संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

संगठनात्मक व्यवहार के उद्देश्य | संगठनात्मक व्यवहार के महत्व | संगठनात्मक व्यवहार की आवश्यकता

संगठनात्मक व्यवहार के उद्देश्य | संगठनात्मक व्यवहार के महत्व | संगठनात्मक व्यवहार की आवश्यकता | Objectives of Organizational Behavior in Hindi | Importance of Organizational Behavior in Hindi | Need for organizational behavior in Hindi

संगठनात्मक व्यवहार के उद्देश्य एवं महत्व या आवश्यकता (Objects, Importance and Need of Organisational Behaviour) –

संगठनात्मक व्यवहार के महत्व, उद्देश्य अथवा इसके अध्ययन की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है-

(1) मानव व्यवहार को समझने के लिये (Understanding Human Behaviour)- संगठनात्मक व्यवहार मानव व्यवहार के विभिन्न स्तरों का विश्लेषण करने का उपकरण है। यह प्रबन्धकों के लिये व्यक्तियों के व्यवहार को समझने में सहायक होता है। इसके द्वारा अन्तर्वैयक्तिक व्यवहार की जटिलता को समझा जा सकता है। इससे व्यक्ति की कार्य करने की मनः स्थिति, रुझान, कार्य सन्तुष्टि प्रतिक्रिया, तत्परता, कार्य-निष्ठा, कार्य के प्रति दृष्टिकोण आदि को समझा जा सकता है। इसके ज्ञान से मानवीय सम्बन्धों में सुधार लाया जा सकता है।

मानव की अनेक इच्छायें, भावनायें, आवश्यकतायें एवं अपेक्षायें होती हैं। वह अनेक प्रकार की योग्यतायें, क्षमतायें, ज्ञान एवं चातुर्य भी रखता है। संगठनात्मक व्यवहार के द्वारा ‘सम्पूर्ण मानव’ (Whole man) को समझने में सहायता मिलती है। इसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के विभिन्न गुणों, लक्षणों, भावनाओं, इच्छाओं, कमियों व अपेक्षाओं का अध्ययन किया जा सकता है। संगठनात्मक व्यवहार के अध्ययन से मानव व्यवहार को निम्नांकित स्तरों पर समझा जा सकता है-

(i) व्यक्तिगत स्तर पर- संगठनात्मक व्यवहार को व्यक्तिगत स्तर पर समझा जा सकता है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति के विशिष्ट व्यवहार के कारणों को ज्ञात किया जा सकता है। यहाँ उसके ‘सामाजिक व्यक्ति’ के रूप में किये जाने वाले व्यवहार को समझा जाता है।

(ii) अन्तर्वैयक्तिक स्तर पर- संगठनात्मक व्यवहार का व्यक्तियों के आपसी स्तर (Interpersonal level) पर भी अध्ययन किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, अधिकारी एवं अधीनस्थ के बीच का अध्ययन ऐसे ही पारस्परिक व्यवहारों का अध्ययन है। इसके द्वारा व्यक्तियों के बीच के सम्बन्धों को समझा एवं उनमें सुधार किया जा सकता है।

(iii) समूह स्तर पर- जब व्यवहार समूह में होता है तो यह भिन्न हो जाता है। व्यक्तियों का व्यवहार समूह दवाव से भी प्रभावित होता है। समूह व्यवहार संगठनात्मक लक्ष्यों तरीकों व कार्यप्रणाली पर भी प्रभाव डालता है। इसलिये संगठनात्मक व्यवहार में व्यक्तियों के व्यवहार का समूह सतर पर भी अध्ययन किया जाता है।

(iv) अन्तर समूह स्तर पर- संगठन में अनेक समूह कार्य करते हैं। समूहों के बीच मतभेद, संघर्ष, प्रतिस्पर्द्धा, सहयोग आदि के सम्बन्ध बनते रहते हैं। उनके आपसी सम्बन्धों का प्रभाव सम्पूर्ण संगठन की कार्यप्रणाली पर पड़ता है। अतः प्रबन्धकों के लिये विभिन्न समूहों के बीच आपसी सम्बन्धों का अध्ययन करना भी आवश्यक होता है।

(2) व्यवहार की गतिशीलता को समझना (To Understand the Dynamics of Behaviour) – संगठनात्मक व्यवहार का एक लक्ष्य व्यक्तियों के व्यवहार के पीछे निहित कारणों का पता लगाना होता है (To know why people behave as they do)। जब तक कर्मचारियों का व्यवहार एक रहस्य या पहेली बना होता है, उनसे काम लेना तथा उन्हें सन्तुष्ट करना मुश्किल होता है। अतः प्रबन्धकों को यह जान लेना होता है कि व्यक्ति विभिन्न दशाओं में कैसे व्यवहार करते हैं (How People behave under a variety of situations)।

(3) समूह गतिकी का ज्ञान करना (To Understand Group Dynamics) – संगठनात्मक व्यवहार के द्वारा छोटे समूहों में सम्बन्धीं की गतिशीलता और समूह प्रतिक्रियाओं को भी भली-भाँति समझा जा सकता है। इससे औपचारिक समूहों में नियम पालता, औपचारिक बन्धनों का व्यवहार पर प्रभाव आदि के बारे में ज्ञान किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, अनौपचारिक समूहों के कार्य करने की पद्धति, सम्प्रेषण प्रारूप, नेतृत्व प्रभाव आदि के बारे में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

(4) मानव व्यवहार का पूर्वानुमान करना (Predicating Human Behaviour)- संगठनात्मक व्यवहार के द्वारा कर्मचारियों के विचारों, प्रवृत्तियों एवं मनोवृत्तियों का अध्ययन करके उनके व्यवहार का पूर्वानुमान किया जा सकता है। इससे प्रबन्धकों को कर्मचारियों के अभिप्रेरण, सम्प्रेषण, प्रशिक्षण आदि के सम्बन्ध में निर्णय लेने तथा कार्यक्रम बनाने में सुविधा होती है।

संगठनात्मक व्यवहार के अन्तर्गत प्रबन्धक यह भी पूर्वानुमान कर सकते हैं कि कौन-से कर्मचारी कार्य के प्रति समर्पित एवं उत्पादक (Productive) प्रकृति के हैं तथा कौन-से कर्मचारी लापरवाह, अनउत्तरदायी, निष्क्रिय एवं कार्य में बाधा डालने वाले सिद्ध होंगे। इस प्रकार संगठनात्मक व्यवहार कर्मचारी के अवांछित व्यवहार को रोकने में सहायक होता है।

(5) व्यवहार को नियन्त्रित एवं निर्देशित करना (Controlling and Directing Behaviour)- संगठनात्मक व्यवहार से कर्मचारियों के व्यवहार को न केवल समझने व पूर्वानुमान करने में सहायता मिलती है, वरन् उसको नियन्त्रित एवं निर्देशित करने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह प्रबन्धकों के निम्नलिखित कार्य क्षेत्रों में व्यवहार को निर्देशित करता है-

(a) संगठनात्मक व्यवहार द्वारा उन तरीकों का अध्ययन किया जाता है जिनमें सत्ता का सदुपयोग किया जा सके।

(b) इससे संगठनात्मक एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों में कुशलतापूर्वक समन्वय किया जा सकता है।

(c) नेतृत्व को प्रभावी बनाने की नयी विधियों का विश्लेषण किया जा सकता है।

(d) इससे संगठन में आपसी सहयोग एवं सूझबूझ बढ़ाने वाली प्रभावकारी सम्प्रेषण व्यवस्था स्थापित की जा सकती है।

(e) संगठनात्मक वातावरण में सुधार किया जा सकता है।

(6) प्रभावशाली निष्पादन (Effective Performance) – एक प्रबन्धक को अपने कर्मचारियों से सफलतापूर्वक कार्य करवाने के लिये उन्हें निरन्तर अभिप्रेरित करना होता है, उनकी मानसिक स्थिति का पूर्वानुमान करना होता है तथा उनके कार्य, सम्मान, प्रवृत्तियों एवं दृष्टिकोण को समझना होता है। उनके मनोबल एवं कार्य उत्साह को बनाये रखने के लिये भी उनके व्यवहार का विश्लेषण करना आवश्यक होता है।

(7) मानव संसाधन प्रबन्ध का आधार (Basis for Human Resource Management)- मानवीय समस्याओं को मानवीय ढंग से हल करने के लिये संगठनात्मक व्यवहार का ज्ञान आवश्यक होता है। कर्मचारियों की कार्य समस्याओं व विवादों को हल करने के लिये मानवीय व्यवहार का सही विश्लेषण करना आवश्यक है। जब कोई कर्मचारी धीमे कार्य करता है अथवा उसकी उत्पादकता निरन्तर गिर रही होती है तो यह सदैव खराब कार्य की दशाओं अथवा उसको पदोन्नत न किये जाने का ही परिणाम नहीं होता है। प्रायः अधिकारी का उपेक्षाभार दृष्टिकोण भी कर्मचारी को निष्क्रिय बना देता है। अधिकांश औद्योगिक विवाद प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के पारस्परिक सम्बन्धों की मधुरता पर निर्भर करते हैं। न्यूस्ट्रम एवं कीथ डेविस का कथन है कि, “संगठनात्मक व्यवहार मानवीय लाभ के लिये मानवीय उपकरण है।”

(8) उपभोक्ता व्यवहार की कुंजी (Key to Consumer Behaviour) – संगठनात्मक व्यवहार का विषय विपणन के क्षेत्र में भी उपयोगी है। सम्पूर्ण विपणन क्रियाओं का केन्द्रविन्दु ‘उपभोक्ता व्यवहार’ है। माल का प्रवाह, विपणन शृंखलाओं की प्रभावशीलता, नवप्रवर्तन, नये उत्पादों का बाजार में प्रवेश, विपणन सृजनात्मकता आदि अनेक परिवर्तन उपभोक्ता व्यवहार पर निर्भर करते हैं। माल की क्रय प्रक्रिया व उपभोक्ता के चयन व्यवहार को ठीक से समझने के लिये भी व्यवहार विशलेषण की योग्यता का होना आवश्यक है।

(9) ‘व्यक्ति कौशल’ के विकास में सहायक (Helpful in Developing Poeple Skillls’) – आज प्रवन्ध के क्षेत्र में तकनीकी योग्यता से भी अधिक महत्वपूर्ण “व्यक्ति योग्यता हो गयी है। व्यक्तियों के ‘व्यक्तित्व’ को ठीक से समझ लेना प्रबन्धकों के लिये सुगम नहीं है। इसके लिये संगठनात्मक व्यवहार का ज्ञान होना अति आवश्यक है। यहाँ तक कि प्रबन्धकों के सैद्धान्तिक ज्ञान व विचारधाराओं का प्रभावी क्रियान्वयन भी उनके संगठनात्मक व्यवहार को समझे बिना सम्भव नहीं है।

(10) उच्च उत्पादकता एवं श्रेष्ठ परिणाम (Higher Productivity and Better Results)- संगठनात्मक व्यवहार ‘उत्पादकता’ दृष्टिकोण पर भी आधारित है। यह वैयक्तिक एवं समूह व्यवहार पर नियन्त्रण करके संगठन की उत्पादकता में वृद्धि करने तथा श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने पर बल देता है। यह श्रेष्ठ परिणामों के आधार पर संगठन को प्रभावी बनाता है।

(11) संगठनों को परिवर्तन के अनुकूल बनाना (Adopting Organisation to Change)- परिवर्तन के बिना संगठन कार्य नहीं कर सकते हैं। आधुनिक युग में तेजी से हो रहे परिवर्तनों ने प्रबन्धकों के समक्ष एक चुनौती उत्पन्न कर दी है। संगठनात्मक व्यवहार द्वारा नये परिवर्तनों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये उनका (a) अध्ययन एवं विश्लेषण किया जा सकता है; (b) परिवर्तनों के प्रति विरोध को जीता जा सकता है; (c) परिवर्तनों में भी मौलिक स्वरूप एवं संगठनात्मक निरन्तरता को बनाये रखा जा सकता है; तथा (d) परिवर्तनों को लागू करने के लिये अनुकूल वातावरण का निर्माण किया जा सकता है।

(12) संस्था की सफलता (Success of Institution) – संगठनात्मक व्यवहार के द्वारा व्यक्तियों एवं समूहों के व्यवहार को समझने एवं पूर्वानुमान करने में सुविधा रहती है। इससे कर्मचारियों को उचित निर्देश देकर उनकी क्षमताओं एवं योग्ताओं का संस्था के हित में उपयोग किया जा सकता है। प्रो० लुथान्स लिखते हैं कि “संगठनात्मक व्यवहार के द्वारा व्यक्ति, संगठन तथा तकनीक में अच्छा समन्वय किया जा सकता है जिससे संगठनात्मक लक्ष्यों की पूर्ति अधिक प्रभावी ढंग से की जा सकती है।”

(13) त्रिपक्षीय उद्देश्यों की पूर्ति (Fulfils Tripartite Objectives) – संगठनात्मक व्यवहार निम्न तीन पक्षों के उद्देश्यों की पूर्ति करता है-

(i) संस्थात्मक उद्देश्य- संगठनात्मक व्यवहार से संस्था के संसाधनों व कार्य योग्यताओं का श्रेष्ठ उपयोग सम्भव होता है। संस्था की कार्यकुशलता बढ़ती है, उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होता है तथा लागतों में कमी आती है।

(ii) कर्मचारी उद्देश्य- संगठनात्मक व्यवहार के फलस्वरूप कर्मचारियों में समूह भावना का विकास होता है, कार्य सन्तुष्टि बढ़ती है तथा वे संस्था में अधिक योगदान करने में सक्षम हो जाते हैं। कर्मचारी नवीन पद्धतियों से परिचित हो हैं तथा उनकी क्षमतओं में विकास होता है।

(iii) सामाजिक उद्देश्य- संगठनात्मक व्यवहार से समाज भी लाभान्वित होता है। समाज को अच्छी किस्म की वस्तुयें कम मूल्यों पर उपलब्ध हो जाती हैं। समाज में सन्तुष्ट एवं अधिक योग्य कर्मचारियों की संख्या बढ़ती है। इन सबके फलस्वरूप समाज में शान्ति एवं समृद्धि का वातावरण बनता है। समाज में आदर्श “संगठनात्मक संस्कृति” का निर्माण होता है।

(14) प्रबन्धकीय जीवनवृत्ति में सुविधा (Facility in Managerial Career) – संगठनात्मक व्यवहार के कारण युवा पीढ़ी को प्रबन्धकीय जीवनवृत्ति में प्रवेश के नये-नये अवसर प्राप्त होते हैं। संगठनात्मक व्यवहार का अध्ययन कर लेने के फलस्वरूप वे प्रबन्ध क्षेत्र में अधिक सफल हो सकते हैं।

(15) शैक्षणिक विकास (Academic Advancement)- संगठनात्मक व्यवहार विषय के कारण न केवल प्रबन्ध का क्षेत्र ही समृद्ध हुआ है वरन् इससे कॉलेजों में चलने वाले व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी विविधता आ गयी है। उनके शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में यह पेपर सम्मिलित कर लिया गया है।

संगठनात्मक व्यवहार – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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