राजनीति विज्ञान / Political Science

हॉब्स, लॉक और रूसो की तुलना | प्राकृतिक अवस्था के विषय में हांब्स, लांक और रूसा के विचारों की तुलना | सामाजिक समझौते के विषय में हॉब्स, लाक तथा रूसो के विचारों की तुलना | प्राकृतिक अवस्था के सम्बन्ध में हॉस, लॉक और रूसो के विचारों की तुलना

हॉब्स, लॉक और रूसो की तुलना | प्राकृतिक अवस्था के विषय में हांब्स, लांक और रूसा के विचारों की तुलना | सामाजिक समझौते के विषय में हॉब्स, लाक तथा रूसो के विचारों की तुलना | प्राकृतिक अवस्था के सम्बन्ध में हॉस, लॉक और रूसो के विचारों की तुलना

हॉब्स, लॉक और रूसो की तुलना

सामाजिक समझौते की धारणा से पहले शासक के दैवी अधिकार के सिद्धान्त क प्रतिपादन किया जा रहा था। इंग्लैण्ड तथा फ्रांस आदि देशों के राजा अपने अधिकारों का स्रोत ईश्वर को बताते थे। उनकी यह धारणा निरंकुशता का समर्थन कर रही थी। ऐसे समय में सामाजिक समझौते का विचार बड़ा क्रान्तिकारी था। इस सिद्धान्त में यह विचार निहित है कि व्यक्तियों के पारस्परिक सहयोग से समझौते का निर्माण हुआ और इस समझौते के फलस्वरूप राज्य का जन्म हुआ। इस प्रकार इससे दैवी अधिकार के सिद्धान्त का खंडन हुआ तथा राज्य कृत्रिम एवं मनुष्यकृत संस्था मानी जाने लगी। इस सिद्धांत के अनुसार कुछ कारणों से कुछ उद्देश्यों की पूर्ति हेतु राज्य का निर्माण व्यक्तियों ने किया था। हॉब्स, लॉक व रूसो तीनों ही दार्शनिक अपने-अपने दृष्टिकोण से इस समझौते की व्याख्या करते हैं जो अनलिखित है :-

सामाजिक संविदा के संबंध में हांब्स, लॉक तथा रूसों के विचारों की तुलना

हांब्स के अनुसार

(1) मानव स्वभाव

वह मानव जीवन को स्वभाव से एकाकी, दरिद्र, घृणास्पद, नष्टप्राय तथा क्षणिक (Solitary, poor, brutish and short) मानता है। वह आसुरी भावना रखने वाली, शक्ति तथा कीर्ति का प्रतीक है।

(2) प्राकृतिक अवस्था

मानव के आसुरी स्वभाव के कारण सतत युद्ध की अवस्था,जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिद्धांत, अराजकता की स्थिति तथा भय का वातावरण के कारण भयंकर स्थिति हो गई थी।

(3) प्राकृतिक आधार

प्रत्येक मानव की शक्ति के अनुसार उसके अधिकार, जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिद्धांत था। प्रत्येक व्यक्ति को आत्म संरक्षण का अधिकार प्राप्त था। जिससे प्राकृतिक नियम संबंधित था।

(4) समझौते की आवश्यकता

सतत युद्ध तथा अराजकता की अवस्था से बचकर प्राण रक्षा के निमित्त समझौता करना आवश्यक हुआ।

(5) समझौते का स्वरूप

आत्मरक्षा तथा प्राण रक्षा के लिए मनुष्य ने परस्पर समझौता इन शब्दों में किया “मैं समस्त नियंत्रण कारी शक्तियां इस व्यक्ति या व्यक्ति समूह को सौंपता हूं यदि तुम सब भी अपनी समस्त नियंत्रणकारी शक्तियां उसी प्रकार सौंप दो।” इस प्रकार अपने समस्त अधिकार (प्राण रक्षा के अधिकार को छोड़कर) राज्य को साफ कर मानव पूर्णरूपेण राज्य के अधीन हो जाता है।

(6) प्रभुसत्ता

व्यक्तियों ने परस्पर समझौता किया। राजा से कोई समझौता नहीं हुआ; अतः यह समर्पण की स्थिति है, जिसमें राजा सर्वोच्च, निरंकुश, अमर्यादित हो जाता है। परिणामस्वरूप राजसत्ता (1) अविभाज्य, (2) सर्वोच्च, (3) निरंकुश, (4) समस्त कानूनों का स्रोत, (5) धर्म से ऊपर हो जाती है। वह संपत्ति तथा न्याय का स्रोत हो जाती है।

व्यक्तियों को शासक के विरुद्ध क्रांति करने का अधिकार नहीं रहता। वह केवल जीवन की सुरक्षा के आधार पर राज  वह केवल जीवन की सुरक्षा के आधार पर राजआज्ञा की अवहेलना कर सकता है। राजा व्यक्ति की संपत्ति छीन लेने पर भी न्यायशील कहलाएगा। क्यों वह किसी समझौते से बंधा ना होने पर किसी समझौते का बंद करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

इस प्रकार हांब्स का समझौता निरंकुश राजतंत्र की स्थापना करता है जिससे निरंकुश प्रभुसत्ता का सिद्धांत प्रतिपादित होता है।

(7) व्यक्ति एवं राज्य का संबंध

हांब्स ने निरंकुश शासन की स्थापना की है जिसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता छीन जाती है। प्राण रक्षा के अधिकार को छोड़कर व्यक्ति जिन अधिकारियों का प्रयोग करता है वे उसे शासक से प्राप्त हुए हैं; अतः शासक उन्हें छीन सकता है। व्यक्ति को शासक के विरुद्ध कोई अधिकार नहीं है।

लॉक के अनुसार

(1) मानव स्वभाव

मानव जीवन शांति प्रिय, सद्भावना, पारस्परिक सहयोग तथा सुरक्षा आयुक्त (peace, goodwill, mutual, assistance and preservation) वह अधिकारों का उपभोग व कर्तव्यों का पालन करने वाला है।

(2) प्राकृतिक अवस्था

परस्पर सद्भावना तथा पारस्परिक सहयोग की अवस्था थी। प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक कानून की व्याख्या करने तथा उसके तोड़ने वाले को दंड देने का अधिकार प्राप्त था।

(3) प्राकृतिक आधार

निम्न प्राकृतिक अधिकार मनुष्य को जन्म से ही प्राप्त होते हैं।

(1) जीवन का अधिकार

(2) संपत्ति का अधिकार

(3) स्वतंत्रता का अधिकार प्राकृतिक नियम विवेक पर आधारित थे।

(4) समझौते की आवश्यकता

प्राकृतिक नियमों की व्याख्या करने, उन्हें लागू करने तथा उन को तोड़ने पर दंड की व्यवस्था करने के लिए समझौता करना आवश्यक हुआ।

(5) समझौते का स्वरूप

प्राकृतिक नियमों की व्याख्या तथा उन्हें भली प्रकार लागू किए जाने के लिए व्यक्तियों ने परस्पर समझौता किया। प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक कानून के स्वयं व्याख्या करने, स्वयं उसे लागू करने तथा अपराधी को स्वयं दंड देने के अपने प्राकृतिक अधिकार का परित्याग करके उसे संपूर्ण समाज को सौंप देता है।

समझौते का मुख्य उद्देश्य संपत्ति की सुरक्षा है जिसमें जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार भी सम्मिलित है।

इस समझौते के द्वारा व्यक्ति शासक को समस्त नहीं बल्कि कुछ अधिकारी शॉप के हैं। शासक समझौते के फल स्वरुप व्यक्ति के जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता का हरण नहीं कर सकता।

यह समझौता सामाजिक तथा राजनीतिक दो प्रकार का होने के कारण द्विपक्षीय है। शासक के अधिकार सीमित हैं।

(6) प्रभुसत्ता

राजा पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न नहीं है क्योंकि वह व्यक्तियों के जीवन; संपत्ति तथा स्वतंत्रता के अधिकारों का अपहरण नहीं कर सकता। शासक को सीमित अधिकार प्राप्त है। राज्य का जन्मे व्यक्ति की रक्षा करने के लिए हुआ है और शासक समझौते से बंधा है। समझौतों को भंग करने पर प्रजा शासक को हटा सकती है। शासक के हटने पर भी सामाजिक व्यवस्था भंग नहीं होती है तथा व्यक्ति प्राकृतिक अवस्था में नहीं पहुंच जाते।

इस प्रकार लांक का समझौता सीमित राजतंत्र का समर्थन करता है जिससे सीमित (वैधानिक) प्रभुसत्ता का सिद्धांत प्रतिपादित होता है।

(7) व्यक्ति एवं राज्य का संबंध

राज्य व्यक्ति से जीवन, संपत्ति तथा स्वतंत्रता का अधिकार नहीं छीन सकता। इन अधिकारियों के अतिक्रमण किए जाने पर व्यक्ति राजा के विरुद्ध विद्रोह करके उसे हटा सकते हैं।

रूसों के अनुसार

(1) मानव स्वभाव

आदिम अवस्था में मानव पशु समान निष्पाप, सहज भावना के वशीभूत बुद्धिहीन, नैतिकता की धारणा से अनजान तथा संपत्ति शून्य था। केवल दो भावनाएं अस्तित्व में थीं-(1) आत्म संरक्षण तथा (2) सहानुभूति।

(2) प्राकृतिक अवस्था

शांति की अवस्था, आदर्श स्थिति, सुख व दु:ख तथा विवेक व विवेक की धारणा से शून्य मानव आत्म-निर्भर तथा नि:स्वार्थी था।

(3) प्राकृतिक आधार

मनुष्य को प्राकृतिक दशा में सब अधिकार प्राप्त थे तथा वह स्वतंत्रता पूर्वक उन अधिकारों का उपयोग करता था। प्राकृतिक नियम का आधार बुद्धि न होकर सहज प्रेरणा थी।

(4) समझौते की आवश्यकता

सभ्यता के फल स्वरुप व्यक्तिगत संपत्ति का जन्म हुआ जिससे मेरे-तेरे की भावना पैदा हुई। आर्थिक विषमता से ईर्ष्या एवं द्वेष उत्पन्न हुआ, भूमि पर स्वामित्व दास-प्रथा, शोषण, दरिद्रता, हत्या की विकृतियों के कारण समझौता करना आवश्यक हो गया।

(5) समझौते का स्वरूप

सभ्यता के फल स्वरुप संपत्ति का जन्म हुआ जिससे समाज में आर्थिक विषमता, ईर्ष्या तथा तेरे- मेरे की भावना पैदा हुई। फलतः जीवन असह्य हो गया है और इस कारण समझौते की आवश्यकता हुई। समझौता इस प्रकार हुआ :-

“हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर व शक्ति को अन्य सबके साथ संयुक्त सामान्य इच्छा के संचालन में रखता है और अपने सामूहिक रूप में प्रत्येक व्यक्ति को समष्टि के अविभाज्य अंश के रूप में ग्रहण करता है।” उदाहरण के लिए क, ख, ग, घ चार व्यक्ति हैं। क अपने अधिकार (क + ख + ग + घ) को सामूहिक रूप देता है। इस प्रकार एक व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से अपने सभी अधिकार सभी व्यक्तियों के सामूहिक रूप को सौंप देता है। इसी से रूसो की धारणा सामान्य इच्छा (General will) का जन्म होता है।

(6) प्रभुसत्ता

जनता व्यक्तिगत रूप से नहीं बल्कि सामूहिक रूप में सर्वोच्च है और सर्वोच्च सत्ता जनता की इच्छा में निहित है। व्यक्ति का सामूहिक रूप ही जिसे रूसो सामान्य इच्छा कहता है संप्रभु है। मनुष्यों की सामान्य इच्छा में प्रभुसत्ता निहित है जिसके आधार पर ही शासक को शासन करने का अधिकार प्राप्त हुआ है। इस प्रकार प्रभु सत्ता में- (1) एकता, (2) अविभाज्यता, (3) अदेयता, (4) निरंकुशता, तथा (5) स्थायित्व के गुण हैं। इसका प्रतिनिधित्व भी नहीं हो सकता।

इस प्रकार रूसो का समझौता लोकप्रिय प्रभुसत्ता का सिद्धांत प्रतिपादित करता है। लेकिन शासक को सामान्य इच्छा की व्याख्या करने का एकमात्र अधिकार देकर रूसो शासक को पूर्ण निरंकुश बना देता है।

(7) व्यक्ति एवं राज्य का संबंध

व्यक्ति का सामूहिक रूप सामान्य इच्छा के रूप में शासक का निर्देशन एवं नियंत्रण करता है। राज्य के द्वारा लगाए गए बंधन व्यक्ति ने अपनी इच्छा से स्वीकार किए हैं और इसी में उसकी स्वतंत्रता निहित है। व्यक्ति राज्य से बाहर कुछ नहीं है। सामान्य इच्छा को शासक के विरुद्ध क्रांति करने का अधिकार है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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