विपणन प्रबन्ध / Marketing Management

विपणन कार्य का अर्थ | विपणन कार्य की परिभाषा | विपणन के विभिन्न कार्यों का वर्णन

विपणन कार्य का अर्थ | विपणन कार्य की परिभाषा | विपणन के विभिन्न कार्यों का वर्णन | Meaning of Marketing Function in Hindi | Definition of Marketing Function in Hindi | Description of various functions of marketing in Hindi

विपणन कार्य का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definitions of Marketing Functions)

विपणन की सभी क्रियाओं को विपणन कार्यों के नाम से जाना जाता है। विपणन कार्य एक व्यवहार, क्रिया या सेवा है जिसके द्वारा मौलिक उत्पादक (Original Producer) और अन्तिम उपभोक्ता एक साथ सम्बद्ध हैं। किसी भी वस्तु के उत्पादन को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचते- पहुँचते विभिन्न हाथों से गुजरना पड़ता है तथा कई क्रियाओं से निकलना पड़ता है। वस्तुओं की इस मात्रा में जो क्रियायें पूरी की जाती हैं वे सभी विपणन क्रियायें कहलाती हैं। इन्हीं विपणन क्रियाओं को विपणन कार्य (Marketing Functions) कहा जाता है।

विपणन की विभिन्न परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. टाउसले, क्लार्क एवं क्लार्क के मतानुसार, “विपणन कार्य एक बहुत विशेष प्रकार की क्रिया है जो विपणन में सम्पादित की जाती है।”
  2. कन्वर्स हानी एवं मिचेल के अनुसार, “विपणन कार्य एक व्यवहार, क्रिया या सेवा है, जिसको माल और सेवाओं को वितरित करने की क्रिया में पूरा किया जाता है।”
  3. कन्डिफ एवं स्टिल (Condilf and Still) ने विपणन कार्यों को तीन भागों में‌विभाजित किया है-

विपणन के कार्य

(Functions of Marketing)

I. वाणिज्यिक कार्य , II. भौतिक वितरण कार्य, III. सहायक कार्य

I. वाणिज्यिक कार्य

(Merchandising Functions)

इसके अन्तर्गत वे सभी क्रियाएँ की जाती हैं जो कि ग्राहकों की आवश्यकता के अनुरूप उत्पाद या सेवा को बाजार में उपलब्ध कराने के लिए की जाती हैं। इसमें निम्नलिखित कार्य सम्मिलित किए जाते हैं-

(1) उत्पाद नियोजन एवं विकास ( Product Planning and Development) – प्राचीन समय में उत्पाद नियोजन एवं विकास का कार्य उत्पादन विभाग, इंजीनियरिंग एवं प्रावैधिक  अनुसंधान  (Technical Research) विभाग द्वारा सम्पन्न किया जाता था लेकिन अब ग्राहकों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता एवं अभिरूचियों को अत्यधिक मान्यता मिलने के कारण यह कार्य विपणन विभाग द्वारा किया जाने लगा है। विपणन विभाग द्वारा ग्राहकों की आवश्यकता एवं रूचियों के आधार पर तथा शोध एवं विकास विभाग और इन्जीनियरिंग विभाग आदि की सहायता से वस्तु के डिजाइन, किस्म, वस्तु का निर्माण, ब्राण्ड, पैकिंग एवं परित्याग सम्बन्धी निर्णय लिये जाते हैं और इनके सम्बन्ध में योजनाएं तैयार की जाती हैं तथा उत्पादन विभाग को निर्देश दिए जाते हैं।

(2) प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन (Standardising and Grading) – वस्तुओं के सफल एवं कुशल विपणन के लिए उनका प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन आवश्यक है। वस्तुओं के गुण, आकार, किस्म एवं रंग के आधार पर वस्तु के प्रमापक या मानक (Standards) निर्धारित किए जाते हैं और फिर इन मानकों के आधार पर उनका उप विभाजन करके इन्हें विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत (Grading) किया जाता है। वस्तुओं के प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन से न केवल वस्तु के उत्पादन में एकरूपता, कीमतों में समानता, विक्रय में सुगमता एवं बाजार को विस्तृत करने में सहायता मिलती है वरन् ग्राहकों को वस्तुओं का वास्तविक निरीक्षण किए बिना ही केवल विवरण, ब्राण्ड आदि के आधार पर क्रय करने में सुविधा होती है। इस प्रकार प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन की क्रियायें उत्पादक और ग्राहक दोनों के लिए ही लाभदायक हैं। इसी कारण आजकल अधिकांश वस्तुयें विभिन्न ब्राण्डों एवं श्रेणियों में विक्रय हेतु बाजार में प्रस्तुत की जाती हैं। जैसे- फिलिप्स रेडियो एवं ट्रांजिस्टर, एवरेडी सेल, अकाई टेलीविजन, एच०एम०टी० घड़ियाँ, बाटा के जूते एवं चप्पल, बिनाका टूथपेस्ट एवं टूथ ब्रूश आदि वस्तुयें इस विश्वास के आधार पर खरीदी जाती हैं कि इनके सम्बन्ध में प्रस्तुत विवरण सही है। इसी प्रकार अनाज, चीनी, फल, कोयला आदि वस्तुओं को निर्धारित प्रमापों के आधार पर श्रेणीबद्ध करके आसानी से बेचा जा सकता है।

(3) क्रय एवं संकलन ( Buying and Collection) – विपणन कार्य में क्रय से आशय औद्योगिक प्रयोगकर्ताओं द्वारा पुनः विक्रय हेतु उत्पाद या सेवाओं की प्राप्ति से है। उत्पादकों द्वारा क्रय की जाने वाली वस्तुयें निर्माण प्रक्रिया में प्रयोग करके परिवर्तित रूप में ग्राहकों तक पहुँचायी जाती है। मध्यस्थों, थोक व्यापारी और फुटकर व्यापारियों द्वारा वस्तुयें पुनः विक्रय करने हेतु क्रय की जाती हैं। संकलन का अर्थ एक व्यापारी द्वारा विभिन्न किस्मों की वस्तुओं को पुनः विक्रय करने के लिए एकत्रित करना है। संकलन क्रिया प्रायः मध्यस्थों द्वारा की जाती है। उदाहरण के लिए अनाज के थोक व्यापारी विभिन्न कृषकों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अनाज क्रय करके संकलित कर लेते हैं और फिर फुटकर व्यापारियों को उनकी आवश्यकतानुसार विक्रय करते रहते हैं। औद्योगिक और उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में भी बड़े व्यवसायी (थोक व्यापारी, विभागीय भण्डार एवं सुपर बाजार आदि) विभिन्न उत्पादकों की वस्तुओं को क्रय और संकलित करके पुनः उसी रूप में उपभोक्ताओं को बेच देते हैं।

(4) विक्रय (Selling) – विक्रय विपणन का एक महत्वपूर्ण अंग है। व्यापारिक जगत में व्यापारिक क्रिया तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक वास्तविक विक्रय न हो। विक्रय के अन्तर्गत केवल विक्रय करना ही नहीं अपितु ग्राहकों का पता लगाना, प्राथमिक माँग उत्पन्न करना, ग्राहकों को सलाह एवं विक्रयोपरान्त सेवा प्रदान करना आदि क्रियायें भी करनी पड़ती हैं। एक विक्रेता विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, विक्रयोपरान्त सेवायें एवं व्यक्तिगत विक्रय आदि क्रियाओं की सहायता से विक्रय कर सकता है।

II. भौतिक वितरण कार्य

(Physical Distribution Functions)

वस्तुओं को उत्पादन स्थल से उपयोग स्थल तक पहुँचाने के लिए जो क्रियायें की जाती हैं उन्हें भौतिक वितरण के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। भौतिक वितरण कार्य के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियायें की जाती हैं –

(1) भण्डारण (Storage) – प्राचीन समय में छोटे पैमाने पर उत्पादन किया जाता था और प्रायः वस्तु का उत्पादन आदेश प्राप्त होने के बाद किया जाता था, अतः निर्मित माल का स्टाक रखने की आवश्यकता नहीं होती थी। परन्तु वर्तमान समय में, अनुमानित माँग के आधार पर ही वस्तु का उत्पादन किया जाता है और फिर माँग उत्पन्न होने पर विक्रय कार्य प्रारम्भ होता है। इस प्रकार भविष्य में उत्पन्न होने वाली मांग की पूर्ति करने के लिए वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में भण्डार होने चाहिए। अतः भण्डारण क्रिया विपणन का एक अनिवार्य अंग है। वस्तु के निर्माता, थोक व्यापारी और फुटकर व्यापारी अपनी-अपनी क्षमतानुसार वस्तुओं का भण्डारण करके वस्तु की माँग की प्रतीक्षा करते हैं। वस्तुओं का भण्डारण अन्य उद्देश्यों से भी किया जाता है, जैसे मौसमी वस्तुओं का भण्डारण इसलिए किया जाता है कि गैर-मौसम में भी उन वस्तुओं को बाजार में उपलब्ध कराया जा सके। कुछ वस्तुओं का भण्डारण इसलिए किया जाता है कि इससे उनकी किस्म एवं मूल्य वृद्धि हो जाती है, जैसे- चावल, शराव इत्यादि।

(2) परिवहन ( Transportation) – वस्तुओं को उत्पादन स्थल में उपभोग स्थलों तक पहुँचाने के लिए परिवहन की आवश्यकता पड़ती है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में उत्पादन देश में एक स्थान पर होता है लेकिन उसका उपयोग न केवल सम्पूर्ण देश में अपितु विदेशों में भी होता है। यह परिवहन की सुविधा के कारण सम्भव हुआ है। बड़े पैमाने पर उत्पादन, विशिष्टीकरण, बाजारों का भौगोलिक विकेन्द्रीयकरण आदि के कारण परिवहन विपणन का अनिवार्य अंग हो गया है। वर्तमान समय में रेल, ट्रक, वायुयान, जहाज, पोस्ट पार्सल आदि परिवहन के विभिन्न साधन प्रचलित हैं।

III. सहायक कार्य

(Auxiliary Functions)

विपणन को सुविधाजनक बनाने के लिए निम्नलिखित सहायक कार्य निष्पादित किये जाते हैं –

(1) विपणन वित्त व्यवस्था (Marketing Financing) – आधुनिक समय में, कोई भी व्यवसायी केवल नकद व्यवहार के द्वारा अपने व्यवसाय की प्रगति नहीं कर सकता। अतः व्यवसायियों को अपने व्यवसाय की उन्नति के लिए साख की सुविधा का सहारा लेना पड़ता है। निर्माता कच्चे माल के क्रेताओं से साख पर माल प्राप्त करते हैं और थोक व्यापारियों को निर्मित माल साख पर बेचते हैं। इसी प्रकार और थोक व्यापारी फुटकर व्यापारियों को साख पर माल बेचते हैं और फुटकर व्यापारी प्राहकों को साख पर माल बेचते हैं। अतः विपणन कार्य में संलग्न सभी व्यवसायी साख का आदान-प्रदान करते हैं। वर्तमान समय में बिक्री बढ़ाने के लिए किराया क्रय पद्धति और किश्त भुगतान पद्धति का प्रयोग किया जाता है। ऐसी सुविधा प्रदान करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इस प्राकर धन की व्यवस्था करना ही विपणन वित्त व्यवस्था कहलाती है।

(2) जोखिम वहन करना (Risk Bearing) – बाजार में अनिश्चितता के कारण विपणनकर्त्ता को अनेक जोखिमों को वहन करना पड़ता है, जैसे कीमत में कमी होना, उपभोक्ता रूचि व फैशन में परिवर्तन, अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के कारण माँग में कमी होना आदि विभिन्न जोखि में विपणनकर्ता को वहन करनी पड़ती हैं, जिनका बीमा भी नहीं कराया जा सकता है परन्तु इस प्रकार की जोखिमों को कुशल विक्रय पूर्वानुमान, विपणन अनुसंधान, विज्ञापन, विक्रय संवर्धन, उत्पादन विभिन्नीकरण (Product Differentiation) आदि के द्वारा कम किया जा सकता है।

(3) वाजार सूचना (Marketing Information) – विपणकर्ता को बाजार की प्रवृत्तियों, सरकार की नीतयों, विभिन्न व्यापारिक संस्थाओं की उत्पादन, वितरण, कीमत निर्धारण सम्बन्धी नीतियों एवं ग्राहकों की रूचियों एवं फैशन में हुए परिवर्तनों की सूचना प्राप्त करनी चाहिए। इन्हीं सूचनाओं के आधार पर विपणनकर्त्ता अपनी उत्पादन, वितरण, कीमत एवं विक्रय-संवर्धन नीतियों में बाँछनीय परिवर्तन करके बदली हुई बाजार परिस्थितियों में अपनी वस्तु बेच सकता है।

विपणन प्रबन्ध – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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