खुली पुस्तक परीक्षा | Open Book Examination in Hindi

खुली पुस्तक परीक्षा | Open Book Examination in Hindi
सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया के परीक्षा केन्द्रित हो जाने से शिक्षाविद् अत्यन्त चिन्तित हैं। छात्रों के द्वारा परीक्षा उत्तीर्ण करने अध्यापकों एवं अभिभावकों के द्वारा परीक्षा उत्तीर्ण करवाने के लिए किये जाने वाले प्रयासो को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे समस्त शिक्षा व्यवस्था का आयोजन केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए ही किया जाता है। शिक्षा संस्थाओं में अध्ययन तथा अध्यापन की प्रवृत्ति धीरे-धीरे गौण होती जा रही हैं। समाज में ज्ञानवान व्यक्तियों की तुलना में उच्च प्रमाणपत्रधारी व्यक्तियों को अधिक प्रातिष्ठा मिलने लगी है। उच्च कक्षाओं में प्रवेश के लिए तथा रोजगार हेतु चयन में भी प्रमाण-पत्र पर आकित उपलब्धियों पर अधिक जोर दिया जाने लगा है। इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप शिक्षा प्रक्रिया पूर्णरूपेण परीक्षा केन्द्रित हो गई है। शिक्षा के परीक्षा केन्द्रित होने का दुष्परिणाम यह हुआ है कि प्रमाणपत्र तथा अंकपत्र का प्राप्त करना ही शिक्षा का पर्याय मान लिया गया है। शिक्षा प्राप्त करने का मुख्य उद्देश्य परीक्षा उत्तीर्ण करके प्रमाणपत्र प्राप्त करने तक सीमित रह गया है तथा ज्ञानार्जन करना गौण हो गया है। एसी स्थिति में अध्ययन तथा अध्यापन हेतु कठोर परिश्रम करने की भावना का धीरे-धीरे लोप होते जाना स्वाभाविक ही है। आज न केवल अधिकांश छात्र वरन उनके अभिभावक भी येन केन प्रकारेण अपने पलयों को उच्च अंकों से परीक्षा उत्तीर्ण कराके प्रमाणपत्र अर्जित करना चाहते हैं। इस हेतु अनेक अवांछित तरीके भी प्रयोग में लाये जाने के समाचार नित्यप्रति समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं जिनके कुछ छात्रगण बिना किसी प्रयास के परीक्षा में उच्च अंक प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। इस धारा में बहते हुए अनेक अध्यापक तथा अभिभावक भी उनकी सहायता के लिए तत्पर रहते है। परीक्षा में नकल करके प्रश्नपत्र में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर लिखना निःसन्देह एक ऐसी अवांछित प्रवृत्ति है जिस पर यथाशीघ्र रोक लगाना आवश्यक है। सुविदित ही है कि अनेक छात्र परीक्षाओं के दौरान प्रश्नों का उत्तर लिखते समय अनुचित सामग्री जैसे पुस्तक, कागज की पची आदि की सहायता लेते हैं। परीक्षा केन्द्रों पर सामूहिक नकल (Mass Copying) होने तथा चाकू-पिस्तौल बम आदि दिखाकर कक्ष निरीक्षकों को आतंकित करके नकल करने जैसे समाचार परीक्षाओं के दौरान सुनाई पड़ना समान्य सी घटना हो गई है। नकल की बढ़ती हुई प्रचृत्ति को देखकर ही कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार को नकल विरोधी अध्यादेश पारित करने के लिए विवश होना पड़ा था जिसमें नकल को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया था।
वस्तुतः परीक्षाओं में नकल का होना शिक्षा प्रणाली के उद्देश्यों को नकार देना है। परन्तु खेद का विषय यह है कि हमारा समाज नकल की घातक समस्या का समाधान करने में विफल होता प्रतीत हो रहा है। अध्यापकों का नैतिक बल क्षीण हो गया है। वे स्वयं को परीक्षा के दौरान छात्रों को नकल से रोकने में असमर्थ पाते हैं। अभिभावक भी अपने पाल्यों के इस अनैतिक, अविधिक व हिंसात्मक आचरण को जाने-अनजाने समर्थन देते प्रतीत होते हैं। छोटे-स्तर पर होने वाली नकल को तो छोड़ दीजिए, सामूहिक नकल होने की स्थिति में भी अध्यापकों, अभिभावकों तथा समाज के प्रबुद्ध वर्ग का स्वर उस परीक्षा केन्द्र के परीक्षाफल को निरस्त करने तथा उस केन्द्र पर निरीक्षण कार्य में संलग्न कक्ष निरीक्षकों एवं केन्द्र व्यवस्थापक के प्रति कठोर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की मॉग के लिए मुखर नहीं होता है। यदि कहीं कतिपय छात्र, अध्यापक, अभिभावक या समाज का जागरूक वर्ग अपने कर्तव्य को समझकर कुछ चिन्तन करता भी है, तो वे अपनी शक्ति व समय को प्रचलित शिक्षा व्यवस्था तथा राजनैतिक परिदृश्य पर दोषारोपण करने में ही व्यर्थ कर देते हैं। परिणामतः उनके प्रयासों का कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ पाता है । नकल करने की बढ़ती प्रवृत्ति ने सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया को भ्रष्ट व दूषित करके एक भयावह स्थिति में पहुँचा दिया है। ऐसी परिस्थिति में यह स्वाभाविक ही है कि परीक्षाओं में इस प्रवृत्ति को रोकने हेतु आवश्यक सुधार करने के लिए नवीन चिन्तन किया जाये जिससे नकल को रोका जा सके तथा परीक्षा प्रणाली पूर्ववत अपने गौरवशाली स्थान को प्राप्त कर सके। वस्तुतः परीक्षा का उद्देश्य छात्रों के द्वारा अर्जित ज्ञान, बोध व कौशल आदि का मापन करना है। यदि छात्र परीक्षा में किसी भी प्रकार के अनुचित साधन का प्रयोग करते हैं तब परीक्षा का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। कुछ छात्रों के द्वारा अनुचित साधनों के प्रयोग के फलस्वरूप वे छात्र, जो अनुचित साधनों का प्रयोग नहीं करते हैं, बहुत ही दयनीय व निराशाजनक स्थिति में रह जाते हैं। वे नकल करने वाले छात्रों से योग्य होकर भी कम अंक प्राप्त करते हैं तथा प्रतियोगिता के वर्तमान दौर में उनसे पिछड़ जाते हैं। पूर्व में चर्चा की जा चुकी है। कि प्रचलित परीक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को ध्यान में रखकर विद्वानों के द्वारा अनेक परीक्षा सुधारों को अपनाने का सुझाव दिया गया है। इन परीक्षा सुधारों में एक परीक्षा सुधार खुली पुस्तक परीक्षा प्रणाली (Open Book Examination System) को अपनाने का भी है। खुली पूस्तक परीक्षा वास्तव में शिक्षा में एक ऐसा नवाचार (innovation) है जो अपनी अनेक कठिनाइयों व बाधाओं के बावजूद भी नकल की समस्या का समाधान करने की दिशा में अत्यन्त उपादेय सिद्ध हो सकता है।
खुली पुस्तक परीक्षा (Open-book Examination) से तात्पर्य परीक्षा के समय छात्रों को पुस्तकों अपने साथ रखने तथा उन्हें देखने की अनुमति देने से है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि खुली पुस्तक परीक्षा प्रणाली में छात्र प्रश्नपत्र में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देते समय पुस्तकों की सहायता ले सकेंगे। यहाँ यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेने की है कि इस प्रणाली में पूस्तकों से तात्पर्य पाठ्यपुस्तकों अथवा सन्दर्भ पुस्तकों से है न कि सस्ते बाजारू नोट्स अथवा गाइडों अथवा प्रश्नोत्तर पुस्तकों से हैं। खुली पुस्तक परीक्षा प्रणाली के पीछे निहित तर्क है कि छात्रों में ज्ञान संचय के परम्परागत दूषित व संकुचित दृष्टिकोण को समाप्त करने के लिए परीक्षा में रटन्त स्मरण के स्थान पर बोध, चिन्तन, मनन विश्लेषण, संश्लेषण, समस्या-समाधान आदि योग्यताओं के मापन को अधिक वरीयता देने की आवश्यकता है। इसके लिए खुली पुस्तक परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति को प्रचलित परीक्षा में पूछे जान वाले प्रश्नों से भिन्न करना होगा। परम्परागत परीक्षाओं में प्रायः सीधे-सीधे बर्णनात्मक प्रकृति के प्रश्न पूछे जाने का प्रचलन है जबकि खुली पुस्तक परीक्षा में बोध, कीशल, विश्लेषण, संश्लेषण, अनुप्रयोग आदि पर आधारित प्रश्नों को ही सम्मिलित करना होगा जिससे छात्र परीक्षा में उन्हें उपलब्ध पुस्तकों से अपने उत्तरों को सीधे-सीधे न दे सके। इस प्रकार के सत्र के दौरान प्रश्नों का उत्तर देते समय छात्र परीक्षा में पुस्तकों का उपयोग तब ही कर सकते हैं जब उन्होंने उन पुस्तकों का विधिवत अध्ययन किया हो तथा वे उनमें से आवश्यकतानुसार सूचनाये खोजने में निपुण हों।
परीक्षा के समय छात्रों को पुस्तके साथ रखने की स्वतन्त्रता देने पर परीक्षा में नकल करने की समस्या स्वतः समाप्त हो जायेगी, ऐसी आशा की जा सकती है। परन्तु इसमें परीक्षकों तथा कक्ष निरीक्षकों की भूमिका अधिक उत्तरदायित्व पूर्ण हो जायेगी । प्रश्नपत्र निर्माता को बहुत ही सावधानी तथा परिश्रम के साथ ऐसे प्रश्नों की रचना करनी होगी जिनका तैयार (Readymade) उत्तर न मिल सकें। सीधे-सीधे पूछे जाने वाले रटन्त स्मरण पर आधारित प्रश्न इस प्रकार की परीक्षा में महत्वहीन हो जायेंगे। छात्रों के उत्तरों का मूल्यांकन करते समय परीक्षकों को भी अपना कार्य ध्यानपूर्वक करना होगा जिससे छात्रों की वास्तविक योग्यताओं का मापन हो सके। कक्ष निरीक्षकों को ध्यान देना होगा कि छात्र परीक्षा के दौरान केवल पाठ्यपुस्तके या स्वीकृत सन्दर्भ पुस्तकें ही अपने पास रखे। स्वनिर्मित नोट्स, गाइड, प्रश्नोत्तर पुस्तकें आदि छात्रों को परीक्षा में कदापि उपलब्ध नहीं होनी चाहिए। यहाँ यह इंगित करना भी उचित ही होगा की खुली-पुस्तक परीक्षा प्रणाली छोटी कक्षाओं की अपेक्षा उच्चस्तरीय कक्षाओं के लिए सम्भवतः अधिक लाभप्रद सिद्ध हो सकती है। अन्त में कहा जा सकता है कि खुली-पुस्तक परीक्षाओं के फलस्वरूप छात्रों में रटन्त स्मरण के स्थान पर बोध, कीशल व अनुप्रयोग की क्षमता अर्जित करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलने की आशा है जो शिक्षा के लिए एक सुखद आयाम होगा।
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