संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

प्रबन्धकों में नैतिक आयामों का सुधार | प्रबन्धकों में नैतिक आयामों को विकसित करने के सुझाव

प्रबन्धकों में नैतिक आयामों का सुधार | प्रबन्धकों में नैतिक आयामों को विकसित करने के सुझाव | Improvement of ethical dimensions in managers in Hindi | Suggestions for developing ethical dimensions in managers in Hindi

प्रबन्धकों में नैतिक आयामों का सुधार एवं विकसित करने के सुझाव

(Suggestions for improving and developing ethical perspectives in managers)

प्रत्येक व्यावसायिक संगठन की सफलता अथवा असफलता बहुत कुछ सीमा तक उसमें कार्यरत प्रबन्धकों व कर्मचारियों के नैतिक आयामों के स्तर पर निर्भर करती हैं। प्रबन्धकों एवं कार्यरत कर्मचारियों का नैतिक आयाम जितना अधिक उच्चकोटि का होगा, उसमें कार्यरत कर्मचारियों, वितरण माध्यमों, पूर्तिकर्ताओं एवं उपभोक्तओं को उतनी ही अधिक सन्तुष्टि प्राप्त होती, विक्रय में दिन दूनी रात चौगुनी गति से वृद्धि होगी तथा उत्पाद एवं उपक्रमों दोनों की प्रतिष्ठा दूर-दूर फैलेगी। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं।

(1) नीतिशास्त्रीय प्रशिक्षण (Ethical Training)- जिन व्यावसायिक संगठनों में कार्यरत प्रबन्धकों एवं अन्य प्रमुख पदों पर कार्यरत कर्मचारियों को नीतिशास्त्रीय प्रशिक्षण प्रदान नहीं किया जाता है, उनमें कार्यरत प्रबन्धकों का नैतिक स्तर निम्न श्रेणी का होता है। उनमे नीतिशास्त्रीय मेंचेतना का अभाव होता है और उन्हें ‘सदाचार-निरक्षेप’ (Amoral) कहा जाता है। वे अपने कार्यों में नैतिक आयामों से कोई सम्बन्ध नहीं रखते। उन्हें कुशल, भला-बुरा, नैतिक-अनैतिक, ग्राहक सन्तुष्टि ग्राहक असन्तुष्टि आदि में भेद करने की क्षमता नहीं होती। येन-केन तरीकों से अपना उल्लू श्रमसीधा करना एवं, पद पर बने रहना ही उनका उद्देश्य होता है। ऐसे व्यावसायिक संगठन गलाकाट प्रतियोगिता के इस युग में जहाँ क्रेता बाजार हो, मुश्किल से ही टिक पाते हैं। यही कारण है कि न केवल पश्चिमी देशों अपितु भारत में भी प्रत्येक स्वस्थ व्यावसायिक संगठन में किसी भी प्रबन्धक को कार्य पर लगाने से पूर्व प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें नीतिशास्त्र प्रमुख विषय होता है। यहाँ तक कि साक्षात्कार में नैतिक आयामों से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। इस दृष्टि से प्रवन्धकों एवं अन्य प्रमुख पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के लिए नीतिशास्त्र का प्रशिक्षण दिया जाना परम आवश्यक है। जो विचारक नीतिशास्त्रीय प्रशिक्षण को समय की बर्बादी कहते हैं, उनका या तो स्वस्थ व्यावसायिक संगठनों से दूर-दूर तक का सम्बन्ध नहीं रहा है अथवा वे स्वप्नों की दुनिया में निवास करते हैं।

(2) नीतिशास्त्रीय अधिवक्ता (Ethical Advocates)- प्रबन्धकों एवं उच्च पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के नीतिगत आचरण में सुधार लाने के लिए संगठन में कुछ विशेषज्ञों की नियुक्ति की जा सकती है। ये नैतिक सिद्धान्तों के समर्थक होते हैं तथा संचालक मण्डल के सदस्य के रूप में कार्य करते हैं। ये बोर्ड की सामाजिक चेतना होते हैं। उच्च प्रबन्धकीय निणयों में इनकी सलाह ली जाती है। ये समीक्षक के रूप में महत्वपूर्ण प्रश्नकर्ता की भी भूमिका निभाते हैं। ये प्रश्नों के माध्यम से प्रवन्धकों की वास्तविक स्थिति का ज्ञान करके परामर्श देते है।

(3) वाह्य संस्थायें (Outside Agencies) – इस विधि को ‘सीटी बजाना’ (Whistle Blowing) भी कहते हैं। जब संगठन में व्यापक रूप में दुराचरण एवं अनैतिक कार्य किये जाते हैं तो बाह्य संस्थओं, जैसे-प्रेस, सरकारी एजेन्सियों अथवा सार्वजनिक हित समूहों को मामले की जानकारी देकर अनीतिगत आचरण पर रोक लगायी जाती है। कुछ लोग इस विधि की इस आधार पर आलोचना करते हैं कि इससे संगठन में अनिष्ठा (Disloyalty) एवं संगठनद्रोह की भावना उत्पन्न होती है। जब संगठन का कोई सदस्य अपनी ही संस्था के अनैतिक कार्यों की सूचना बाहरी एजेन्सियों को देता है तो यह माना जाता है कि वह अपने ही संगठन के साथ विश्वासघात कर रहा है, यद्यपि यह कार्य संगठन के हित में होता है। आज के प्रबन्धकों के समक्ष यह एक गम्भीर चुनौती है कि वे एक ऐसे संगठनात्मक वातावरण का निर्माण करें जिसमें दुराचरण एवं अनीतिशास्त्रीय आचरण की बाह्य एजेन्सियों को सूचना देने की जरूरत ही न पड़े। इसके लिए कुछ रचनात्मक सुझाव दिये जा सकते हैं, जैसे- (i) विवादास्पद, विरोधी एवं असम्मतकारी दृष्टिकोणों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करना; (ii) परिवेदना (Grievance) प्रक्रिया को सुगम बनाना, ताकि समस्याओं की तुरन्त एवं निष्पक्ष सुनवाई हो सके, (iii) यह पता लगाना कि प्रबन्धक कर्मचारी संगठन की सामाजिक उत्तरदायित्व की नीतियों के बारे में क्या सोचते हैं तथा उनका वहाँ तक पालन करते हैं: (iv) कर्मचारियों को यह जानने का अवसर देना कि प्रबन्ध उनकी वैयक्तिक चेतना एवं आवश्यकताओं का सम्मान करता है तथा उनके प्रति जागरूक है; (v) प्रबन्धकों एवं उच्च पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के नीतिशास्त्रीय आचरण को प्रेरणात्मक पारिश्रमिक योजनाओं के साथ जोड़ना।

(4) नीतिशास्त्रीय आचार संहिता का निर्माण करना (Formation of Ethical Code of Conduct)- व्यावसायिक संगठन में प्रबन्धकों एवं अन्य प्रमुख पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के नीतिशास्त्रीय आचरण को ऊंचा उठाने तथा समूचे संगठन में नीतिशास्त्रीय पर्यावरण की स्थापना के लिए नीतिशास्त्रीय आचार संहिता का न केवल निर्माण ही किया जाना चाहिए अपितु उसके क्रियान्वयन पर भी बल दिया जाना चाहिए। आचार संहिता नीतियों, सिद्धान्तों, मूल्यों तथा नियमों- उपनियमों का विवरण है जो व्यवहार के मार्गदर्शन हेतु बनायी जाती है। नीतिशास्त्रीय संहिताओं को प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उच्च प्रवत्थकों द्वारा उनका समर्थन किया जाये तथा पुरस्कार व दण्ड की प्रणाली द्वारा उनको निष्पक्ष रूप से लागू किया जाये। यदि नीतिशास्त्रीय संहिताओं को असमान रूप से अथवा चयनित रूप से लागू किया जाता है तो उनकी प्रभावशीलता समाप्त हो जाती है।

प्रबन्धकों को अपने तथा कर्मचारियों के नैतिक आचरण में परिष्करण हेतु संहिताओं का निर्माण करना चाहिए। ऐसी नीतिगत संहिताओं के कुछ उदाहरण अग्र प्रकार हैं-

प्रबन्धकों एवं अन्य उच्च पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के लिए-

(i) कानूनों का पालन करते हुए व्यवसाय का संचालन करना ।

(ii) गैर कानूनी कार्यों को पनपने नहीं देना।

(iii) रिश्वत व अन्य भ्रष्ट कार्यो पर प्रभावी ढंग से रोक लगाना।

(iv) कर्तव्यों में बाधा डालने वाली बाहरी गतिविधयों पर रोक लगाना।

(v) सभी प्रपत्रों व अभिलेखों की गोपनीयता बनाये रखना।

(vi) एकाधिकारी विरोधी कानूनों का पालन करना।

(vii) लेखा एवं वित्त के नियमों एवं नियन्त्रणों का पालन करना।

(viii) संस्था की सम्पत्तियों का निजी उपयोग न करना।

(ix) कम्पनी कोषों के सदुपयोग के लिए कर्मचारियों को उत्तरदायित्व सौंपना।

(x) मिथ्या प्रचार व विज्ञापन न करना तथा मिथ्या सूचनाएँ न देना।

(xi) व्यक्तिगत लाभों व स्वार्थों को परे रखकर प्रबन्धकीय निर्णय लेना।

(xii) ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद व सेवाएँ उपलब्ध कराना।

(xiii) सौंपे गये कार्यों को अपनी पूर्ण योग्यता के साथ करना।

(xiv) विज्ञापनों में झूठे दावे न करना।

(xv) ग्राहक सेवा पर बल देना।

(xvi) परिवेतना पद्धति को सुदृढ़ बनाना।

(xvii) वैज्ञानिक निर्णायन प्रक्रिया को लागू करना।

(xviii) बाहरी सम्पर्क साधनों से सम्बन्ध बनाये रखना।

कर्मचारियों के लिए-

(i) सुरक्षा व स्वास्थ्य नियमों का पालन करना।

(ii) शिष्टाचार, सम्मान, ईमानदारी, निष्पक्षता, उच्च नैतिक स्तर का प्रदर्शन करना।

(iii) कार्य स्थल पर नशीले पदार्थों का सेवन न करना।

(vi) स्वस्थ पारस्परिक व्यवहार करना एवं उसमें शालीनता लाना।

(v) नियमित उपस्थिति एवं समय की पाबन्दी का ध्यान रखना।

(vi) पर्यवेक्षकों के निर्देशों का पालन करना।

(vii) निन्दात्मक (Abusive) भाषा का प्रयोग न करना।

(vii) निर्धारित वेशभूषा धारण करना।

(ix) कार्य पर अग्नि उत्तेजक चीजों का प्रयोग न करना।

(x) उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों पर बल देना।

(xi) पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य करना।

(xii) कार्यकुशलता में वृद्धि के निरन्तर प्रयास करते रहना।

(xiii) ऐसा कोई कार्य नहीं करना जिससे समूह, संगठन तथा यहाँ तक कि उपक्रम की प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाने की सम्भावना हो।

(xiv) अपना नैतिक स्तर बनाये रखना तथा नैतिक मूल्यों पर ध्यान देना।

श्री गैलरमेन (Gellerman) ने प्रबन्धकों के नीतिशास्त्रीय आचरण में सुधार हेतु सुझाव दिये हैं। ये इस प्रकार हैं- (i) नीतिगत आचरण के सम्बन्ध में स्पष्ट दिशा निर्देश प्रदान करना। (ii) अनीतिगत एवं अवैधानिक आचरण को रोकने के लिए नियन्त्रण लागू करना। (iii) प्रायः एवं आचनक अंकेक्षण करवाना। (iv) उल्लंघनकर्ताओं को पण्डित करना तथा उनके दुराचरण को सार्वजनिक करना, ताकि दूसरे व्यक्तियों को सबक मिल सके। (v) इस बात पर नियमित जोर देकर स्पष्ट करना कि संगठन के प्रति निष्ठावान होने का यह अर्थ नहीं होगा कि अनुचित दुराचरण करने वाले प्रबन्धक दण्ड दिये बिना छोड़ दिये जायेंगे। (vi) नीतिशास्त्रीय आचरण संहिताओं के महत्व को उजागर करना।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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