भूगोल / Geography

पर्यावरण संरक्षण में माध्यमिक विद्यालयों की भूमिका | पर्यावरण-संरक्षण के लिये शिक्षक की भूमिका

पर्यावरण संरक्षण में माध्यमिक विद्यालयों की भूमिका | पर्यावरण-संरक्षण के लिये शिक्षक की भूमिका

पर्यावरण संरक्षण में माध्यमिक विद्यालयों की भूमिका

माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों को आज की परिस्थिति में चारों ओर बढ़ते पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने की शिक्षा देनी चाहिए। वे अपने बच्चों में ऐसी रुचियाँ अभिवृत्तियाँ और कुशलता विकसित करें जिससे पर्यावरण की रक्षा हो और प्रकृति का सन्तुलन बना रहे जिससे मनुष्य प्रकृति के पवित्र प्रांगण में खुशी से जी सके। इसके लिए शिक्षकों में प्रशिक्षण के द्वारा ऐसीबीक्षमता की जाय कि वे

(1) पर्यावरण के बारे में जाने।

(2) स्थानीय पर्यावरणगत समस्याओं को समझे।

(3) नई समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रशिक्षण लें।

(4) उनमें छात्रों को उद्बोधित करने की क्षमता आवे।

(5) बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित कर सकें।

(6) शिक्षक यह जानकारी प्राप्त करें कि प्राकृतिक सम्पदाओं का संरक्षण करने के लिए प्रदूषण को किन उपायों से रोका जाय।

(7) पर्यावरण संरक्षण समबन्धी कार्यक्रमों क आयोजित करने में दक्षता और विधियों का ज्ञान।

पर्यावरण-संरक्षण के लिये शिक्षक की भूमिका-

  1. वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों का उपयोग एवं उनका प्रचार-प्रसार करना।
  2. धूम्र रहित चूल्हे का उपयोग करना सिखाना।
  3. ध्वनि प्रसारकों जैसे रेडियो, टी.वी., टेप आदि की आवाज की अपने कमरे तक ही सीमित रखना।
  4. अपने वाहनों की जांच व रख-रखाव करने की जागरूकता पैदा करना।
  5. सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को क्रियान्वित करने की प्रेरणा देना ।
  6. स्कूल परिसर व उसके आस-पास की सफाई पर विशेष ध्यान देना।
  7. वृक्षारोपण व वृक्षों के प्रति समुदाय में चेतना जागृत करना।
  8. अपने विद्यार्थियों में सफाई की आदत विकसित करना।
  9. अपने समुदाय के लोगों में पर्यावरण-संरक्षण एवं सन्तुलन की चेतना विकसित करना।
  10. पेयजल की स्वच्छता को बनाये रखने की शिक्षा देना।
  11. प्रतिदिन कूड़े को एक निश्चित स्थान पर डालना और उसे उठाने की व्यवस्था करना।
  12. विद्यालय का वातावरण साफ सुथरा बनाये रखना।

पर्यावरण शिक्षण की विधियाँ-

कक्षा-शिक्षण में, शिक्षक निम्नांकित विधियों से पर्यावरण शिक्षा दें-

  • व्याख्यान-विधि- उच्च कक्षाओं में इस विधि में द्वारा पर्यावरणीय शिक्षा दी जा सकती है। छोटी कक्षाओं में, इसे कहानी कथन का रूप दिया जा सकता है। इस विधि में शिक्षक पर्यावरण सम्बन्धी विभिन्न बातों का वर्णन व विश्लेषण करता है। इसकी सफलता शिक्षक की तैयारी व प्रस्तुतीकरण के ढंग पर निर्भर करती है। व्याख्यान रोचक और सरल भाषा में हो।
  • प्रदर्शन-विधि- इस विधि का उपयोग सभी शैक्षिक स्तरों पर किया जा सकता है। परन्तु माध्यमिक व उच्च कक्षाओं के लिये यह विधि अधिक उपयोगी है। इस विधि में शिक्षक कक्षा के छात्रों के समक्ष विभिन्न जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों, खनिजों आदि को प्रदर्शित करते हुए उनके विषय में जानकारी देता है। प्रदर्शन के साथ-साथ उनकी क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं तथा अन्तः सम्बन्धों की व्याख्या शिक्षक करता. जाता है। इस विधि में प्रदर्शन और कथन साथ-साथ चलता है।
  • पर्यटन-विधि- इस विधि के द्वारा छात्रों को उनके पास-पड़ोस तथा दूरवती क्षेत्रों का भ्रमण करके पर्यावरण का ज्ञान दिया जाता है। भ्रमण करते हुए छात्रों को प्राकृतिक स्रोतों जैसे नदी, पर्वत, चट्टान जलाशय, प्राकृतिक वनस्पति, खनिज पदार्थों आदि के बारे में जानकारी दी जाती है। इस विधि में छात्रों को निरीक्षण करने के अवसर मिलता है।
  • योजना- विधि- यह पर्यावरण-शिक्षण की एक उपयोगी विधि है। पर्यावरण- शिक्षण में लघु सामूहिक योजनाओं का प्रयोग किया जाता है। जैसे कक्षा के कुछ छात्रों को स्थानीय तालाब, दूसरे समूह के बारे में प्रत्यक्ष ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।

उपाय

  • छात्रों को बतायें कि पेड़ पौधों में भी प्राण होता है।
  • प्रत्येक बच्चे से विद्यालय की भूम में एक-एक पेड़ लगवायें। बच्चा जब तक स्कूल में पढ़े बराबर उसकी देख-रेख करें। स्कूल छोड़ने के बाद भी अपने पेड़ के प्रति उसमें मोह बना रहेगा।
  • स्कूल के छात्र अपने घर गाँव की सफाई सम्बन्धी शिक्षा ।
  • छात्रों में अच्छी आदतों का विकास करें। वे प्रकृति से प्रेम करें और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनायें। शुद्ध पानी का प्रयोग करें।
  • नदियों में गन्दगी न करें, कूड़ा-करकट सही स्थान पर रखें और फिर उन्हें नष्ट कर दें।

इन सभी अच्छी आदतों का विकास छात्रों में करके पर्यावरण के प्रति उनमें जागरूकता पैदा करें।

शिक्षक द्वारा पर्यावरणीय शिक्षा में प्रयुक्त किये जाने वाले संसाधन-

पर्यावरणीय शिक्षा की सहायता सामग्रियां ही संसाधन है। इनके प्रयोग से ही पर्यावरणीय शिक्षा में सफलता मिल सकती है। पर्यावरण अध्ययन और निरीक्षण का विषय है । इसमें अधिक सामग्रियों की आवश्यकता नहीं। विद्यालय में पेड़-पौधे, शीशे के उपकरण, जल, जीव-जन्तु, कपड़े के टुकड़े तो होते ही हैं। कम खर्च में कैंची, लकड़ी के चम्मच, बाल्टी, छन्नी, हमें जीवन शक्ति मिलती थी, अब वही स्रोत अमृत न देकर ज़हर देने लगे हैं। क्यों? इसलिए कि हम प्रकृति से जीवन का समन्वय स्थापित नहीं कर पा रहे हैं।

मनुष्य ने प्रकृति के हर अंगोपांग को प्रदूषित कर डाला है। फलतः पूरे विश्व के सामने आज प्रदूषण का देत्य पूरी मानवता को चबा जाने के लिए सामने खड़ा है। सभी प्रदूषण के दैत्यके सामने नत मस्तक होकर काप रहे हैं।

धरती जिस पर हम रहते हैं प्रदृषित है। जो जल पीते हैं वह प्रदूषित है, जो वायु भीतर खींचते हैं वह प्रदृषित है। गाड़ियों में बैठकर जल्दी भागते हैं और ये गाड़ियां जो धुंआ उड़ेलती है वह वायु को प्रदृषित करता है। जो अन्न हम खाते हैं वह रासायनिक खादों की ताकत से पैदा किया गया है, इसलिए कि अधिक उत्पादन हो- क्यों अधिक उत्पादन लेते हैं? गोबर और हरी खाद से भी अधिक उत्पादन ले सकते हैं? खेतों में रासायनिक ज़हर डालकर खर पतवार नष्ट करते हैं। इससे अनेक कीड़े मकोड़े मर जाते हैं। जबकि प्रकृति के सन्तुलन में इनका स्थान है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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