शिक्षाशास्त्र / Education

सक्रिय अनुबंधन और शास्त्रीय अनुबंधन में अन्तर | Difference between Operant Conditioning and Classical Conditioning in Hindi

सक्रिय अनुबंधन और शास्त्रीय अनुबंधन में अन्तर | Difference between Operant Conditioning and Classical Conditioning in Hindi

वाटसन एवं पैवलोव जैसे व्यवहारवादियों द्वारा प्रतिपादित शास्त्रीय अनुबंधन को स्किनर ने अनुक्रिया अनुबंधन (Respondent Conditioning) की संज्ञा दी है। इस प्रकार के अनुबंधन या अनुद्रिया व्यवहार (Respondent Behaviour) संबंधी अधिगम में वांछित अनुक्रिया अथवा व्यवहार उत्पन्न करने में उद्दीपन (Stimulus) की केन्द्रीय भूमिका रहती है। इसलिए इसे उद्दीपन अनुबंधन (Type S-Conditioning) कह कर भी पुकारा जाता है।

दूसरी ओर सक्रिय अनुबंधन, सक्रिय व्यवहार संबंधी अधिगम में सहायक होता है। इस प्रकार के अधिगम में अनुक्रिया (Response) की केन्द्रीय भूमिका रहती है। इसलिए इसे अनुक्रियाजन्य अनुबंधन (Type R-Conditioning) कह कर भी पुकारा जाता है।

उद्दीपनजन्य शास्त्रीय अनुबंधन में प्राकृतिक उद्दीपक (Natural Stimulus) अथवा कृत्रिम उद्दीपक (Artificial or Substituted Stimulus) अनुबंधित अनुक्रिया (Conditioning Response) उत्पन्न करने में सहायक होता है और एक तरह अधिगम किसी न किसी रूप में उद्दीपन से जुड़ा होता है। अत:, इस प्रकार के अनुबंधन में सिखाने वाले के सामने समस्या यह रहती है कि वह अधिक उपयुक्त उद्दीपकों का चुनाव कैसे करे ताकि वांछित अनुक्रिया होती रहे।

दूसरी ओर अनुक्रियाजन्य सक्रिय अनुबंधन में सिखाने वाले के सामने समस्या यह रहती है कि सीखने वाले द्वारा की जा सकने वाली सभी संभावित अनुक्रियाओं अथवा व्यवहारों में से वांछित अनुक्रिया अथवा व्यवहार को कैरो उत्पन्न किया जाए और इस प्रकार उत्पन्न सही व्यवहार अथवा अनुक्रिया को पुनर्बलन द्वारा सबल बना कर स्थायित्व कैसे प्रदान किया जाए।

सक्रिय अनुबन्धन का सिद्धान्त | स्किनर का सिद्धान्त | Skinner’s Theory of Operant Conditioning in Hindi

उपरोक्त विवरण को ध्यान में रखते हुए अनुबंधन और सक्रिय अनुबंधन के अन्तर को सार रूप में निम्न प्रकार दिखाया जा सकता है-

शास्त्रीय अनुबंधन

(Classical Conditioning)

सक्रिय अनुबधन

(Operant Conditioning)

1.    शास्त्रीय अनुबंधन, अनुक्रिया व्यवहार संबंधी अधिगम में सहायक सिद्ध होता है।

2.    इस प्रकार के अधिगम में वांछित अनुक्रिया अथवा व्यवहार उत्पन्न करने में उद्दीपक (Stimulus) की केन्द्रीय भूमिका रहती है। इसलिए इसे उद्दीपन जन्य अनुबन्धन (Type S-Conditioning) भी कहते हैं।

3.    इसमें अनुबंधन प्रक्रिया की शुरुआत किसी विशेष उद्दीपक द्वारा कोई निश्चित अनुक्रिया उत्पन्न करने द्वारा होती है।

4.    इस प्रकार अनुबंधन में अनुबंधन की शक्ति अनुबंधित अनुक्रिया की सामर्थ्य (Magnitude of Conditioning Response) पर निर्भर करती है। प्रयोगों में इसकी माप सम्भव है जैसे पैवलोव के प्रयोग में कुत्ते द्वारा गिराई जाने वाली लार की मात्रा के द्वारा अनुबंधन शक्ति काअदाज़ा लगाया जा सकता है।

5.    इस प्रकार के अनुबंधन में ताड़ना अथवा दंड (Punishment) को बुरी आदतें छुड़ाने एवं अवांछनीय व्यवहार को भूल जाने (Deconditioning) के रूप में उपयोग में लाया जाता है।

6.    इस अनुबंधन में सीखने वाला ज़रा भी स्वतन्त्र नहीं है। जिस तरह का उद्दीपन उसके सामने होता है वह वैसा ही व्यवहार करने के लिए विवश होता है।

7.    इसे अनुबंधन में अनुक्रिया उत्पन्न करने के लिए किसी ज्ञात उद्दीपन (Known Stimulus) का होना नितांत आवश्यक है।

8.    इस प्रकार के अनुबंधन में पुनर्वबलन का प्रयोग सीखने वाले द्वारा की गई अनुक्रिया अथवा व्यवहार के पहले किया जाता है।

1.    सक्रिय अनुबंधन सक्रिय व्यवहार संबंधी अधिगम में सहायक सिद्ध होता है।

2.    इस प्रकार के अधिगम में अनुक्रिया (Response) की केन्द्रीय भूमिका रहती है। इसलिए इसे अनुक्रिया जन्य (Type R-Conditioning) भी कहा जाता है।

3.    इस अनुबंधन में शुरुआत सीखने वाले की उन अनुक्रियाओं को लेकर होती है जो स्वाभाविक रूप से होती हैं अथवा जिन्हें सिखाने वाले द्वारा विशेष रूप से सीखने वाले द्वारा कराने का प्रयत्न किया जाता है।

4.    इस प्रकार के अनुबंधन नें अनुबंधन की शक्ति को अनुक्रिया दर (Response Rate) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है । प्रयोगों में इसकी माप संभव है उदाहरण के लिए स्किनर के चूहे वाले प्रयोग में लीवर को एक ऐसी रिकार्डिंग प्रणाली से जोड़ा जा सकता है जिससे चूहे द्वारा लीवर दबाने की अनुक्रिया की दर का रेखीय चित्र (Graph) प्राप्त हो सके।

5.    सक्रिय अनुबंधन ताड़ना अथवा दंड को वांछनीय व्यवहार सिखाने अथवा अवाछनीय व्यवहार को सुधारने के लिए उपयोग में लाने का सख्त विरोधी है। विकल्प के रूप में यह चाहता है कि वाछनीय व्यवहार को पुनर्बलन द्वारा सुदृढ़ किया जाए तथा अवांछनीय व्यवहार की ओर न कोई ध्यान दिया जाए और न किसी तरह से उसे पुनर्वलित या प्रोत्साहित किया जाए।

6.    इस प्रकार के अनुबंधन में सीखने वाले को अनुक्रिया करने की काफी कुछ स्वतंत्रता होती है ।

7.    इस अनुबंधन में व्यवहार अथवा अनुक्रिया के लिए न तो किसी ज्ञात उद्दीपन की आवश्यकता है और न उसके लिए किसी कारण के खोज की।

8.    इस प्रकार के अनुबंधन में शुरुआत व्यवहार अथवा अनुक्रिया द्वारा होती है और उसके बाद उसे बल प्रदान करने के लिए पुनर्बलन दिया जाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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