उद्यमिता की उत्पत्ति

उद्यमिता की उत्पत्ति | उद्यमिता के प्रकार | Origin of Entrepreneurship in Hindi | Types of entrepreneurship in Hindi

उद्यमिता की उत्पत्ति | उद्यमिता के प्रकार | Origin of Entrepreneurship in Hindi | Types of entrepreneurship in Hindi

उद्यमिता की उत्पत्ति / उद्यमिता के प्रकार

(Emergence Kinds or Types of Entrepreneurships)

उद्यमिता के स्वरूपों या प्रकारों का वर्णन निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है-

(1) आकार के आधार पर (On the basis of Size)-

आकार के आधार पर उद्यमिता के निम्नलिखित दो स्वरूप हो सकते हैं-

(i) दीर्घ उद्यमिता (Large Entrepreneurship)- दीर्घ उद्यमिता वह होती है जब व्यवसाय में अपेक्षाकृत अधिक पूंजी विनियोजित होती है, तथा अधिक श्रमिक कार्य करते हैं। उदाहरण के लिये- साराभाई, बाँगड़, टाटा, बिड़ला इत्यादि। यह उद्यमिता के विकास की उच्चतम अवस्था है। इन अवस्थाओं में एकाधिकारी प्रवृत्तियाँ विकसित होने का भय रहता है।

(ii) लघु उद्यमिता (Small Entrepreneurship)- लघु उद्यमिता वह होती है, जब व्यावसायिक इकाई का आकार छोटा होता है, व्यवसाय में अपेक्षाकृत कम पूंजी विनियोजित होती है तथा कम श्रमिक कार्य करते हैं। उद्यमिता के विकास से आशय प्रमुखतः लघु उद्यमिता के विकास से ही होता है। लघु उद्यमिता के विकसित होने से देश में ग्रामीण तथा कुटीर उद्योग विकसित हो पाते हैं।

(2) पूँजी के स्वामित्व के आधार पर (On the basis of Capital Ownership) –

पूँजी के स्वामित्व के आधार पर उद्यमिता के निम्नलिखित स्वरूप हो सकते हैं-

(i) निजी उद्यमिता (Private Entrepreneurship)- जब व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह निजी क्षेत्र में व्यवसाय आरम्भ करते हैं। जोखिन लेते हैं और नवप्रवर्तन करते हैं, तो उसे निजी उद्यमी कहते हैं। पूँजीवादी देशों में निजी उद्यम के कारण ही तीव्र आर्थिक विकास हुआ है, जैसे- जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका इत्यादि। निजी उद्यमी सावधानीपूर्वक व्यावसायिक परियोजनायें प्रारम्भ करते हैं।

(ii) सरकारी या सार्वजनिक उद्यमिता (State or Public Entrepreneurship)- जब सरकार द्वारा सरकारी अथवा सार्वजनिक क्षेत्र में व्यावसायिक उपक्रम प्रारम्भ किया जाता है नवकरण किया जाता है, तो उसे सरकारी अथवा सार्वजनिक उद्यमिता कहते हैं। समाजवादी तथा साम्यवादी देशों में सामान्यतः उद्यमिता का यही स्वरूप देखने को मिलता है, जैसे-चीन, रूस इत्यादि। इन देशों में अधिकतर उद्योगों का विकास सार्वजनिक क्षेत्र में ही हुआ है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में भी सार्वजनिक उद्यमिता का विस्तार हुआ है।

(iii) संयुक्त उद्यमिता (Joint Entrepreneurship) – संयुक्त उद्यमिता निजी स्वामित्व तथा राजकीय स्वामित्व का मिला-जुला रूप है। संयुक्त उद्यमिता की दशा में यद्यपि निजी क्षेत्र के साहसियों को भी विनियोजन के अवसर प्रदान किये जाते हैं, लेकिन सरकार (केन्द्रीय, राज्य अथवा दोनों) की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। भारत में सन्तुलित आर्थिक विकास एवं रुग्ण इकाइयों को पुनर्जीवित करने के लिये संयुक्त उद्यमिता की भूमिका में वृद्धि हो रही है।

(iv) सहकारी उद्यमिता (Co-operative Entrepreneurship)- जब अनेक व्यक्तियों द्वारा पारस्परिक सहयोग से उपक्रम आरम्भ किया जाता है अथवा नवकरण किया जाता है, तो उसे सहकारी उद्यमिता कहते हैं। भारत में शक्कर मिलों की स्थापना में सहकारी उद्यमिता भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। कृषि उद्योग, लघु उद्योग, डेयरी उद्योग इत्यादि में सहाकरी उद्यमिता के महत्व में अत्यधिक वृद्धि हो रही है।

(3) विकास या परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण के आधार पर (On the basis of attitude towards change/development)-

विकास या परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण के आधार पर उद्यमिता को निम्नलिखित दो स्वरूपों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) परम्परागत या विकासात्मक उद्यमिता (Traditional or Evolutionary Entrepreneurship)- यदि उद्यमी परिवर्तनों को बहुत ही धीमी गति से लागू किया जाता है, शोध तथा विकास पर कम व्यय किया जाता है, उत्पादन की परम्परागत प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है, तथा जो केवल विद्यमान उद्योगों में ही प्रवेश की प्रवृत्ति रखते हैं, तो इसे परम्परागत अथवा विकासात्मक उद्यम कहा जाता है। ये उद्यमी विकास की स्वाभाविक गति में विश्वास करते हैं। भारत में इसी प्रकृति के अधिकांश उद्यमी पाये जाते हैं।

(ii) आधुनिक या क्रान्तिकारी उद्यमिता (Modern or Revolutionary Entrepreneurship)- यदि उद्यमियों द्वारा उत्पादन की नई विधियाँ अपनायी जाती हैं, नवकरण में अग्रणी रहते हैं, जोखिमपूर्ण योजनायें प्रारम्भ की जाती हैं, तीव्रगति से व्यावसायिक उपक्रम स्थापित किये जाते हैं, तो उन्हें आधुनिक अथवा क्रान्तिकारी उद्यमी कहा जाता है। चीन, रूस तथा पूर्वी यूरोप के कुछ देशों के औद्योगिक विकास में क्रान्तिकारी उद्यमी की विचारधारा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

(4) स्थानीयकरण के आधार पर (On the basis of Location)-

स्थानीयकरण के आधार पर उद्यमिता केन्द्रीयकृत अथवा विकेन्द्रित हो सकती हैं-

(i) केन्द्रीकृत उद्यमिता (Centralised Entrepreneurship)- केन्द्रीयकृत उद्यमिता उसे कहते हैं, जब अधिकतर उद्यमी एक ही स्थान पर केन्द्रित हैं तथा नये उद्यमी भी इन्हीं स्थानों की ओर आर्कषित होते हैं। जहाँ पहले से ही व्यावसायिक इकाइयाँ कार्यरत होती हैं, बहुत-सी आधारभूत सुविधायें उपलब्ध अथवा विद्यमान होती हैं, नये उद्यमी इन सुविधाओं का लाभ उठाने के लिये इन्हीं स्थानों की ओर आकर्षित होते हैं, लेकिन अर्थशास्त्र के अनुसार एक सीमा के पश्चात् इन स्थानों पर व्यावसायिक उपक्रमों की यदि स्थापना की जाये तो उनसे लाभ प्राप्त नहीं होता।

(ii) विकेन्द्रित उद्यमिता (Decentralised Entrepreneurship) – विकेन्द्रित उद्यमी उसे कहते हैं, जब उद्यमी देश के अलग-अलग भागों में प्रवेश करके व्यावसायिक उपक्रम स्थापित करते हैं। सरकार तथा उद्यमी के विकास के लिये स्थापित संस्थायें, उद्यमियों को पिछड़े हुए क्षेत्रों में सुविधायें तथा प्रेरणायें देकर विकेन्द्रित उद्यमिता विकसित कर सकती है।

उद्यमिता और लघु व्यवसाय – महत्वपूर्ण लिंक

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