विलियम मॉरिस डेविस

विलियम मॉरिस डेविस – अमेरिकी भूगोलवेत्ता (William Morris Davis – American geographer)

विलियम मॉरिस डेविस – अमेरिकी भूगोलवेत्ता (William Morris Davis American geographer)

भौगोलिक चक्र (अपरदन चक्र) सिद्धान्त के प्रतिपादक प्रख्यात अमेरिकी भूगोलवेत्ता विलियम मॉरिस डेविस (1850-1934) का जन्म संयुक्त राज्य के फिलाडेल्फिया में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होंने हारवर्ड विश्वविद्यालय से 1869 में स्नातक उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् 1870 से 1873 तक अर्जेनटाइना के मौसम विज्ञान वेधशाला में सहायक के रूप में कार्य किया था। 1873 में अर्जेनटाइना से वापस आकर डेविस हारवर्ड विश्वविद्यालय में शोध सहायक के रूप में कार्य करने लगे। 1878 में डेविस की नियुक्ति इसी विश्वविद्यालय में भौतिक भूगोल के सहायक शिक्षक (Instructor) के पद पर, 1885 में भौतिक भूगोल के सहायक प्रोफेसर के पद पर और 1890 में भूगोल के प्रोफेसर के पद पर हुई थी। 1899 में डेविस को भौतिकी का प्रोफेसर नियुक्त किया गया था । इस पद पर रहते हुए उन्होंने अपने अवकाश ग्रहण (1912) तक कार्य किया। अमेरिका में 1904 में स्थापित अमेरिकी भूगोलवेत्ता संघ (Association of American Geographers) के वे संस्थापक सदस्य थे और 1904-1905 में वे इसके अध्यक्ष भी रहे थे। अब तक डेविस देश-विदेश में भूआकृति विज्ञानी के रूप में विख्यात हो चुके थे। डेविस अपने समय के सर्वाधिक प्रतिष्ठित भूगोलवेत्ता थे। उन्होंने भूआकृति विज्ञान के क्षेत्र में शोध और सैद्धान्तिक विवेचन सम्बंधी अनेक पुस्तकें और एक सौ से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किया था।

डेविस की पुस्तकों और शोधलेखों के द्वारा उनकी विचारधारा का व्यापक प्रभाव अमेरिका ही नहीं बल्कि यूरोपीय देशों पर भी पड़ा था।

डेविस ने 1908-1909 में लगभग दो वर्ष के लिए जर्मनी में प्रवास किया था और बर्लिन विश्वविद्यालय में भूआकृति विज्ञान पर प्रभावशाली व्याख्यान दिये। बरलिन विश्वविद्यालय में तत्कालीन भूगोल के प्रोफेसर और प्रसिद्ध आकृति भूविज्ञानी वाल्थर पेंक के साथ मिलकर डेविस ने कुछ महत्वपूर्ण कार्य किया था।

अपरदन चक्र सिद्धान्त (Cycle of Erosion Theory)

डेविस को 1882 में मोन्टाना राज्य में कोयला भण्डार के सर्वेक्षण के लिए भेजा गया था मोन्टाना में किये गये अपने प्रेक्षणों के आधार पर डेविस ने अपरदन चक्र (Cycle of Erosion) सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसके लिए उन्होंने भूआकृतिक चक्र (Gcomorphic Cycle) शब्दावली का प्रयोग किया था उन्होंने अपने अपरदन चक्र सिद्धान्त को 1899 में अन्तर्राष्ट्रीय भौगोलिक कांग्रेस (International Geographical Congress ) के वार्षिक अधिवेशन में प्रस्तुत किया। डेविस डार्विन के विकासवादी विचारों से बहुत प्रभावित थे और उनकी यह मान्यता प्रायः सर्वमान्य हो गयी थी कि संसार के जड़ एवं चेतन सभी तथ्य समय के साथ-साथ परिवर्तनशील और विकासमान होते हैं। डेविस के अपरदन चक्र का यही मूल प्रेरणा स्रोत था।

डेविस के अनुसार भूआकृतिक चक्र (अपरदन चक्र) वह कालावधि या विकास श्रृंखला है जिससे होकर एक नवीन उत्थित भूपृष्ठ अपरदन द्वारा युवा, प्रौढ़ तथा जीर्णावस्था से गुजरता हुआ अंततः समप्राय मैदान (पैनीप्लेन) के रूप में परिवर्तित हो जाता है। अपरदन के कारकों (प्रवाही जल, भूमिगत जल, पवन, हिमानी आदि) के अनुसार अपरदन चक्र की अलग-अलग अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के स्थलरूप निर्मित होते हैं।

डेविस की मान्यता थी कि अपरदन की प्रक्रिया भूपृष्ठ के उत्थान के समाप्त होने के पश्चात् क्रियाशील होती है। उन्होंने यह भी बताया था कि ‘कोई भी स्थलरूप (Land form) संरचना (Structure), प्रक्रम (Process) और अवस्था (Stage) का परिणाम होता है। जर्मन भूगोलवेत्ता बाल्थर पेंक (W. Penck) ने डेविस के विचार की आलोचना करते हुए अपरदन चक्र में उल्लेखनीय संशोधन किया और बताया कि अपरदन चक्र की तीन अवस्थाओं (बाल्यावस्था, युवावस्था और जीर्णावस्था) का क्रम पूर्ण होने से पहले ही अपरदन चक्र में अवरोध उत्पन्न हो जाते हैं। भू-उत्थान होने से स्थलरूपों का पुनर्युवन हो जाता है और अपरदन चक्र बाधित होता है जिससे अपरदन चक्र की अवधि बढ़ जाती है।

नियतिवादी विचार

अमेरिकी सम्प्रदाय के भूगोलवेत्ताओं में विलियम मारिस डेविस का अत्यंत उच्च स्थान है जिन्होंने भूआकृति विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके अतिरिक्त डेविस ने भूगोल की प्रकृति और उसकी अध्ययन पद्धति पर भी कई लेख लिखे थे। वे मानव भूगोल के अध्ययन में डार्विन के विकासवादी सिद्धान्त को समाहित करने के पक्षधर थे। वे जर्मन नियतिवादी विचारधारा के प्रबल समर्थकों में से एक थे।

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