जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक तथा जनसंख्या घनत्व का अर्थ

जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक तथा जनसंख्या घनत्व का अर्थ

जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक तथा जनसंख्या घनत्व का अर्थ

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जनसंख्या घनत्व का अर्थ

जनसंख्या के घनत्व का आशय किसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या की सघनूता से है। जनसंख्या के घनत्व को प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में मापा जाता है। घनत्व ज्ञात करने के लिए किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या को उसके क्षेत्रफल से भाग दिया जाता है। घनत्व से जनसंख्या के किसी क्षेत्र में संकेन्द्रण की मात्रा का बोध होता है।

जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण पर निम्नलिखित भौगोलिक एवं अन्य कारकों का प्रभाव पड़ता है।

  • स्थिति
  • जलवायु
  • भू-रचना
  • स्वच्छ जल की पूर्ति
  • मिट्टियाँ
  • खनिज पदार्थ
  • शक्ति के संसाधन
  • आर्थिक उन्नति की अवस्था
  • तकनीकी प्रगति का स्तर
  • सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक
  • राजनीतिक कारक
  • पर्यावरण की वांछनीयता
  • अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता

  1. स्थिति

किसी प्रदेश की स्थिति का प्रभाव उसके समीपव्ती देशों परिवहन, व्यापार तथा मानव-इतिहास पर पड़ता है। उदाहरण के लिए हिन्द महासागर में भारत की स्थिति केन्द्रीय होने के कारण मध्य-पूर्व के देशों तथा पूर्वी गोलार्द्ध के देशों के साथ समुद्री व्यापार की सुविधा रखने वाली है। विश्व की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या तटीय भागों तथा उनकी सीमा-पेटियों में निवास करती है। भूमध्यसागरीय भागों में उसके चारों ओर प्राचीन काल से ही मानव-बस्तियों का विकास होता रहा है। यहाँ मछलियों की प्राप्ति, सम-जलवायु, समतल मैदानी भूमि आदि भौगोलिक विशेषताएँ हैं जिससे कृषि, उद्योग, परिवहन एवं मानूव-आवासों का तीव्र गति से विकास हुआ है। इसीलिए इन भागों में सघन जनसंख्या का संकेन्द्रण हुआ है।

  1. जलवायु

सभी कारकों में जलवायु महत्त्वपूर्ण साधन है जो जनसंख्या को किसी स्थान पर बसने के लिए प्रेरित करती है। विश्व के सबसे घने बसे भाग मानसूनी प्रदेश तथा सम-शीतोष्ण जुलवायु के प्रदेश हैं। चीन, जापान, भारत, म्यॉमार, वियतनाम बाग्लादेश तथा पूर्वी-द्वीप समूह की जुलवायु मानसूनी है, जब कि पश्चमी यूरोप एवं संयुक्त राज्य को जलवायु सम-शीतोष्ण है; अत: इन देशों में सघन जनसंख्या का निवास हुआ है। इसके विपरीत जिन प्रदेशों की जलवायु उष्ण एवं शुष्क है, वहाँ बहुत ही कम जनसंख्या निवास करती है। उदाहरण के लिए, सहारा, कालाहारी, अटाकामा, अरब, थार एवं ऑस्ट्रेलियाई मरुस्थलों में जनसंख्या का घनत्व एक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। अति उष्ण एवं आर्द्र पूरदेशों में भी जनसंख्या कम है; जैसे- अमेज़न बेसिन के पर्वतीय एवं पुठारी क्षेत्रों में।

मानव-आवास के लिए स्वस्थ अनुकूलतमं जलवायु वह है जिसमें ग्रीष्म ऋतु का अधिकतम औसत तापमान 18° सेग्रे से कम तथा शीत ऋतु के सबसे ठण्डे महीने का तापमान 3° सेग्रे से कम न हो। सामान्यतया 4°-21° सेग्रे तापमान के प्रदेश जनसंख्या के आवास के लिए सर्वाधिक अनुकूल माने जाते हैं। वर्षा की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या के घनत्व मे भी वृद्धि होती जाती है तथा उसके घटने के साथ-साथ जनसंख्या घनत्व में कमी होती जाती है।

  1. भू-रचना

भू-रचना का जनसंख्या से गहरा सम्बन्ध है। समतल मैदानी भागों में कृषि, सिंचाई, परिवहन, व्यापार आदि का विकास अधिक होता है; अत: मैदानी क्षेत्र सघन रूप से बस् जाते हैं। पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्रो में कष्टदायक एवं विषम भूमि की बनावट होने के कारण बहुत कम लोग निवास करना पसन्द करते हैं। भारत के असोम राज्य में केवल 340 मानव प्रति वर्ग किमी निवास करते हैं, जब कि गंगा के डेल्टा में 800 से भी अधिक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी निवास कर रहे हैं।

  1. स्वच्छ जल की पूर्ति

जल मानव की मूल आवश्यकता है। जल की आवश्यकता मुख्यत: निम्नलिखित तीन प्रकार की है।

(i) घरेलू आवश्यकताओं के लिए जल की पूर्ति,

(ii) औद्योगिक कार्यों के लिए जल की पूर्ति एवं

(iii) सिंचाई के लिए जल की पूर्ति।

अतः जिन प्रदेशों एवं क्षेत्रों में शुद्ध एवं स्वच्छ मीठे जल की पूर्ति की सुविधा होती है, वहाँ जनसंख्या भी अधिक निवास करने लगती है; जैसे-नदी-घाटियों एवं समुद्रतटीय क्षेत्रों में।

  1. मिट्टियाँ

जनसंख्या का मूल आधार भोजन है जिसके बिना वह जीवित नहीं रह सकती। शाकाहारी भोजन प्रत्यक्ष रूप से एवं मांसाहारी भोजन अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी में ही उत्पन्न होते हैं। जिन प्रदेशों की मिट्टियाँ उपजाऊ होती हैं, वहाँ सघन जनसंख्या निवास करती है। चीन, भारत एवं यूरोपीय देशों में नदियों की घाटियों में मिट्टी की अधिक उर्वरा शक्ति के कारण संघन जनसंख्या निवास कर रही है।

  1. खनिज पदार्थ

जिन प्रदेशों में खनिज पदार्थों का बाहुल्य होता है, वहाँ उद्योगों के विकसित होने की पर्याप्त सम्भावनाएँ रहती है। इस कारण ये क्षेत्र जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तथा विषम पॉरेंस्थितियों में भी इन प्रदेशों में सघन जनसंख्या का आवास रहता है। यूरोप महाद्वीप के सघन बसे प्रदेश कोयले एवं लोहे की खानों के समीप ही स्थित मिलते हैं। इसी प्रकार रूस के उन क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है, जहाँ खनिज भण्डार अधिक हैं।

जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक

  1. शक्ति के संसाधन

उद्योगों एवं परिवहन के साधनों के संचालन में कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत एवं प्राकृतिक गैस की आवश्यकता होती है तथा इनकी प्राप्ति वाले क्षेत्रों में जनसंख्या भी सघन रूप में निवास करने लगती है।

  1. आर्थिक उन्नति की अवस्था

किसी प्रदेश की आर्थिक स्थिति में वृद्धि होने पर उसकी जनसंख्या-पोषण की क्षमता में भी वृद्धि हो जाती है। अत: इन प्रदेशों में जनसंख्या भी अधिक निवास करने लग जाती है। कृषि उत्पादन कम होने पर भी इन प्रदेशों में खाद्यान्न विदेशों से आयात कर लिये जाते हैं, क्योंकि आयात करने के लिए उनकी आर्थिक स्थिति अनुकूल होती है।

  1. तकनीकी प्रगति का स्तर

तकनीकी विकास के द्वारा नवीन यन्त्रों, उपकरणों एवं मशीनों के उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे विभिन्न क्षेत्रों के उत्पादों में भी वृद्धि होती है एवं ऋतु तथा जलवायु की विषमताओं पर नियन्त्रण कर लिया जाता है। इन सुविधाओं के स्तर में वृद्धि से जनसंख्या में भी वृद्धि हो जाती है। यूरोप के औद्योगिक प्रदेशों में 700 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक जन-घनत्व इसी कारण मिलता है।

  1. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक

सामाजिक रीति-रिवाजों, धार्मिक विश्वासों एवं जीवन के प्रति दृष्टिकोण का प्रभाव जनसंख्या वितरण पर भी पड़ता है। जिस समाज में लोग भाग्यवादी होते हैं, उनमें परिवार-कल्याण कार्यक्रमों के प्रति विश्वास एवं रुचि न होने के कारण अधिक सन्तति से जनसंख्या में वृद्धि होती चली जाती है। उदाहरण के लिए, भारत में मुस्लिम लोगों का परिवार-कल्याण के प्रति धार्मिक विश्वास न होने के कारण उनकी जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है।

  1. राजनीतिक कारक

राजनीतिक नियमों का प्रभाव भी जनसंख्या वितरण पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। उदाहरणार्थ, ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल भारत की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक है, जब कि ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का केवल 1/50 भाग ही है। इसका प्रमुख कारण आँस्ट्रेलिया सरकार की श्वेत नीति (White Policy) हे जो गौरी जातियों के अतिरिक्त दूसरी नस्ल के लोगों को ऑस्ट्रेलिया में बसने से रोकती है।

  1. पर्यावरण की वांछनीयता

मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ परिवहन, संचार आदि साधनों में वृद्धि से विभिन्न प्रदेशों की वांछनीयता में भी परिवर्तन हो जाते हैं। जहाँ आर्थिक विकास की सम्भावनाएँ  अत्यधिक दिखाई पड़ती हैं, उन क्षेत्रों में मानव के बसने की इच्छा भी अधिक रहती है। उदाहरणार्थ, बिहार राज्य के उत्तरी भाग में कृषि द्वारा संघन जनसंख्या पोषण करने की क्षमता विद्यमान है और दक्षिण की और छोटा नागपुर पठार में खनिज पदार्थों के कारण औद्योगिक विकास की भारी क्षमता है। अत: बिहार राज्य में इन सम्भावनाओं के कारण जनसंख्या भी सघन होती जा रही है। इसके विपरीत्र सम्भावनाओं की कमी के कारण हिमालय के तराई प्रदेश में जनसंख्या विरल है।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता

वर्तमान समय में विशेषी-करण में वृद्धि के फलस्वरूप सभ्य राष्ट्र अपनी खाद्यान्न आवश्यकता के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन तथा जर्मनी के खाद्यान्न अधिकतर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अर्जेण्टाइना आदि देशों से मशीनों के बदले आते हैं; अर्थात् एक देश दूसरे देश की उपज को आसानी से बदल सकता है। इससे विशेषीकरण में वृद्धि होती है तथा अधिक जनसंख्या का पोषण सम्भव हो सकता है। इसी प्रकार जापान ने भी सघन जनसंख्या के पोषण की क्षमता आसानी से प्राप्त कर ली है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने विभिन्न देशों की आर्थिक निर्भरता की अपेक्षा विशेषीकरण को प्रोत्साहन दिया है। अत: इसके लिए एक देश को दूसरे देश की विशेषताओं को उचित प्रकार से समझना चाहिए।

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