संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

संगठनात्मक व्यवहार की अवधारणा | Concept Organisational Behaviour in Hindi

संगठनात्मक व्यवहार की अवधारणा | Concept Organisational Behaviour in Hindi

संगठनात्मक व्यवहार की अवधारणा

(Concept Organisational Behaviour)

संगठनात्मक व्यवहार की अवधारणा के तीन अतिचर्चित आयाम हैं- संरचना प्रक्रिया तथा मूल्य संरचना से किसी तन्त्र के विभिन्न उपतन्त्रों के मध्य सम्बन्धों एवं भूमिकाओं के ताने-बाने का आभास मिलता है। प्रक्रिया किसी तन्त्र द्वारा निष्पादित गतिविधियों तथा उन गतिविधियों की क्रमबद्धता तथा चरणबद्धता को कहते हैं। मूलतः यह तन्त्र को विषय-सामग्री सुलभ कराती है। मूल्य तन्त्र के लक्ष्य होते हैं तथा वे दिशाएँ हैं जिनमें व्यवस्था को जाना जाता है तथा जैसे व्यवहार की कर्मचारियों से आशा की जाती है। उपरोक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि संगठनात्मक व्यवहार की विभिन्न अवधारणाएँ होती हैं। उनमें से कुछ प्रमुख संगठनात्मक व्यवहार की अवधारणएँ निम्नलिखित हैं-

(1) व्यक्तिगत व्यवहार अवधारणा (Individual Behaviour Concept)- किसी भी संगठन की संरचना व्यक्तियों से होती है। संगठनात्मक तन्त्र में व्यक्ति उसका मूल आधार होता है। संगठन संरचना में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी एक अलग पहचान एवं जगह होती है। किसी भी व्यक्ति की संरचना में उसकी शारीरिक रचना, व्यक्तित्व तथा मूल भौतिक एवं मानसिक गुण महत्त्वपूर्ण होते हैं। इनमें से कुछ बातें तो उसे विरासत में मिलती हैं तथा कुछ उसके पर्यावरण के साथ सम्पर्क में आने पर विकसित होती हैं। इस सन्दर्भ में सम्प्रेषण प्रक्रिया दृष्टिकोण तन्त्र तथा अभिप्रेरणा प्रक्रिया अपनी भूमिका निभाती है। लोग अपने पर्यावरण की सूझबूझ प्राप्त करने हेतु विचारों, दृष्टिकोणों तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। संगठन में कार्यरत व्यक्तियों के बीच परस्पर सम्पर्क उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए अनिवार्य है तथा सामाजिक दृष्टि से वांछनीय। अलग-अलग तरीके से लोग वस्तुस्थिति के बारे में सोचते हैं। व्यक्तिगत व्यवहार में उनके सोचने के तरीके की अहम् भूमिका रहती है। अभिप्रेरणा की प्रक्रिया अंशतः स्वनिर्मित तथा अंशतः अनेक सकारात्मक तथा नकारात्मक अभिप्रेरकों के माध्यम से बाह्य परिवेश से प्रभावित होती है। जहाँ तक लोगों के जिन मूल्यों का प्रश्न है, उनका निर्धारण लोगों के सांस्कृतिक उतार-चढ़ाव से जाना जा सकता है। जीवन मूल्य अपेक्षाकृत चिरस्थायी रहते हैं तथा लोगों के जीवन, कार्य तथा परिवेश के प्रति उनके नजरिये को अपने तरीके से ढालते हैं।

(2) समूह व्यवहार अवधारणा (Group Behaviour Concept)- संगठनात्मक व्यवहार के क्षेत्र में समूह भावना का प्रतिपादन श्री जान डब्ल्यू. न्यूस्ट्रोंम (John W. Newtrom), मारविन ई.शा (Marvin E. Shaw), क्लोविस आर. शेपर्ड (Clovis R. Shepherd), चर्चमैन (Churchman), रॉबिन्स (Robbins) आदि प्रबन्ध विद्वानों ने किया है। विभिन्न उपक्रमों में कार्यरत संगठनों में विभिन्न प्रकार के समूह बन जाते हैं जो व्यक्ति तथा संगठनों के मध्य सम्पर्क सूत्र काम करते हैं। इनका लोगों के व्यक्तिगत जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। समूह के सदस्य सामान्यतः समूह द्वारा स्वीकृत भूमिकाओं का पोषण करते हैं तथा एक दूसरे से सम्बन्धों का जाल- सा बुन लेते हैं जो बदलते रहते हैं। समूहों के ये संरचनात्मक आयाम समूह प्रक्रियाओं- सम्प्रेषण प्रक्रिया, शंका समाधान प्रक्रिया, एकता तथा अनुशीलन प्राप्ति की प्रक्रिया को प्रभावित किये बिना नहीं रहते। संगठनों के भीतर समूहों का उदय विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति तथा सदस्यों के लिए उचित जीवन मूल्यों के अनुरक्षण हेतु होता है। सामूहिक मूल्यों के उदाहरण के रूप में प्रजातन्त्रिक विचार- विमर्श, समानता, सम्बद्धता तथा पारस्परिक समर्थन आदि का उल्लेख किया जा सकता है।

(3) संगठनों में संगठनात्मक व्यवहार अवधारणा (Organisational Behaviour Concept in Organisation)- व्यक्ति तथा समूह दोनों ही संगठन के भीतर काम करते हैं। एक संगठन को मात्र व्यक्तियों का संघ ही नहीं माना जाता है और न ही वह अनेक समूहों का एक बड़ा समूह ही है। उसका अपना एक अलग अस्तित्व एवं सत्ता है। उसकी अपनी पृथक् संरचना, प्रक्रियाएँ एवं मूल्य है। उसमें विभिन्न गतिविधियों अधिकार, सत्ता सम्बन्धों एवं सम्प्रेषण शृंखलाओं का जाल- सा विछा रहता है। अपनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए उसे अनेक तकनीकों का सहारा लेना होता है। ये संगठन औपचारिक भी हो सकते हैं तथा अनौपचारिक भी। कभी-कभी ये परस्पर विरोधी काम भी करते है। उनकी संरचना, प्रक्रिया एवं मूल्य ही अलग-अलग होते हैं। स्थायित्व, विकास, अस्तित्व तथा उपदेयता की दृष्टि से संगठनों के अपने निजी उद्देश्य होते हैं। वे सूचनाओं का प्रक्रियाकरण करके निर्णयन तथा अन्य दूसरी प्रक्रियाओं में काम लाते हैं ताकि व्यक्तियों एवं समूहों के प्रयासों को परिणामों की ओर मोड़ा जा सके। संगठनात्मक दृष्टि अन्य प्रक्रियाएँ हैं- नेतृत्व तथा अभिप्रेरणा की प्रक्रिया, पुरस्कार तथा प्रतिबन्धों का प्रशासन, परिवर्तन तथा विवादों का प्रबन्ध, बाह्य परिवेश में परिवर्तनों का अनुशीलन तथा समायोजन आदि। संगठन अपने मूल्यों एवं तौर-तरीकों को भी आगे बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं जो उनके सन्तुलन एवं दर्शन की छाप छोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, व्यावसायिक संगठन अभिप्राप्ति, विकास, गतिशीलन तथा सामाजिक उत्तरदायित्व के मूल्यों को साथ-साथ निभाने का प्रयास करते हैं।

(4) संगठनात्मक लक्ष्य-आधारित अवधारणा (Organisational Targets- Oriented Concept)- संगठनात्मक व्यवहार एक व्यावहारिक विज्ञान है जोकि संगठन के  मानवीय पहलू पर बल देने के कारण संगठनात्मक लक्ष्य पर आधारित है। यद्यपि किसी भी संगठन के विभिन्न उद्देश्य हो सकते हैं और कभी-कभी व्यक्तियों के उद्देश्यों से उनका टकराव भी हो सकता है किन्तु फिर भी बे संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति पर ही बल देते हैं। इसके लिए विभिन्न संगठनात्मक व्यवहारों की आवश्यकता होती है, ताकि संगठनात्मक लक्ष्य यथाशीघ्र, न्यूनतम समय में, न्यूनतम प्रयत्नों एवं संसाधनों से प्राप्त किये जा सकें। कोई भी संगठनात्मक व्यवहार अपने निर्धारित लक्ष्यों से हटने की हिम्मत नहीं जुटा सकता।

(5) मानवीय एवं आशावादी अवधारणा (Humanistic and Optimistic Concept) – संगठनात्मक व्यवहार मानवीय दृष्टिकोण को अपनाता है। दूसरे शब्दों में, वह संगठन संरचना कार्यरत व्यक्तियों के विकास, निष्पादन एवं उनकी प्रगति में विश्वास करती है। कीथ डेविस (Keith Davis) के अनुसार, “यह मानवीय लाभ के लिए मानवीय उपकरण है।” मानव के सम्बन्ध में इसकी यह मूलभूत मान्यता है कि प्रत्येक मानव में असीम क्षमताएँ होती हैं तथा सहयोगी, साहसी, उत्पादक एवं सृजनीशल है। यदि से उचित अवसर प्रदान किया जाये तो वह अपनी क्षमताओं, प्रतिभाओं एवं योग्ताओं का संगठन के सर्वाधिक हित में उपयोग कर सकता है। समस्त संगठनात्मक व्यवहार ही इसी मानवीय एवं आशार्वाद चिन्तन पर केन्द्रित हैं।

(6) पर्यावरणात्मक अवधारणा (Environmental Concept) – संगठनात्मक व्यवहार एवं पर्यावरण इन दोनों में परस्पर गहन सम्बन्ध है। संगठन का आन्तरिक तथा बाहरी पर्यावरण ही संगठन में कार्यरत व्यक्तियों तथा समूहों के व्यवहार को निर्धारित करता है। संगठन का आन्तरिक तथा बाहरी पर्यावरण जितना अधिक स्वस्थ होगा, संगठन में कार्यरत व्यक्तियों तथा समूहों का संगठनात्मक व्यवहार भी उतना ही अधिक स्वस्थ होगा। यही कारण है कि प्रत्येक संगठन संरचना में कार्य के स्वस्थ पर्यावरण की स्थापना पर सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा करने से क्रियाओं से सामंजस्य स्थापित होता है तथा कार्यरत व्यक्तियों एवं समूहों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।

(7) अन्तर्विषयक अवधारणा (Interdisciplinary Concept) – संगठनात्मक व्यवहार मूलभूत रूप में अन्तर्विषयक अवधारणा है जोकि विभिन्न विषयों से लिये गये ज्ञान में तालमेल बैठाता है। संगठनात्मक व्यवहार में मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र आदि विभिन्न विषयों के ज्ञान का उपयोग होता है। यही नहीं, यह अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, कानून तथा इतिहास से भी सम्बन्धित ज्ञान प्राप्त करता है। संगठनात्मक व्यवहार इन विषयों के तर्कसंगत विचारों, अवधारणाओं एवं तकनीकों का एकत्रीकरण करके मानवीय व्यवहार को समझने एवं विश्लेषण करने पर बल देता है।

(8) व्यावहारिक विज्ञान अवधारणा (Applied Science Concept) – संगठनात्मक व्यवहार का प्राथमिक उद्देश्य संगठनात्मक समस्याओं विशेषकर मानवीय पहलू से सम्बन्धित समस्याओं से समाधान में किये गये अनुसंधानों का उपयोग करना है। इस क्षेत्र में किये जाने वाले विभिन्न अनुसंधानों, अध्ययनों तथा अवधारणात्मक विकासों के कारण संगठनात्मक व्यवहार का वैज्ञानिक आधार दिनों-दिन मजबूत होता जा रहा है। कर्मचारी, व्यक्तित्व, अभिवृत्तियों, अवबोध, मूल्य, प्रेरणा, सन्तुष्टि तथा मानवीय व्यवहार के अन्य पहलुओं के क्षेत्र के क्षेत्र में निरन्तर व्यापक अनुसंधान किये जा रहे हैं।

कुछ लोगों की यह धारणा है कि संगठनात्मक व्यवहार शुद्ध विज्ञान पर आधारित है। किन्तु वास्तविकता यह है कि उनकी मात्र मिथ्या धारणा है। वस्तु स्थिति यह है कि संगठनात्मक व्यवहार पूर्णतः व्यावसायिक विज्ञान पर आधारित है जोकि परिवर्तनशील है। मानवीय व्यवहार भी परिवर्तनशील है, जबकि शुद्ध विज्ञान परिवर्तनशील नहीं है अपितु स्थिर प्रकृति का है।

(9) प्रणालीकृत अवधारणा (Systematic Concept)- संगठनात्मक व्यवहार प्रणालीकृत अवधारणा है क्योंकि यह संगठन में उपयोग में आने वाली विभिन्न प्रणालियों को प्रभावित करने वाले प्रत्येक घटक पर विचार करता है। प्रणालीकृत अवधारणा एक समाकलन अवधारणा है जोकि संगठनात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले सभी चरों पर विचार करती यह मनोवैज्ञानिक सामाजिक तथा सांस्कृतिक घटकों के सन्दर्भ में संगठनात्मक व्यवहार का विश्लेषण करती है।

संगठनात्मक व्यवहार – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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