संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

अवबोधन का अर्थ एवं परिभाषा | अवबोधन की प्रक्रिया | Meaning and Definition of Perception in Hindi | Process of Perception in Hindi

अवबोधन का अर्थ एवं परिभाषा | अवबोधन की प्रक्रिया | Meaning and Definition of Perception in Hindi | Process of Perception in Hindi

अवबोधन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Perception)

अवबोध में वातावरण स्थिति की व्याख्या व विवेचन किया जाता है। यह स्थिति कि स्थिति का हूबहू अभिलेखन (Exact recording) नहीं है। यह किसी स्थिति या वातावरण का छाया चित्र लेना नहीं है वरन व्यक्तिगत ढंग से स्थिति का अर्थ लगाना है। यह वास्तविक जगत् का व्यक्तिगत नजरिया है (Individual view of reality)। यह आंशिक व्यक्तिगत संरचना है जिसमें व्यक्ति अपनी मुख्य भूमिका (व्यवहार) के लिये कुछ चीजों (अर्थ, निर्णय) का चयन व्यक्तिगत ढंग से करता है। अतः इससे यह भी स्पष्ट होता है कि व्यक्ति का बोधात्मक जगत् (Perceptual world) उसके वास्तविक जगत् से बिल्कुल भिन्न हो सकता है। हेरोल्ड लीविट कहते हैं कि, “एक प्रबन्धक का बोधात्मक जगत् उसके अधीनस्थ कर्मचारी के बोधात्मक जगत् से पूर्णतः भिन्न होता है तथा दोनों के जगत् का चित्र वास्तविक जगत् के बिल्कुल विपरीत हो सकता है।” संक्षेप में, ‘अवबोध’ वास्तविक जगत्, वातावरण व उद्दीपकों को चयनित रूप से  ग्रहण करने संगठित करने तथा अपनी भूमिका के निष्पादन एवं व्यवहार (Behaviour) के लिये उस स्थिति की व्यक्तिगत ढंग से व्याख्या करना है। स्थिति की व्याख्या व विवेचन करते समय व्यक्ति स्वयं से दृष्टिकोण व विचारों, वस्तु एवं वातावरणीय घटकों से प्रभावित होता है।

अवबोध की कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्न प्रकार हैं-

(1) वोन हेलर गिलमर (Von Haller Gilmer) के अनुसार, “अवबोध स्थितियों के प्रति जागरूक होने की तथा संवेदनाओं (Sensations) के साथ अर्थपूर्ण सम्बन्ध जोड़ने की प्रकिया है।”

(2) उदय पारीक (Udai Pareek) के शब्दों में, “अवबोध संवेदी उद्दीपकों (Sensory Stimuli) अथवा समंकों को प्राप्त करने, चयन करने, संगठित करने, अर्थ प्रतिपादित करने, जाँचने तथा उनके प्रति प्रतिक्रिया करने की प्रक्रिया है।”

(3) स्टेफन पी0 रोबिन्स (Stephen P. Robbins) के शब्दों में, “अवबोध एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने वातावरणों को अर्थ प्रदान करने के लिये संवेदी प्रभावों (Sensory impression) को संयोजित एवं विवेचित करते हैं।”

(4) रिक्की ग्रिफिन (Ricky Griffin) के अनुसार, “अवबोध विभिन्न प्रक्रियाओं का समूह है जिनके द्वारा एक व्यक्ति वातावरण के प्रति सजग होता है तथा वातावरण की सूचनाओं से अर्थ-व्याख्या करता है।”

अवबोधन की प्रक्रिया

(Process of Perception)

अवबोधन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति वातावरण से सूचनाओं व उत्तेजकों को ग्रहण करके उनका चयन, संयोजन एवं विवर्धन करते हैं। अवबोध के द्वारा ही चयनित सूचनाओं, ज्ञान एवं तथ्यों का विचारपूर्वक प्रविधियन करके उनसे निर्णय लेते हैं तथा व्यवहार करते हैं। अवबोध अपने बारे में दूसरों के बारे में तथा दैनिक जीवन अनुभवों के बारे में धारणा निर्मित करने का ढंग है। यह वह पर्दा या फिल्टर है जिससे सूचनायें लोगों पर प्रभाव डालने के पूर्व होकर गुजरती हैं। अवबोधन के निर्मित होने की एक निश्चित प्रणाली है। इसमें अनेक उप-क्रियायें सम्मिलित होती हैं जो एक-दूसरे से जुड़ी हुयी हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। इन उप- क्रियाओं पर वातावरण एवं अवबोधक के चिन्तन, दृष्टिकोण एवं अभिप्रेरण का भी प्रभाव पड़ता है।

(1) बाह्य वातावरण, (2) प्रेरणायें, उद्दीपन एवं सामना (3) अवबोधन प्रणाली, (4) निर्णय एवं व्यवहार, (5) परिणाम।

इनका वर्णन निम्न प्रकार है-

(1) बाह्य वातावरण (External Environment) – व्यक्ति का बाह्य वातावरण उसके आस-पास के परिवेश, भौतिक दशाओं, जलवायु, परिसर, अड़ोस-पड़ोस से मिलकर बनता है। इसके अतिरिक्त समाज की संस्कृति, सामाजिक दशायें, मूल्य, परम्परायें, प्रथा, शिक्षा प्रणाली, नैतिक एवं धार्मिक मानदण्ड आदि घटक भी वातावरण का निर्माण करते हैं जो व्यक्ति के चिन्तन एवं दृष्टिकोण के माध्यम से उसके अवबोध को प्रभावित करते हैं। वातावरण से ही प्रेरणायें, उत्तेजनायें एवं विभिन्न प्रकार के उद्दीपक उत्पन्न होते हैं।

(2) प्रेरणायें, उद्दीपन एवं सामना (Stimuli and Confrontation) – उद्दीपक एवं प्रेरक घटक (Stimulants) व्यक्ति के सोच विचारों को प्रोत्साहित करते हैं एवं प्रेरणा देते हैं। जब एक व्यक्ति वातावरण से उत्पन्न होने वाले प्रेरकों या विभिन्न परिस्थितियों का सामना करता है तो उसके अवबोध की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। व्यक्ति का यह सामना उसकी तात्कालिक ऐन्द्रिक उत्तेजनाओं अथवा सम्पूर्ण भौतिक व सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण के साथ हो सकता है। उदाहरण के लिये एक कर्मचारी को प्रत्येक दिन अपने सुपरवाइजर अथवा सम्पूर्ण औपचारिक संगठनात्मक वातावरण का सामना करना पड़ता है। इन उद्दीपकों में वस्तुयें घटनाय तथा व्यक्ति शामिल हैं जो अवबोधक के विचारों को उत्प्रेरित करते हैं।

(3) अवबोध क्रियाविधि (Perceptual mechanism)- अवबोध की क्रियाविधि का मुख्य भाग सूचनाओं के चयन, संयोजन, विवेचन एवं प्रतिपुष्टि से मिलकर बनता है। इनका संक्षेप में वर्णन निम्न प्रकार है-

(i) चयन (Selection) – वातावरण में अनेक चीजें एक साथ घटित हो रही होती हैं। किन्तु व्यक्ति सभी पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता, न यह उसके लिये आवश्यक होता है। अतः उसे सबसे पहले कुछ ज्यादा जरूरी चीजों पर ध्यान देना होता है। व्यक्ति चयनित चीजों पर ध्यान देकर ही अपने जीवन को प्रभावपूर्ण ढंग से चला सकता है।

(ii) संयोजन (Organisation) – व्यक्ति की अवबोध की प्रक्रिया में संयोजन से तात्पर्य ग्रहण की गयी सूचनाओं को ‘अर्थपूर्ण सम्पूर्णता’ (Meaningful Whole) में बदलना है ताकि वह उपयोगी एवं मार्गदर्शक बन सके। इस क्रिया को ‘संरूपण प्रकिया’ (Gestalt Process) के रूप से जाना जाता है। अर्थ संयोजन के कई ढंग हैं, जैसे- समूहीकरण करके, सरलीकरण के द्वारा अथवा रिक्त अन्तराल को पूरा (To fill in the gaps) करके।

(iii) व्याख्या करना (Interpretation)- अवबोधन प्राप्त सूचना एवं सामग्री, जिसको उपयुक्त आधारों पर संगठित कर लिया जाता है, की व्याख्या करके सम्पूर्ण स्थिति से ‘अर्थ’ निकालता है। व्यक्ति अपने ढंग से चीजों की व्याख्या करता है। इसमें वह अपनी धारणाओं का सहारा लेता है। विवेचन करते समय अवबोधक कुछ प्रतीकों, विशेषणों का प्रयोग करता है। वह सूचनाओं को विकृत भी कर सकता है तथा वह अपनी स्वयं की भावनाओं, मतों, संवेगों, विश्वासों से संचालित लेकर निर्णय लेता है। वह अपने पक्षपातों के अनुरूप ही अपने अर्थ को प्रकट कर सकता है। यदि अवबोधक विवेकशील नहीं है तो वह सूचनाओं को विकृत करके गलत व्याख्या कर सकता है। व्याख्या करने की अवस्था में अवबोधक निर्णायक (Judgemental) होने का प्रयास करता है। वह दूसरों के बारे में अच्छा-बुरा, सही-गलत, बुद्धिमान-मूर्ख आदि होने का निर्णय तुरन्त ले लेता है। अवबोधन में व्यक्ति ने केवल सूचनाओं को विकृत कर लेता है, वरन् कई बार वह उन सूचनाओं की उपेक्षा भी कर लेता है जो उसके लिये अहितकर होती हैं। व्यक्ति के पक्षपात, व्यक्तिपरकता, निर्णयात्मक अभिवृत्ति आदि के कारण था चीजों की सही व्याख्या नहीं कर पाता है। यह प्रभाव को न देखकर केवल अपनी ज्ञानात्मक पसन्द व वरीयताओं को अधिक महत्व देता है। यही कारण है कि वह अवबोध में व्यक्ति वास्तविक स्थिति से दूर हट जाता है।

(iv) प्रतिपुष्टि (Feedback)- अगली उप-क्रिया प्रतिपुष्टि है। किम्बल एवं गारमेजी लिखते हैं कि, “अधिकांश ब्रोधात्मक क्रियायें उत्तेजनायें उत्पन्न करती हैं जिनके द्वारा बोधात्मक घटना की व्याख्या करने में सहायता मिलती है।” इसका एक उदाहरण गति संवेदन प्रतिपुष्टि है। इसमें माँसपेशियों से संवेदी प्रभाव व सूचनायें प्रकट होने लगती हैं जिनसे एक श्रमिक उसके द्वारा ढोये जाने वाली सामग्री या माल की गति का अवबोध कर सकता है। एक अन्य उदाहरण मनावैज्ञानिक प्रतिपुष्टि का है जो एक कर्मचारी के अवबोध को प्रभावित कर सकती है। यह है कर्मचारी के सुपरवाइजर द्वारा भौहे टेढ़ी करना अथवा उसके द्वारा सुर परिवर्तन (Voice inflextion) करना अर्थात् तेजी या नरमी से पेश आना। प्रति पुष्टि के द्वारा प्राप्त सूचनाओं से व्यक्ति का अवबोध प्रभावित होता है।

(4) निर्णय एवं व्यवहार (Decision and Behaviour)- अवबोध की अभिव्यक्ति व्यवहार एवं निर्णय के अन्तर्गत होती है। यह व्यवहार बाह्य या प्रकट (Overt) अथवा गुप्त (Covert) हो सकता है। वस्तुतः व्यक्ति का अवबोध एक व्यवहारात्मक घटना है तथा यह संगठनात्मक व्यवहार का एक महत्वपूर्ण भाग है। अवबोध के फलस्वरूप, एक कर्मचारी तेजी से या धीमे कार्य कर सकता है, यह उसका खुला व्यवहार है अथवा वह अपने मस्तिष्क में किसी अभिवृत्ति (Attitude) का निर्माण कर सकता है। यह उसका अप्रकट (Covert) व्यवहार है।

(5) परिणाम (Consequence) – यह वातावरण से जुड़ा घटक है। अवबोध निर्मित हो जाने के बाद व्यक्ति को वातावरण में कार्य करना चाहिये ताकि वह एक निश्चित परिणाम प्राप्त कर सके। इसके अन्तर्गत यदि परिणाम उसके अवबोध के अनुकूल होता है तो उसे अपने निर्णय व व्यवहार को सुदृढ़ करने (To Reinforce) अथवा उसके पुनर्बलन (Reinforcement) की प्रेरणा मिलती है। किन्तु यदि परिणाम उसके अवबोधित निर्णय व व्यवहार के अनुकूल नहीं होता है तो वह दण्ड के लिये प्रेरित होता है। अवबोध का यह पहलू संगठनात्मक परिणाम से भी जुड़ा है।

(6) स्थिति एवं अवबोधक के लक्षण (Characteristics of Situation and Perceiver)- अवबोध प्रणाली पर स्थिति के अनेक घटकों का भी प्रभाव पड़ता है। संगठनात्मक स्थिति व भूमिका व्यक्ति के अवबोध को प्रभावित करती है। इसी प्रकार अवबोधक के अनेक लक्षण जैसी उसकी आवश्यकतायें, प्रेरक, स्व-धारणा, विगत अनुभव, मनोवैज्ञानिक दशा आदि भी सम्पूर्ण अवबोध प्रणाली को प्रभावित करते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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