उद्यमिता विकास कार्यक्रम को संगठित करने में सरकार की भूमिका | Role of Government in Organizing Entrepreneurial Development Programme in Hindi
उद्यमिता विकास कार्यक्रम को संगठित करने में सरकार की भूमिका | Role of Government in Organizing Entrepreneurial Development Programme in Hindi
उद्यमिता विकास कार्यक्रम को संगठित करने में सरकार की भूमिका
(Role of Government in Organizing Entrepreneurial Development Programme)
भारत सरकार ने उद्यमिता विकास कार्यक्रम को संगठित तथा विकसित करने के लिये अनेक संस्थानों की स्थापना की है। ये संस्थान उद्यमियों को प्रशिक्षण देने, व्यावसायिक परामर्श देने, वित्तीय सहायता देने, तकनीकी ज्ञान कराने, संगोष्ठियों का आयोजन करने, उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का संचालन करने, अनुसन्धान एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने, बाजार सूचनाएँ प्रदान करने तथा अन्य प्रकार से सहायता प्रदान करते हैं। इन संस्थानों ने भारत में औद्योगिक विकास एवं उद्यमिता विकास कार्यक्रमों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इनमें से प्रमुख संस्थान निम्नलिखित हैं-
(1) लघु उद्योग विकास संगठन (Small Industries Development Organisation-SIDO)-
लघु उद्योगों को तकनीकी विपणन संचालन एवं वित्तीय प्रबन्ध सम्बन्धी परामर्श, प्रशिक्षण एवं सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा ‘लघु उद्योग विकास संगठन’ की स्थापना 1954 में की गई। राष्ट्रीय स्तर के यह संगठन लघु उद्योगों के विकास एवं सम्वर्द्धन के साथ कृषि आधारित उद्योग-धन्धों एवं ग्रामीण उद्योग धन्धों के विकास हेतु कार्यरत है।
(2) लघु उद्योग सेवा संस्थान (Small Industries Services Institute-SISI)-
लघु उद्योग सेवा संस्थान (1956) में स्थापित हुआ। मूलतः यह लघु उद्योग विकास संगठन (SIDO) का ही सहयोगी संस्थान है, जोकि लघु उद्योगों एवं नवीन उद्यमियों को तकनीकी, वित्तीय, प्रबन्धकीय एवं विपणन सम्बन्धी सूचनाएं उपलब्ध कराता है तथा उनका मार्गदर्शन करता है। यह संस्थान देश के सभी राज्यों में लघु उद्योगों एवं उद्यमिता प्रोत्साहन में संलग्न है। SISI तथा SIDO संयुक्त रूप से औद्योगिक विस्तार सेवा का संचालन कर रहे हैं।
(3) राष्ट्रीय उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान (National Institute for Entrepreneurship & Small Business Development- NISBD) –
उद्यमिता एवं लघु उद्योगों के विकास, मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण प्रदान करने वाली शीर्ष संस्था ‘राष्ट्रीय उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान’ की स्थापना 6 जुलाई, 1983 को भारत सरकार के उद्योग मन्त्रालय द्वारा सोसाइटी अधिनियम 1860 के अन्तर्गत की गई। इस शीर्ष संस्था का मुख्यालय वर्तमान में ‘ओखला औद्योगिक संस्थान’ नई दिल्ली में है, जिसको NSIS-PDYC कैम्पस के नाम से पुकारा जाता है।
(4) युवा उद्यमियों का राष्ट्रीय संगठन (National Alliance of Young Entrepreneurs- NAYE) –
राष्ट्रीय स्तर प. उद्यमिता निकास एवं प्रोत्साहन के लिए 1972 में बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा प्रयोजित NAYE ने कार्य प्रारम्भ किया। देना बैंक एवं पंजाब नेशलन बैंक ने 1973 से, सेन्ट्रल बैक ऑफ इण्डिया एवं यूनियम बैंक आफ इण्डिया ने 1975 से पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तथा अनेक केन्द्र शासित प्रदेशों में उद्यमिता प्रशिक्षण तथा उद्यमियों को वित्तीय सहायता एवं प्रबन्धकीय परामर्श प्रदान करने के लिए योजनाओं को प्रायोजित किया। महिला वर्ष 1975 के उपलक्ष में NAYE महिला उद्यमिता प्रोत्साहन के लिए महिला प्रकोष्ठ (Women Wing) की स्थापना की गई।
(5) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, अहमदाबाद (Indian Institute of Entrepreneurship Development Ahmedabad)-
भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, अहमदाबाद की स्थापना एक स्वायत संस्था के रूप में वर्ष 1983 में गुजरात सरकार के सक्रिय सहयोग एवं भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI), भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (ICICI), भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFCI) तथा भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के सहयोग से हुई। इस संस्थान के मुख्य कार्य हैं-
(i) राष्ट्रीय स्तर पर गोष्ठी तथा सम्मेलन आयोजित करना जिससे उद्यमियों एव प्रशिक्षकों, प्रेरकों के मध्य विचारों का आदान-प्रदान हो सके।
(ii) विभिन्न राज्यों के विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं प्रबन्धकीय संस्थाओं में चल रहे उद्यमिता विकास पाठ्यक्रम के लिए नवीनतम ज्ञान पर आधारित पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन करना।
(6) जिला उद्योग केन्द्र (District Industry Centre)-
औद्योगिक नीति 1977 के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों के नियमन एवं विकास के लिए जिलास्तर पर एक सरकारी शीर्ष एवं समन्वयकारी संस्था ‘जिला उद्योग केन्द्र’ की स्थापना किए जाने का प्रावधान किया गया। जनपद स्तर पर लघु एवं कुटीर उद्योगों को एक स्थान पर आवश्यक सुविधाएँ सहायता एवं जानकारी उपलब्ध कराने के लिए मई 1978 से जनपद मुख्यालयों पर जिला उद्योग केन्द्रों (District Industries Centres) की स्थापना की गई।
(7) राज्य वित्त निगम (State Financial Corporation-SFC)-
लघु उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु देश के सभी राज्यों के लिए कम्पनी अधिनियम, 1951 के अधीन राज्य वित्त निगम की स्थापना कराने का प्रावधान किया गया है, किन्तु अभी तक मात्र 18 राज्य वित्त निगम स्थापित हो पाए हैं। ये निगम एक समामेलित संस्था के रूप में कार्य करते हैं।
(8) राष्ट्रीय परीक्षण गृह (National Testing House)-
लघु उद्योगों में उपयोगी कच्चे माल, रसायन आदि की गुणवत्ता की जाँच के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय परीक्षण गृह की स्थापना की गई। इन परीक्षण गृहों में उत्पादों के नमूने एवं आवश्यक शुल्क की राशि भेजने के पश्चात परीक्षण किए जाते हैं। यह परीक्षा गृह अलीपुर एवं कोलकाता में स्थापित हैं।
(9) भारतीय पैकेजिंग संस्थान (Indian Packing Institute)-
लघु उद्योगों को पैकेजिंग के क्षेत्र में सहयोग प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा भारतीय पैकेजिंग संस्थान की स्थापना की गई है। यह संस्थान लघु उद्योगों को पैकेजिंग के विकास के लिए आवश्यक तकनीकी एवं प्रबन्धकीय सहायता प्रदान करता है।
(10) राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाएं एवं संस्थान (National Research Laboratories and Institute)-
लघु उद्योगों की अनुसंधान सम्बन्धी समस्याओं को हल करने एवं औद्योगिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मन्त्रालयद्वारा वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की स्थापना 1942में की गई। परिषद् के अन्तर्गत लघु उद्योगों की समस्याओं को हल करने के लिए सूचना एवं सम्पर्क कक्ष की स्थापना की गई है। इस कक्ष से प्राप्त लघु उद्योगों की समस्याओं का प्रयोगशाला में निस्तारण किया जाता है। वर्तमान में देश में 346राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला एवं संस्थान लघु उद्योगों को सेवाएं प्रदान कर रहे।
(11) हैण्ड टूल्स केन्द्रीय संस्थान (Central Institute of Hand Tools)-
लघु उद्योगों को तकनीकी प्रशिक्षण अनुसंधान कार्यों में विकसित करने के लिए भारत सरकार एवं पंजाब सरकार के सम्मिलित सहयोग से हैण्ड टूल्स केन्द्रीय संस्थान की स्थापना की गई।
(12) भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards BIS)-
लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित उत्पादों की गुणवत्ता में वृद्धि करने के लिए भारत सरकार द्वारा भारतीय मानक संस्थान की स्थापना 6 जनवरी, 1947 में की गई। इस व्यवस्था को 26 नवम्बर 1986 को संसद के एक अधिनियम से वैधानिक दर्जा दिया गया तथा 1 अप्रैल, 1987 को राष्ट्रीय मानक निकाय के तौर पर भारतीय मानक ब्यूरो अस्तिव में आया। यह खाद्य पदार्थ, रसायनिक पदार्थ, खेल के सामान, साबुन, बर्तन आदि के सम्बन्ध में मानक तैयार करता है।
(13) आई०एस०ओ० 9000-
वर्तमान समय में जीवन के सभी स्तरों पर गुणवत्ता की बात की जा रही है। विशेषकर आज के बदलते परिवेश में गुणवत्ता का महत्व और भी बढ़ गया है। विश्व के लगभग सभी विकसित एवं विकासशील देश यह महसूस करते हैं कि पूरे विश्व में, गुणवत्ता का स्तर एक समान होना चाहिए। इसी के अनुरूप सारे विश्व को एक क्षेत्र मानते हुए ‘क्वालिटी मैनेजमेण्ट सिस्टम’ विकसित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ की गई है। तकनीकी एवं उत्पाद विनिर्दिष्टों के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए न्यूनतम लागत एवं प्रबन्धकीय प्रक्रियाओं के मानवीकरण के लिये, वर्ष 1978 में ब्रिटेन में गठित कमेटी द्वारा कार्य योजना बनाई गई।
विश्व समुदाय में उत्पाद-गुणवत्ता मानकों के निर्धारण हेतु भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards (BIS)) भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
आई०एस०ओ० 9000 मानक मात्रा एवं उत्पाद की गुणवत्ता पर विशेष बल नहीं देते हैं, बल्कि प्रक्रिया से सम्बन्धित मानक प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि किसी संगठन (उद्योग व्यवसाय, सेवाएं एवं अन्य) की कार्य पद्धति यदि व्यवस्थित एवं सुचारु हो जाए तो उत्पाद की गुणवत्ता अपने आप ठीक हो जाएगी।
(14) भारतीय राज्य व्यापार निगम लिमिटेड (State Trading Corporation of India Limited)-
उद्यमियों के उत्पादन को निर्यात करने के लिए कच्चे माल को कम मूल्य पर आयात करके उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 1956 में ‘भारतीय राज्य व्यापार निगम लिमिटेड’ की स्थापना की गई। निगम कच्चे तथा पक्के माल का आयात करने वाला सबसे बड़ा अभिकरण है। निगम केवल उन्हीं वस्तुओं को आयात करता है, जिनके लिए उद्यमियों को प्रत्यक्ष रूप से अनुमति प्रदान नहीं की जाती है। संस्थान की आयात-निर्यात सुविधाएँ केवल निगम द्वारा पंजीकृत उद्यमियों को ही प्रदान की जाती है। निगम द्वारा उद्यमियों के उत्पादों का निर्यात करने में सहायता प्रदान करने के लिए ‘लघु उद्योग को निर्यात में सहायता’ योजना का संचालन किया जा रहा है।
निगम का मुख्य कार्यालय चन्द्रलोक भवन, 36 जनपद, नई-दिल्ली में है तथा प्रादेशिक कार्यालय मुम्बई, विशाखापट्टनम, कोलकाता तथा चेन्नई में है। इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थानों पर उपशाखा पर कार्यालय भी है।
(15) भारतीय लघु उद्योग मण्डल संघ (Federation of Association of Small Scale Industries of India)-
प्रत्येक राज्य में लघु उद्यमियों द्वारा अपने संघ स्थापित किए गए हैं। इन अलग-अलग संघों को एक सूत्र में पिरोकर केन्द्रीय सरकार द्वारा 1969 में एक शोध संस्थान ‘भारतीय लघु उद्योग मण्डल संघ’ की स्थापना की गई है। इस संस्थान का प्रधान कार्यालय दिल्ली तथा प्रादेशिक कार्यालय मुम्बई, कोलकाता व चेन्नई में है।
(16) अखिल भारतीय लघु उद्योग बोर्ड (All India Small Scale Industries Board)-
लघु उद्योगों को आवश्यक परामर्श प्रदान करने तथा उनका विकास करने के लिए 1954 में अखिल भारतीय लघु उद्योग बोर्ड की स्थापना की गई। बोर्ड द्वारा दो अर्द्धवार्षिक बैठक आयोजित की जाती है, जिनमें लघु उद्योगों की समस्याएं व सुझाव, परामर्श आदि कार्य किया जाता है।
(17) खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (Khadi and Village Industries Commission-KVIC) –
खादी एवं ग्रामीण उद्योग के विकास एवं ग्रामीण बेरोजगारी में कमी लाने के लिए 1953 में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की स्थापना मुम्बई में की गई। यह आयोग विशेषतः महिला उद्यमियों के लिए अधिक उपयोगी है। इन उद्योगों में महिलाओं की भागीदारी 46 प्रतिशत है। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग उन सभी उद्योगों को भी सहायता एवं परामर्श उपलब्ध कराता है, जो न्यूनतम निवेश के द्वारा उपयोगी उत्पादों, जैसे खाद्य पदार्थों का प्रसंस्करण, चमड़ा उद्योग, गुड़ एवं खाण्डसारी, साबुन बनाना, एल्युमिनियम के बर्तन बनाना आदि उद्योग चलाते हैं। खादी ग्रामोद्योग आयोग कार्यालय प्रत्येक राज्य में स्थापित है।
(18) राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (National Small Industries Corporation- NSIC) –
उद्यमियों के सरकारी खरीद कार्यक्रम में भाग लेने तथा किराया क्रयपद्धति पर मशीनों एवं यन्त्रों को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केन्द्रीय सरकार द्वारा 1955 में एन.एस.आई.सी की स्थापना नई दिल्ली में की गई। यह निगम लघु उद्योगों को आवश्यक प्रशिक्षण, मार्गदर्शन, तकनीकी परामर्श, विपणन, आयात-निर्यात के सम्बन्ध में आवश्यक सलाह एवं सहयोग प्रदान करता है।
(19) राज्य लघु उद्योग निगम (State Small Industries Corporation-SSIC) –
लघु उद्योगों को उद्यमिता विकास की ओर प्रेरित करने के लिए उन्हें आर्थिक, तकनीकी एवं प्रबन्धकीय सहायता देने के उद्देश्य से राज्य लघु निगम की स्थापना की गई। यह निगम व्यापारिक संस्थान के रूप में वाणिज्यिक कार्य करते हैं।
(20) उद्योग निदेशालय (Directorate of Industries) –
लघु उद्योगों के विकास व नियन्त्रण का कार्य संविधान द्वारा राज्यों को सौंपा गया है। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए राज्य सरकारों के द्वारा उद्योग निदेशालय की स्थापना की गई है। निदेशालय द्वारा लघु उद्योगों के विकास के लिए तकनीकी, प्रबन्धकीय एवं अन्य आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है।
(21) राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (National Productivity Council) –
राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद की स्थापना केन्द्र सरकार द्वारा फरवरी 1958 को एक स्वायतशासी संस्था (Autonomous Body) के रूप में की गई जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में रखा गया है। भारत सरकार के उद्योग मन्त्री इस परिषद के अध्यक्ष होते हैं।
मुख्यालय के अतिरिक्त दस औद्योगिक नगरों मुम्बई, कोलकाता, पटना, गुवाहाटी, दिल्ली, चेन्नई, बंगलुरू, अहमदाबाद, कानपुर एवं चण्डीगढ़ में क्षेत्रीय निदेशालय स्थापित किए गए हैं। जयपुर, हैदराबाद एवं भुवनेश्वर में तीन क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
स्थानीय उत्पादकता परिषद भी राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद के मार्गदर्शन में कार्य करती है। इन परिषदों का भी गठन इस प्रकार किया गया है कि उसमें उस प्रदेश की उत्पादकता एवं उद्यमिता में हित एवं रुचि रखने वाले वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हो सके।
(22) राष्ट्रीय लघु उद्योग विस्तार प्रशिक्षण संस्थान (National Institute of Small Industries Extension Training)-
केन्द्र तथा राज्यों के स्तर पर उद्यमियों एवं लघु उद्योगों को प्रशिक्षण, अनुसंधान, परामर्श तथा प्रलेख सम्बन्धी सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 1960 में राष्ट्रीय उद्यमिता विकास संस्थान की स्थापना हैदराबाद में की गई। वह संस्थान अपने सहयोगी विभागों- परामर्श (Consultancy), प्रलेख (Docmentation), औद्योगिक विकास (Indus- trial Development), औद्योगिक प्रबन्ध (Industrial Management), व्यावहारिक विज्ञान (Theoretical Science), तथा संचार (Communication) के साथ मिलकर उद्यमियों को तकनीकी एवं प्रबन्धकीय सहायता प्रदान कर रहा है।
संस्थान के प्रमुख कार्य निम्न हैं-
(i) संस्थान द्वारा उद्यमियों को प्रलेख रखने व अनुसंधान करने का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
(ii) संस्थान लघु उउद्योगों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें तकनीकी एवं प्रबन्धकी परामर्श देता है।
(iii) उद्यमियों एवं कामगारों हेतु सम्मेलन एवं गोष्ठी का आयोजन करना।
(iv) लघु उद्यमियों एवं प्रबन्धकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन करना।
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