व्यूहरनात्मक प्रबन्ध की प्रक्रिया के परिणाम | Results of the process of strategic management in Hindi
व्यूहरनात्मक प्रबन्ध की प्रक्रिया के परिणाम | Results of the process of strategic management in Hindi
व्यूहरनात्मक प्रबन्ध की प्रक्रिया के परिणाम-
रणनीतिक/ कार्यनीतिक प्रबन्ध की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित हैं-
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किसी एक भाग में परिवर्तन सभी हिस्सों को प्रभावित करता है-
कार्यनीतिक प्रबन्ध क्रिया के मॉडल से स्पष्ट हो जाता है कि सूचनाओं का प्रभाव आपसी सम्बन्ध रखता है। उदाहरण के लिए बाहरी वातावरण में जो ताकतें कार्य करती हैं वे कम्पनी के कार्यनीतिक प्रबन्धकों तथा अंशधारियों द्वारा बनाये गये ध्येयों की प्रकृति को प्रभावित करती हैं। एक निर्धारित ध्येय के अंतर्गत किसी कम्पनी का अस्तित्व वातावरण सम्बन्धी ताकतों को नियमित कर देता है और प्रतिस्पर्द्धा की गति की तीव्रता प्रदान करता है। एक विशिष्ट तथा स्पष्ट उदाहरण लेते हैं, एक कम्पनी जो ऊर्जा का उत्पादन करती है उसके ध्येय विवरण के अंतर्गत शक्ति (Energy) के विभिन्न विकल्पों के विकास को सम्मिलित किया जाना चाहिए उसके लिए उसे सरकारी प्रोत्साहनों (Incentives) का लाभ भी होना चाहिए। यह स्वाभाविक है कि फर्म को कोयले के द्रवीकरण को विकसित करने के लिए शोध एवं अनुसंधान प्रक्रिया को बढ़ाने का वचन लेना चाहिए।
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कार्यनीतिक निर्माण तथा क्रियान्वयन तार्किक एवं क्रमानुसार है-
कार्यनीतिक प्रबन्ध प्रक्रिया कम्पनी के ध्येय के पुनर्मूल्यांकन तथा विकास के साथ प्रारम्भ होती है। इसका सम्बन्ध कम्पनी के कार्यक्षेत्र के विकास तथा बाहरी वातावरण के मूल्यांकन के साथ जुड़ा है। उसके बाद कार्यनीति के क्रियान्वयन का कार्य आता है। कार्यनीतिक चुनाव में जिस प्रणाली का प्रयोग किया जाता है उसमें दीर्घकालीन उद्देश्यों की व्याख्या, विस्तृत कार्यनीति का निर्माण, अल्पकालीन उद्देश्यों की व्याख्या, क्रियातमक कार्यनीतियों की रूप-रेखा, कार्यनीतियों का संस्थानीकरण तथा कार्यनीतियों का पुरावलोकन और मूल्यांकन आता है। इससे कार्यनीतिक प्रक्रिया की कठोरता परिलक्षित (दिखाई) होती है जो दो बिन्दुओं पर आधारित है –
(a) फर्म की कार्यनीतिक रूपरेखा तथा पुनर्मूल्यांकन महत्वपूर्ण तत्वों के आधार पर किया जाता है जो कम्पनी की निष्पादन क्षमता को निर्धारित करते हैं। कम्पनी की कार्यनीतिक योजना का पुनः आकलन आवश्यक है क्योंकि बहुत से ऐसे परिवर्तन होते हैं जैसे संचालक की मृत्यु, मुख्य अधिशाससी के स्थान पर दूसरे अधिशासी का आना, बाजार में गिराव आना या किसी शक्तिशाली प्रतियोगी का बाजार में प्रवेश करना, आदि ऐसे कारण हैं। प्रबन्ध तथा कार्यनीतिक प्रबन्ध प्रक्रिया का प्रारम्भ ध्येय विवरणों के साथ होता है जहाँ पर मूल्य ध्येयों में पुनः मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।
(b) कार्यनीतिक प्रबन्ध प्रक्रिया के प्रत्येक हिस्से में नियोजन का कार्य करते समय पूरी सावधानी की आवश्यकता पड़ती है। वे फर्मे जो पूर्ण रूप से स्थायी वातावरण में कार्य करती है उन्हें हर पाँच वर्ष बाद गहराई से मूल्यांकन करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। औपचारिक रूप से हर पाँच वर्ष बाद उनमें कार्यनीतिक नियोजयन की आवश्यकता नहीं होती। कुछ विशेषज्ञ कार्यनीतिक नियोजन के लिए अस्थायी समय की वकालत करते हैं ताकि क्रियाओं को जारी रखा जा सके। बहुत ही कम कम्पनियाँ ऐसी होती है जो अपने मूल ध्येय विवरणों के साथ संतुष्टि रखती हैं।
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अनुकरण की आवश्यकता-
कार्यनीतिक प्रबन्ध प्रक्रिया में संस्थागत आधार पर अनुकरण की आवश्यकता पड़ती है। कार्यनीतिक प्रक्रियाओं का प्रारम्भिक अवस्स्था में पुरावलोकन तथा मूल्यांकन करना पड़ता है। अनुकरण की प्रक्रिया क्रियान्वयन के बाद की जाती है, जिसमें आवर्त (input) के आधार पर विस्तार किया जा सके। कार्यनीतिक प्रबन्धकों से आशा की जाती है कि वे क्रियान्वित कार्यनीति के परिणामों का बाहरी वातावरण पर अवलोकन (मूल्यांकन) करें ताकि भावी योजनाओं में कार्यनीतिक प्रक्रियाओं द्वारा अनुमानों के आधार पर परिर्वतनों का समावेश किया जा सके। उन्हें चाहिए कि वे कार्यनीतियों के परिणामों का आकलन तथा विश्लेषण करें ताकि कम्पनी के ध्यये में सम्भावित सुधारों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
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कार्यनपीतिक प्रबन्ध एक गतिशील प्रक्रिया है-
गतिशीलता के अंतर्गत लगातार बदलती हुई परिस्थितियों में आपसी सम्बन्धित तथा एक-दूसरे पर आधारित कार्यनीतिक क्रियाओं को प्रभावित करना। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि प्रबन्धक इस बात पर ध्यान दें कि कार्यनीतिक प्रक्रिया के तत्वों/ हिस्से में लगातार परिवर्तन हो रहा है, जबकि अधिकतर योजनाएँ बदलती हुई परिस्थियों के कारण पुरानी पड़ गयी हैं तथा कम्पनी में आन्तरिक एवं बाहरी परिस्थितयों में परितर्वन से क्रियाओं (कार्य-कलापों) में जमाव आ गया है। वास्तव में, परिवर्तन लगातार होते हैं जिसमें गतिशील कार्यनीतिक नियोजन प्रक्रिया से आशा की जाती है कि तत्वों में हो रहे लगातार महत्वपूर्ण परिवर्तनों पर ध्यान रखें ताकि पुरानी पड़ गयी कार्यनीतियों एवं रूकावटों को क्रियान्वयन के समय दूर किया जा सके।
व्यूहरचनात्मक प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक
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- लक्ष्य का अर्थ एवं परिभाषा | लक्ष्य निर्धारण का महत्व | प्रभावी लक्ष्यों की विशेषताएँ | ध्येय विवरण में सम्मिलित बातें
- दीर्घकालीन उद्देश्यों के महत्व | दीर्घकालीन उद्देश्यों के निर्धारण के महत्व
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