व्यूहरचनात्मक प्रबंधन / Strategic Management

पर्यावरणीय परीक्षण से आशय | पर्यावरणीय परीक्षण आवश्यकता | वातावरणों का विभाजन एवं रणनीति निर्माण में पर्यावरणीय अवलोकन | पर्यावरण परीक्षण की भूमिका

पर्यावरणीय परीक्षण से आशय | पर्यावरणीय परीक्षण आवश्यकता | वातावरणों का विभाजन एवं रणनीति निर्माण में पर्यावरणीय अवलोकन | पर्यावरण परीक्षण की भूमिका | Meaning of Environmental Testing in Hindi | Environmental Testing Requirement in Hindi | Division of environments and environmental observation in strategy making in Hindi | Role of Environmental Testing in Hindi

पर्यावरणीय परीक्षण / जाँच से आशय

(Meaning of Environmental Scanning)

व्यूहरचना का निर्माण करते समय पर्यावरण के विभिन्न घटकों का मूल्यांकन एवं विश्लेषण करना चाहिए। इनका व्यवसाय के लाभों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और भविष्य में क्या प्रभाव पड़ेगा। इस बात का विश्लेषण एवं अध्ययन करना होता है। व्यवसाय के सम्पूर्ण वातावरण का अध्ययन करके प्रतिस्पर्धात्मक पहलुओं की विरुद्ध सुदृद उपायों का निर्माण किया जा सकता है। विश्लेषण एवं मूल्यांकन की इस पद्धति को पर्यावरणीय जाँच या परीक्षण कहते हैं।

पर्यावरणीय परीक्षण या वातावरणीय मूल्यांका एवं विश्लेषण की आवश्यकता-

व्यूह रचना को सफल बनाने के लिये वातावरणीय मूल्यांकन या पर्यावरणीय अवलोकन की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है-

(1) व्यूह रचना या रणनीति को सफल बनाने के लिये संगठन के आर्थिक, राजनीतिक, तकनीकी वातावरण का अध्ययन कर लेना आवश्यक होता है और व्यूह रचना का निर्माण भी इन वातावरणों के अनुरूप ही किया जाना चाहिये अन्यथा संगठन को हानि होने की सम्भावना बनी रहती है।

(2) रणनीति को सफल बनाने के लिये यह आवश्यक होता है कि आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक दशाओं के दूरगामी प्रभावों तथा दुष्प्रभावों का पहले से ही मूल्यांकन कर लिया जाये। वातावरण के विभिन्न घटकों का मूल्यांकन तथा विश्लेषण करने के पश्चात् ही किसी भी संगठन को अपनी दीर्घकालीन व्यूह रचनाओं का निर्माण करना चाहिये। योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिये बदलते हुए व्यावसायिक वातावरण का प्रभावी विश्लेषण करना आवश्यक होता है।

(3) नये उत्पाद तकनीक एवं डिजाइन की जानकारी के लिये समाज की वैधानिक प्रगति की जानकारी की आवश्यकता होनी चाहिये। किसी उत्पाद के लिये जन मानस की पसन्द और नापसंद की जानकारी होनी चाहिये। अतः इसके लिये सामाजिक वातावरण का अध्ययन आवश्यक होता है।

(4) ग्राहकों की आर्थिक स्थिति का ज्ञान भी आवश्यक होता है ताकि संगठन द्वारा बाजार में उतारें गये उत्पाद सामान्य जनमानस की आय के अनुरूप हों, अतः समाज के आर्थिक वातावरण पर भी ध्यान रखना आवश्यक होता है।

(5) राजनैतिक वातावरण वर्तमान में अत्यन्त महत्वपूर्ण है और व्यवसायी को व्यूह रचनाओं का निर्माण करने से पूर्व देश तथा अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य से होने वाले लाभों तथा हानियों को ध्यान में रखकर राजनैतिक वातावरणीय का मूल्यांकन एवं विश्लेषण करना चाहिये।

अतः हम कह सकते हैं कि व्यूह रचना का निर्माण करते समय वातावरण के विभिन्न घटकों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन तथा विश्लेषण करना चाहियें तथा इनका व्यवसाय के लाभों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और भविष्य में इनका क्या प्रभाव होगा। सभी बातों का विश्लेषण तथा मूलयांकन अति आवश्यक है अन्यथा संगठन को लाभ के स्थान पर हानि की संभावना बनी रहती है। व्यवसाय के सम्पूर्ण वातरण का अध्ययन कर प्रतिस्पद्धियों की व्यूह रचनाओं के विरुद्ध सुदृढ़ उपायों का निर्माण किया जा सकता है। प्रतिद्वंद्वियों को उत्पादों, तकनीकों, लागत संरचना, बाजार व्यूह रचना, वितरण शृंखला तथा विक्रय विधियों का अध्ययन कर अपने उत्पाद की बिक्री की सम्भावनाओं को स्थायी रखा जा सकता है।

वातावरणों का विभाजन एवं रणनीति निर्माण में पर्यावरणीय अवलोकन या पर्यावरण परीक्षण की भूमिका-

व्यावसायिक वातावरण या पर्यावरणीय अदलोकन को हम अध्ययन की सुविधा के अनुसार निम्न भागों में विभाजित कर इनकी भूमिका का मूल्यांकन कर सकते हैं-

  1. भौतिक वातावरण- किसी व्यवसाय को संचालित करने का सबसे महत्वपूर्ण आधार भौतिक वातावरण ही होता है। भौतिक वातावरण का तात्पर्य प्राकृतिक वातावरण से लगाया जाता है व्यवसाय का प्राकृति से गहरा सम्बन्ध होता है और प्राकृतिक दशाओं के अनुरूप ही किसी व्यवसाय का संचालन होना चाहिये। भौतिक वातावरण के विरुद्ध व्यवसाय का संचालन सदैव अहितकर ही होता है। अतः इनकी भूमिका किसी भी व्यवसाय के लिए परिहार्य होती है। भौतिक वातावरण में निम्न घटकों का समावेश होता है।

(अ) संसाधन- संसाधन का आशय उन संसाधनों से है जो हमें प्रकृति द्वारा प्रदान किये जाते हैं, जैसे- भूमि, खनिज, जल, पर्यावरण आदि। संसाधन सदैव से ही सीमित रहे हैं। अतः किसी भी व्यवसाय के लिये यह संसाधन अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। प्रत्येक व्यवसायी को किसी भी संगठन की व्यूह रचना करते समय प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता का गहरायी से अध्ययन तथा विश्लेषण कर लेना चाहिये।

(ब) जलवायु- किसी भी उद्योग के सफल संचालन के लिये अनुकूल जलवायु का होना आवश्यक होता है। प्रतिकूल जलवायु में उद्योगों की सफलता सदैव संदेह के घेरे में रहती है। अतः किसी भी उद्योग के संचालन की व्यूह रचना का निर्माण करने से पूर्व जलवायु का उस पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन एवं विश्लेषण आवश्यक होता है।

(स) आधारभूत ढाँचा- आधारभूत ढाँचा से आशय क्षेत्र के विकास से लगाया जा सकता है। कोई भी उद्योग तभी सफल हो सकता है जब वह ऐसे क्षेत्र में लगाया जाये जहाँ जल, विद्युत, सड़क तथा संचालन सेवाओं का विकास हुआ हो किसी भी उद्योग के लिए उपर्युक्त आधारभूत ढाँचा अति आवश्यक होता है।

(द) ऊर्जा- ऊर्जा के स्रोत किसी व्यसाय के मूल आधार होते हैं। वर्तमान युग में इसके अभाव में कोई भी उद्योग तरक्की नहीं कर सकता, अतः व्यावसायिक व्यूह रचना का निर्माण करने से पूर्व ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता का गहराई से अध्ययन एवं विलेषण करना चाहिये।

(य) लोकोपयोगी सेवाएँ- आम नागरिकों के लिये सरकार द्वारा उपलब्ध लोकोपयोगी सेवाओं का प्रभाव किसी उद्योग के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण होती हैं। लोकोपयोगी सेवाएँ जितनी अच्छी होंगी उस क्षेत्र का विकास भी उतना ही अच्छा होगा, अतः संचार, परिवहन, टेलीफोन,

आकाशवाणी, दूरदर्शन जैसी लोकोपयोगी सेवाओं की उपलब्धता का अध्ययन भी आवश्यक होता है।

(र) पर्यावरण- पेड़, पौधे, वायु, रोशनी आदि पर्यावरण के तत्व हैं तथा यह प्रकृति द्वारा हमें निःशुल्क प्रदान किये जाते हैं। इनकी उपलब्धता का अध्ययन एवं विश्लेषण भी व्यूह रचना के समय आवश्यक होता है।

  1. आर्थिक वातावरण- किसी भी उद्योग को यदि तत्व सबसे अधिक प्रभावित करता है। तो वह आर्थिक वातावरण, प्रत्येक व्यावसायिक संस्था राष्ट्र के आर्थिक वातावरण का एक अंग होती है। आर्थिक वातावरण सामान्यतः उन बाह्य शक्तियों से सम्बन्धित है जिनका व्यवसाय पर प्रत्यक्ष आर्थिक प्रभाव होता है। आर्थिक वातावरण के घटक निम्न हैं-

(अ) आर्थिक दशाएँ- किसी भी देश की व्यावसायिक प्रगति को उस देश की आर्थिक दशाएँ प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। आर्थिक दशाओं से हमारा तात्पर्य देश की अर्थव्यवस्था की प्रकृति है, आर्थिक विकास का स्तर विदेशी व्यापार तथा वाणिज्यिक गतिविधियों का स्तर बचत, मुद्रा आपूर्ति व्याज की दर आदि से सम्बन्धित दशाएँ। अतः उद्योग की स्थापाना के लिये व्यूह रचना करने से पूर्व देश की आर्थिक दशाओं का विशलेषण आवश्यक होता है।

(ब) आर्थिक नीतियाँ- किसी देश की आर्थिक नीतियों के अनुसार ही उस देश की व्यावसायिक क्रियाओं का संचालन किया जाता है। एक विकासशील अर्थव्यवस्था में आर्थिक नीतियों का निर्धारण कर समानता, रोजगार, सृजन, गरीबी, नियंत्रण साधनों का अनुकूलतम आवंटन तथा मुद्रा स्फीति और संकुचन पर नियंत्रण किया जा सकता है। देश की आर्थिक नीतियाँ किसी भी उद्योग को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं अतः इनका विश्लेषण व्यूह रचना के लिये अति आवश्यक है।

  1. सामजिक वातावरण- सामाजिक वातावरण से हमारा तात्पर्य समाज की उन मान्यताओं से है जिनका पालन समाज का प्रत्येक व्यक्ति करता है। समाज की मान्यताएँ, मूल्य, विश्वास तथा जीवन शैली इसके मूल तत्त्व हैं। कोई भी व्यवसाय समाज के मूल्यों, विश्वासों, मान्यताओं तथा जीवनशैली की अवहेलना नहीं कर सकता है। व्यवसाय का संचालन सदैव इन्हीं सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुरूप किया जाता है। व्यवसाय भी समाज का ही अंग होता है और समाज उसे विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रत्येक व्यवसायी समाज की पसन्द एवं प्राथमिकताओं और विचारों के संसार में रहकर कार्य करना होता है। अतः वहीं इनकी उपेक्षा नहीं कर सकता है। अतः व्यवसाय के लिये व्यूह रचना का निर्माण करते समय हमें सामाजिक वातावरण का विशेष रूप से अध्ययन एवं विश्लेषण कर लेना चाहिये।
  2. राजनैतिक वातावरण- राजनैतिक एवं प्रशासनिक क्रियाएँ व्यावसायिक क्रियाओं को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक परिवेश उद्योगों व व्यवसाय का नियंत्रणकारी घटक होता है। व्यावसायिक नीतियों का निर्धारण राजनैतिक एवं प्रशासनिक ढाँचे के भीतर ही किया जा सकता है। अतः किसी व्यवसाय के लिये व्यूह रचना करते समय देश की राजनीतिक स्थिति, नीति तथा प्रशासनिक ढाँचे का अध्ययन एवं विश्लेषण आवश्यक होता है।
  3. वैधानिक वातावरण- प्रत्येक देश की अपनी वैधानिक व्यवस्था होती है और वैधानिक व्यवस्था के अनुसार ही देश का नियन्त्रण किया जाता है। व्यवसाय को भी सदैव वैधानिक नियंत्रणों एवं संवैधानिक सीमाओं में रहकर कार्य करना होता है। देश के व्यवसाय पर राजकीय एवं केन्द्रीय नियमों का नियंत्रण होता है। कानून व्यवसाय की आत्मा कहा जाता है और वैधानिक व्यवहार को व्यावसाय की शक्ति कहा जाता है। कानूनी नियंत्रणों से व्यावसायिक प्रदूषणों पर रोक लगती है और व्यवसाय को सही दिशा मिलती है। हमारे देश में उद्योगों के नियन्त्रण के लिये बहुत से कानून बनाये गये हैं, जसै अनुबन्ध अधिनियम, वस्तु विक्रय अधिनियम, कारखाना प्रधिनियम, साझेदारी अधिनियम, कम्पनी अधिनियम, कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम दिवाला अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम आदि कोई भी व्यवसाय उपर्युक्त अधिनियमों की सीमाओं का उल्लंघन कर अपने व्यवसाय को संचालित नहीं कर सकता है। अतः उद्योग के लिये व्यूह रचना का निर्माण करते समय वैधानिक वातावरण का अध्ययन एवं विश्लेषण करना आवश्यक होता है।
  4. प्रौद्योगिक एवं तकनीकी वातावरण- वर्तमान व्यवसाय का स्वरूप वैज्ञानिक प्रगति, नवीनतम प्रौद्योगिकी तथा तकनीकी विकास का परिणाम है। स्वचालित यंत्रों, कम्प्यूटर, मानवयंत्र, प्रौद्योगिकी सुधार, मशीनीकरण आदि से उद्योग जगत् में क्रान्ति का श्रीगणेश हुआ है। नवीन तकनीक के जरिये व्यवसायों द्वारा नित नये-नये उत्पादों, डिजाइनो, किस्मों तथा उपयोगिताओं का निर्माण किया जा रहा है। तकनीक में सुधार के परिणामस्वरूप उद्योगों का विकास हुआ। नवीन तकनीक के माध्यम से कम लागत में अधिक उत्पाद सम्भव हुआ है। अतः किसी भी व्यवसाय की ओरव्यूह रचना सम्बन्धी निर्णय लेते समय देश में उपलब्ध तकनीकी तथा प्रौद्योगिकी का बारीकी से अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि रणनीति निर्माण में पर्यावरणीय अवलोकन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।

व्यूहरचनात्मक प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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