संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

संगठनात्मक व्यवहार के लक्षण या विशेषतायें | Features or Characteristics of Organisational Behaviour in Hindi

संगठनात्मक व्यवहार के लक्षण या विशेषतायें | Features or Characteristics of Organisational Behaviour in Hindi

संगठनात्मक व्यवहार के लक्षण या विशेषतायें

Features or Characteristics of Organisational Behaviour

संगठनात्मक व्यवहार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) ज्ञान का नवीन क्षेत्र (New Field of Study) – संगठनात्मक व्यवहार को एक विधा (Discipline) नहीं, वरन् ज्ञान का एक नवीन क्षेत्र माना जाता है। अभी यह पूर्ण एवं मान्य विज्ञान नहीं है। इसके ज्ञान का अभी व्यवस्थीकरण नहीं हुआ है तथा इसके सिद्धान्त एवं अवधारणायें दूसरे विषयों से ग्रहण की जा रही हैं। इसके सिद्धान्त अभी परिभाषित नहीं किये जा सके हैं तथा इसकी सीमायें भी स्पष्ट नहीं हैं। प्रो० रॉबिन्स के अनुसार, “संगठनात्मक व्यवहार अध्ययन का एक क्षेत्र है। यह सर्वमान्य ज्ञान युक्त निपुणता का विशिष्ट क्षेत्र है।”

(2) अध्ययन की विषय वस्तु (Subject-matter of Study)- संगठनात्मक व्यवहार में कुछ विशिष्ट पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। इनमें सम्मिलित पहलू ये हैं- (a) व्यक्ति, (b) व्यक्तियों का समूह, (c) संगठन संरचना, (d) तकनीक, (e) वातावरण आदि।

(3) अन्तर्विषयक दृष्टिकोण (Interdisciplinary Approach)- संगठनात्मक व्यवहार के अन्तर्गत मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र आदि अनेक विषय के ज्ञान का प्रयोग होता है। संगठनात्मक व्यवहार इन विषयों के तर्कसंगत विचारों, अवधारणाओं एवं तकनीकों का एकत्रीकरण करके मानवीय व्यवहार को समझने पर बल देता हैं।

(4) व्यावहारिक विज्ञान (Applied Science)- संगठनात्मक व्यवहार एक प्रयुक्त एवं प्रयोगिक विज्ञान है। इसके क्षेत्र में किये जाने वाले अनुसन्धान, अध्ययनों तथा अवधारणात्मक विकासों से इसका वैज्ञानिक आधार मजबूत होता जा रहा है। कर्मचारी व्यक्तित्व, अभिवृत्तियों, मूल्य, प्रेरणा, संन्तुष्टि, अवबोध तथा मानवीय व्यवहार के अन्य पहलुओं के सम्बन्ध में निरन्तर शोध किये जा रहे हैं। न्यूस्ट्रोम एवं कीथ डेविस के अनुसार, “यह एक व्यावहारिक विज्ञान भी है, क्योंकि एक संगठन के प्रभावी व्यवहारों (Paratices) का प्रयोग अन्य संगठनों में भी होता रहता है।”

(5) प्रबन्ध का व्यवहारात्मक दृष्टिकोण (Behavioural Approach to Management)- यह दृष्टिकोण संगठनात्मक व्यवहार के ‘मानवीय पक्ष’ से प्रत्यक्ष सम्बन्ध रखता है, लेकिन यह सम्पूर्ण प्रबन्ध नहीं है (It is not the whole of management)। दूसरे शब्दों में संगठनात्मक व्यवहार का विकास प्रबन्ध को प्रतिस्थापित (Replace) करने के लिये नहीं हुआ है बल्कि तकनीकी पहलुओं के विरुद्ध, संगठनात्मक व्यवहार प्रबन्ध के मानवीय भावानात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आयामों से सम्बन्धित है। लॉरी कमिंग्स के शब्दों में, “संगठनात्मक व्यवहार विशिष्ट रूप से मानवीय शैली (Humanistic tons) रखता है जो स्व-विकास, व्यक्तिगत प्रगति तथा आत्म-संतृप्ति के सम्बन्ध में प्रकट होती है।”

(6) वातावरण से सम्बद्ध (Links with Environment)- संगठनात्मक व्यवहार संगठन के आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण का अध्ययन करते हुये मानवीय व्यवहार को समझने पर बल देता है। व्यक्ति के निजी एवं समूह व्यवहार पर संगठन के परिवेश, नीतियों, पारस्परिक विचारों के साथ-साथ बाह्य दशाओं एवं मूल्यों का भी प्रभाव पड़ता है। दूसरे शब्दों में, संगठन का वातावरण ही संगठन के कर्मचारियों व समूहों के व्यवहार को निर्धारित करता है। यह विषय ‘वातावरणीय निश्चयवाद’ (Environmental Determinism) को महत्व देता है।

(7) सेवायोजन सम्बन्धी व्यवहार का अध्ययन (Study of Employment Related Behaviour)- संगठनात्मक व्यवहार के अन्तर्गत सेवायोजन के विविध पहलुओं एवं व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें व्यक्तियों के कार्यों, उपस्थिति, आवर्तन, उत्पादकता, निष्पादन क्षमता, नेतृत्व, अभिप्रेरण, संचार प्रणाली, पारस्परिक संघर्ष, कार्य तनाव, समूहों के आपसी सम्बन्ध आदि पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

(8) व्यवहारवादी विज्ञान पर आधारित (Founded upon Behavioural Scineces) – संगठनात्मक व्यवहार की आधारशिला व्यवहारवादी विज्ञानों पर रखी है। मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र आदि विषय संगठनात्मक व्यवहार के मूल स्तम्भ हैं।

(9) सामाजिक विज्ञान गौण (Social Science are Secondary) – संगठनात्मक व्यवहार के अध्ययन में यद्यपि सामाजिक विज्ञानों का भी महत्व है, किन्तु फिर भी उनका स्थान गौण है। अर्थशास्त्र, राजनीतिविज्ञान, इतिहास आदि विषयों की भूमिका केवल सहायक विषयों के रूप में रही है।

(10) वैज्ञानिक विधि एवं तर्क का प्रयोग (Application of Scientific Method and Logic) – संगठनात्मक व्यवहार के क्षेत्र में किये जाने वाले अध्ययनों, शोधों व प्रयोगों में वैज्ञानिक विधि एवं तर्क सिद्धान्त (Logic Theory) का प्रयोग किया जाता है। यह कारण व परिणाम, संशयवाद (Skepticism) तथा तथ्यों पर आधारित ज्ञान का प्रयोग करता है।

(11) परिस्थितिजन्य झुकाव (Contingency Orientation) – संगठनात्मक व्यवहार की प्रकृति सांयोगिक एवं पारिस्थितिक (Situational) होती है। अर्थात् इस क्षेत्र में प्रत्येक कार्यवाही (Action) परिस्थिति एवं विशिष्ट मामले की दशा के अनुसार की जाती हैं मानवीय व्यवहार बदलता रहता है। व्यक्ति के विचारों, दृष्टिकोण, आदतों, स्वभाव एवं अभिवृत्तियों में परिवर्तन होते रहते हैं, अतः व्यक्तियों के साथ व्यवहार करने की विधि एवं ढंगे भी बदलता रहता है। प्रबन्धक प्रत्येक परिस्थिति की आवश्यकता एवं विशिष्टता को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेते हैं।

(12) निष्पादन विश्लेषण के स्तर (Levels of Performance Analysis) – संगठनात्मक व्यवहार में तीन स्तर पर व्यवहार का विश्लेषण किया जाता है। ये हैं- वैयक्तिक व्यवहार, समूह व्यवहार तथा औपचारिक संगठन के व्यवहार स्तर। ये एक-दूसरे से पृथक् एवं असम्बन्धित नहीं हैं तथा समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। अतः व्यक्ति, समूह तथा संगठन इन तीनों स्तर पर मानवीय व्यवहार का अध्ययन करके ही संगठनात्मक व्यवहार को समझा जा सकता है।

(13) प्रणाली दृष्टिकोण (Systems Approach)- संगठनात्म्क व्यवहार, “प्रणाली दृष्टिकोण” को अपनाता है, क्योंकि यह संगठन की कार्यप्रणाली को प्रभावित करने वाले प्रत्येक घटक पर विचार करता है। यह मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक घटकों के सन्दर्भ में ‘व्यवहार’ का विश्लेषण करता है। यह समस्त घटकों का एकीकरण भी करता है।

(14) मानव संसाधन दृष्टिकोण (Human Resource Approach)- संगठनात्मक व्यवहार मानव संसाधन दृष्टिकोण को अपनाता है। अर्थात् यह कर्मचारियों के विकास एवं निष्पादन तथा उनकी तरक्की में विश्वास करता है। कीथ डेविस के अनुसार, “यह मानवीय लाभ के लिये मानवीय उपकरण है।” (It is a human tool for human benefit)

(15) आदर्शवादी विज्ञान (Normative Science) – संगठनात्मक व्यवहार आदर्शवादी विज्ञान है। यह संगठन के लिये ‘आर्दश व्यवहार’ की खोज का लक्ष्य रखता है। यह मानवीय एवं सामाजिक मूल्यों पर केन्द्रित व्यवहार को आदर्श के रूप में स्वीकार करता है। यह अनुभूतिमूलक एवं सृजनात्मक विज्ञान भी है।

(16) आशावादी चिन्तन (Optimism) – संगठनात्मक व्यवहार की प्रकृति ‘आशावाद’ में निहित है। व्यक्ति के सम्बन्ध में इसकी मूलभूत मानता यह है कि “प्रत्येक व्यक्ति में असीम क्षमतायें हैं तथा वह साहसी, उत्पादक एवं सृजनशील है।” व्यक्ति प्रकृति से सहयोगी होता है और यदि उसे अवसर दिया जाये तो अपनी क्षमताओं एवं योग्यताओं का संगठन के हित में प्रयोग कर सकता है। संगठनात्मक व्यवहार इसी ‘आशावादी चिन्तन’ पर केन्द्रित है।

(17) उद्देश्य (Objective)- संगठनात्मक व्यवहार का मूल उद्देश्य संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति में सहयोग करना है। यद्यपि यह व्यक्तियों एवं समूहों के हितों पर भी ध्यान देता है, किन्तु यह व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति के लिये संगठनात्मक उद्देश्यों की बलि नहीं चढ़ाता है। यह समान्यवादी दृष्टिकोण रखते हुये ‘व्यक्ति’ एवं संगठन के हितों को एकीकृत करने का प्रयास करता है।

(18) ज्ञान का उपयोग (Application of Knowledge)- संगठनात्मक व्यवहार संगठन में किये गये अध्ययन को परीक्षणों से प्राप्त ज्ञान का संगठन के हित में उपयोग करता है। इस प्रकार यह ज्ञान को सृजनाकारी एवं उपयोगी बनाता है। यह विभिन्न जानकारी, तथ्यों व सूचनाओं को उपयोग हेतु प्रबन्धकों को उपलब्ध कराता है।

(19) व्यवहार अध्ययन (Study of Behaviour)- संगठनात्मक व्यवहार व्यक्तियों एवं समूहों के व्यवहार को समझने के लिये उनके व्यवहार का विवेकपूर्ण विश्लेषण, पूर्वानुमान एवं नियन्त्रण करता है। यह व्यवहार के सम्बन्ध में गहन अध्ययन करके उसके कारणों, परिणामों एवं भावी प्रभावों को समझने पर बल देता है।

(20) कला एवं विज्ञान (Art and Science)- संगठनात्मक व्यवहार व्यक्तियों के व्यवहार के कारणों एवं परिणामों के बीच निश्चित सम्बन्ध खोजने का प्रयास करता है इसके लिये यह सिद्धान्तों, तकनीकों एवं तर्कों का प्रयोग करता है। इस प्रकार व्यवहार के सम्बन्ध में यह वैज्ञानिक दृष्टि अपनाता है। दूसरी ओर, संगठनात्मक व्यवहार एक कला भी है क्योंकि यह अध्ययनों से प्राप्त निष्कर्षो एवं ज्ञान का लोगों के व्यवहार को समझने, पूर्वानुमान करने तथा उसका नियन्त्रण करने में उपयोग करता है।

संगठनात्मक व्यवहार – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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