विपणन प्रबन्ध / Marketing Management

विक्रय प्रक्रिया क्या है? | Selling Process in Hindi

विक्रय प्रक्रिया क्या है? | Selling Process in Hindi

विक्रय प्रक्रिया

(Selling Process)

प्रायः वस्तुओं को बेचने के लिए सभी विक्रेताओं के द्वारा एक ही रास्ता अपनाया जाता है, जैसे- भावी ग्राहकों का पता लगाना व उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना फिर उनसे सम्पर्क स्थापित करना व वस्तु को उनके समक्ष प्रस्तुत करना, उसकी अच्छाई आदि को बताना और यदि ग्राहकों द्वारा आपत्तियाँ उठायी जाती हैं तो उनका समाधान कर विक्रय करना। ये सभी विक्रय प्रक्रिया की अवस्थाएँ हैं। ये अवस्थाएँ एक-दूसरे से अन्तर्व्याप्त है और इनको अलग-अलग पहचानना कठिन होता है। विक्रय प्रक्रिया की प्रमुख अवस्थाएँ निम्न हैं –

  1. क्रेताओं को पहचानना (Identifying Buyers)- विक्रय प्रक्रिया की यह प्रथम अवस्था है। इसमें विक्रयकर्ता यह पता लगाता है कि उस वस्तु की आवश्यकता किन व्यक्तियों व संस्थाओं को है तथा वे उस वस्तु को खरीदने में समर्थ हैं अथवा नहीं। इसका कारण यह है कि बिना आवश्यकता वाले या असमर्थ व्यक्तियों की ओर अधिक प्रयास करने से बिक्री में वृद्धि नहीं होती है। विक्रयकर्ता का समय व परिश्रम व्यर्थ हो जाता है तथा उसको कोई आर्थिक लाभ भी नहीं होता है। प्रत्येक व्यक्ति को सम्भावित क्रेता नहीं माना जा सकता। जिन व्यावसायिक संस्थानों में श्रेष्ठ ‘विक्रय विश्लेषण प्रणालियाँ’ स्थापित होती हैं, उनमें सम्भावित क्रेताओं की पहचान में आसानी रहती है। क्योंकि वे क्रेता सूचनाओं का प्रमुख और विश्वसनीय स्रोत बन जाती है।
  2. पूर्व पहुँच (Pre-approach) – जब एक विक्रयकर्ता को भावी विक्रयकर्ता के नामों का पता लग जाता है तो विक्रय क्रिया की दूसरी अवस्था पूर्व पहुँच की आती है। इससे क्रेता के सम्बन्ध में साधारणतया उसकी आयु, धर्म, शिक्षा, परिवार, मैत्री सम्बन्ध, अभिरुचि, राजनैतिक दृष्टिकोण, योजनाएँ आदि के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। इन सूचनाओं के एकत्रित कर लेने से विक्रयकर्ता अपनी भेंट में कम से कम गलतियाँ करता है और उसको विक्रय करने में सफलता मिलने की सम्भावनाएँ अधिक हो जाती हैं। ये सूचनाएँ इस बात का भी आभास करा देती हैं कि ऐसे ग्राहकों से बातचीत किस प्रकार की जाए? जैसे यदि ग्राहक पढ़ा-लिखा है तो विक्रयकर्ता का तरीका बिना पढ़े लिखे ग्राहक की तुलना में अलग प्रकार का होगा।
  3. पहुँच एवं प्रस्तुतीकरण (Approach and Presentation)- सम्भावित ग्राहक का पता लगाकर व उसके बारे में सूचना प्राप्त कर इस बात की आवश्यकता होती है कि उस तक पहुँचा जाये व वस्तु का प्रस्तुतीकरण किया जाये। क्रेता तक पहुँचने के कई तरीके हैं जैसे संदर्भ पहुँचाकर, परिचय देकर, वस्तु दिखाकर, वस्तु के लाभों की जानकारी देकर आदि के माध्यम से उसके पास पहुंचा जा सकता है।

जब विक्रयकर्ता सम्भावित ग्राहक के पास पहुँच जाता है तो फिर उसको चाहिए कि वस्तु को प्रत्यक्ष रूप में ग्राहक के समक्ष प्रस्तुत कर दे और उसको यह बताए कि वस्तु उसके लिए किस प्रकार उपयोगी है। वस्तु का प्रस्तुतीकरण इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि ग्राहक की रुचि उस ओर हो जाये और उसमें वस्तु क्रय करने की इच्छा उत्पन्न हो जाये। उदाहरण के लिए यदि विक्रयकर्ता कम्प्यूटर का विक्रय कर रहा है तो उसको चाहिए कि ग्राहक से स्वयं कम्प्यूटर को चलाकर देखने का प्रदर्शन करे।

  1. अभिनय (Dramatization)- इसमें ग्राहक के समक्ष एक नाटक जैसा अभिनय किया जाता है जिससे कि ग्राहक उसकी उपयोगिता से प्रभावित हो और वस्तु को क्रय करने के लिए। लालायित हो। साधरणतया यह देखा जाता है कि जीवन बीमा का उद्देश्य भावी जोखिम को सहन करना है जबकि बीमा कराने वाला बीमादार ऐसा नहीं सोचता। वह तो अपने आपको एक निश्चित काल तक जीवित रहने की बात करता है। ऐसे ही समय विक्रयकर्ता अपना नाटक खेलता है और कुछ अखबारों की कटिंग सामने रखकर बताता है कि विवाहित नवयुवक की दुर्घटना में मृत्यु किस प्रकार उसके परिवार को अन्धकार में डाल देती है। यदि इस नवयुवक ने अपना जीवन बीमा करा लिया होता तो परिवार वालों को इतना धन अवश्य मिल जाता कि वे अपने जीवन को उचित रूप से चला सकते। ऐसे नाटक का विपरीत प्रभाव न पड़े इसके लिए आवश्यक है कि नाटक ग्राहक की रुचि के अनुरूप ही खेला जाए।
  2. ट्रायल समाप्ति (Trial Close)- जब विक्रयकर्ता अपनी बात कह चुकता है वे वस्तु का प्रदर्शन भी पूर्ण कर लेता है तो फिर उसको यह पता लगाना है कि ग्राहक ने वस्तु खरीदने का निर्णय लिया है या नहीं। कुछ ग्राहक तो ऐसे होते हैं जिनके द्वारा स्वंय बता दिया जाता है कि अब आप आर्डर बुक कर सकते हैं लेकिन कुछ ग्राहक ऐसे होते हैं जो अपनी प्रतिक्रिया का पता नहीं लगने देते। ऐसी स्थिति में विक्रयकर्त्ता को ऐसे प्रश्न करने चाहिए जिनसे यह पता लग सके कि ग्राहक वस्तु क्रय करने को तैयार है या नहीं जैसे- आपको कौन सा मॉडल पसन्द है? आप किस रंग को पसन्द करेंगे? आप वस्तु साथ ले जायेगें या भिजवा दूँ? आदि-आदि। यदि ग्राहक वस्तु को क्रय करने की स्थिति में है तो वह सकारात्मक उत्तर देगा अन्यथा नकारात्मक। यदि ग्राहक नकारात्मक उत्तर दे तो तभी उस वस्तु के सम्बन्ध में आपत्तियाँ आमन्त्रित करनी चाहिए।
  3. आपत्तियों का निराकरण (Meeting Objections)- जब प्राहक वस्तु क्रय करने की स्थिति में नहीं होता या उसको वस्तु पसन्द नहीं आती तो वह विभिन्न प्रकार की आपत्तियाँ उठा देता है। एक अच्छे एवं कुशल विक्रयकर्ता को आपत्तियों से घबराना नहीं चाहिए बल्कि अपनी विक्रय कला का प्रदर्शन इन आपत्तियों को दूर करने में करना चाहिए जिससे कि ग्राहक नैतिक दृष्टि से दब जाये तथा क्रय करने का आदेश दे दे। अतः आवश्यकता इस बात की है कि ग्राहक को निश्चय की स्थिति में आने के लिए विवश करना चाहिए जिससे दुबारा जाने की आवश्यकता प्रतीत न हो, लेकिन कुछ परिस्थितियों में विक्रयकर्त्ता को धैर्य ही रखना वांछनीय होगा। प्रत्येक दशा में विक्रयकर्ता को अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए।
  4. समापन (Closing)- एक विक्रयकर्त्ता द्वारा सम्भावित ग्राहक का पता लगाना, उस तक पहुँचना, वस्तु को प्रस्तुत करना, आपत्तियों का निवारण करना, आदि इस उद्देश्य से किया जाता है कि ग्राहक वस्तु को क्रय करने का आदेश दे दे और इस प्रकार विक्रय समाप्ति कर दी जाये। यदि किसी प्रकार विक्रयकर्त्ता ग्राहक को संतुष्ट नहीं कर पाता तो वह आदेश भी प्राप्त नहीं कर सकता है और अब तक का उसका सारा श्रम बेकार चला जाता है। वस्तु को क्रय करने की इच्छा बहुत बार ग्राहक स्पष्ट रूप से बता देता है लेकिन कभी-कभी ग्राहक अपनी ओर से क्रय करने की बात नहीं करता है। ऐसी स्थिति में विक्रयकर्त्ता को स्वंय ही विक्रय समाप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए और इसके लिए समापन तकनीक प्रयोग में लानी चाहिए।
  5. अनुगमन (Follow up)- विक्रय समाप्ति के पश्चात् इस बात की आवश्यकता है कि ग्राहक का अनुगमन किया जाये। यह अनुगमन विभिन्न कारणों से किया जाता है जिसमें दो कारण प्रमुख हैं- प्रथम, ग्राहक को वस्तु उसके आदेश के अनुसार मिल जाए। उसके लिए विक्रयकर्त्ता को चाहिए कि माल की डिलीवरी स्वंय अपने सामने कराये या डिलीवरी के बाद ग्राहक से अवश्य मिले जिससे कि ग्राहक की असुविधाओं का पता लग जाए व ग्राहक यह महसूस करने लगे कि विक्रयकर्ता अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग रहे। द्वितीय, ग्राहक सन्तुष्ट रहेगा तो भविष्य में आदेश मिलने की सम्भावना बनी रहेगी। ऐसा होने से विक्रयकर्ता का अधिक समय बर्बाद नहीं होगा और उसकी आय में भी कोई कमी नहीं आयेगी।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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