अर्थशास्त्र / Economics

सामुदायिक विकास की परिभाषा | सामुदायिक विकास का राष्ट्रीय विस्तार | सामुदायिक विकास कार्यक्रम की उपलब्धियाँ | सामुदायिक विकास कार्यक्रम का मूल्यांकन

सामुदायिक विकास की परिभाषा | सामुदायिक विकास का राष्ट्रीय विस्तार | सामुदायिक विकास कार्यक्रम की उपलब्धियाँ | सामुदायिक विकास कार्यक्रम का मूल्यांकन | Definition of Community Development in Hindi | National Expansion of Community Development in Hindi | Achievements of Community Development Program in Hindi | community development program evaluation in Hindi

सामुदायिक विकास की परिभाषा

ग्रामीण समुदाय के सामूहिक विकास को सामुदायिक विकास कहते हैं। सामुदायिक विकास की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(i) संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, “सामुदायिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया हैं जिसके द्वारा समुदाय के सभी सदस्यों के स्वयं स्फूर्ति प्रेरणा व सक्रिय सहयोग से आर्थिक व सामाजिक विकास की स्थिति की सृष्टि की जाती हैं।”

(ii) पत्रिका ‘भारत’ के अनुसार, “सामुदायिक विकास आत्म-सहायता का कार्यक्रम हैं अर्थात् ग्रामीण जनता स्वयं ही योजनाएं बनाये और उन्हें कार्याविन्त करे तथा सरकार की ओर से उसे केवल प्राविधिक मार्ग-दर्शन एवं वित्तीय सहायता ही मिले।

(iii) प्रथम पंचवर्षीय योजना के अनुसार, “सामुदायिक विकास का आशय ग्रामीण जनता के सर्वतोन्मुखी विकास से हैं।”

(iv) लोहबोह (Loghbough) के शब्दों में, “सामुदायिक विकास योजना गहन विकास की ओर एक सुसंगठित एवं नियोजित प्रयत्न हैं।”

सामुदायिक विकास का राष्ट्रीय विस्तार

गाँवों के सर्वांगीण व बहुमुखी विकास के लिए सर्वप्रथम कार्यक्रम ‘सामुदायिक विकास’ था। यह कार्यक्रम 2 अक्टूबर, 1952 से प्रारम्भ किया गया था। इसका उद्देश्य “जाति  उन्मुख परम्परागत समाज को समुदाय उन्मुख समाज’ में परिवर्तित करना था जिससे ‘जाति’ के स्थान पर ‘समुदाय’ को उच्च स्थान मिल सके। प्रारम्भ में ‘राष्ट्रीय विस्तार सेवा’ सामुदायिक विकास कार्यक्रम की प्रारम्भिक अवस्था मानी जाती थी। एक से दो वर्ष की अवधि के पश्चात् राष्ट्रीय विस्तार कार्यक्रमों में से कुछ सामुदायिक विकास के अन्तर्गत ले लिए जाते थे। अप्रैल, 1958 से सामुदायिक विकास व राष्ट्रीय विस्तार कार्यक्रम का अन्तर नहीं रहा, लेकिन स्वयं सामुदायिक विकास कार्यक्रम दो अवस्थाओं (प्रत्येक की अवधि 5 वर्ष) में विभाजित कर दिया गया। प्रथम अवस्था से पूर्व एक वर्ष की विस्तार पूर्व अवस्था भी रखी गयीं, जिसमें कृषि की पैदाववार बढ़ाने पर जोर दिया गया।

प्रारम्भ का लगभग 5 योजनाओं में 300 गाँव व दो लाख व्यक्ति सम्मिलित किये गये।

स्व० पं० जवाहरलाल नेहरू ने सामुदायिक परियोजनाओं को भारत की जगमगाती जीवन्त व प्रावैगिक चिंगारियाँ कहा था जिनसे शक्ति, आशा व उत्साह की किरणें फूटती हैं। इनके निम्न चार प्रमुख उद्देश्य थे-

(i) ग्रामीण जनता में प्रगतिशील दृष्टिकोण का विकास करना।

(ii) उसमें सहकारी ढंग से काम करने की आदत डालना।

(iii) उत्पादन में वृद्धि करना।

(iv) रोजगार में वृद्धि करना।

इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए गाँवों में विभिन्न प्रकार के कार्य करने पर जोर दिया गया, जैसे- सिंचाई का विकास, कृषिगत साधनों का विस्तार, भूमि-सुधार, वृक्षारोपण, सड़क निर्माण, शिक्षा प्रसार, स्वास्थ्य की सुविधाओं को बढ़ाना, ग्रामीण उद्योगों को विकास, सस्ते मकानों का निर्माण तथा समाज कल्याण के कार्य। इन कार्यक्रमों में उत्पादन व सामाजिक कल्याण दोनों में एक साथ वृद्धि करने पर जोर दिया गया था।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों को सौंपा गया था।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की उपलब्धियाँ

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सामुदायिक विकास योजना का सकारात्मक प्रभाव पड़ा हैं। इसकी उपलब्धियाँ निम्नवत् हैं-

  1. सम्पूर्ण ग्राम-विकास कार्यक्रम- पाँचवी योजना में सम्पूर्ण ग्राम विकास कार्यक्रम बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु तथा उत्तर प्रदेश 38 ग्रामों में आरम्भ किया गया जिसके मुख्य अंग चकबन्दी, भूमि सुधार, सिचाई विकास तथा फसल प्रारूप की पुनर्संरचना करना हैं।
  2. अन्य कार्यक्रम-(I) पहाड़ी क्षेत्रों के विकास का कार्यक्रम चलाया गया हैं, (ii) आदिम क्षेत्र विकास खण्डों के विकास का कार्यक्रम चालू किया गया हैं तथा (iii) प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार किया गया हैं।
  3. ग्रामीण व लघु उद्योगों को विकास- खण्ड स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों व लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता दी जाती हैं तथ सुधरे औजारों व उपकरणों का वितरण किया जाता हैं।
  4. सामाजिक शिक्षा का विस्तार-ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक शिक्षा का भी विस्तार किया गया हैं।
  5. पौष्टिक पदार्थ कार्यक्रम- गाँव वालों को फल, सब्जियाँ, मछली, अण्डें जैसे पौष्टिक पदार्थों का उपभोग बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ-आपातकोष, स्वास्थ्य संगठन एवं कृषि संगठन के सहयोग से एक कार्यक्रम चलाया गया है जिससे ग्रामीण जनता लाभान्वित हुई हैं।
  6. परिवहन का विकास सामुदायिक विकास कार्यक्रमों में नयी सड़कें बनवायी गयी हैं, पुरानी सड़कों की मरम्मत करवायी गयी हैं तथा पुल-पुलियाँका निर्माण किया गया हैं।
  7. कृषि विकास- खण्ड स्तर पर कृषि विकास हेतु सुधरे हेए बीजों, रासायनिक खाद, कीटनाशक औषधियाँ तथा आधुनिक कृषि यन्त्रों आदि का वितरण किया जाता हैं जिससे कृषि का विकास तीव्र गति से हुआ हैं।
  8. पशुपालन- पशुपालन कार्यक्रमों में पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए सुधरी हुई नस्लों के पशुओं को कृषकों में बाँटा जाता हैं। पशुओं की बधिया करने तथा कृत्रिम गर्भाधान करने की भी व्यवस्था की जाती हैं।
  9. स्वास्थ्य तथा ग्रामीण सफाई- ग्रामीणों के स्वास्थ्य लाभ के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना की गयी हैं। ग्रामों में संडास, पक्की नालियाँ, पीने के पानी के नये कुएँ तथा पुराने कुओं की मरम्मत की जाती हैं।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम का मूल्यांकन

उपलब्धियाँ सामुदायिक विकास कार्यक्रम की निम्नांकित उपलब्धियाँ रहीं-

  1. कुछ क्षेत्रों का नियोजिन विकास हुआ।
  2. कृषिगत विकास की नयी नीति के अन्तर्गत उन्नत बीज, सिंचाई, उर्वरक आदि का उपयोग बढ़ाया गया ।
  3. गाँवों में इन्फ्रास्ट्रक्चर विद्युत शक्ति, जल, सड़क, स्कूल, डिस्पेन्सरी आदि के विकास का प्रयास किया गया और कुछ सीमा तक इनका विकास भी हुआ।
  4. रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई।
  5. लोगों के दृष्टिकोण में कुछ सीमा तक परिवर्तन आया।
  6. ग्रामीणजन स्वैच्छिक प्रयासों से सामुदायिक विकास का महत्त्व समझने लगे एवं इनमें एक नई चेतना का प्रादुर्भाव हुआ।

दोष (कमियाँ)- इस कार्यक्रम की निम्नलिखित कमियाँ भी रहीं-

  1. भूमि सुधारों को कार्यान्वित न करने से गाँवों में अनिश्चितता व असन्तोष का वातावरण फैल गया।
  2. कृषिगत विकास/विस्तार के लिए तकनीकि परिवर्तन भी पर्याप्त मात्रा में नहीं किये जा सके क्योंकि वित्तीय साधनों का अभाव रहा।
  3. लोगों ने इसे सरकारी कार्यक्रम समझा।
  4. कल्याणी कार्यक्रमों पर उत्पादन, आय व रोजगार बढ़ाने के कार्यक्रमों की तुलना में अधिक बल दिया गया।
  5. ग्राम सेवकों व अन्य कर्मचारियों तथा अधिकारियों के सम्बन्ध में अनेक प्रकार के अभाव, अभियोग पाये गये।
  6. विभिन्न विकास खण्डों में प्रगति एक समान नहीं हुई।
  7. ग्रामीण समाज जातिवाद व सामाजिक पिछड़ेपन का शिकार बना रहा। उसमें निरक्षरता, कुपोषण, समाज में स्त्रियों का निम्न स्थान व गरीबी की मूलभूत समस्याएँ यथावत् बनी रहीं।

प्रदेश में सामुदायिक विकास कार्यक्रम से गाँवों में कुछ प्रगति तो हुई, लेकिन इससे जो आशाएँ की गयी थीं उतनी सफलता नहीं मिल पायी। समस्त कार्यक्रम सरकारी साधनों पर आश्रित हो गया और ‘स्वयं की मदद अपने आप करों’ के लक्ष्य से बहुत दूर हो गया। विस्तार अधिकारियों व जनता में प्रभावपूर्ण सम्पर्क नहीं हो पाया। ‘श्रमदान को बेगार’ समझा गया। लोगों ने इसमें पर्याप्त उत्साह प्रदर्शित नहीं किया। उत्पादन बढ़ाने की अपेक्षा सामाजिक कल्याण पर अधिक व्यय किया गया। गाँवों में विकास योजनाओं का अभाव रहा। वहाँ विकास के लाभ सम्पन्न व्यक्तियों व कुछ भू-स्वामियों तक सीमित रह गये। प्रशासकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन न होने से सामुदायिक विकास कार्यक्रम अपने निर्धारित व व्यापक उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका। किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता हैं कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम ने ग्रामीण विकास को एक दिशा प्रदान की और सरकार के दृष्टिकोण में एक रचनात्मक परिवर्तन को जन्म दिया।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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