व्यूहरचनात्मक प्रबंधन / Strategic Management

व्यूहरचना की परिभाषा | व्यूहरचना की परम्परागत विचारधारा | व्यूह रचना की विशेषता | अच्छी कूटनीति के गुण या महत्व

व्यूहरचना की परिभाषा | व्यूहरचना की परम्परागत विचारधारा | व्यूह रचना की विशेषता | अच्छी कूटनीति के गुण या महत्व | Definition of Strategy in Hindi | Professional ideology of strategy in Hindi | The specialty of formation of array in Hindi | qualities or importance of a good job in Hindi

व्यूहरचना की परिभाषा (Definition of Strategy)

Strategy शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘Strategoes’ शब्द से हुआ है जिसका अर्थ होता है सेनापतित्व अर्थात् अपने लक्ष्य को बेधने के लिये सेना की सही दिशा। अतः कूटनीति शब्द को साधारण शब्दों में ‘सेनापति की कला’ अथवा ‘सेना को मार्गदर्शित करने की कला’ के रूप में। परिभाषित किया जा सकता है।

व्यापार की दृष्टि से व्यूहरचना (कूटनीति या रणनीति) (Strategy) को विभिन्न विद्वानों तथा प्रबन्ध गुरुओं की विचारधाराओं के आधार पर विभिन्न अर्थों में परिभाषित किया गया है। कूटनीतिक निर्णय लेते समय प्रबन्धकों को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना पड़ता है जो निम्न मामलों से सम्बन्धित होते हैं जैसे-

(1) प्रतियोगिता का सामना कैसे किया जाये,

(2) संगठन का विस्तार कब किया जाये,

(3) किस स्थिति में संगठन का विस्तार किया जाये अथवा किसी एक विषय पर विशेष ध्यान दिया  जाये,

(4) स्थायित्व के क्या उपाय किये जायें।

एक स्थापित कम्पनी पूर्व काल में एक सफल तथा लाभदायी कम्पनी हो सकती है। यह कम्पनी वर्तमान में विभिन्न विपरीत परिस्थितियों की शिकार हो सकती है। नये-नये प्रतियोगियों के कारण उसकी सफलता को कुछ खतरा हो सकता है जिसके कारण कम्पनी प्रबन्ध को अपनी रणनीति बदलने पर बाध्य होना पड़ सकता है और उस पर पुनः विचार करना पड़ सकता है। यही भविष्य की रणनीति व्यापारिक कूटनीति कहलाती है। पुनर्विचार की रणनीति एवं वातावरणीय विश्लेषण से व्यावसायिक वातावरण में नयी-नयी सम्भावनाओं का पता चलता है। यह ऐसी सम्भावनाएं होती हैं जिनके सम्बन्ध में कम्पनी प्रबन्ध को पूर्व में ज्ञात नहीं था अथवा वातावरण में होते हुए भी इन सम्भावनाओं पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया था। इन नवीन सम्भावनाओं का लाभ उठाने के लिये कम्पनी प्रबन्ध को अपनी सोच तथा रणनीति में परिवर्तन करना होता है ताकि नयी सम्भावनाओं का लाभ कम्पनी को प्राप्त हो सके। कभी-कभी इसके लिये कम्पनी को अपने कार्य करने का तरीका तक बदलना होता है। उपर्युक्त रणनीति को ही हम कूटनीति (Strategy) कह सकते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि नवीन सम्भवनाओं की तलाश कर उनसे कम्पनी को लाभ पहुंचाने के लिये तैयार की जाने वाली रणनीति व्यापार की दृष्टि से ‘कूटनीति’ (Strategy) कहलाती है।

“किसी संस्था के प्रारम्भिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु तैयार की गयी पूर्व विस्तृत एवं एकरूप योजना व्यापार की दृष्टि से कूटनीति कहा जाता है।”

व्यूहरचना की परम्परागत विचारधारा (Traditional Concept)

व्यूहरचना / कूटनीति (Strategy) के सन्दर्भ में माइकल पोर्टर के निम्न विचार महत्पवूर्ण हैं। उनके विचार में कूटनीति सामान्य प्रबन्ध तंत्र का हृदय होती है। उनका माना है कि 18वीं सदी में एशिया तथा जापान की विभिन्न कम्पनियों की सफलता को देखकर अन्य देशों की कम्पनियों ने भी उनका अनुसरण करते हुए अपनी उत्पाद की लागत को कम करने, गुणवत्ता बढ़ाने तथा कार्यशैली को और विस्तृत करने का प्रयास किया। अतः इस प्रकार अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये समय-समय पर बनायी जाने वाली रणनीति व्यापार में Strategy कहलाती है।

उपर्युक्त विश्लेषण से हम कह सकते हैं कि कूटनीति (Strategy) में निम्न तत्व शामिल है-

(1) एक योजना कार्यप्रणाली एवं निर्णय जो कि एक विशेष दशा को आधार बनाकर तैयार की गयी हो अथवा लिया गया है।

(2) उपर्युक्त कम्पनी के कार्यों से सम्बन्ध रखता है।

(3) यह वर्तमान में तैयार किया गया वह प्लान हो जिसके जरिये कम्पनी भविष्य में उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करती है।

(4) यह सदैव अनिश्चित भविष्य के सम्बन्ध में होती है।

(5) यह सदैव वर्तमान संसाधनों तथा भविष्य की आव यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है।

निष्कर्ष- उपर्युक्त विश्लेष से स्पष्ट है कि कार्यनीति की आधुनिक परिभाषा अधिक विस्तृत एवं सामयिक है। अतः यह अधिक महत्वपूर्ण है।

अच्छी कूटनीति या व्यूह रचना या रणनीति की विशेषता या गुण या महत्व (Importance) –

अच्छी कूटनीति की निम्न विशेषताएँ या महत्व होती हैं-

  1. वातावरण के अनुरूप – कूटनीति किसी भी फर्म को उसके वातावरण के अनुरूप ढालने में सहायक होती है। मुख्य रूप से किसी भी फर्म को उसके उद्देश्यों की प्राप्ति में फर्म को बाह्य वातावरण अत्यधिक प्रभावित करता है। वातावरण सदैव किसी संस्था को अपनी कार्यप्रणाली परिवर्तित करने के लिये बाध्य करता रहता है। कोई भी फर्म अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में तभी सफल हो सकती है जबकि वह अपने बाह्य वातावरण के अनुसार नीति निर्धारण करे क्योंकि विपरीत वातावरण में कोई भी संस्था अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं सकती है। अतः (Strategy) किसी संस्था को उसके वातावरण के अनुरूप ढालने कार्य करती है।
  2. यह कारकों (Factors) को संगठित करती है- Strategy या नीति संस्था के बाह्य एवं आंतरिक कारकों को संगठित करने का कार्य करती है। चूँकि नीतियाँ संस्था को इसके वातावरण के अनुसार ढालने में सहायक होती हैं। अतः संस्था का प्रबन्ध तंत्र अपने आंतरिक वातावरण पर भी विशेष ध्यान देता है क्योंकि प्रत्येक संस्था की अपनी कुछ न कुछ कमजोरियाँ अवश्य होती हैं जिन्हें दूर करना उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक होता है।
  3. नीति परिवर्तनशील है- नीति सदैव वातावरण के आधार पर तय की जाती है। व्यावसायिक वातावरण चाहे वह आंतरिक हो या बाहा, प्रबन्धतंत्र के नीति निर्धारण क्षमता को प्रभावित करता है। अतः हमें नीतियों के स्थायी रहने की कल्पना नहीं करनी चाहिये। नीतियाँ व्यावसायिक वातावरण के अनुसार परिवर्तनीय होती है और कोई भी व्यवसाय तब तक सफल नहीं होता जब तक वह अपने आपको व्यावसायिक वातारण के अनुसार परिवर्तन करने में सक्षम न हो।
  4. भविष्य दृष्टा- नीतियों के निर्धारण में वर्तमान की अपेक्षा भविष्य पर अधिक ध्यान दिया जाता है। कोई भी संस्था अपने भविष्य के लिये स्थापित उद्देश्यों को किस प्रकार हासिल कर सकती है इस बात पर ध्यान नीति निर्धारण के समय अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। अतः यह कहना उचित ही होगा कि नीतियाँ भविष्य में आने वाले उतार-चढ़ावों को देखते हुए बनायी जाती हैं।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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