इतिहास / History

सामन्तवाद से अभिप्राय | सामन्तवाद के कुपरिणाम

सामन्तवाद से अभिप्राय | सामन्तवाद के कुपरिणाम

सम्राट् हर्षवर्धन के देहावसान के साथ ही भारतीय इतिहास के एक युग की समाप्ति हुई। प्राचीन भारत की साम्राज्यवादी परम्पराओं का अन्त हुआ। मौर्य, गुप्त और वर्धन सम्राटों के सार्वभौम साम्राज्य इतिहास की वस्तु बन गए। देश की राजनैतिक एकता समाप्त हो गई। पृथकतावादी तत्वों ने सिर उठाना प्रारम्भ कर दिया। देश अनेक छोटे-बड़े राज्यों में विभाजित हो गया। कई छोटे-बड़े राजा और उनके सामन्त उठ खड़े हुए, जो आपस में सर्वोच्चता पाने के लिए लड़ने लगे। वैसे इस काल के राजाओं की शक्ति उसके अधीनस्थ सामन्तों पर आधारित थी और ये सामन्त अवसरवादी थे। मौका मिलते ही अपने स्वामी से अलग होकर ये सामन्त अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर देते थे। अपने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना कर राजा बन जाना ही उनका ध्येय था। अतः आठवीं से बारहवीं सदी सामन्तों की सदी थी। आठवीं सदी में भारतीय इतिहास ने एक नए युग में प्रवेश किया। वह सामन्तवादी युग था।

सामन्तवाद से अभिप्राय-

सामन्तवाद का अर्थ है राजा का अधीनस्थ । इस काल में हमें सामन्तों का बाहुल्य दिखाई देता है। प्राचीन भारत के इतिहास में सामन्तों का उल्लेख नहीं मिलता। उस समय सत्ता का पूरी तरह केन्द्रीकरण था। इस काल में सत्ता का विभाजन और विकेन्द्रीकरण हुआ। इस काल के राजा, नरेशों और शासकों की शक्ति का आधार उसके अधीनस्थ सामन्त थे।

सामन्त वास्तव में देखा जाय तो अपने आन्तरिक मामलों में स्वतन्त्र ही होते थे। अतः इनके ठिकानो की प्रजा के लिए तो ये ही राजा या मालिक थे। समय आने पर ये सामन्त अपने आपको राजा बनाने का प्रयत्न करते थे। राजनीति में ये अवसरवादी रोल अदा करते थे। सदैव स्वयं राजा बनने का प्रयत्न इनका रहता था। केन्द्रीय सत्ता के कमजोर होते ही सामन्त स्वतन्त्र राजा बन बैठता था। स्वतन्त्र राजा बन जाने पर वह अपने राज्य को पुनः छोटे सामन्तों में बाँट देता था। इस प्रकार देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बँट जाता था। कभी-कभी सामन्त अपने स्वार्थ के लिए अपने राजा के शत्रुओं से मिल जाता था और लाभ उठाने का प्रयल करता था।

सामन्तवाद के कुपरिणाम-

सामन्तवाद की ‘स नीति के कारण देश को अनेक कुपरिणाम भोगने पड़े। सामन्तवाद ने विकेन्द्रीकरण की पद्धति को बढ़ावा दिया। विकेन्द्रीकरण ने राष्ट्रवादी भावनाओं को पनपने नहीं दिया। परिणाम स्वरूप देश में राजनैतिक एकता का अभाव हो गया। इसने राजनैतिक फूट को जन्म दिया। राजा, नरेश और सामन्त अपनी-अपनी श्रेष्ठता के लिए आपस में लड़ने लगे। इसने अकारण ही सैनिक संघर्षों को बढ़ावा दिया। इसने सीमित और संकुचित स्वार्थों को विकसित किया। सामन्त उससे ऊपर न उठ सके। इससे देश में राजनैतिक अराजकता और फूट फैल गई। विदेशी हमले के समय यह सामन्तवादी फूट घातक सिद्ध हुई। इस फूट का लाभ मुसलमानी हमलावरों ने उठाया। अतः सामन्तवाद देश के लिए अलाभकारी सिद्ध हुआ। सामन्तों के भी सामन्त होते थे। फलस्वरूप सारा देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया था। सामन्तवादी मनोवृत्ति का इस काल में बोलबाला था। इस सामन्तवादी युग को इतिहासकार ‘अन्धकार का युग’ की संज्ञा देते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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