समाज शास्‍त्र / Sociology

नगरीय समाजशास्त्र की परिभाषा | समाजशास्त्र का महत्त्व | नगरीय समाजशास्त्र का महत्व

नगरीय समाजशास्त्र की परिभाषा | समाजशास्त्र का महत्त्व | नगरीय समाजशास्त्र का महत्व | Definition of Urban Sociology in Hindi | Importance of Sociology in Hindi | Importance of urban sociology in Hindi

नगरीय समाजशास्त्र की परिभाषा

मुख्यतः नगरीय समाजशास्त्र समाजशास्त्र की एक शाखा है। समाजशास्त्र एक विस्तृत सामान्य विज्ञान है। अतः उसी की एक शाखा होने के कारण नगरीय समाजशास्त्र भी एक सामान्य विज्ञान है। इरिक्सन ने इस सम्बन्ध में लिखा है। “समाजशास्त्र के विस्तृत क्षेत्र के समान, नगरीय समाजशास्त्र एक सामान्यीकरण करने वाला विज्ञान है।”

विज्ञान की पद्धति लचीली होने के कारण इस समय नगरीय समाजशास्त्र के विभिन्न दृष्टिकोण विकसित हैं। प्रथम दृष्टिकोण के अनुसार नगरीय समाजशास्त्र नगरीय जीवन की विशिष्ट परिस्थितियों एवं दशाओं का योजना बहु अध्ययन है, इस दृष्टि से नगरीय समाजशास्त्र के अन्तर्गत नगरों में यातायात, भवन निर्माण, जल वितरण, शिक्षा संगठन, न्याय व्यवस्था आदि दशाओं का अध्ययन करना नगरीय समाजशास्त्र का ध्येय समझा जाता है।

नगरीय के सन्दर्भ में दूसरा महत्वपूर्ण विचार नगरीयवाद है। ये विचारक नगरीय वाद का मानव जीवन के एक ढंग के रूप के ज्ञान कराने वाले विज्ञान के रूप में नगरीय समाजशास्त्र के अस्तित्व की व्याख्या करते हैं। नगरीयता एक विशिष्ट प्रकार से जीवन का ढंग होने के कारण इस ढंग के समाजशास्त्रीय अध्ययन को नगरीय समाजशास्त्र कहा जा सकता है।

तृतीय दृष्टिकोण के अनुसार नगरीय समाजशास्त्र के अन्तर्गत नगरीयकरण की प्रक्रिया का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। नगरीकरण की प्रक्रिया का अध्ययन इस आधार पर नगरीय समाजशास्त्र कहलाता है। संक्षेप में जो शास्त्र नगरीयकरण की प्रक्रिया और उसके परिणामों का समाजशास्त्रीय ढंग से अध्ययन प्रस्तुत करे वह समाजशास्त्र कहलाता है।

नगरीय जीवन के अध्ययन के रूप में मान्यता प्रदान करने वाले कुछ विद्वानों ने नगरीय समाजशास्त्र की निम्न परिभाषाएं दी हैं।

(1) एंडरसन के अनुसार- “नगरीय समाजशास्त्र कस्बे तथा नगरों और समाज में रहने के ढंग से सम्बन्धित है।”

(2) वर्गल के अनुसार – “नगरीय समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं, सामाजिक सम्बन्ध, सामाजिक संस्थाओं पर नगरीय जीवन के संघात का एवं नगरीय जीवन के ढंग पर आधारित एवं उससे विकसित सभ्यता के प्रकारों का विवेचन करता है।”

नगरीय जीवन समाजशास्त्र को आधुनिक समाज का अध्ययन स्वीकार करने वाले प्रमुख समाजशास्त्रियों की परिभाषाएँ निम्न हैं।

(3) क्वीन एवं कारपेण्टर के अनुसार- “वह जो वर्तमान समाज को समझना चाहता है। पहले उसे नगर को समझना पड़ेगा।”

(4) वर्गल ने लिखा है- “इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए नगरीय समाजशास्त्र को  आधुनिक नगरीकृत समाज के विज्ञान के रूप में माना जा सकता है। इसका उद्देश्य अपने युग के विश्लेषण से प्राप्त सामान्य सामाजिक सिद्धान्त को बनाना होगा।”

इस प्रकार समकालीन समाज आधुनिक समाज है और आधुनिक समाज नगरीकृत समाज है। अतः नगरीय समाजशास्त्र इस समाज के सामान्य सामाजिक सिद्धान्तों का निर्माण करना चाहता है।

नगरीय समाजशास्त्र नगरीय समाज, सामाजिक संरचना, सामाजिक व्यवस्था सामाजिक प्रक्रियाओं आदि का अध्ययन करता है। एण्डरसन ने प्रमुख दो प्रकार के समुदाय बताये हैं- (1) ग्रामीण तथा (2) नगरीय। एण्डरसन ने लिखा “ग्रामीण समाजशास्त्र का क्षेत्र ग्रामीण समाज और ग्रामीण जीवन का ढंग है और नगरीय समाजशास्त्र का क्षेत्र कस्बों एवं नगरों में समाज एवं जीवन के ढंग से सम्बन्धित है।”

(5) वर्गल के अनुसार, “नगरीय समाजशास्त्र नगरीय जीवन के ढंग पर आधारित एवं उससे विकसित समाज का विवेचन करता है।” उसका मत है- “नगरीय समाजशास्त्र मनुष्य पर पर्यावरण के प्रभाव का विशिष्ट अध्ययन है।”

उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि नगरीय समाजशास्त्र नगरीय समाज का अध्ययन करता है। आधुनिक समाज पूर्ण रूप से नगरीय आधुनिक समाज, औद्योगिक समाज, वर्तमान समाज एक दूसरे के पर्यायवाची हैं क्योंकि सबके ही जीवन का ढंग नगरीय है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि नगरीय समाजशास्त्र नगरीय जीवन का एक सामान्य समाजशास्त्र है जिसमें नगरीय सामाजिक संरचना के साथ-साथ समस्याओं एवं पुनः निर्माण की योजनाओं पर वैज्ञानिक रीति नीतियों से विचार किया जाता है। नगरीय समाजशास्त्र इस प्रकार जीवन की एक सामान्य समाजशास्त्र है।

समाजशास्त्र का महत्त्व –

नगरीय समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र एवं महत्व दिनानुदिन बढ़ता जा रहा है। वर्तमान समय में नगरीकरण और नगरीय विकास से सामाजिक समस्याओं का व्यापक रूप में विकास हो गया है। इस प्रकार नगरीय समाजशास्त्र नगरीयता के अध्ययनों के माध्यम से इससे उत्पन्न समस्याओं से प्राथमिक रूप से सम्बन्धित है।

नगरीय समाजशास्त्र के अध्ययन में मुख्यतः निम्न बातें समाहित हैं।

(1) यह मानवीय परिस्थिति का अध्ययन है, जो मानवीय परिस्थिति और उसके प्रभावों के वैज्ञानिक अध्ययन से सम्बन्धित है।

(2) नगरीय सामाजिक जीवन की विशेषताओं एवं समस्याओं का अध्ययन।

(3) नगरीय समस्याओं के निवारण की प्रबल आवश्यताओं का अध्ययन समस्याओं के वैज्ञानिक अध्ययनों और निवारण के कार्यक्रमों का निर्माण करना इसी शास्त्र का लक्ष्य है। एण्डरसन ने लिखा है कि नगरीय समाजशास्त्र नगरीय जीवन और समस्याओं का विशिष्ट विज्ञान होगा जो ग्रामीण समाजशास्त्र की तुलना में समाजशास्त्र की एक अत्यधिक विस्तृत शाखा होगी।

नगरीय समाजशास्त्र का महत्व –

नगरीय समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र एवं महत्व निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

(1) पारिभाषिक महत्त्व – नगरीय समाजशास्त्र अनेक ऐसे शब्दों की परिभाषा करता है, जिनकी अभी तक किसी भी शास्त्र से नहीं किया गया है। यह नगर नगरीयता, नगरीय परिस्थिति, नगरीकरण, नगरीय समुदाय, गन्दी बस्ती, नगर नियोजन ऐसे शब्दों पर अपने विचार प्रकट करता है, जिसकी परिभाषा और विचारणा अभी बिल्कुल नहीं है। इस प्रकार नगरीय समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र विस्तृत होने के साथ-साथ इसका महत्त्व पारिभाषिक दृष्टि से अधिक है। ये विचारधाराएँ नगरीय समाजशास्त्र की प्राथमिक अवधारणाएँ हैं और इनके विशिष्ट अर्थों से ही नगरीय समाजशास्त्र का अस्तित्व है।

(2) शैक्षणिक विषय क्षेत्र एवं महत्व – नगरीय जीवन आज के समाज का प्रमुख स्वरूप है। नगरीकरण की प्रक्रिया से नगरों का विकास हो रहा है और धीरे-धीरे नगरीय एवं ग्रामीण जीवन में विभेद लगभग समाप्त होते जा रहे हैं। इस प्रकार नगरीय समाज का वातावरण काफी विस्तृत होता जा रहा है। उभरती हुई नगरीय समस्याओं के सन्दर्भ में नगर नियोजन की दृष्टि से नगरीय समाजशास्त्रीय अध्ययनों को कालेजों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया गया है।

नगरीय क्षेत्र में कार्य करने वाले अर्थशास्त्रियों, राजनीतिज्ञों, समाज सुधारकों और सांख्यिकी विशेषज्ञों आदि के लिए नगरीय समाजशास्त्र काफी शैक्षणिक महत्व रखता है।

(3) प्रशिक्षणात्मक विषय क्षेत्र एवं महत्व – नगर-निगमों, नगर पालिकाओं एवं नगर कौन्सिल के सदस्यों, प्रशासकों, आयुक्तों, कर्मचारियों आदि को इस शास्त्र में अनेक के प्रशिक्षण मिल सकते हैं। नगरीय सामुदायिक विकास योजना विभाग के कर्मचारियों के लिए। इसका ज्ञान उपयोगी है। इस शास्त्र में नगरीय समस्याओं जैसी गन्दी बस्तियों जैसे भीड़-भाड़, वेश्यावृत्ति, शिक्षावृत्ति, किशोर अपराध, यातायात की सुविधाएँ जनस्वास्थ्य, मनोरंजन, अपराध इत्यादि का विश्लेषण प्राप्त होने के कारण इसका विषय क्षेत्र बढ़ जाता है एवं इन क्षेत्रों में काम करने वाले समाजशास्त्रियों एवं कर्मचारियों को समुचित प्रशिक्षण प्राप्त हो।

(4) सुधारात्मक विषय-क्षेत्र एवं महत्व – सुधारात्मक दृष्टिकोण से भी इसका विषय-क्षेत्र काफी व्यापक हो गया है और महत्व प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वर्तमान समय में समाज-सुधार, लोक-कल्याण, सामाजिक पुनर्गठन आदि पर नगरीय समाजशास्त्र विस्तृत सामग्री प्रदान करता है। नगरों में स्थिति सभी संस्थाओं में नगरीय समस्याओं के सुधार के प्रयास किये जाते हैं। इन समस्याओं द्वारा प्रतिपादित सुधार आन्दोलनों को सफल बनाने के लिए कार्यरत लोगों के लिए नगरीय समाजशास्त्र के अध्ययन का बड़ा महत्व है। इन सभी सुधार आन्दोलनों के कार्यक्रमों एवं संगठनों के लिए यह शास्त्र नई वैज्ञानिक दृष्टि प्रदान करने में समर्थ है।

(5) व्यावसायिक विषय-क्षेत्र एवं महत्व – व्यावसायिक दृष्टि से भी इसका विषय क्षेत्र काफी व्यापक है और इसका महत्व विभिन्न क्षेत्रों में दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। नगरीय समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र एवं विशेषज्ञों का निम्नलिखित विभागों के उच्च पदों के लिए विशेष उपयोगी है।

  1. योजना आयोग,
  2. अनुसंधान संस्थाएँ
  3. कार्यक्रम मूल्यांकन विभाग
  4. नगरीय सामुदायिक विकास विभाग तथा नगर नियोजन विभाग
  5. गन्दी बस्ती सुधार संघ
  6. समाज कल्याण विभाग
  7. सैम्पुल सर्वे विभाग तथा योजना विभाग
  8. प्रोबेशन तथा पैरोल विभाग
  9. नगर परिवार नियोजन संघ
  10. जिला निदेशिका विभाग, जनसम्पर्क विभाग तथा नगर निगम विभाग,
  11. श्रम कल्याण विभाग,
  12. समाज सुरक्षा एवं जीवन बीमा विभाग
  13. नगरीय अपराध सुधार संस्थाएँ क्षेत्र, विचार विभाग तथा रोजगार कार्यालय
  14. सुधार संस्थान तथा व्यापारिक सर्वेक्षण विभाग |

वस्तुतः नगरीय समाजशास्त्र का क्षेत्र एवं विस्तार उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है, अब यह विशिष्ट समाजशास्त्र न रहकर सामान्य समाजशास्त्र बनता जा रहा है। आज नगरीय समाजशास्त्र नगर जीवन प्रणाली के सामान्य ज्ञान के रूप में उदित हुआ है। नगरीकरण का सामान्य अध्ययन करने के उद्देश्य से ये नगर के उद्विकास और नगरीकरण से दुष्परिणामों का अध्ययन करता है। इन दुष्परिणामों में आर्थिक भौतिक राजनीतिक आदि सभी दृष्टियों से व्यापक अध्ययन किया जाता है।

नगर, नगरीयता तथा नगरीकरण आधुनिक युगीन नगरीय समाजशास्त्र के मुख्य प्रतिपाद्य विषय है। आज की परिस्थितियों में ये सभी परिकल्पनाएँ तात्कालिक विचारकों का विचार केन्द्र बनी हुई हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रमण्डल व राष्ट्रसंघ आदि संघों पर इस दृष्टि से व्यापक प्रयास किया गया है। एशिया में नगरीकरण की दृष्टि से यूनेस्को ने ही विभिन्न अध्ययन आयोजित किये हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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