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जनसंख्या विस्फोटन का अर्थ | भारत में जनसंख्या विस्फोटन | जनसंख्या विस्फोटन का विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रभाव

जनसंख्या विस्फोटन का अर्थ | भारत में जनसंख्या विस्फोटन | जनसंख्या विस्फोटन का विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रभाव | Meaning of population explosion in Hindi | Population explosion in India in Hindi | Impact of population explosion on various programs in Hindi

जनसंख्या विस्फोटन का अर्थ

जनसंख्या विस्फोटन का अर्थ है जनसंख्या की अत्यन्त तीव्र गति से वृद्धि इस वृद्धि का अनुमान, डा० मलैया के कथन से स्पष्ट हो जाता है-बीसवीं सदी के आरम्भ में संसार की  जनसंख्या लगभग 1 अरब 50 करोड़ थी। वर्तमान में लगभग 4 अरब व्यक्ति है तथा इस सदी के अन्त तक सम्भावना है कि संसार को आबादी अरब हो जायेगी। पिछले 20 वर्षों में हो संसार की जनसंख्या में लगभग 1 अरब की वृद्धि हुयी है। इस समस्या को बेरलसन ने इस प्रकार व्यक्त किया है- संसार की प्रमुख समस्याओं में से एक समस्या जनसंख्या की है, यह समस्या विकासशील देशों के लिये अधिक गम्भीर है क्योंकि वहाँ सामाजिक एवं आर्थिक विकास की गति जनसंख्या के विकास की गति से पिछड़ी हुयी है।

इस वृद्धि ने संसार के सम्मुख एक भीषण समस्या उत्पन्न कर दी है क्योंकि यह वैयक्तिक, राष्ट्रिय एवं अन्तर्राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक पक्ष पर दूषित प्रभाव डालती है। इसका प्रभाव राष्ट्र की प्रगति एवं समृद्धि पर, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा एवं शान्ति पर पड़ता है। जनसंख्या विस्फोट को गहन समस्या बताते हुए डा० लल्ला व मूर्ति ने लिखा है-

“जनसंख्या विस्फोट की गम्भीरतम समस्या ने हमारे समय के हमारे विश्व को मुसीबत में फंसा दिया है।’

भारत में जनसंख्या विस्फोटन

(Explosion of population in India)

भारत में जनसंख्या बहुत तीव्र गति से बढ़ रही है। इस बुद्धि को वार्षिक गांत 2.5 प्रतिशत है। स्वतन्त्रता पूर्व यह 1.5 प्रतिशत थी। विश्व की जनसंख्या जो 1968 में 340 करोड़ थी 2000 में बढ़कर 680 करोड़ हो जायेगी। जनसंख्या में यह वृद्धि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं का विकास होने पर मृत्यु संख्या की दर घटने के कारण हुयी है। सन् 1921 में भारत में जन्म दर 49.2 प्रति 1000 थी और मृत्यु दर 48.6 प्रति 1000। सन् 1966 में जन्म दर प्रति हजार हो गयी जबकि मृत्यु दर केवल 16 प्रति हजार रह गयी जनसंख्या दर में तीव्र वृद्धि के कारण भारत की जनसंख्या जो 1951 में 36 करोड़ थी. 1981 में 68 करोड़ 38 लाख हो गयी। सन् 2000 तक भारत की जनसंख्या 100 करोड़ तक पहुँच जायेगी। इस प्रकार वृद्धि से स्पष्ट है कि भारत जनसंख्या विस्फोट ने विकराल रूप धारण कर लिया है। इस सम्बन्ध में कुछ आँकड़े इस प्रकार हैं- (Report of the Seminar. P. 15)

(1) भारत में प्रत्येक डेढ़ सेकेन्ड के बाद एक बच्चे का जन्म होता है।

(2) भारत में प्रति वर्ष 21 करोड़ बच्चों का जन्म होता है, जिनमें से 13 करोड़ ही जीवित बच पाते हैं।

(3) भारत की जनसंख्या प्रति वर्ष 1 करोड़ 30 लाख बढ़ रही है।

(4) भारत को जनसंख्या का लगभग 42 प्रतिशत भाग 15 वर्ष से कम आयु का है।

(5) भारत की जनसंख्या की वृद्धि प्रति वर्ष 2.5 प्रतिशत है जो विश्व में उच्चतम है।

(6) भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 669 रूपये है, जो विश्व में निम्नतम् है:

(7)  विश्व की मात्र 2.4 प्रतिशत भूमि भारत में है पर इस भूमि पर विश्व की जनसंख्या का लगभग 14 प्रतिशत भाग निवास करता है।

भारत सरकार के आँकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष बढ़ने वाली 1 करोड़ 30 लाख जनसंख्या के लिये प्रतिवर्ष 1 लाख 20 हजार विद्यालयों, 3 लाख 72 हजार 500 शिक्षकों 25 लाख 9 हजार मकानों, 1 करोड़ 87 लाख 44 हजार मीटर कपड़े, 1 करोड़ 25 लाख 45 हजार 300 क्विन्टल भोजन और 40 लाख नौकरियों की व्यवस्था करना आवश्यक है। वर्तमान समय में भारत जैसे देश के लिये इतनो व्यवस्था करना सम्भव नहीं है।

जनसंख्या विस्फोटन का विभिन्न कार्यक्रमों पर प्रभाव

भारत में जनसंख्या विस्फोट का प्रभाव वैयक्तिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक सभी क्षेत्रों पर पड़ा है। इन सभी का विकास इस विस्फोट से बाधित हुआ है। कृषि, उद्योग, व्यापार एवं संचार व्यवस्था में पिछले 20 वर्षों में कई गुना वृद्धि हुयी है। उत्पादन प्रति व्यक्ति उपयोग में जरा सी भी वृद्धि नहीं हुई है। कृषि के क्षेत्र में भी खाद्य संकट की स्थिति बनी हुई है।

शिक्षा के क्षेत्र में विश्वविद्यालय, कालेज, माध्यमिक एवं प्राथमिक स्कूलों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है किन्तु अभी करोड़ों छात्रों को शिक्षा की सुविधायें उपलब्ध नहीं हो पाया है। शिक्षा पर होने वाला व्यय यद्यपि कई गुना बढ़ा दिया गया है किन्तु बालकों को संख्या में तीव्र गति से बढ़ने के कारण सबके लिए शिक्षा व्यवस्था नहीं हो पा रही है। इस संख्या वृद्धि के कारण ही  शिक्षा का स्तर गिर रहा है, छात्रों में अनुशासनहीनता बढ़ रही है तथा शिक्षित बेरोजगारी की  समस्या जटिल होती जा रही है। तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या वृद्धि ने केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही  नहीं वरन् अन्य दूसरे क्षेत्रों में भी योजना पद्धति द्वारा विकास के प्रयत्नों को लारहीन बना दिया है।

जनसंख्या वृद्धि का सबसे बुरा प्रभाव आर्थिक क्षेत्र में दिखायी देता है। इसी कारण देश की  आर्थिक व्यवस्था छिन्न भिन्न होती जा रही है। औद्योगिक प्रगति जनसंख्या वृद्धि के कारण ही बाधित हुयी है। बेरोजगारी की समस्या इसी वृद्धि के कारण बढ़ती चली जा रही है। इस वृद्धि से सामाजिक ढाँचे में भी बहुत परिवर्तन आया है। व्यक्ति का जीवन दिन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। इस असाधारण वृद्धि ने सामाजिक तनाव और सामाजिक दूरी को जन्म देकर, हमारे देश की सामाजिक एकता को तहस नहस हकरने की चुनौती दी है। इसका परिणाम यह हुआ कि एक ही  परिवार की कृषि को भूमि छोटे छोटे टुकड़ों में बंटतो चली आ रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण ही धन का अभाव हो रहा है। इस अभाव कारण ही व्यक्ति की मानसिक चिन्ता बढ़ी है और इसका प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर गम्भीर रूप से पड़ा। मानसिक दबने शारीरिक क्षमता का हास्य किया है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जनसंख्या विस्फोट हमारे देश के लिये अभिशाप बन गया है। इसने विकास सम्बन्धी समस्त योजनाओं को विफलकर दिया है। जनसंख्या विस्फोट के सम्बन्ध में N.C.E.R.T. की पत्रिका में कथन है-

” निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, गुणात्मक उन्नति की समस्त योजना की जड़ खोदती हुयी। जान पड़ रही है। “

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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