इतिहास / History

ऋग्वैदिक सभ्यता | ऋग्वेदिक आर्यों का प्रसार और उनका राजनीतिक उत्कर्ष

ऋग्वैदिक सभ्यता | ऋग्वेदिक आर्यों का प्रसार और उनका राजनीतिक उत्कर्ष

ऋग्वैदिक सभ्यता (प्रस्तावना)

भारतीय आर्यों की सभ्यता का ज्ञान हमें केवल वैदिक साहित्य से ही होता है। आर्य सभ्यता ही वैदिक सभ्यता के नाम से विख्यात है। वेद चार हैं-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। इसमें सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण ऋग्वेद है, जो तत्कालीन आर्यों की सभ्यता और संस्कृति पर महत्वपूर्ण व पर्याप्त प्रकाश डालता है। वैदिक काल को दो भागों में बाँटा गया है-(i) ऋग्वेदिक काल या पूर्व वैदिक काल और (ii) उत्तर वैदिक काल। वेदों में ऋग्वेद सबसे अधिक प्राचीन है। अतः वैदिक काल में ऋग्वेद की सभ्यता ही सबसे अधिक पुरानी है। पूर्व-वैदिक काल की सभ्यता से तात्पर्य ऋग्वेदिक काल की सभ्यता से ही लिया जाता है। ऋग्वेद की रचना काल सम्बन्ध में विद्वानों में शताब्दियों के बजाय सहस्राब्दियों का अन्तर है। कुछ विद्वान् इसकी रचनाकार तिथि1000 ई०पू० के लगभग बताते हैं तथा कुछ विद्वान इसकी तिथि 3000 और 2500 ई०पू० के मध्य निश्चित करते हैं। ऋग्वेदिक काल में आर्य लोग सप्तसिन्धु में निवास करते थे। अतएव ऋग्वेद की सभ्यता सप्तसिन्धु की सभ्यता है। उत्तर वैदिक काल में तो आर्य लोग गंगा-यमुना नदियों के मैदानों तक पहुँच गये थे और वहाँ अपने राज्य स्थापित कर रहने लगे थे। अतः उत्तर वैदिक काल के आर्यों की सभ्यता का विकास यहीं हुआ।

ऋग्वेदिक आर्यों का प्रसार और उनका राजनीतिक उत्कर्ष-

ऋग्वेद से ज्ञात होता है कि सर्वप्रथम आर्य अफगानिस्तान और पंजाब में बसे थे। इसके पश्चात् उन्होंने भारत के गाने भागों में अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रसार किया। उन्होंने अनार्यों को पराजित किया और अनेक प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। पंजाब से आगे बढ़ कर आर्यों ने सरस्वती तथा दृशद्वती नदियों के बीच के भाग पर अधिकार किया और इस प्रदेश को उन्होंने ‘ब्रह्मवर्त’ नाम दिया। इसके पश्चात् उन्होंने अनार्यों की भूमि को छीन कर उसका नाम ‘ब्रह्मर्षि’ रखा। इसके बाद उन्होंने ‘मध्यदेश’ पर अधिकार किया तथा जब सम्पूर्ण भारत पर इनका अधिकार हो गया तो उसका नामकरण उन्होंने ‘आर्यावर्त किया।

दस राजाओं का युद्ध-

ऋग्वेद से ज्ञात होता है कि जब भरतवंश के राजा सुदास ने विश्वामित्र को पुरोहित पद से हटा कर वशिष्ठ को अपना पुरोहित नियुक्त किया तो विश्वामित्र ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए दस राजाओं का एक संघ बनाया और उसकी सहायता से सुदास के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। दोनों पक्षों में भीषण युद्ध हुआ जिसमे सुदास की विजय हुई।

अनार्यों से युद्ध-

आर्यों को अनार्यों से भी युद्ध करना पड़ा। आर्यों ने अनार्यों को पराजित कर उनके प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। अनार्यों को पराजित होकर वनों तथा पर्वतीय प्रदेशों में भागना पड़ा। जो लोग बचकर न भाग सके, उन्हें आर्यों की दासता स्वीकार करनी पड़ी।

ऋग्वैदिक सभ्यता

वेद आर्यों के वैदिक साहित्य के आदि ग्रंथ हैं। ये आर्य जाति की प्राचीनतम रचनाएं हैं। ये ईश्वर से सुने गए हैं इसलिए इन्हें ‘श्रुति’ कहा जाता है। इनकी संख्या 4 है-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद इन चारों में सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें 10 मण्डल हैं तथा 1028 श्लोक या सूक्त हैं। इनके द्वारा हमें न केवल उस काल के आर्यों के धार्मिक विचारों का पता चलता है, बल्कि उनकी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक दशाओं के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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