विज्ञापन विनियोजन

विज्ञापन विनियोजन | बजट का अर्थ | विज्ञापन विनियोजन की कार्यविधि

विज्ञापन विनियोजन | बजट का अर्थ | विज्ञापन विनियोजन की कार्यविधि | advertising placement in Hindi | Meaning of budget in Hindi | Procedure for ad placement in Hindi

विज्ञापन विनियोजन अथवा बजट का अर्थ

विज्ञापन विनियोजन से आशय सरल शब्दों में यह निश्चित करना है कि विज्ञापन पर कितनी राशि व्यय की जाय। इस सम्बन्ध में कोई निर्णय लेने से पूर्व एक संस्था को अपने संवर्द्धन अन्तर्लय (Promotional Mix) में विज्ञापन के योगदान को निश्चित करना होता है। संवर्द्धन अन्तर्लय में वैयक्तिक विक्रय (Personal Selling), विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन (Sales Promotion) को सम्मिलित किया जाता है। कुछ संस्थाएँ औद्योगिक उत्पाद की अवस्था में विज्ञापन पर बहुत कम ध्यान देती हैं या बिल्कुल भी ध्यान नहीं देतीं। अतः संस्था के लिए यह निश्चय करना आवश्यक है कि वह संवर्द्धन अन्तर्लय के अन्तर्गत किन-किन साधनों पर कितना जोर देगी।

विज्ञापन विनियोजन की कार्यविधि (Procedure)

सामान्यतः सभी संस्थाओं को उपभोक्ता एवं औद्योगिक उत्पादों के विपणन हेतु निम्नांकित कदम उठाने पड़ते हैं—(I) विज्ञापन उद्देश्यों का निर्धारण; (II) विज्ञापन नीतियों का निर्धारण; (III) विज्ञापन रीति-नीतियों (Strategies) का निर्माण; (IV) विज्ञापन विनियोजन का निर्धारण।

(I) विज्ञापन उद्देश्यों का निर्धारण

विज्ञापन उद्देश्यों का निर्धारण संस्था के सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है। विभिन्न संस्थाओं के विज्ञापन उद्देश्यों में भी भिन्नता हो सकती है। कुछ कम्पनियों में विज्ञापन का उद्देश्य वैयक्तिक विक्रय और संवर्द्धन अन्य साधनों को सहयोग प्रदान करना होता है। कुछ कम्पनियाँ विज्ञापन द्वारा सूचना देने या विक्रय वृद्धि अथवा लाभ वृद्धि का प्रयास करती हैं। कण्डिफ, स्टिल एवं गोवानी ने विज्ञापन के निम्न उद्देश्यों का उल्लेख किया है— (1) समस्त विक्रय का कार्य करना (डाक द्वारा विपणन की अवस्था में); (2) नवीन उत्पाद को प्रस्तुत करना (सम्भावित क्रेताओं में ब्राण्ड की जानकारी पैदा करके); (3) मध्यस्थों को उत्पाद में व्यवहार करने हेतु बाध्य करना (Pull रीति-नीति); (4) ब्राण्ड प्राथमिकता का निर्माण करना (जिससे मध्यस्थों के लिए अन्य स्थानापन्न उत्पादों का विक्रय, कठिन हो जाय); (5) उत्पाद क्रय हेतु क्रेताओं को याद दिलाना (रिटेण्टिव (Retentive) रीति-नीति); (6) विपणन रीति-नीति के   कुछ परिवर्तन का प्रचार करना (कीमत परिवर्तन नवीन मॉडल, उत्पाद में सुधार); (7) क्रय हेतु तर्क प्रस्तुत करना, (8) प्रतिस्पर्द्धा विज्ञापनों से मुकाबला, (9) वितरकों एवं विक्रेताओं के मनोबल में सुधार; (10) उत्पादों के नवीन प्रयोगों से वर्तमान व सम्भावित क्रेताओं को अवगत करना।

(II) विज्ञापन नीतियों का निर्धारण

विज्ञापन नीतियाँ वविज्ञापन उद्देश्यों से ली जानी चाहिए और इनके द्वारा प्रबंध क विज्ञापन रीति-नीतियों के निर्माण में सहयोग दिया जाना चाहिए। एक कम्पनी को विज्ञापन नीति निर्णयों में सबसे पहले तो यही निर्णय लेना होता है कि क्या वह विज्ञापन करेगी? यदि कम्पनी विज्ञापन न करने का निर्णय ले तो फिर उसे अन्य नीतियों के निर्धारण की आवश्यकता नहीं रहती। सामान्यतः सभी कम्पनियाँ विज्ञापन नीतियों का निर्धारण करती हैं। सामान्य विज्ञापन नीति क्षेत्रों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है:

  1. विज्ञापन प्रयत्नों का सामान्य क्षेत्र– उच्च प्रबन्ध द्वारा विज्ञापन प्रयत्नों के क्षेत्र का निर्धारण किया जाता है। कभी केवल उत्पाद के सम्बन्ध में विज्ञापन किया जाता है तो कभी संस्था की ख्याति के निर्माण हेतु विज्ञापन पर राशि व्यय की जाती है। कभी सामान्य जनता की राय बदलने के लिए भी विज्ञापन किया जाता है।
  2. विज्ञापन एवं प्रतिस्पर्द्धा-कुछ कम्पनियाँ प्रतिस्पर्द्धियों के अनुसार करने की नीति को अपनाती हैं।

(III) विज्ञापन रीति-नीतियों का निर्माण

विज्ञापन रीति-नीतियाँ विज्ञापन नीतियों के अनुकूल होनी चाहिए। इनका निर्माण विज्ञापन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। विज्ञापन रीति-नीतियाँ विपणन परिस्थितियों के अनुसार तैयार की जाती हैं। बाजार की स्थिति, वितरण, प्रवर्तन और कीमत निर्धारण आदि के विश्लेषण द्वारा कम्पनी को विज्ञापन अवसरों का पता लगाकर विज्ञापन रीति-नीति का निर्माण करना चाहिए।

(IV) विज्ञापन विनियोजन

विज्ञापन उद्देश्यों, नीतियों एवं रीति-नीतियों के निर्धारण के बाद यह निश्चित किया जाता है कि विज्ञापन पर कितनी राशि व्यय की जाय। विज्ञापन विनियोजन निर्धारण हेतु कुछ कम्पनियाँ विज्ञापन बजट तैयार करती हैं। विज्ञापन बजट में सामान्यतः निम्नलिखित मदों को सम्मिलित किया जाता है:

  1. प्रशासनिक उपरिव्यय (Administrative Overhead)- विज्ञापन बजट में विज्ञापन विभाग के प्रशासनिक व्ययों को सम्मिलित किया जाता है। इन प्रशासनिक व्ययों में विज्ञापन प्रबंधक व अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, यात्रा व्यय आदि के अलावा विभाग के विद्युत, स्टेशनरी, डाक एवं टेलीफोन व्यय सम्मिलित हैं।
  2. माध्यम लागत (Media Cost) – विज्ञापन बजट की यह प्रमुख मद है। विज्ञापन व्यय का एक प्रमुख भाग इसी मद पर खर्च किया जाता है। इसके अन्तर्गत विज्ञापन के लिए प्रयोग किये जाने वाले माध्यमों को पारिश्रमिक या फीस देने के लिए व्यवस्था की जाती है।
  3. विज्ञापन उत्पादन लागत (Advertising Production Cost) — विज्ञापन प्रति, ब्लॉक, रील अथवा सम्वाद बनाने में आने वाले व्यय को इस मद में सम्मिलित किया जाता है। जब पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन किया जाता है तो पहले विज्ञापन प्रति तैयार की जाती है और उसका ब्लॉक बनाया जाता है। सिनेमा अथवा टेलीविजन पर विज्ञापन करने के लिए रील तैयार की जाती है। रेडियो पर विज्ञापन करने के लिए सम्वाद तैयार किये जाते हैं।
  4. अनुसंधान व्यय (Research Expenditure)– विज्ञापन की सार्थकता का पता लगाने के लिए विज्ञापन से पूर्व एवं बाद में परीक्षण किये जाते हैं जिन्हें पूर्व परीक्षण (Pre- testing) व बाद के परीक्षण (After-testing) कहा जाता है। इन परीक्षणों पर आने वाला व्यय इस मद में सम्मिलित किया जाता है।
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