संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

मैकग्रेगर का एक्स और वाई सिद्धान्त | एक्स और वाई सिद्धान्तों की तुलना | मैकग्रेगर के एक्स और वाई सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या

मैकग्रेगर का एक्स और वाई सिद्धान्त | एक्स और वाई सिद्धान्तों की तुलना | मैकग्रेगर के एक्स और वाई सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या | McGregor’s X and Y Theory in Hindi | Comparison of X and Y Theories in Hindi | Critical Interpretation of McGregor’s X and Y Theory in Hindi

मैकग्रेगर का एक्स और वाई सिद्धान्त

(McGregor’s Xand Y Theories)

मैकग्रेगर के अनुसार, प्रबन्धकों द्वारा कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने की प्रक्रिया मान व्यवहार और प्रकृति से सम्बन्धित कुछ मान्यताओं और उपपत्तियों पर आधारित है। ये मान्यता यद्यपि पूर्ण रूप से स्पष्ट और व्याख्यित नहीं होती हैं, किन्तु मानव व्यवहार की व्याख्या करने में सहायता अवश्य प्रदान करती हैं। व्यक्तियों के व्यवहार के सम्बन्ध में मूल मान्यतायें अलग-अलग हो सकती हैं, क्योंकि व्यक्तियों का व्यवहार कई जटिल घटकों द्वारा प्रभावित होता है। मैकग्रेगर ने इन मान्यताओं को दो विपरीत बिन्दुओं के रूप में माना है जिसे उन्हें एक्स और वाई सिद्धान्त कहा है।

एक्स सिद्धान्त (X-Theory) – एक्स सिद्धान्त मानव व्यवहार का परम्परावादी सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अन्तर्गत मैकग्रेगर ने मानव व्यवहार के सम्बन्ध में कुछ निश्चित मान्यताओं का विकास किया है, जो निम्नलिखित हैं-

(1) प्रबन्ध संगठन के आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये विभिन्न उत्पादक तत्वों-वित्त सामग्री, यन्त्र, व्यक्ति के लिये उत्तरदायी है।

(2) व्यक्तियों के सम्बन्ध में यह उनके प्रयासों के दिशा-निर्धारण, अभिप्रेरण और उन कार्यों के नियन्त्रण से सम्बन्धित होती है ताकि संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके।

(3) बिना प्रबन्ध के हस्तक्षेप के व्यक्ति संगठन की आवश्यकताओं के प्रति न केवल निष्क्रिय हो सकते हैं, बल्कि विरोधी भी हो सकते हैं। अतः उन्हें पारितोषिक देने, दण्ड देने, नियन्त्रित करने और उनकी क्रियाओं को निर्देशित करने की आवश्यकता होती है।

(4) व्यक्ति स्वभाव से ही आलसी होता है और वह कम से कम कार्य करना चाहता है।

(5) व्यक्ति में महत्वाकांक्षा की कमी होती है, वह उत्तरदायित्व नापसन्द करता है, और उसे नियन्त्रित करने की आवश्यकता होती है।

(6) व्यक्ति स्वाभाविक रूप से स्व-केन्द्रित होता है और संगठन की आवश्यकताओं के प्रति तटस्थ होता है।

(7) व्यक्ति प्रकृति से ही परिवर्तनों का विरोधी होता है।

(8) व्यक्ति बहुत अधिक बुद्धिमान नहीं होता है, बल्कि साधारण बुद्धि वाला होता है। अतः वह नियन्त्रित होने के लिये तैयार रहता है।

उपरोक्त आठों मान्यताओं में प्रथम तीन मान्यतायें प्रवन्ध के उत्तरदायित्व के रूप से जबकि अन्तिम पाँच मान्यतायें मानव व्यवहार की प्रकृति के रूप में हैं। व्यक्तियों के व्यवहार सम्बन्ध में ये मान्यतायें नकारात्मक अवधारणा पर आधारित हैं। यद्यपि संगठन की बहुत सी प्रक्रियायें इन्हीं मान्यताओं पर आधारित हैं, जो प्रबन्धक इन मान्यताओं के आधार पर कार्य करते हैं, वे अपने कर्मचारियों पर अधिक से अधिक नियंत्रण रखना पसन्द करते हैं, वे यह सोचते हैं कि अनुत्तरदायी और अपरिपक्व कर्मचारियों से बाह्य नियंत्रण के द्वारा कार्य निष्पदन कराया जा सकता है। मैकग्रेगर का यह विश्वास है कि मानव प्रकृति के सम्बन्ध में प्रबन्धकों की इन मान्यताओं में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है, यद्यपि व्यक्तियों के व्यवहार प्रारूप में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। यह परिवर्तन मानव प्रकृति में परिवर्तन के कारण नहीं हुआ है, बल्कि औद्योगिकीकरण और प्रबन्ध दर्शन तथा नीतियों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप आया है।

वाई सिद्धान्त (Y-Theory)- मैक्रग्रेगर के अनुसार, वाई सिद्धान्त की निम्नलिखित मान्यतायें हैं-

(1) व्यक्तियों के लिये शारीरिक और मानसिक प्रयास उतना ही स्वाभाविक है जितना खेल और विश्राम। औसत व्यक्ति स्वाभाविक रूप से कार्य करना पसंद नहीं करते हैं। नियन्त्रित की जाने वाली दशाओं के अनुसार कार्य सन्तुष्टि या नैराश्य का स्रोत हो सकता है।

(2) संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये व्यक्तियों के लिये बाह्य नियंत्रण अथवा दण्ड की आवश्यकता नहीं पड़ती है। उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये व्यक्ति स्व-निर्देशन और स्व- नियंत्रण का उपयोग करता है।

(3) उद्देश्यों के प्रति व्यक्तियों की वचनबद्धता उनके द्वारा कार्य निष्पादन और उसके पारितोषिक पर निर्भर करती है। व्यक्ति के लिये मुख्य पारितोषिक उसके अहं और आत्म-विकास की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के रूप में होता है।

(4) औसत व्यक्ति उचित वातावरण में सीखता है और न केवल उत्तरदायित्व को स्वीकार करता है बल्कि उत्तरदायित्व स्वीकार करने के अवसरों की खोज भी करता है। उत्तरदायित्व से भागना, महात्वाकांक्षा की कमी और कार्य में सुरक्षा व्यक्ति के अनुभव का परिणाम है, न कि मानव स्वभाव में निहित है।

(5) अपेक्षाकृत उच्च मात्रा की कल्पना, विचार और संगठनात्मक समस्याओं के समाधान हेतु सृजनात्मक जैसी योग्यतायें केवल कुछ व्यक्तियों में नहीं पायी जाती हैं, बल्कि अधिकांश व्यक्तियों में पायी जाती हैं।

(6) आधुनिक औद्योगिक जीवन की दशाओं में व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग बहुत ही थोड़ी मात्रा में होता है।

वाई सिद्धान्त की मान्यता प्रबन्ध में एक नये दृष्टिकोण को जन्म देती है। यह प्रबन्धकों और कर्मचारियों में सहयोगात्मक सम्बन्ध पर बल देता है और यह इंगित करता है कि व्यक्तियों द्वारा अधिकतम उत्पादकता, न्यूनतम नियंत्रण और निर्देशन द्वारा प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार व्यक्तियों का प्रयास न केवल उसके लिये हितकर होता है, बल्कि संगठन के लिये भी हितकर होता है।

एक्स और वाई सिद्धान्तों की तुलना (Comparison X and Y Theories)

एक्स और वाई सिद्धान्त में मानव प्रकृति के सम्बन्ध में अलग-अलग मान्यतायें बनायी गयी हैं, जो परस्पर एक-दूसरे के विपरीत हैं। इन दोनों सिद्धान्तों की मान्यताओं में भिन्नता की व्याख्या निम्नलिखित रूप में की जा सकती है-

(1) एक्स सिद्धान्त की मान्यता है कि व्यक्ति स्वाभाविक रूप से कार्य करना पसन्द नहीं करते हैं। वाई सिद्धान्त की मान्यता है कि व्यक्तियों के लिये कार्य उतना ही स्वाभाविक है जितना उनके लिये खेलना एवं विश्राम करना ।

(2) एक्स सिद्धान्त इस तय पर बल देता है कि व्यक्तियों में महात्वाकांक्षा की कमी होती है और वे उत्तरदायित्व से भागना चाहते हैं। वाई सिद्धान्त की मान्यता है कि व्यक्ति महात्वकांक्षी होते हैं, अतः वे उत्तरदायित्व को निभाने के लिये लालायित रहते हैं।

(3) एक्स सिद्धान्त के अनुसार अधिकांश व्यक्तियों में सृजनात्मक क्षमता नहीं होती है, जबकि वाई सिद्धान्त के अनुसार अधिकांश व्यक्तियों में सृजनात्मक क्षमता होती है, किन्तु संगठन में नियंत्रण के कारण उसका उचित उपयोग नहीं हो पाता है।

(4) एक्स सिद्धान्त के अनुसार निम्नतर आवश्यकतायें अभिप्रेरक के रूप में कार्य करती हैं। वाई सिद्धान्त के अनुसार उच्चतर आवश्यकताआयें अभिप्रेरक के रूप में कार्य करती हैं।

(5) एक्स सिद्धान्त के अनुसार व्यक्तियों में स्व-अभिप्रेरणा का अभाव होता है, अतः उनके द्वारा अधिकतम योगदान प्राप्त करने के लिये बाह्य नियंत्रण और सूक्ष्म पर्यवेक्षण की जरूरत होती है। वाई सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति स्व-अभिप्रेरित और स्व-निर्देशित होते हैं, अतः उनके लिये बाह्य नियंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।

(6) एक्स सिद्धान्त सोपानीय शृंखला प्रणाली अधिकारों के केन्द्रीयकरण पर बल देता है, जबकि वाई सिद्धान्त विकेन्द्रीकरण और निर्णयन में भागीदारी पर बल देता है।

(7) एक्स सिद्धान्त निरंकुश नेतृत्व पर बल देता है, जबकि वाई सिद्धान्त प्रजातान्त्रिक और सहयोगात्मक नेतृत्व पर बल देता है।

इस प्रकार एक्स और वाई सिद्धान्तों के अनुसार प्रबन्ध प्रक्रिया अलग-अलग हो सकती है और अभिप्रेरणा की तकनीकें भी अलग-अलग हो सकती हैं। यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि मैकग्रेगर के एक्स और वाई सिद्धान्त शोधों पर आधारित न होकर उनके स्वयं के विचारों पर आधारित हैं। अतः व्यवहार में प्रायः एक्स और वाई सिद्धान्तों का मिश्रण पाया जाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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