उद्यमिता और लघु व्यवसाय / Entrepreneurship And Small Business

उद्यमिता की विचारधारा | उद्यमिता के मॉडल्स | उद्यमिता विकास की विभिन्न विचारधारा | Theories and Models of Entrepreneurship in Hindi

उद्यमिता की विचारधारा | उद्यमिता के मॉडल्स | उद्यमिता विकास की विभिन्न विचारधारा | Theories and Models of Entrepreneurship in Hindi | Ideology of Entrepreneurship in Hindi | Models of Entrepreneurship in Hindi | Different Ideologies of Entrepreneurship Development in Hindi | Theories and Models of Entrepreneurship in Hindi

उद्यमिता की विचारधाराये/मॉडल्स

(Theories Models of Entrepreneurship)

उद्यमिता की प्रमुख विचारधारायें इस प्रकार हैं-

(1) मनौवैज्ञानिक मॉडल (Psychological Model)-

यह विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि उद्यमिता की पूर्ति अनेक मनोवैज्ञानिक, अभौमिक तथा आन्तरिक शक्तियों द्वारा प्रभावित होती है। उद्यमिता के विकास पर व्यक्ति की आन्तरिक इच्छाओं, मनोवृत्तियों तथा प्रेरणाओं का व्यापक प्रभाव पड़ता है। इस सम्बन्ध में मुख्य विचारधारायें निम्नलिखित हैं-

(i) एवरेट हेगेन की विचारधारा (Everett Hagan’s Theory)- एवरेट हेगेन का विचार है कि समाज में किसी पीड़ित अल्प समूह की सृजनात्मकता ही उद्यमिता का मुख्य स्रोत है। इन्होंने जापान के ‘समराई समुदाय के आधार पर इस विचारधारा का विकास किया है। इस विचारधारा के अनुसार, किसी सामाजिक समूह की प्रतिष्ठा ह्रास होना ही उसके व्यक्तित्व निर्माण एवं उद्यमशीलता के विकास का मूल कारण बन जाता है। ऐसा समूह पुनः उस प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिये सृजनात्मक व्यवहार करता है, जिससे साहसिकता का विकास होता है।

(ii) मैक्लीलैण्ड मॉडल (McClelland Model)- मैक्लीलैण्ड का विचार है कि व्यवसाय के क्षेत्र में उच्च उपलब्धि के लिये उद्यमी को पर्याप्त कल्पना, चिन्तन, नवीन संयोजन इत्यादि योग्यता की आवश्यकता होती है। उनके अनुसार उपलब्धि की इच्छा व्यक्ति के आर्थिक व्यवहार का मुख्य कारण तथा ‘उच्च प्राप्ति’ की भावना उद्यमिता विकास का मुख्य आधार है। उनका मत है कि उद्यमिता की ओर अभिप्रेरित होने का प्रमुख कारण नवयुवकों में उपलब्धि की भावना का वैचारिक उद्भव होना है जोकि श्रेष्ठता के नवीन बोध के कारण उत्पन्न होती है। उनके इस विचार को निम्न रूप में प्रदर्शित किया गया है-

उपलब्धि की इच्छा

साहसी व्यवहार

वैचारिक मूल्य

परिवार समाजीकरण

(iii) जॉन कुनकेल मॉडेल (The John Kunkel Model)- जॉन कुनकेल का विचार है कि उद्यमिता का विकास किसी भी समाज की विगत तथा विद्यमान सामाजिक संरचना पर निर्भर करता है तथा यह विभिन्न सामाजिक आर्थिक प्रेरणाओं से प्रभावित होता है। इनके अनुसार, “उद्यमिता परिस्थितियों के विशेष संयोजन पर निर्भर करती है, जिसका सृजन करना कठिन किन्तु विनाश करना सरल होता है।” उद्यमिता के विकास के लिये उन्होंने निम्नलिखित चार संरचनायें बताई हैं-

(a) मांग संरचना (Demand Structure) – मांग संरचना आर्थिक प्रकृति की होती है। यह आर्थिक प्रकृति तथा सरकारी नीतियों के साथ परिवर्तित होती रहती है। इस संरचना के प्रमुख तत्वों को प्रभावित करके व्यक्तियों के व्यवहार को साहसिक बनाया जाता है।

(b) परिसीमा संरचना (Limitation Structure)- यह सीमा संरचना उद्यमिता विकास को प्रभावित करती है। समाज में विशिष्ट क्रियाओं को विशिष्ट उपजातियों तक सीमित कर दिया जाता है।

(c) श्रम संरचना (Labour Structure) – श्रम संरचना मुख्यतः निम्न घटकों जैसे- आजीविका के साधन, परम्परागत दृष्टिकोण, जीवन आकांक्षाओं, आदि से प्रबन्धित या संचालित होती है।

(d) अवसर संरचना (Opportunity Structure)- अवसर संरचना का निर्माण पूँजी की पूर्ति, प्रबन्धकीय एवं तकनीकी कौशल, उत्पादन विधियाँ, श्रम एवं बाजार प्रशिक्षण के अवसर तथा उपक्रम के निर्माण एवं संचालन, आदि विभिन्न क्रियाओं के मिश्रण से होता है।

(2) शुम्पीटर मॉडल (The Schumpeter Model)-

शुम्पीटर की उद्यमी मनोवैज्ञानिक विचारधारा के अनुसार, “साहसी मुख्य रूप में शक्ति पाने की इच्छा, निजी राज्य की स्थापना करने की इच्छा और किसी राज्य पर विजय करने की इच्छा से अभिप्रेरित होते हैं।” उनके अनुसार, उद्यमी के व्यवहार में निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती

(a) सामाजिक प्रतिरोध का सामना करने की क्षमता।

(b) स्थायी आदतों पर विजय पाने की शक्ति, इच्छा एवं संकल्प।

(c) भावी घटनाओं पर इस प्रकार से देखने की अन्तः प्रेरणा जो बाद में सत्य सिद्ध होती हो।

शुम्पीटर मानते हैं कि उद्यमी एक नवप्रवर्तक व्यक्ति है, जो नवाचार के द्वारा लाभ अर्जित करने की इच्छा रखता है। इसमें मनोवैज्ञानिक शक्तियाँ निहित होती हैं और उन्हीं से वह अभिप्रेरित होता है।

(3) आर्थिक मॉडल्स (Economics Models) –

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अर्थव्यवस्था की सकारात्मक स्थितियों तथा अनुकूल उपलब्ध आर्थिक अवसरों के अधिकतम उपयोग के उद्देश्य से व्यक्ति औद्योगिक तथा उद्यमी क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। जी०एफ० पेपनेक एवं जे०आर० हैरिस आर्थिक मॉडल्स के मुख्य विचारक हैं। इस मॉडल्स की विचारधारायें निम्नलिखित हैं-

(a) पेपनेक एवं हैरिस की विचारधारा (Papanek & Harris Theory)- पेपनेक एवं जे० आर० हैरिस के अनुसार, आर्थिक प्रेरणायें प्रत्येक व्यक्ति तथा प्रत्येक समाज में तीव्रता से विद्यमान रहती हैं, जैसे- वास्तविक आय में वृद्धि तथा आर्थिक लाभ की इच्छा। आय अर्जन, सम्पत्ति संग्रह तथा आर्थिक प्रेरणायें औद्योगिक उद्यमिता की मूल शर्त है। आर्थिक लाभों की इच्छा ही उद्यमी प्रत्युत्तर (Response) को जन्म देती है। यदि इसके विपरीत उद्यमी प्रत्युत्तर का अभाव पाया जाता है, तो बाजार अपूर्णताओं, नकरात्मक आर्थिक नीतियों तथा प्रतिकूल आर्थिक स्थितियों के कारण ऐसा होता है।

(b) मार्क कासन की विचारधारा (Mark Casson’s Theory) – मार्क कासन ने अपनी पुस्तक ‘The Entrepreneur: An Economic Theory’ में उद्यमिता की क्रियात्मक परिभाषा प्रस्तुत की। वह मानते हैं कि उद्यमिता की माँग परिवर्तन समायोजन की आवश्यकता से सृजित होती है तथा उद्यमिता की पूर्ति आवश्यक वैयक्तिक गुणों की दुर्लभता एवं उनकी उपलब्धता की पहचान की कठिनाइयों से सीमित होती है।

(4) सामाशास्त्रीय मॉडल्स (Sociological Theories) –

समाजशास्त्रियों के अनुसार, उद्यमिता का उद्भव विशिष्ट सामाजिक संस्कृति में होता है। समाजशास्त्रीय विचारधारा के अनुसार सामाजिक अनुमोदन, सांस्कृतिक मूल्य, परम्पराये, समूह, गत्यात्मकता, भूमिका की आकांक्षायें इत्यादि घटक उद्यमिता के उद्भव के विकास के लिये उत्तरदायी है। समाजशास्त्रीय विचारधाराओं का संक्षेप में विवरण निम्नलिखित है-

(i) रेण्डाल जी०स्टोक्स की विचारधारा (Randall G Stokes Theory)- रेण्डाल जी० स्टोक्स की विचारधारा के अनुसार, “आर्थिक सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित आर्थिक कियाओं ने औद्योगिक उद्यमिता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।” वे उद्यमिता के विकास में मनोवैज्ञानिक अभिरुचि की तुलना में सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों पर अधिक जोर देते हैं।

(ii) फ्रेंक डब्ल्यू यंग की विचारधारा (Frank W. Young’s Theory)- फ्रेंक डब्ल्यू यंग की विचारधारा के अनुसार, “व्यक्तियों से नहीं अपितु साहसी समूहों से ही साहसी क्रियाओं का विस्तार सम्भव है।”

(iii) मैक्स वेबर पीटर की विचारधारा (Max Weber Peter’s Theory)- मैक्स वेबर पीटर की विचारधारा के अनुसार, “धार्मिक विश्वास की उद्यमी के पेशे में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।” उन्होंने उद्यमिता के विकास को प्रोटेस्टेण्ट व अन्य अनेक धर्मों के साथ जोड़ा है। उनके अनुसार जिन धार्मिक समुदायों ने पूँजीवाद, भौतिकवाद और अर्थ विवेकशीलता पर बल दिया है, वे उद्यमियों, धन-सम्पदाओं, पूँजीवाद इत्यादि को जन्म देते हैं। प्रोटेस्टेण्ट की विचारधारा ने टर्की, अमेरिका, इंग्लैण्ड इत्यादि देशों में उद्यमिता के विकास में योगदान दिया है तथा विकसित करने में सफल रहे हैं।

(iv) एवरेट इं० हेगेन की विचारधारा (Everett E. Hagan’s Theory) – अनेक देशों में उद्यमियों के उद्गम तथा पृष्ठभूमि के सम्बन्ध में किये गये अध्ययन के आधार पर हेगेन द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया है कि उद्यमिता के विकास में समुदाओं तथा जातियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

(v) बर्ट एफ0 हासीलिज की विचारधारा (Bert F. Hoselitz’s Theory) – बर्ट एफ० हासीलिज की विचारधारा के अनुसार, “सांस्कृतिक दृष्टि से सीमान्त समूहों की भूमिका उद्यमिता तथा आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण रही है।” उनकी मान्यता है कि सीमान्त व्यक्ति परिवर्तन की स्थितियों में सृजनात्मक समायोजन करने के लिये अधिक योग्य होते हैं तथा इस समायोजन की प्रक्रिया के दौरान वे सामाजिक व्यवहार में वास्तविक विचार लाने का प्रयत्न करते हैं।

(vi) थॉमस कोक्रेन की विचारधारा (Thomas Cochran’s Theory) – थॉमस कोक्रेन की विचारधारा के अनुसार, “उद्यमिता के विकास में सांस्कृतिक मूल्यों, भूमिका, आकांक्षाओं तथा सामाजिक अनुमोदन का महत्वपूर्ण स्थान है।” उद्यमी का अपने पेशे, भूमिका, आंकाक्षाओं, अनुमोदन, समूहों, कृत्य की पेशेवर आवश्यकताओं, सामाजिक मूल्यों आदि की ओर उसकी व्यक्तिगत प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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