श्वेत क्रान्ति | White Revolution in Hindi
श्वेत क्रान्ति | White Revolution in Hindi
देश में दूध के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि को ‘श्वेत क्रान्ति’ के नाम से जाना जाता है। दूध का उत्पादन जो 1947 से 1970 के बीच लगभग न प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से मन्थर गति से बढ़ रहा था 1970 रपरान्त 8.8 प्रतिशत प्रतिवर्ष से अधिक की दर से बढ़ने लगा। 950-51 के 17 मिलियन मी० टन की तुलना में वर्ष 2012-13 में यह बढ़कर 132.43 मिलियन मी० टन पहुंच गया है (वृद्धि 679 प्रतिशत) जिसके कारण आज भारत विश्व में सबसे बड़ा दुग्धोत्पादक देश बन गया है। वर्तमान 7.9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर इसे वर्ष 2015-16 तक 160 मिलियन टन हो जाने की सम्भावना है।
आज देश में कुल 122,534 डेरी सहकारी समितियाँ हैं जिसके 129.64 लाख किसान सदस्य हैं एवं जिससे प्रतिदिन 216.91 लाख किग्रा० दूध इकट्ठा किया जाता है।
श्वेत क्रान्ति की शुरुआत जुलाई 1970 में वर्गीज कुरियन के निर्देशन में आपरेशन पलड- योजना के समारम्भ से हुई। इसके अन्तर्गत देश के 10 राज्यों में राष्ट्रीय डेरी विकास कार्यक्रम शुरू किए गये। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों से दूध इकट्ठा करने, उसके प्रसंस्करण, विपणन, पशु चारा व्यवस्था, पशु स्वास्थ्य सुविधाओं, कृत्रिम गर्भाधान एवं प्रसार सेवाओं हेतु आधारभूत सुविधाओं का विकास किया गया। इसी के अन्तर्गत मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता में मदर डेरियों की स्थापना की गयी ।
आपरेशन प्लड-I। (1979-85) के अन्तर्गत 485.5 करोड़ रुपये के व्यय से देश के लगभग एक करोड़ दुग्ध उत्पादकों को आच्छादित करने का प्रयास किया गया। इसके अन्तर्गत ग्राम, जनपद और राज्य स्तर पर एक त्रिस्तरी सहकारी व्यवस्था अपनायी गयी। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तकनीकी निवेशों (inputs) एवं प्रसंस्करण तथा विपणन की सुविधाओं को विकसित किया गया। साथ ही इस योजना के अन्तर्गत दुधारू पशुओं के लिए समुचित मात्रा में चारे की आपूर्ति, आवश्यक चरागाहों की व्यवस्था, पशु-रोगों पर नियंत्रण के लिए शोध कार्य, दूध की मात्रा बढ़ाने के उपाय, पशु चालकों को सुविधाएँ प्रदान करने, पशु-नस्ल सुधार के उपायों आदि की व्यवस्था की गयी । इसमें 136 संलग्न दूध शेड क्षेत्रों (155 जिलों) में दुग्ध उत्पादक संघों का समूह बनाया गया। हैदराबाद के शोध केन्द्र ने पशु रोगों के निवारण हेतु ‘रक्षा’ नामक टीके का विकास किया। इस कार्यक्रम के तहत दुग्ध वितरण व्यवस्था 144 और नगरों में विस्तारित की गयी।
आपरेशन फ्लड-III, जिसका समापन अप्रैल 1996 में हुआ है, के अन्तर्गत 94 लाख से अधिक किसान सदस्यों वाली देश की 73,300 डेरी समितियों को 173 दुग्ध शेडों के अंतर्गत संगठित किया गया। परिणामस्वरूप जुलाई 1997 में औसतन प्रतिदिन दूध की प्राप्ति बढ़कर 107.3 लाख किग्रा० एवं विपणन 112 लाख लीटर का हो गया। इस कार्यक्रम का ग्रामीण जन समुदाय पर अच्छा असर पड़ा जिससे लोग डेरी को एक पूरक व्यवसाय के तौर पर अपनाने लगे। इससे सीमान्त, लघु और भूमिहीन कृषकों (62 प्रतिशत से अधिक दुग्ध आपूर्ति) को एक भरोसे की नियमित आमदनी होने लगी। आपरेशन फ्लड-II में कुल 680 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च हुई और इससे देश के 250 जिले लाभान्वित हुए।
आपरेशन फ्लड कार्यक्रम की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए आनन्द, मेहसाणा एवं पालनपुर (बनासकांठा) में शोध केन्द्र, खोले गए हैं । इसके अलावा सिलीगुड़ी, जालंधर एवं इरोड में प्रादेशिक केन्द्र स्थापित किए गए हैं। वर्तमान में देश के 10 महानगरों में मेट्रो डेरियों के अलावा, 1 लाख लीटर से अधिक क्षमता वाले 40 संयंत्र, 1 लाख लीटर की क्षमता वाले 27 संयंत्र और 1 लाख लीटर क्षमता वाले 61 संयंत्र कार्यरत हैं। आनन्द ( गुजरात) एवं जलगाँव (महाराष्ट्र) से हावड़ा (प० बंगाल) को नियमित दूध की आपूर्ति की जा रही है। राष्ट्रीय डेरी ग्रिड द्वारा अधिक उत्पादन वाले क्षेत्रों से दूध और दुग्ध उत्पादों की नियमित आपूर्ति होती रहती है।
डेरी विकास में श्वेत क्रान्ति का वही महत्व है जो खाद्यान्नों के उत्पादन में हरित क्रान्ति का रहा है। इसकी सफलता मुख्यत: दुधारू पशुओं की नस्ल में सुधार और नयी प्रौद्योगिकी के अपनाये जाने पर आधारित है। ग्रामीण सहकारी समितियों की इसमें सक्रिय भागीदारी रही है।
भारतीय डेरी उद्योग का भविष्य नयी संभावनाओं से परिपूर्ण है। विश्व व्यापार में उदारवादिता से इसके उत्पादों की खपत विदेशी बाजारों में हो सकती है। भैंस के दूध के छेना, मोजाफेल्ला पनीर, लैक्टोज एवं लैक्टिक एसिड की मांग बढ़ रही है एवं इण्यिाना, अम्नुत इण्डस्ट्रीज, डालमिया, शील इण्टरनेशनल एवं मिल्क फूड जैसी कार्पोरेट फर्में इनके उत्पादन में रुचि ले रही हैं। सरकार अमूल मॉडल की कोआपरेटिव को देश के 60 प्रतिशत क्षेत्र पर फैलाने की कोशिश कर रही है।
गैर-ऑपरेशन फ्लड, पर्वतीय और पिछड़े क्षेत्रों में समेकित डेयरी विकास परियोजनाएं– वर्ष 2003-04 से प्रारम्भ इस योजना के अन्तर्गत अब तक कुल 367.62 करोड़ रुपए की लागत से 26 राज्यों एवं एक संघ शासित प्रदेश को शामिल करते हुए |177 जिलों सहित 71 परियोजनाओं को अनुमोदित किया गया तथा दिसम्बर 2010 तक 290.3 करोड़ रुपए की धनराशि जारी क गई। इन परियोजनाओं से दिसम्बर 2010 तक प्रतिदिन 10.24 लाख लीटर दूध की अधिप्राप्ति द्वारा 18,214 गांवों के 10.12 लाख कृषको को लाभ हुआ।
सहकारी समितियों को सहायता- वर्ष 2003-04 से प्रारम्भ इस योजना का उद्देश्य जिला स्तर पर रुग्ण डेयरी सहकारी यूनियनों और राज्य स्तर पर सहकारी संघों को पुनर्जीवित करना है। 10वीं पंचवर्षीय योजना में इस हेतु 130 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया था।
गहन डेयरी विकास कार्यक्रम– आठवीं योजना के दौरान प्रारम्भ किए गए गहन डेयरी विकास कार्यक्रम के प्रारम्भ से 99 योजनाओं को स्वीकृत किया जा चुका है। इसमें से 44 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 55 परियोजनाएं क्रियान्वयन के अधीन हैं। 31 दिसम्बर, 2011 तक कुल 588.26 करोड़ रूपए के परिव्यय से 27 राज्यों के 229 जिलों एवं एक संघ शासित प्रदेश को शामिल किया गया| इन परियोजनाओं से प्रतिदिन 22.06 लाख लीटर दूध की अधि- प्राप्ति तथा 18.12 लाख लीटर दूध प्रतिदिन के विपणन द्वारा विभिन्न राज्यों के 29,357 गांवों के 19.41 लाख कृषकों को लाभ हुआ।
शुद्ध एवं गुणवत्तायुक्त दूध उत्पादन के लिए मूलभूत ढांचे को सुदृढ़ बनाना-इस योजना की शुरुआत वर्ष 2003-04 में की गई। इसका मुख्य उद्देश्य देश में ग्राम स्तर पर कच्चे दूध की गुणवत्ता को सुधारना है। यह योजना राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों के शत-प्रतिशत अनुदान सहायता के आधार पर कार्यान्वित की जाती है। इस योजना के अन्तर्गत दुग्ध उत्पादकों को दूध उत्पादन के प्रशिक्षण की सहायता दी जाती है। इस योजना के अन्तर्गत 31 दिसम्बर, 2011 तक कुल 277.83 करोड़ रुपए की लागत के साथ 158 परियोजनाएं स्वीकृत की गईं एवं इससे 6.22 लाख किसान लाभान्वित हो चुके हैं।
डेयरी उद्यमशीलता विकास योजना- डेयरी उद्योग में निवेश को बढ़ावा देने के लिए पूर्व डेयरी उद्यम पूंजीगत निधि योजना के स्थान पर 1 सितम्बर, 2010 से डेयरी न क्षेत्र उद्यमशीलता विकास योजना प्रारम्भ की गई है। यह योजना नाबार्ड के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत 31 दिसम्बर, 2011 तक नाबार्ड को 108.4 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई। इसमें से 30 नवम्बर, 2011 तक 19,927 डेयरी यूनिटों की सहायता स्वीकृत की गई।
श्वेत क्रांति की उपलब्धियां
भारत में दूध के संदर्भ में श्वेत क्रांति का वही महत्व है, जो कृषि के संदर्भ में हरित क्रांति का है। श्वेत क्रांति की महत्वपूर्ण उपलब्धियां निम्नलिखित हैं:
- श्वेत क्रांति के परिणामस्वरूप भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया है।
- 1970 में श्वेत क्रांति से पहले भारत में दूध का कुल उत्पादन केवल 22 मिलियन टन था, जो 2008-09 में 108.5 मिलियन टन हो गया। अर्थात इस अवधि में दूध के उत्पादन में लगभग पांच गुना वृद्धि हुई।
- प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता भी 1970-71 में 112 ग्राम से बढ़कर 2008-09 में 258 ग्राम हो गई। अर्थात् इस अवधि में प्रति व्यक्ति दूध दो गुना से भी अधिक हो गया।
- दूध का उत्पादन बढ़ जाने से दूध तथा दुग्ध उत्पादों का आयात लगभग नगण्य हो गया है।
- छोटे एवं सीमांत किसानों तथा भूमिहीन श्रमिकों को इससे विशेष लाभ हुआ है। ‘ऑपरेशन फ्लड’ के अंतर्गत उपलब्ध दूध का लगभग दो-तिहाई भाग छोटे सीमांत तथा भूमिहीन किसानों से लिया जाता है।
- डेयरी उद्योग के संरचनात्मक ढांचे का विस्तार एवं आधुनिकीकरण किया गया है। दूध उत्पादन के क्षेत्रीय एवं मौसमी असंतुलन को दूर करने के लिए ‘मिल्क ग्रिड’ को स्थापित किया गया है और इसे सुचारू रूप से चलाया जा रहा है।
- ‘ऑपरेशन फ्लड’ की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए गुजरात के आनन्द, मेहसाणा तथा पालनपुर में शोध केंद्र स्थापित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त सिलीगुड़ी, जालंधर तथा इरोड़ में क्षेत्रीय केंद्रों की स्थापना की गई है।
- फरवरी 2006 से पशुधन बीमा योजना शुरू की गई है, जिसके अंतर्गत पशुओं की आकस्मिक मृत्यु होने पर किसान की क्षतिपूर्ति की जाती है।
- दुधारू पशुओं का अनुवांशिक सुधार संकर प्रजनन द्वारा सभव हो सका है।
श्वेत क्रांति की समस्याएं
जहां पर श्वेत क्रांति के अंतर्गत भारत ने दुग्ध उत्पादन में इतनी उन्नति की है और इस व्यवसाय को बहुत सुविधाए भी प्राप्त हैं, वहीं पर इसे कछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
- दूर-दराज क्षेत्रों में स्थित लघु जोतो तथा बिखरे हुए दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों से दूध एकत्रित करना तथा उसे संग्रहण कंद्रों तक लाना कठिन तथा महंगा कार्य है। इससे दुग्ध उत्पादकों को उचित दाम नहीं मिलते परंतु उपभोक्ताओं को काफी उच्च दामों पर दूध खरीदना पड़ता है।
- गांवों में दुधारू पशुओं को अस्वस्थ वातावरण में रखा जाता है, जिससे उनके दूध की मात्रा एवं गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- पर्याप्त विपणन सुविधाओं के अभाव में अधिकांश दूध को घी में परिवर्तित करके बेचा जाता है जो इतना लाभकारी नहीं होता। अत: विपणन व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है।
- दुधारू पशुओं की कुछ नस्लें तो अच्छी हैं परंतु अधिकांश नस्लें निम्न स्तर की हैं। पशुओं के नस्ल सुधार की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- प्रसार सेवा कार्यक्रम इतना प्रभावी नहीं, जितना इसे होना चाहिए।
श्वेत क्रांति की सम्भावनाएं
देश में पशुधन की विशालता तथा दूध की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि भारत में डेयरी उद्योग के विकास की असीम संभावनाएं हैं। उदारीकरण एवं विश्व व्यापार के संदर्भ में ये संभावनाएं और भी बढ़ जाती हैं। उत्पादन में वृद्धि करके भारतीय बाजार की मांग को पूरा करने के पश्चात् दूध एवं दुग्ध पदार्थों का निर्यात भी किया जा सकता है। विदेशों में इन वस्तुओं की बड़ी मांग है। भारत में दुधारू पशुओं को पौष्टिक आहार नहीं मिलता जिस कारण से उनकी दुग्ध उत्पादकता अन्य देशों के पशुओं से कम है। पशुओं को सतुलित आहर खिलाकर उनकी दग्ध उत्पादकता को लगभग तीन गुना किया जा सकता है। अच्छी नस्ल के पश पालने से भी दूध का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
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