कृषि का आरम्भ (Beginning of Agriculture)- कृषि में परिवर्तन (Transition to Agriculture)
कृषि का आरम्भ (Beginning of Agriculture)- कृषि में परिवर्तन (Transition to Agriculture)
कृषि का आरम्भ (Introduction)
नव पाषाण शुरू होने तक मनुष्य ने कुछ अहिंसक पशुओं की पहचान कर ली थी। वह उन पशुओं को अपने फायदे के लिए अपने साथ ही रखने लगा। भेड़, बकरी, गाय आदि का पालन शुरू हो गया। पशु पालन का एक उद्देश्य पशुओं का मांस भी था। इस काल में मानव ने खेती भी आरम्भ कर दी। खेती का कोई अनुभव तो था नहीं इसलिए इस काल की खेती भी अन्धविश्वासों पर आधारित थी।
कृषि का आरम्भ (Beginning of Agriculture)
नव पाषाण काल का मनुष्य खेती करना सीख गया था कृषि ने उसके जीवन में महान् परिवर्तन का श्री गणेश कर दिया। उस समय खेती के लिए किसी के पास कोई निश्चित खेत न होते थे। लोग किसी की भूमि पर खेती कर लेते थे। खेतों को जोतने के लिए पत्थर के औजार व सींगों का प्रयोग किया जाता था। हल से खेतों को जोतने की प्रणाली का विकास बाद में हुआ। मुख्यत: गेहूँ, जौ और मटर की खेती की जाती थी खेती का काम आरम्भ करने के बाद मनुष्य को जगह-जगह घूमने की जरूरत नहीं रह गई। अब वह एक स्थान पर झोपड़ी बना कर रहने लगा। खेती से पशुओं के लिए भी चारा पैदा होने लगा। इस प्रकार मकान और गाँव बसे। पारिबारिक और सामाजिक जीवन की नींव पड़ी।
कृषि का आरम्भ बलिदान के साथ होता था। बीज बोने के समय उस काल में किसी युवक व युवती का बलिदान देना आवश्यक माना जाता था। उस काल का मनुष्य यह समझता था कि बिना बलिदान दिये फसल ठीक नहीं हो सकती। लगभग प्रत्येक मानव-समूह में एक पुजारी होता था।
नोट्स- नव पाषाण काल का मानव कृषि करना सीख गया था।
गाँवों का बसना- नव पाषाण काल में कृषि का आरम्भ हो जाने का परिणाम यह हुआ कि मानव समूह उन सब भागों में बस गये, जहाँ जल प्राप्त था। इस प्रकार ग्राम बस गए तथा ग्राम-समूहों के बीच में प्राचीरों से घिरे हुए नगर बसने लगे। इन नगरों और ग्रामों के चारों ओर दूर-दूर तक खेत बन गए।
उद्योग धन्धे- जैसा कि उल्लेख किया गया है कि कृषि एक क्रान्तिकारी परिवर्तन। दूसरा महान् परिवर्तन उद्योग-धन्धे थे। कृषि एक ऐसा धन्धा है जिसमें किसान अकेले ही सब कुछ नहीं कर सकता। उसे दूसरों का सहयोग चाहिए। हल बनाने, बर्तन बनाने और कपड़े बनाने में दूसरे लोग उनकी सहायता करते थे। इसी से बढ़ई, कुम्हार, जुलाहे आदि के पेशे आरम्भ हो गये। वास्तव में कृषि और उद्योग-धन्धों से मानव के सामाजिक जीवन की नींव पड़ी। हम स्वयं विचार कर सकते हैं कि यह कितनी बड़ी उन्नति थी। मानव को पहले -पहल अपनी स्थायी सम्पत्ति और भूमि से प्रेम हो गया। उसका व्यक्तित्व अब शरीर तक सीमित नहीं रहा, सम्पत्ति और निवास – स्थान उसके व्यक्तित्व के भाग हो गये।
सारांश (Summary)
- खेती का काम आरम्भ करने के बाद मनुष्य को जगह-जगह घूमने की जरूरत नहीं रह गई।
- कृषि का आरम्भ बलिदान के साथ होता था।
- नव पाषाण काल में कृषि का आरम्भ हो जाने का परिणाम यह हुआ कि मानव समूह उन सब भागों में बस गये, जहाँ जल प्राप्त था।
- वास्तव में कृषि और उद्योग-धन्धों से मानव के सामाजिक जीवन की नींव पड़ी।
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