सिन्धु सभ्यता और वैदिक सभ्यता में अन्तर | Difference between Indus Valley Civilization and Vedic Civilization in Hindi | सिन्धु घाटी की सभ्यता और वैदिक सभ्यता की तुलना
सिन्धु सभ्यता और वैदिक सभ्यता में अन्तर
(Difference between Indus Valley Civilization and Vedic Civilization)
कुछ विद्वान सिन्धु घाटी की सभ्यता और वैदिक सभ्यता को एक ही सभ्यता के दो अंग मानते हैं और दोनों सभ्यताओं के निर्माता आर्यों को ही मानते हैं, परन्तु सामान्यतया यही स्वीकार किया जाता है कि दोनों सभ्यतायें एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थीं। दोनों सभ्यताओं में निम्नलिखित अन्तर दिखाई देते हैं-
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निवास सम्बन्धी अन्तर-
सिन्धु सभ्यता मूलतः नागरीय थी, परन्तु आर्य सभ्यता ग्रामीण थी। सिन्धु प्रदेश में बड़ी-बड़ी पक्की ईंटों के बने हुए भवन थे तथा नगरों में सड़कें, नालियाँ, विशाल स्नानागार, कुएँ आदि भी थे। इसके विपरीत वैदिक काल में लोग ग्रामों में रहते थे और उनकी बाँस और पत्तों की कुटिया होती थीं।
यदि दोनों सभ्यताओं में कोई सम्बन्ध होता, तो आर्य लोग भी सिन्धु लोगों का अनुकरण कर उनके जैसे ही नगर बनाने का प्रयत्न करते। लेकिन न तो आर्य साहित्य में इस प्रकार के नगरों का उल्लेख है और न ही उनके अवशेष मिले हैं।
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व्यवसाय सम्बन्धी अन्तर-
वैदिक काल में लोगों का व्यवसाय कृषि था और विदेशों से व्यापार नहीं होता था। सिन्धु सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापार था। विदेशों में सिन्धु प्रदेश से निर्यातित वस्तुयें मिली हैं और यहां विदेशों से आयातित वस्तुयें मिली हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि सिन्धु लोगों का व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय था।
यदि आर्यों को इस प्रकार के व्यापार का ज्ञान होता, तो वे भी इसको अपनाकर लाभ प्राप्त करते । लेकिन वैदिक साहित्य में इसका उल्लेख बिल्कुल नहीं मिलता है।
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युद्ध के प्रति दृष्टिकोण-
आर्य एक युद्धप्रिय जाति थी। आर्यों ने अपने प्रसार हेतु अनार्यों से निरन्तर युद्ध किया जिसका उल्लेख उनके साहित्य में कई स्थानों पर मिलता है। सिन्धु प्रदेश के लोग शान्तिप्रिय थे। इनकी शान्तिप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वहाँ खुदाई में युद्ध के हथियार न के बराबर मिले हैं। वे तलवार, कवच आदि से परिचित थे। आर्य लोग सुरक्षा और आक्रमण हेतु ढाल, कवच आदि का प्रयोग करते थे।
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धार्मिक अन्तर-
सिन्धु प्रदेश के लोगों ने मूर्तियों की प्रतिष्ठा की थी और वे मूर्ति पूजा में विश्वास करते थे, परन्तु वैदिक सभ्यता के लोग मूर्ति पूजक नहीं थे। इन्होंने सैंधवों की तरह अपने देवताओं में मानवीय गुणों का समावेश तो अवश्य किया लेकिन मूर्तियाँ स्थापित नहीं की। न तो साहित्य में मूर्तियों का उल्लेख मिलता है और न ही इनके अवशेष मिले हैं।
सैंधव शिव तथा शक्ति की पूजा करते थे और देवी को देवता से अधिक महत्व देते थे। इसके विपरीत वैदिक काल में शिव का कोई चिन्ह नहीं मिलता है। इस काल में देवी का स्थान देवता से निम्न था। वैदिक काल के लोग लिंग या योनि-पूजा नहीं करते थे, लेकिन सिन्धु काल के लोग ऐसा करते थे।
वैदिक काल में अग्नि की पूजा की जाती थी और प्रत्येक आर्च-गृह में अग्नि कुण्ड होना आवश्यक समझा जाता था। सिन्धु सभ्यता में अग्नि की पूजा नहीं की जाती थी और न इसे विशेष महत्व दिया जाता था।
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धातु प्रयोग में अन्तर-
दोनों सभ्यताओं में धातु प्रयोग के बारे में बड़ा अन्तर था। आर्य लोग सोना, ताँबा, कांसा, लोहा आदि प्रचुर मात्रा में प्रयोग करते थे। सैंधव लोग लोहे से सम्भवतः अपरिचित थे। वे लोग मुख्यतः पाषाण का प्रयोग करते थे तथा उनकी सभ्यता के काल में चाँदी की प्रधानता थी।
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घोड़े के प्रयोग में अन्तर-
सिन्धु काल में लोग घोड़े के महत्व को नहीं जानते थे। वैदिक काल के लोग गाय और घोड़े को विशेष महत्व देते थे। सिन्धु प्रदेश में कुछ चिह्न घोड़ों के अवश्य मिले हैं, लेकिन यही प्रतीत होता है कि व्यापारियों के माध्यम से वे कभी-कभी यहाँ लाये जाते थे। सैंधव लोग बैलों की पूजा करते थे, परन्तु आर्य उन्हें रथ में जोतते थे।
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खान-पान में अन्तर-
सिन्धुवासी मांसाहारी थे और मछली भी खाते थे। वे कछुआ तक खा जाते थे। वैदिक काल में भी मांस का प्रयोग तो अवश्य होता था, लेकिन मछली और कछुए का नहीं। आर्य लोग दूध, दही आदि को विशेष महत्व देते थे। ग्रामों में रहने के कारण उन्हें ये आसानी से प्राप्त हो जाते थे। वैदिक काल में जिस प्रकार के पौष्टिक और स्वादिष्ट व्यंजन उपलब्ध थे, उनसे सैंधव अपरिचित थे।
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सामाजिक क्षेत्र में अन्तर-
आर्यों का समाज पितृ प्रधान था और परिवार में पिता को विशेषाधिकार प्राप्त थे। इसके विपरीत सिन्धु घाटी के लोगों में मातृ सत्तात्मक व्यवस्था थी। आर्यों को वर्ण-व्यवस्था में विश्वास था और उनका समाज चार वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बँटा हुआ था, परन्तु सिन्धु घाटी के लोग वर्ण व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते थे। आर्यों को चार आश्चमों- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास में विश्वास था, परन्तु सिन्धु-निवासियों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी।
डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी लिखते हैं, “आर्य अभी ग्राम्यावस्था में थे, गाँवों में फूस और बांस के घर बनाकर रहते थे। इसके विरुद्ध सिन्धु निवासियों का जीवन नागरिक था जिसमें समन्वित नागरिक व्यवस्था का विकास हो चुका था। सैंधवों के नगर की सफाई, उनके ईंट के मकान, स्नानागार, कुएँ और स्नानघर असामान्य थे। आर्य सोना, तांबा, काँसा और सम्भवतः लोहे से परिचित थे। सैंधव-सभ्यता में लोहे का अवशेष नहीं मिलता। युद्ध के हथियार दोनों सभ्यताओं के प्रायः समान थे। परन्तु आर्यों के रक्षा-साधन शिरस्त्राण और कवच सैंधवों को अज्ञात थे। सैंधव बैल की तथा आर्य गाय की पूजा करते थे। सैंधव घोड़े का व्यवहार नहीं जानते थे परन्तु घोड़ा और कुत्ता आर्यों के नित्य सहचर थे। ऋग्वेद में बाघ का उल्लेख नहीं है और हाथी का संकेत मात्र है, परन्तु सैंधव इन दोनों जानवरों से भली- भाँति परिचित थे। सैंधव लिंग-पूजन करते थे, परन्तु आर्यों में इसका अभाव था।’
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लेखन कला में अन्तर-
सैंधवों की स्वयं की लिपि थी और वे लेखन कला से परिचित थे। आर्यों का सम्पूर्ण ज्ञान मौखिक था। लिपि का ज्ञान उन्हें ऋग्वेद काल के बाद ही हुआ था। इसी कारण स्थापत्य और शिल्पकला सिन्धुघाटी में ही अधिक विकसित हुई, परन्तु इस क्षेत्र में आर्य लोग बहुत पीछे थे।
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राजनीतिक जीवन में अन्तर-
सैंधवों की अपेक्षा आर्यों का राजनीतिक जीवन अधिक सुविकसित था। सिन्धु सभ्यता के अवशेषों से वहां की राजनीतिक व्यवस्था का विशेष ज्ञान प्राप्त नहीं होता है। वैदिक साहित्य के अध्ययन से पता चलता है कि आर्यों का राजनीतिक जीवन पर्याप्त विकसित था और उन्होंने शासन व्यवस्था की नींव डाली थी।
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कला व मनोरंजन के साधनों में अन्तर-
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में प्राप्त विभिन्न मूर्तियों, मुद्राओं और चित्रों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वहाँ के लोग, सौन्दर्य के उपासक थे। वैदिक काल में लोग युद्धों में अधिक लिप्त रहने के कारण इस ओर अधिक रुचि नहीं रखते थे।
दोनों सभ्यताओं में लोगों के मनोरंजन के साधन भिन्न थे। आर्यों का अधिकांश समय युद्धों में व्यतीत होता था। अतः वे आखेट, रथ-दौड़ आदि के अधिक शौकीन थे और चित्रकारी, संगीत आदि की ओर बहुत कम ध्यान देते थे। दूसरी ओर सैंधवों के मनोरंजन का साधन घरेलू खेल-कूद, नृत्य, गीत आदि थे। आखेट उनका मनोरंजन का साधन कम और भोजन प्राप्ति का साधन अधिक था।
उपसंहार-
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि इन दोनों सभ्यताओं में पर्याप्त अन्तर था और उन्हें एक-दूसरे से सम्बन्धित नहीं कहा जा सकता। प्रो० लूनिया के शब्दों में, “सिन्धु सभ्यता निश्चित रूप से आर्यों के साथ भारत नहीं आई थी।”
इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक
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