सिन्धु घाटी की सभ्यता

सिन्धु घाटी की सभ्यता | सिन्धु घाटी की सभ्यता का स्वरूप | सिन्धु सभ्यता के मौलिक गुण अथवा आधारभूत विशेषताएं | हड़प्पा की सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

सिन्धु घाटी की सभ्यता | सिन्धु घाटी की सभ्यता का स्वरूप | सिन्धु सभ्यता के मौलिक गुण अथवा आधारभूत विशेषताएं | हड़प्पा की सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं

सिन्धु घाटी की सभ्यता-

केवल भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की अमूल्य धरोहर नहीं है अपितु यह विश्व सभ्यता एवं संस्कृति की महत्वपूर्ण कड़ी है। इस सभ्यता का जन्म विश्व सभ्यता के ऊषाकाल में हुआ था तथा अन्य आदि सभ्यताओं की भांति इस सभ्यता का क्रीडा क्षेत्र नदी घाटी से सिंचित प्रदेश था। अनेकानेक प्रमाणों द्वारा यह पूर्णरूप से निश्चित हो गया है कि इस सभ्यता का विस्तार क्षेत्र अति व्यापक था। उत्खनन द्वारा सिन्धु सभ्यता की चालीस बस्तियों का पता चला है। इस सभ्यता के अनेक उत्खननों द्वारा प्राचीन नगरों के एक के ऊपर एक सात नगरों के बसने, पनपने तथा ध्वस्त होने के प्रमाण मिले हैं। अनुमान लगाया जाता है कि सिन्धु सभ्यता के और भी प्राचीनतम स्तर रहे होंगे। पुरातत्वशास्त्रियों के अनुसार सिन्धु सभ्यता ईसा से लगभग चार हजार वर्ष पूर्व की है।

विस्तार- सिन्धु सभ्यता के नाम के आधार पर इस सभ्यता का विस्तार क्षेत्र सिन्धु नदी घाटी का निकटवर्ती स्थान मान लेना भारी भूल होगी। इसका क्षेत्र अति विस्तृत था तथा इस सभ्यता के विशेष उल्लेखनीय केन्द्रों में मोहनजोदड़ो, हडप्पा, रूपड़, अलीमुराद, दबारकोट, घुण्डई, पेरियानो, मेही, कुल्ली, अमरी, लोहमजोदड़ो तथा रंगपुर आदि प्रमुख हैं।

सिन्धु घाटी की सभ्यता का स्वरूप

सम्पूर्ण मानव जाति तथा उसकी सांस्कृतिक व्यवस्थाओं के कुछ मौलिक गुण होते हैं जो किसी भी सभ्यता तथा संस्कृति का स्वरूप निर्धारण करते हैं। जब हम इस दृष्टिकोण से सिन्धु घाटी की सभ्यता के विषय में विचार करते हैं तो हमें इस सभ्यता के स्वरूपों अथवा मौलिक गुणों का पता चलता है। मोटे तौर पर इस सभ्यता का स्वरूप मानव कल्याण, प्रेम, सहिष्णुता आदर, शान्ति, धैर्य आदि गुणों से युक्त था। वैसे सिन्धु सभ्यता के मौलिक गुणों में ही इस सभ्यता के स्वरूपों का दर्शन किया जा सकता है।

सिन्धु सभ्यता के मौलिक गुण अथवा आधारभूत विशेषताएं

सिन्धु घाटी की सभ्यता के मौलिक गुण अथवा आधारभूत विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

(1) उन्नत, उल्लासपूर्ण तथा बिलासमय नगर सभ्यता- सर जॉन मार्शल के अनुसार, “यहाँ (सिन्धु घाटी) का साधारण नागरिक जिस मात्रा में सुविधा तथा विलास का उपभोग करता था-उसकी तुलना तत्कालीन सभ्य संसार के अन्य भागों से नहीं की जा सकती। विशाल, सुनियोजित, साफ सुथरे, नियम बद्ध तथा उपयोगी आदि ऐसे विश्लेषण हैं जिनका प्रयोग सिन्धु सभ्यता के नगर जीवन के विषय में करने में इतिहासकार को तनिक भी हिचक नहीं होती। सिन्धु सभ्यता का हर पहलू- चाहे वह सामाजिक जीवन हो या धर्म सम्बन्धी मान्यता, चाहे वह आर्थिक क्षेत्र हो या जीवन-यापन की दैनिक विधि-इस बात के प्रमाण हैं कि यहाँ की सभ्यता उच्चस्तरीय रूप से नगर प्रधान थी तथा नागरिकों का जीवन हर्षोल्लास से परिपूर्ण एवं विलासमय था।

(2) दृढ़ शासन व्यवस्था- सिन्धु घाटी की शासन-व्यवस्था का स्वरूप तथा विधि निर्धारण करने वाले किसी साक्ष्य की प्राप्ति नहीं हुई है तथापि यह बात निश्चित रूप से कहीं जा सकती है कि इस सभ्यता के सुख-शान्तिपूर्ण जीवन का दिशा-निर्देशन तथा नियन्त्रण किसी सुदृढ़ तथा शक्तिशाली शासन-व्यवस्था द्वारा किया जाता था। नगर निर्माण द्वारा यह स्पष्ट होता है कि इस समय नगरपालिका जैसी कोई संस्था पर्याप्त विकसित हो चुकी थी। नापतौल आदि के विषय में नियमों का अनुसरण किया जाना, नगरों में नियोजन तथा स्वच्छता आदि की ओर विशेष ध्यान दिया जाना, जल की सुन्दर व्यवस्था, सुख सुविधाओं को प्रदान करने तथा शान्ति व्यवस्था आदि बनाये रखने के लिये किसी न किसी रूप में व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका जैसी संस्थायें भी अवश्य ही रही होंगी! हमें प्रतीत होता है कि इस समय सुचारू रूप से कार्य-संचालन करने के लिये केन्द्रीय सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया था।

(3) उद्योग, व्यापार, वाणिज्य आदि आर्थिक विषयों की प्रधानता- सिन्धु घाटी के उत्खनन द्वारा प्राप्त सामग्री में अपूर्व विविधता का होना इस बात की ओर संकेत करता है कि इस समय नागरिक जीवन बहुमुखी था। इस कारण व्यापार, वाणिज्य तथा उद्योग आदि का पनपना स्वाभाविक ही था। सिन्धु घाटी की सभ्यता में उद्योग धन्धों आदि की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था।

(4) काँस्यकाल का चरमोत्कर्ष- जिस समय सिन्धु सभ्यता की विकास प्रक्रिया प्रारम्भ हुई थी, उस समय काँस्यकाल लगभग समाप्ति के चरणों में था। इस सभ्यता में काँस्यकाल के चरमोत्कर्ष के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं।

(5) धार्मिक क्षेत्र की मौलिकता- सिन्धु घाटी की सभ्यता तथा संस्कृति अपने धार्मिक विश्वासों तथा विचारों में अति मौलिक है। सिन्धुजन द्विदेव में विश्वास करते तथा नारी एवं पुरुष को ईश्वर की सृष्टि का प्रतीक मानते थे। उनका धार्मिक जीवन पवित्र, स्वच्छ तथा सोद्देश्य पूर्ण था।

(6) कला विषयक मौलिकता- सिन्धु घाटी की कला भारतीय कला के इतिहास में एक चमत्कारिक अध्याय है। यह कला अपने रूपों तथा गुणों में पूर्णरूप से मौलिक तथा विदेशी प्रभाव से मुक्त है। सिन्धु घाटी की कला का सौन्दर्य, आकर्षण तथा अनुभूति मौलिकता से ओत-प्रोत है।

(7) नगर भवन तथा गृह निर्माण कला की मौलिकता- सिन्धु घाटी की सभ्यता के समस्त प्रमाणों में तत्कालीन नगर, भवन, स्नानागार, दुर्ग अथवा बाँध निर्माण एवं गृह निर्माण की कला की मौलिकता झलकती है।

(8) शान्तिप्रियता- सिन्धु सभ्यता में अस्त्र-शस्त्र, युद्ध तथा युद्ध विषयक उपकरणों का अभाव सा है। प्रतीत होता है कि यहाँ के निवासी अति सहृदय, सद्भावनापूर्ण तथा शान्तिप्रिय थे। विश्व की तत्कालीन सभ्यताओं की तुलना में, सिन्धुवासियों की शान्तिप्रियता निश्चय ही एक मौलिक गुण तथा अद्भुत उपलब्धि थी।

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