सिन्धु घाटी की सभ्यता की चित्रकला | हड़प्पा संस्कृति के निवासी और चित्रकला | सिन्धु घाटी की सभ्यता के चित्रों का विषय | सिन्धु घाटी की चित्रकला की विशेषताएँ | सिन्यु घाटी की चित्रकला के दोष
सिन्धु घाटी की सभ्यता की चित्रकला | हड़प्पा संस्कृति के निवासी और चित्रकला | सिन्धु घाटी की सभ्यता के चित्रों का विषय | सिन्धु घाटी की चित्रकला की विशेषताएँ | सिन्यु घाटी की चित्रकला के दोष
सिन्धु घाटी की सभ्यता की चित्रकला
इस सभ्यता के लोग निर्माण कला में काफी उन्नति कर चुके थे। इनकी मूर्तियाँ हमारे इस कथन को सही सिद्ध करने में बड़ी सहायता करती हैं। खुदाई में पकी हुई मिट्टी की कुछ मुहरें भी मिली हैं जो शक्ल में छोटी हैं। मैके के शब्दों में, “मुहरें ही सिन्धुगाटी के लोगों के एक मात्र लेख हैं, जिनसे उनकी लिखाई के विषय में कुछ ज्ञात होता है। पत्थर तथा मिट्टी की मुहरों से सिन्धु घाटी का लोगों के धर्म पर बहुत अधिक प्रकाश पड़ता है।”
सिन्धु घाटी के समय की हमें एक मुहर भी देखने को मिलती है, जो इसी घाटी में प्राप्त हुई थी। इसमें एक नंगे देवता को सींग तथा मुखों वाला दर्शाया है। इस देवता को उस मुहर में एक स्टूल पर ध्यान में मग्न दिखाया गया है तथा उसके चारों ओर कई पशु खड़े हुए भी बनाये गये हैं। डॉ० मार्शल का कहना है कि यह शिव का चित्र है। इस प्रकार की दो मोहरें और भी प्राप्त हुई हैं।
इस काल की एक और मुहर मिली है, जिससे एक देवी सींगों सहित पील के पेड़ के मध्य में बैठी हुई अंकित की गई है। उसने सामने एक ओर देवता को झुके हुए दर्शाया गया है। देवी के हाथों में कडे भी दर्शाये गये हैं। देवी के बाल लम्बे दिखाये गये हैं और उसी के सामने लम्बे बालों वाले भक्त उसके सम्मुख झुकी हुई मुद्रा में अंकित किये गये हैं।
यहाँ पर एक और मुहर मिली है, जिसमें एक भैंसे का चित्र बनाया गया है। इस चित्र को देखने से ऐसा मालूम होता है जैसे कि उसने दूसरे पशुओं पर हमला किया है और उसको उन पर विजय प्राप्त हुई है। वह विजेता के रूप में खड़ा हुआ है। मार्शल ने इस मुहरों की बड़ी प्रशंसा की है।
यहाँ एक और मुहर मिली है, जिस पर मनुष्य के शरीर जैसा चित्र बना हुआ है, परन्तु मुख तथा पूँछ बैल के समान बने प्रतीत होते हैं। विद्वानों ने इसको देखकर ऐसा अनुमान लगाया है कि यह चित्र किसी यज्ञ अथवा गन्धर्व की आकृति होगी। इसे एक शेर से लड़ते हुए दिखाया गया है।
एक मुद्रा पर अंकित पुरुष का मूर्ति चित्र देखने को मिलता है। इससे यह प्रतीत होता है कि इस काल में देवताओं के चित्र भी बनाये जाते थे। एक सील पर तीन सिर वाले व्यक्ति अंकित है, जिसके दो सौंग भी हैं। इस मूर्ति रूप चित्र के चारों ओर पशुओं की आकृतियाँ भी हैं जिनमें बैल की आकृति दर्शनीय है।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मोहर पर पशुपति को पशु के साथ चित्रण किया गया है। इस मोहर में सींगदार मुकुट पहने त्रिनेत्रधारी शिव एक योगी के समान नीचे सिंहासन पर बैठे हैं। उनके चारों ओर कुछ पशु भी बनाये गये हैं, जिनमें हाथी और चीता दाहिनी तरफ गैंडा तथा भैंस उल्टी तरफ सींग वाला हिरन सिंहासन के नीचे खड़ा है। इस मोहर पर शिव के पशुपति रूप का अंकन दर्शनीय है।
पत्थर तथा हाथी-दाँतों पर खुदी हुई दो हजार से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इन पर कुछ लिखा भी है। कुछ विद्वानों के मतानुसार ये लेख ‘ब्राह्मी लिपि’ के हैं, जिनमें 396 चिह्नों का प्रयोग हुआ है।
डॉ० बी० डी० शुक्ला के शब्दों में, “सिन्धु घाटी की सभ्यता सम्बन्धी सामग्री में मुद्राएं अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये सेलखड़ी या हाथी दाँत की बनी हुई हैं। उन पर लगभग 2,000 अर्न्तलेख खुदे हुए हैं। ये मुद्राएं न्यूनाधिक मात्रा में सिन्धु प्रदेश के अतिरिक्त कोटाला, निहंग, रोपड़, सौराष्ट्र, मैवाना और रंगपुर, गुजरात में लोथल तथा मध्य प्रदेश में मंदसौर में पायी गयी हैं। इससे स्पष्ट है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता सिन्धु घाटी तक ही सीमित नहीं थी वरन् यह पश्चिम तथा उत्तर भारत तक फैली हुई थी।”
डी०वी० डिस्कल्कर का कथन है, “इस समय में उन सभी स्थानों में सांस्कृतिक समानता विद्यमान थी।”
हिन्दुस्तान टाइम्स, मार्च 13,1960 के प्रकाशित लेख के अनुसार, “सिन्धु घाटी की सभ्यता बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थी। घघर घाटी (बीकानेर), काठियावाड़ में सोमनाथपुर तथा हालौर जनपद तथा रंगपुर (झालावाड़ जनपद) में सिन्धु सभ्यता के अवशेष मिले हैं। कैम्बे की खाड़ी में नर्मदा तथा ताप्ती के मुहाने के निकट गहगाँव, तेलोड और भगतराव में 1957 में, सिन्धु घाटी की सभ्यता के मिट्टी के बर्तन मिले हैं। कोट दिजि तथा अमरी (पाकिस्तान), रोपड़ (पंजाब), अपर (उदयपुर) और लोथल (अहमदाबाद) में खुदाई करने पर प्राप्त सामग्री के आधार पर पता चलता है कि यह सभ्यता सिन्धु घाटी से गुजरात तक तो अवश्य फैली हुई थी।
लोथल की प्राप्त सामग्री और चित्रकला
लोथल में लाल बर्तन प्राप्त हुए हैं, जिन पर कुछ चित्र बने हैं। किसी पर फूलों के, किसी पर चिड़ियों के और किसी पर मछलियों के चित्र बने हुए हैं जो दर्शनीय हैं।
यहाँ मोहरें भी प्राप्त हुई हैं जिन पर हाथी, साँप, ऊँट, साँड तथा बकरी की आकृतियाँ बनी हुई हैं।
यहाँ एक ठिकड़े पर बना हुआ घोड़ा तथा एक कलश पर बनी हुई गोरैया तथा हिरन के चित्र भी दर्शनीय हैं। यहाँ पर प्राप्त एक बर्तन पर सौंप, मोर, बत्तख तथा ताड़ वृक्ष आदि के चित्र बने हैं जो देखने योग्य हैं।
मोहनजोदडो, हड़प्पा तथा लोथल के अतिरिक्त काली बगान (राजस्थान) में जो खुदाई हुई थी यहाँ पर प्राप्त बर्तनों से हमें इस कला की चित्रकला के विषय में जानकारी होती है। यहाँ लाल घर्तन मिले हैं। उन पर काले रंग से बनी हुई आकृतियाँ देखने को मिलती हैं। मिट्टी के बर्तनों में चित्रों के साथ में कुछ लिखाई भी है। इससे स्पष्ट होता है कि यह सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय की है क्योंकि इसकी लिखाई दाहिनी ओर से बायीं ओर है।
रंगपुर में जो बर्तन मिले हैं उन पर हड़प्पा चित्रों के समान आकृतियाँ बनी हुई हैं। मलवान में जो बर्तन मिले हैं, उन पर भी आकृतियाँ काले रंग से बनी हुई दिखाई देती हैं।
सिन्धु घाटी की सभ्यता के चित्रों का विषय
इस काल की चित्रकला का ज्ञान हमें चित्रों, मूर्तियों, तिकड़ों या बर्तनों पर बनी चित्रकारी से होता है। इन चित्रो को हम निम्नांकित विषयों में बाँट सकते हैं।
(1) धार्मिक चित्र- मोहरें तथा मूर्तियों के चित्र रूप इस युग की चित्रकला का एक प्रमुख विषय कहा जाता है। पुरुष मूर्ति का चित्र रूप, शिव की पशुपति रूप का चित्र आदि। इस युग की चित्रकला के प्रसिद्ध धार्मिक चित्र कहे जाते हैं।
(2) मोहरों को चित्रकारी- ‘इस युग की चित्रकला का यह विषय भी बहुत ही महत्वपूर्ण दृष्टि से देखा जाता है। इस युग में बनी हुई मोहरों से इस युग की चित्रकला का ज्ञान होता है।
(3) बर्तनों की चित्रकारी- इस समय बर्तनों पर अधिक संख्या में चित्रकारी के नमूने काले रंग से बनाये जाते थे।
(4) आलेखन- इस काल के चित्रकारों ने आलेखन बनाने में हर प्रकार की रेखाओं का सहारा लिया है। इस काल के आलेखन देखने योग्य हैं।
(5) पशुओं तथा पक्षियों के चित्र- यह विषय भी हमें बहुत ही उन्नत दशाओं में दिखाई देता है।
सिन्धु घाटी की चित्रकला की विशेषताएँ
इस युग की चित्रकला में हमें निम्नलिखित विशेषताएँ देखने को मिलती हैं-
(1) चित्र मूर्तिरूप में बनाये गये हैं।
(2) रेखाचित्र हैं, जिनमें हर प्रकार की रेखाओं का प्रयोग हुआ है।
(3) कुछ चित्र खोद कर भी बनाये गये हैं।
(4) रेखाओं में गति तथा कोमलता है।
(5) गोलाईदार भाग सुन्दर एवं सजीव हैं तथा उनकी रेखाएँ जानदार हैं।
(6) चित्र भावपूर्ण हैं।
(7) रंग विधान सुन्दर एवं सजीव है।
सिन्यु घाटी की चित्रकला के दोष
निम्नलिखित दोष हैं-
(1) कठोरता की छाप नहीं है। (2) चित्रों में भद्दापन नहीं है। (3) चित्र कहीं-कहीं पर हमें भावपूर्ण दिखाई देते हैं। (4) चित्रों को खोदकर बनाया है उसमें सुन्दरता की छाप कम है।
इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक
- सिन्धुघाटी सभ्यता की कला | सिन्धुघाटी सभ्यता की ऐतिहासिक चित्रकला का महत्व
- सिन्धु घाटी सभ्यता की वास्तुकला | सिन्धु घाटी सभ्यता की वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ | सैंधव संस्कृति में नगर नियोजन | सिन्धु घाटी सभ्यता में नगर नियोजन | सिन्धु घाटी सभ्यता की वास्तुकला
- सिन्धु सभ्यता में मूर्तिकला का विकास | सिन्धु घाटी सभ्यता के समय की मूर्तिकला
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com