व्यूहरचनात्मक प्रबंधन / Strategic Management

लक्ष्य का अर्थ एवं परिभाषा | लक्ष्य निर्धारण का महत्व | प्रभावी लक्ष्यों की विशेषताएँ | ध्येय विवरण में सम्मिलित बातें

लक्ष्य का अर्थ एवं परिभाषा | लक्ष्य निर्धारण का महत्व | प्रभावी लक्ष्यों की विशेषताएँ | ध्येय विवरण में सम्मिलित बातें | Meaning and definition of target in Hindi | Importance of Goal Setting in Hindi | Characteristics of Effective Goals in Hindi | Things included in the mission statement in Hindi

ध्येय या लक्ष्य का अर्थ एवं परिभाषा

लक्ष्य या ध्येय वे अंतिम परिणाम होते हैं जिनकी प्राप्ति के लिये किसी उपक्रम की समस्त क्रियाएँ की जाती है। व्यूह रचना सम्बन्ध (Strategic managements) प्रक्रिया का प्रारम्भ ही लक्ष्य निर्धारण के साथ होता है। जब एक बार मिशन का निर्धारण हो जाता है तो इसी के अनुरूप लक्ष्य निर्धारण हो जाता है और रामस्त क्रियाएँ लक्ष्य को आधार मान कर की जाती हैं। विभिन्न विद्वानों ने लक्ष्य को निम्न शब्दों में परिभाषित किया है-

पीटर एफ० ड्रकर के अनुसार, “लक्ष्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में व्यावसायिक उपक्रम के संचालन हेतु आवश्यक उपकरण हैं इनके अभाव में उड़ान निष्प्रयोजन हो जाती है क्योंकि मांग विधि के लिये न तो संकेत चिन्ह होते हैं और न कोई पूर्वपरिचित मार्ग होगा।”

ब्रूम के अनुसार, “ध्ययों को भावी क्रिया व्यवहारों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

अतः हम कह सकते हैं कि लक्ष्य या ध्येय वे आधारभूत योजनाएँ हैं जो किसी उपक्रम के अंतिम परिणामों को निर्देशित करती हैं। किसी भी उपक्रम को भविष्य में क्या करना है इसका निर्धारण लक्ष्य कहलाता है। सभी संगठनों में जो भी क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं वे इन्हीं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये की जाती हैं। व्यवहार में विभिन्न संगठनों में एक से अधिक लक्ष्य हो सकते हैं तथा संगठन क्रिया इन्हें प्राप्त करने के लिये की जाती है।

लक्ष्य निर्धारण का महत्व-

उपर्युक्त विवेचन से यह ज्ञात होता है कि लक्ष्य निर्धारण के पश्चात ही किसी संगठन की क्रियाएँ लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सम्पन्न की जाती हैं। अतः किसी भी संगठन के लिये लक्ष्यों का निर्धारण अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। बिना लक्ष्य निर्धारण के कोई भी क्रिया का कोई महत्व नहीं होता है। अतः किसी भी संगठन के लिये लक्ष्य निर्धारण का  निम्नलिखित महत्व है-

(1) इससे कम्पनी या संगठन के दीर्घकालीन नियोजन के लिये आवश्यक आधार प्राप्त होता है।

(2) लक्ष्य निर्धारण से संगठन के अधिकारियों के विकेन्द्रित निर्णयन में स्थायित्व आता है।

(3) लक्ष्य निर्धारण के पश्चात् बहुत से जटिल निर्णय स्वतः ले लिये जाते हैं।

(4) लक्ष्य निर्धारण के पश्चात् संगठन के कार्यकर्ताओं को एक उचित एंव ठोस आधार मिलता है तथा उन्हें कार्य करने की दिशा प्राप्त हो जाती है।

(5) लक्ष्य निर्धारण के पश्चात् सम्पूर्ण संगठन के कार्य निष्पादन में सुधार आता है क्योंकि उसे अपने लक्ष्यों का ज्ञान होता है।

(6) लक्ष्य निर्धारण के पश्चात् संगठन से अनिश्चितता तथा अस्पष्टता की समाप्ति होती है। क्योंकि समस्त क्रियाएँ एवं प्रयास लक्ष्यों की ओर केन्द्रित होते हैं। परिणामस्वरूप संगठन की अन्य समस्याओं का समाधान भी आसानी से हो जाता है।

(7) लक्ष्य निर्धारण से संगठन में कार्यरत लोगों को इस बात का ज्ञान हो जाता है कि वास्तव में संस्था को उनसे आशाएँ हैं।

(8) लक्ष्य निर्धारण द्वारा उपलब्धियों का ज्ञान होता है।

(9) लक्ष्य निर्धारण के लिये स्पष्ट प्रमाप उपलब्ध कराता है लक्ष्य से नियंत्रण में सहायता मिलती है। यदि व्यक्ति अपनी योजनाओं से विचलित होता है तो लक्ष्य संगठन में नियंत्रण में वृद्धि को अनुमति भी देते हैं।

प्रभावी लक्ष्यों की विशेषताएँ अथवा ध्येय विवरण में सम्मिलित बातें-

प्रभावी लक्ष्यों की निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिये-

  1. विशिष्टता- यह विशिष्ट होते हैं। प्रभावी लक्ष्य यह स्पष्ट करते हैं कि कौन सा कार्य कितने समय में करना है और उसकी गुणवत्ता क्या होगी। प्रभावी लक्ष्यों के निर्धारण से कार्य- निष्पादन में विशिष्टता आती है।
  2. स्वीकृति- प्रभावी लक्ष्यों में सामान्य स्वीकृति की विशेषता पायी जाती है अर्थात् यह संगठन में प्रत्येक स्तर पर स्वीकार कर लिये जाते हैं जिससे संगठन के लोगों को अधिक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं और उनमें ज्ञान का विकास होता है। प्रबन्धकों को लक्ष्य निर्धारण में संगठन के अधीनस्थों का भी सहयोग लेना होता है। अतः लक्ष्यों के निर्धारण में सामान्य स्वीकृति की विशेषता होने पर इन्हें और आसानी से निर्धारित किया जा सकता है।
  3. आवश्यकता- लक्ष्य एक प्रकार से संगठन की प्राथमिक आवश्यकता होती है क्योंकि लक्ष्य निर्धारण के बिना कोई भी संगठन अपने कार्य को सम्पादित नहीं कर सकता है। लक्ष्य निर्धारण के पश्चात् अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये समस्त संगठन की ओर से प्रयास किये जाते हैं। अतः कार्य निष्पादन के लिये लक्ष्यों का निर्धारण आवश्यक होता है।
  4. पुनरावलोकन तथा प्रतिपुष्टि- प्रभावी लक्ष्यों में प्रतिपुष्टि एवं पुनरावलोकन की विशेषता होना चाहिये। इससे लक्ष्यों को मापने की विधि का ज्ञान होता है। प्रतिपुष्टि से इस बात का ज्ञान होता है कि लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये किस स्तर तक प्रयास किये गये हैं और कितना प्रयास और किया जाना चाहिये।
  5. चुनौतीपूर्ण- लक्ष्य सदैव चुनौतीपूर्ण होते हैं। किसी भी संगठन में जो लक्ष्य निर्धारण किये जाते हैं उन्हें शतप्रतिशत हासिल करने की चुनौती सदैव संगठन के समक्ष रहती है। एक अच्छा प्रवन्ध लक्ष्यों का निर्धारण कुछ इस प्रकार करता है कि उनकी प्राप्ति उपलब्ध संसाधनों से हो सके।
  6. वास्तविक लक्ष्य सदा वास्तविकता की विशेषता धारण किए हुए होनी चाहिए। एवं वास्तविक नहीं होनी चाहिए क्योंकि वास्तविक लक्ष्यों की पूर्ति संभव नहीं होती है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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