इतिहास / History

फ्रांस की राज्यक्रांति के सामाजिक कारण | Social Causes of the Revolution in Hindi

फ्रांस की राज्यक्रांति के सामाजिक कारण | Social Causes of the Revolution in Hindi

फ्रांस की राज्यक्रांति के सामाजिक कारण

(Social Causes of the Revolution)

विभिन्न वर्ग-

फ्रांसीसी समाज क्रांति के पूर्व सामंती व्यवस्था पर आधृत था। एक वर्ग सुविधाप्राप्त वर्ग था तथा दूसरा सुविधाहीन वर्ग। सुविधाप्राप्त वर्ग पुनः दो वर्गों में बंटा हुआ था-प्रथम वर्ग अथवा प्रथम इस्टेट में पादरीवर्ग के लोग आते थे और दूसरे वर्ग में सामंत। पहले वर्ग में लगभग एक लाख तीस हजार पाद्री थे। दूसरे वर्ग में लगभग 80,000 परिवार या 4,00,000 व्यक्ति थे। इन दोनों वर्गों के व्यक्ति प्राय: सभी करों से मुक्त थे। प्रशासकीय पदों और सेना के उच्च पदों पर अधिकतर उन्हीं में नियुक्ति की जाती थी। फ्रांस की जनसंख्या उस समय 2,50,00,000 थी, मगर फ्रांस की कुल भूमि का 40 प्रतिशत भाग इन्हीं वर्गों के सदस्यों के पास था।

पादरी वर्ग-

फ्रांसीसी पुरातन व्यवस्था में पादरी इस्टेट के सदस्य थे जो रोमन कैथोलिक चर्च के अधिकारी थे। इनके अपने स्वतंत्र संगठन, कानून, न्यायालय और करारोपण के अधिकार थें। देश की जमीन का पाँचवा भाग चर्च के पास था और वह आम जनता से ‘टाइथ’ वसूलता था। इसकी आमदनी असीमित थी । पादरियों की आमदनी बढ़ गई थी, इसलिए वे विलास में डूबे हुए थे। धार्मिक तथा सामाजिक कार्यों से उन्होंने अपना मुख मोड़ लिया था। पादरीवर्ग भी दो वर्गों में विभाजित था-उच्च पादरी और निम्न पादरी । उच्च पादरी वर्साय में रहते थे और निम्न पादरियों द्वारा एकत्रित आय से ऐशो-आराम की जिदगी व्यतीत करते थे। वास्तुविक धार्मिक कार्य निम्न पादरियों को करना पड़ता था। निम्न पादरी आम जनता के साथ गांवों में रहते थे और उसी वर्ग से आते थे, जिस कारण उनकी परेशानियों से अवगत थे और उनके प्रति सहानुभूति रखते थे। इसी कारण क्रांति के समय निम्न पादरी आम जनता के सदस्यों के साथ मिल गए।

सामंतवर्ग-

सामंत या अभिजात वर्ग के लोग द्वितीय इस्टेट कहलाते थे। इन्हें कुई तरह की सुविधाएँ प्राप्त थीं। सर्वप्रथम उन्हें किसी तरह का कर नहीं देनो पड़ता था और सभी उच्च राजकीय पदों पर केवल उन्हीं में से नियुक्ति होती थी। वे फ्रांस की एक-चौथाई भूमि के मालिक थे। इस वर्ग में धनी और अमीर दोनों थे, किंतु दोनों समान रूप से किसानों का शोषण करते थे। किसानों से वे तरह-तरह के सामंती कर, अन्य देय् और बेगारी लेते थे। कुलीनों के पालतू पशु क्षकों के खेत उजाड़ देते थे, लेकिन उसके विरुद्ध वे बोल नहीं सकते थे। जंगली जानवरों को भी वे नहीं खदेड़ सकते थे; क्योंकि वे सामंतों का शिकार खेलने के काम आते थे। आर्थिक लाभ के लिए सामंत अपनी जागीरों में आटा पीसने की चक्की, शराब बनाने की भुट्ठी और तंदूर सेंकने की भट्ठी बनाए हुए थे, जिनका उपयोग वहाँ के स्थानीय लोगों को पैसा देकर करना निहायत जरूरी था। खेत बेचने पर किसानों को बिके खेत का पांचवां हिस्सा जागीदार को देना पड़ता था। बाहर से आनेवाली चीजों पर वे कर वसूलते थे। सड़कों और पुलों पर वे टॉल टैक्स उगाहते थे।

कई तरह के सामंत-

सामंतवर्ग भी कई वर्गों में बँटा हुआ था, जिनमें कुछ सेना के उच्च अधिकारी थे तो कुछ न्याय के क्षेत्र में आगे बढ़े हुए थे। सामंतों का एक निम्नवर्ग भी था, जो वास्तव में आम जनता के साथ रहता था और जिसकी आर्थिक स्थिति आम जनता से बहुत अच्छी नहीं थी। चौदहवाँ लुई ने सामंतों की शक्ति कम करने के ख्याल से उन्हें वर्साय में रहने के लिए कहा । परंतु, धीर-धीरे ये सामंत राजपरिवार का नकल करने लगे और विलासिता में डूब गए। उन्होंने अपने सामंती दायित्वों को भी निभाना छोड़ दिया। इसलिए, बड़े सामंतों का आम जनता से संपर्क टूट गया और क्रांति के समय वें आम जनता के कोपभाजन हुए। इतना ही नहीं साधारण सामंत, अर्थात् निम्न वर्ग के कुलीन भी बड़े सामंतों से नफरत करते थे; क्योंकि वास्तविक सामंती दायित्वों का निर्वाह उन्हें करना पड़ता था जबकि टैक्स की बड़ी राशि को बड़े सामंत विलासी जीवन व्यतीत करने के लिए उनसे वसूल लेते थे। निम्न वर्ग के सामंतों की स्थिति किसानों से बहतु अच्छी नहीं थी।

सुविधाहीन वर्ग (किसान)-

सुविधाहीन वर्ग को तृतीय इस्टेट कहा जाता था, जिसमें किसान, बुर्जुआ और दुस्तकार आते थे। फ्रांस का कृषक सामान्य स्थितियों में भी अपनी जरूरत के लिए अन्न पैदा कर लेता था, लेकिन उनमें अधिकांश संख्या भूमिहीनों की थी। देश की अधिकांश भूमि सामंतों के पास थी और उस पर कृषक काम करने के लिए मजबूर थे। चूंकि सामंतों की जरूरतें पूरी हो जाती थीं, इसलिए पैदावार में उन्हें विशेष रुचि नहीं थी। कृषकों की आमदनी का अधिकांश भूमि-कर, धर्म-कर और नमक कर के रूप में राज्य या सामंतों के पास चला जाता था। करों की असमानता की यह स्थिति थी कि एक स्थान से दूसरे स्थान के मूल्य में कभी-कभी तीस गुना फर्क होता था। सामंत और पादरी सामाजिक विशेषाधिकारों के कारण इन करों को देने से मुक्त थे, परिणामत: आम जनता पर कर का बोझ और बढ़ जाता था। तत्कालीन फ्रांस में एक कहावत लोकप्रिय थी, सामंत् लड़ता है, पादरी पूजा करता है और सामान्य जन् कर देता है। किसानों की कड़ी मेहनत के फल का अधिकांश उच्च वर्ग के लाग ले लेते थे, इसलिए किसान उनसे नफरत करते थे और चाहते थे कि उनका शोषण रुक जाए। फिर भी फ्रांसीसी किसानों की हालत यूरोप के अन्य देशों के किसानों से अच्छी थी; क्योंकि ये जमीन खरीद रहे थे और उनका मनसूबा ऊंचा हो गया था। ये महसूस करते थे कि यदि उनका शोषण रुक जाए तो ये और अधिक संपन्न बन सकते हैं, अतः इन्होने क्रांति में अपने स्वार्थों की रक्षा के लिए मध्यमवर्ग का साथ दिया।

मध्यमवर्ग (बुर्जुआवर्ग)-

फ्रांसीसी समाज का बुर्जुआवर्ग सर्वाधिक प्रबुद्ध था जिसमें संपन्न् व्यापारी, वकील, लेखक, प्राध्यापक, डॉक्टर इत्यादि थे। ये काफी शिक्षित और आर्थिक रूप से संपन्न थे, फिर भी समाज में इनकी स्थिति अच्छी नहीं थी। नेपोलियन ने सेंट हेलना में सत्य ही कहा था कि क्रांति का मूल कार्ण स्वतंत्रता नहीं, बल्कि मध्यमवर्ग की समानता की चाह थी। मध्यमवर्ग के लोग कुलीनों के साथ सामाजिक समता प्राप्त करना चाहते थे तथा उनकी सामाजिक श्रेष्ठता से घृणा करते थे। ये क्रांति के नारों, समानता, स्वतंत्रता एवं भ्रातृत्व में समानता पर अधिक जोर देते थे और अपनी सामाजिक स्थिति सामंतों के बराबर करना चाहते थे। उनकी यह अहंमान्यता कि हम कुलीनों से श्रेष्ठ हैं, क्रांति का एक मुख्य कारण था। यह सही है कि उनकी कुछ शिकायतें जायज थीं, जैसे कि उनका आर्थिक और सामाजिक शोषण हो रहा था और यह बात मानी हुई थी कि बिना सामंती व्यवस्था के उन्मूलन के व्यापार एवं उद्योग की तरक्की नहीं होती, फिर भी उनकी समानता पर जोर देना और क्रांति के समय अपने पक्ष में कार्य करवाना उनके निहित स्वार्थों की पुष्टि करता है।

दस्तकार एवं मजदूर-

फ्रांस के दस्तकारों एवं मजदूरों की स्थिति बहुत दयनीयु थी। फ्रांस में अभी उद्योगों की स्थापुना बाल्यावस्था में थी, इसी बीच 1786 ई० में इंगलैंड से फ्रांस की इडेन की संधि हुई और ब्रिटिश सामान को फ्रांस में आने की इजाजत मिल गई । परिणामतः फ्रांसीसी सामान बिक्ना बंद हो गया और मजदूर बेकार होने लगे। अकाल और पाले के कारण देहाती मजदूरों की स्थिति दयनीय हो गई और रोजी-रोटी की खोज में वे शहर की ओर आने लगे। क्रांति के समय यही बेकार लोग भीड़ में परिवर्तित हो गए और लूटपाट किया करते थे क्योंकि उनके पास जीविका का कोई साधन नहीं था। दस्तकारों और मजदूरों ने क्रांति के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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