभ हैं। सेमेस्टर प्रणाली में सत्र की अवधि कम होने के कारण छात्रों को सम्पूर्ण सेमेस्टर अध्ययनरत रहना पड़ता है। लगातार गहन अध्ययन करने के फलस्वरूप उनमें विषयवस्तु की समझ के साथ-साथ आत्मविश्वास भी बढ़ता है। सेमेस्टर प्रणाली के अन्तर्गत एक सेमेस्टर के परीक्षा परिणामों की प्रतीक्षा किये बिना अगले सेमेस्टर का अध्ययन प्रारम्भ कर सकते हैं । केवल अन्तिम सेमेस्टर की परीक्षा के समय परीक्षा परिणामों का इन्तजार एक बाध्यता हो सकती है, परन्तु शेष सेमेस्टरों की परीक्षा सम्पन्न होने के उपरान्त अगले सेमेस्टर का शिक्षण कार्य तुरंत ही शुरू किया जा सकता है। किसी सेमेस्टर में कोई छात्र यदि किसी विषय या प्रश्नपत्र में अनुत्तीर्ण हो जाता है तो वह उस विषय या प्रश्नपत्र को अगली बार अतिरिक्त ढंग से पुनः परीक्षा देकर उत्तीर्ण कर सकता है। इस प्रकार से सेमेस्टर प्रणाली में परीक्षा समाप्ति के उपरान्त परिणामों की प्रतीक्षा में नष्ट की जाने वाले दो-तीन माह की अवधि का सदुपयोग शिक्षण-अधिगम के लिए करना संभव हो सकता है। वस्तुतः सेमेस्टर प्रणाली सम्पूर्ण वर्ष अध्यापकों तथा छात्रों को शिक्षण व अधिगम में व्यस्त रख सकती है। जिसके फलस्वरूप शिक्षा प्रांगणों में अनुशासनहीनता की समस्या भी काफी सीमा तक समाप्त होने की आशा भी की जा सकती है।

परन्तु सेमेस्टर प्रणाली में कुछ दोष भी हैं। थोड़े-थोड़े अन्तराल पर परीक्षाओं का आयोजन करना प्रशासनिक दृष्टि से अपने-आप में एक सनस्या है। छात्रों की संख्या के कम होने पर तो वर्ष में दो बार परीक्षाओं का आयोजन संभव हो सकेगा परन्तु छात्र संख्या के अधिक होने पर वर्ष में दो बार परीक्षा सम्पन्न कराना प्रशासनिक तन्त्र के लिए बहुत ही मुश्किल होगा। हाईस्कूल, इण्टर अथवा स्नातक स्तर पर जहाँ छात्रो की संख्या लाखों या अनेक हजारों में होती है वहां पर वर्ष में एक से अधिक बार वाह्य परीक्षा का आयोजन असम्भव सा ही होगा। ऐसी स्थिति में आन्तरिक परीक्षा के विकल्प पर विचार किया जा सकता है। बार-बार परीक्षा लेने के कारण सेमेस्टर प्रणाली अधिक खर्चीली भी होगी। शिक्षण के कुछ समय बाद ही परीक्षा लेने से बोध के स्थान पर स्मरण-अधिगम की प्रवृत्ति बढ़ेगी। आन्तरिक परीक्षा को अधिक महत्व देने पर परीक्षा परिणामों की विश्वसनीयता व वैधता में कमी आ जाने की संभावना रहेगी। अतः सेमेस्टर प्रणाली को लागू करने से पूर्व उसके गुण तथा दोषों पर समुचित विचार करना आवश्यक होगा। इसके अतिरिक्त सेमेस्टर प्रणाली के व्यावहारिक पक्ष पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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