शिक्षाशास्त्र / Education

प्रयोजनवाद और प्रकृतिवाद मे तुलना | प्रकृतिवादी दर्शन की विशेषताएँ | प्रयोजनवाद की विशेषताएं

प्रयोजनवाद और प्रकृतिवाद मे तुलना | प्रकृतिवादी दर्शन की विशेषताएँ | प्रयोजनवाद की विशेषताएं

प्रकृतिवादी विचारधारा के विचारक प्रकृति या सृष्टि को ही सम्पूर्ण तत्व मानते हैं, आध्यात्मिक या ईश्वरीय सत्ता को नहीं। जॉइस ने लिखा है कि, “प्रकृतिवादी दर्शन या प्रकृतिवादी विचारधारा एक ऐसी विचारधारा है जिसकी प्रमुख विशेषता प्रकृति तथा मनुष्य के दार्शनिक चिन्तन से जो कुछ आध्यात्मिक है तथा जा कुछ अनुभव से अलग है, उसे हटा देना है।” डॉ० सिन्हा का कथन है कि, “प्रकृतिवादी या प्रकृतिवादी दर्शन ईश्वर की सत्ता, इच्छा की स्वतन्त्रता, आत्मा की अमरता तथा जगत की जीवनोत्तर सत्ताओं को नहीं मानता। यह प्रकृति को ही सम्पूर्ण तत्व मानता है। अंत में हम कह सकते हैं कि प्रकृतिवाद भी एक सिद्धान्त है जो प्रकृति या सृष्टि को ईश्वर से परे करता है, आत्मा को पदार्थ के अधीन करता है और परिवर्तनशील नियमों को सर्वोच्च मानता है।”

प्रकृतिवादी दर्शन की विशेषताएँ

(1) प्रकृतिवादी दर्शन प्रकृति या सृष्टि को ही सत्य मानता है। इसके अनुसार समस्त वस्तुएँ प्रकृति से ही निकलती हैं और अन्त में उसी में ही विलीन हो जाती हैं।

(2) प्रकृतिवादी कहते हैं कि विज्ञान की सहायता से ही प्रकृति के रहस्यों के विषय में जाना जा सकता है।

(3) प्रकृतिवादियों के अनुसार आत्मा-परमात्मा काल्पनिक है। इस जगत से अलग कोई सत्ता नहीं है।

(4) प्रकृतिवादी दर्शन मनुष्य को मात्र एक यंत्र मानता है जो प्राणियों का विकसित रूप है।

(5) प्रकृतिवादी दर्शन आदर्शवादी ढोंगों का खण्डन करता है।

(6) प्रकृतिवादी दर्शन मौलिक प्रवृत्तियों को श्रेष्ठ मानता है। इस बनावटी सभ्यता से मानव को प्राकृतिक सभ्यता की ओर ले जाना चाहता है।

(7) प्रकृतिवादी दर्शन प्रकृति की ओर पुनः लौटने का नया सन्देश देता है।

(৪) प्रकृतिवादी पुस्तकीय ज्ञान या शिक्षा का विरोध करते हैं।

(9) प्रकृतिवादी शिक्षा में बालक की प्रधानता स्वीकार करते हैं न कि शिक्षक की।

(10) प्रकृतिवादी शिक्षा में स्वतन्त्रता को आवश्यक मानते हैं।

प्रयोजनवाद की विशेषताएं

(1) बाल केन्द्रित शिक्षा- प्रयोजनवादी शिक्षा का सबसे बड़ा गुण है कि इसमें पुस्तकीय ज्ञान की अवहेलना की गई है और बालक की शिक्षा का केन्द्र बिन्दु बताया गया है।

(2) क्रिया का महत्त्व- प्रयोजनवादी, विचारों की अपेक्षा क्रिया को अधिक महत्त्व देते हैं। प्रयोजनवादियों ने विचारों को व्यवहार के अधीन कर दिया है, फलस्वरूप शिक्षा में सैद्धान्तिक पक्ष पर अधिक बल न देकर व्यवहारिक पक्ष पर अधिक बल दिया है।

(3) प्रोजेक्ट योजना का महत्त्व- शिक्षा की प्रोजेक्ट योजना प्रयोजनवादियों की ही देन है। इस पद्धति में बालकों को अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति के विकास का अवसर प्राप्त होता है।

(4) व्यावहारिक जीवन को महत्त्व- प्रयोजनवादी शिक्षा बालक को व्यावहारिक जीवन के हेतु तैयार करती है। आधुनिक युग में इस बात की बहुत अधिक आवश्यकता है। जो शिक्षा बालक को उत्तम नागरिक न बना सके वह शिक्षा व्यर्थ है। प्रयोजनवादी शिक्षा बालक को उत्तम नागरिक बनाने में समर्थ है।

(5) सामाजिक और जनतांत्रिक शिक्षा- प्रयोजनवादी शिक्षा सामाजिक और जनतांत्रिक शिक्षा है। इससे बालक में स्वतन्त्रता और समानता आदि गुणों का विकास होता है। इसमें मानवतावादी दृष्टिकोण भी आता है।

(6) एकता पर बल- प्रयोजनवादी शिक्षा में बुद्धि की एकता और ज्ञान की एकता पर बल दिया जाता है। क्योंकि इस विचारधारा में यह मान्यता है कि एकता विकास का साधन है।

प्रयोजनवाद और प्रकृतिवाद मे तुलना

प्रकृतिवादी विचारधारा एवं प्रयोजनवादी विचार धारा दोनों ही शिक्षा के क्षेत्र को अपने-अपने ढंग से प्रभावित करते हैं तथा शिक्षा के क्षेत्र में दोनों का अपना- अपना महत्त्व है। इस विचारधारा के दार्शनिक पक्ष तथा शैक्षणिक पक्ष के अन्तर को हम अग्र प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-

(1) सत्य के सम्बन्ध में विचार भिन्नता- प्रयोजनवादी सत्य को स्थायी न मानक परिवर्तनशील मानते हैं। प्रकृतिवादी प्राकृतिक समानता के सिद्धान्त को सत्य मानते हैं।

(2) प्रयोजनवाद मानवीय तथा प्रकृतिवाद यान्त्रिक- प्रयोजनवादी मानव की प्रवृत्तियों, अनुभूतियों को महत्त्व देते हैं, अत: वे मानवीय अधिक हैं।

(3) एकत्ववाद और बहुत्ववाद का अन्तर- प्रकृतिवादी सारे संसार को तत्व से मानते हैं। अत: वे एकत्ववादी हैं जबकि प्रयोजनवादी अनेक तत्वों के आधार पर विश्व की उत्पत्ति मानते हैं। अत: वे बहुत्ववाद में विश्वास करते है।

(4) शाश्वत नियमों के सम्बन्ध में मतभेद- प्रयोजनवादी सिद्धान्तों तथा सार्वभौमिकता पर विश्वास नहीं करते हैं। वे नियमों को देशकाल तथा परिस्थिति के अनुसार विकसित मानते हैं। तथा उसकी सार्वभौमिकता में विश्वास करते हैं।

(5) प्रकृतिवाद में शिक्षक की पूर्ण उपेक्षा जबकि प्रयोजनवाद में महत्त्वपूर्ण स्थान- प्रकृतिवादियों के अनुसार बालक जिन प्राकृतिक गुणों को लेकर पैदा होते हैं समाज व इसका प्रतिनिधि शिक्षा उन गुणों को विकसित न करके अपनी बात उनके ऊपर लादता है। अत: शिक्षक की कोई आवश्यकता नहीं जबकि प्रयोजनवाद बालक के समक्ष उपयोगी समस्याएं प्रस्तुत करने में अध्यापक को बहुत महत्त्वपूर्ण मानता है।

(6) प्रायोजनवादी शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक विकास प्रकृतिवादी की वैयक्तिक उन्नति- प्रकृतिवाद बालक को प्राकृतिक गुणों के आधार पर उसके व्यक्तिगत विकास पर जोर देता है जबकि प्रयोजनवाद में बालक के सामाजिक पक्ष को विकसित करने पर अधिक बल देते हैं।

(7) विद्यालय के सम्बन्ध में मत भिन्नता- प्रकृतिवादी विद्यालय की कोई भी आवश्यकता नहीं अनुभव करते हैं, प्रकृति की गोद में शिक्षा देने के पक्षपाती हैं। वे विद्यालय को समाज के दूषित प्रभाव से मुक्त रखना चाहते हैं, जबकि प्रयोजनवादी विद्यालय को समाज का लघु रूप मानकर चलते हैं तथा समाज के सही प्रतिनिधि के रूप में देखना चाहते हैं।

(8) पाठ्यक्रम में भिन्नता- प्रयोजनवादी सामाजिकता को विकसित करने वाले विषयों पर जोर देते हैं जबकि प्रकृतिवादी वैज्ञानिक विषयों के अधिक हिमायती थे, वे विशेष रूप से आत्म-रक्षा तथा आत्म-प्रकाशन सम्बन्धी विषय पर जोर देते थे।

(9) आदत के निर्माण में अन्तर- प्रकृतिवाद में आदत निर्माण का विरोध, प्रयोजनवाद आदत के निर्माण का पक्षधर। प्रकृतिवाद ने बालक के अन्दर किसी प्रकार की आदत बनाने का विरोध किया है। प्रयोजनवाद में कार्य कुशलता लाने के लिए आदत निर्माण को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है।

(10) अनुशासन के सम्बन्ध में अन्तर- प्रकृतिवादी पूर्ण रूप से मुक्तयात्मक अनुशासन के हामी समझे जाते हैं। वे बालक को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान कर किसी प्रकार नियन्त्रण में रखना नहीं चाहते जबकि प्रयोजनवाद बालक में सीमित मुक्तयात्मक अनुशासन को स्वीकार करता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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