अर्थशास्त्र / Economics

आर्थिक विकास | आर्थिक विकास की प्रक्रिया | आर्थिक विकास की प्रक्रिया पर जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव

आर्थिक विकास | आर्थिक विकास की प्रक्रिया | आर्थिक विकास की प्रक्रिया पर जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव | economic development in Hindi | process of economic development in Hindi | Effect of Population Growth on the Process of Economic Development in Hindi

आर्थिक विकास

‘आर्थिक विकास’ का अभिप्राय उस प्रक्रिया (Process) से है, जिसके द्वारा किसी राष्ट्र की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में दीर्घकाल तक वृद्धि होती है तथा भौतिक कल्याण का स्तर ऊँचा उठता है। आर्थिक विकास  की प्रक्रिया में श्रमशक्ति द्वारा राष्ट्र प्राकृतिक- संसाधनों का विदोहन निहित होता है। निःसन्देह विकास के प्रयत्नों में श्रमशक्ति धनात्मक योगदान करती है किन्तु यह भी तय है कि तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या आर्थिक प्रगति में बाधक सिद्ध होती है। जनसंख्या संसाधनों की अपेक्षा श्रम की पूर्ति स्वल्प होती है। भारत सरीखे अल्पविकसित देशों में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या विकास मार्ग में मुख्य है।

साइमन कुजनेट्स (Simon Kuznets), हैन्सन (Hansen), आर्थर लुईस (Arthur Lewis), कॉलिन क्लार्क (Colin Clark), हर्षमैन (Hirschman), रिचार्ड टी. गिल (Richard T. Gill), फ्रेडरिक हरलिसन (Ferdrick Harlison), पेनरोज (Penrose), एल्फ्रेड बोन (Alfred Bonne), बुशकिन (Bushkin), तथा जेरमी बेन्थम (Jermy Bentham) ने जनसंख्या- वृद्धि का आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव स्वीकार किया है। जनसंख्या की वृद्धि न केवल  आर्थिक विकास को प्रभावित करती है, अपितु स्वयं भी आर्थिक विकास से प्रभावित होती है। आर्थिक विकास की अन्तिम अवस्था अर्थात् ‘विशाल उपभोग’ (Mass Consumption) की स्थिति में जन्म-दर और मृत्यु दर दोनों नीची हो जाती हैं। फलतः कुल जनसंख्या में हास्य के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। आर्थिक विकास की प्रक्रिया पर जनसंख्या वृद्धि का अनुकूल प्रभाव निम्न कारणों से पड़ता है-

  1. श्रम की पूर्ति-

‘आर्थक विकास’ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों, श्रम-शक्ति, पूँजी और तकनीकी ज्ञान का फलन (Function) होता है। इनमें से श्रम-शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है, क्योंकि विकास की प्रक्रिया में यही एकमात्र गतिशील तत्व है। फ्रेडरिक हरलिसन के अनुसार, पूँजी, प्रकृतिक संसाधन-विदेशी सहायता और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सामान्यतः आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं, किन्तु श्रमशक्ति की बराबरी कोई नहीं कर सकता। उत्पादन के निष्क्रिय साधनों को धनोत्पादन में जुटाने की एकमात्र श्रेय श्रमशक्ति को है। साइमन कुजनेट्स के अनुसार, अन्य बातें समान रहते हुए ‘जनसंख्या में वृद्धि’ का अर्थ श्रमशक्ति में वृद्धि होता है। जनसंख्या वृद्धि का श्रमशक्ति के लिये निश्चित अंशदान इस बात पर निर्भर करता है कि क्या जनसंख्या की वृद्धि मृत्यु दर में गिरावट, शुद्ध आवास या जन्म-दर में वृद्धि की परिणाम है अथवा नहीं।

  1. पूँजी निर्माण में वृद्धि-

रेलों, सड़कों, बांधों, पुलों, नहरों, जलाशयों एवं भवनों का निर्माण तथा वृक्षारोपण सरीखें कार्यों में रम की अधिक आवश्यकता पड़ती है। इसलिये नक्सें (Neurkse) ने अल्प-विकसित देशों में अदृश्य बेरोजगारी के रूप में विद्यमान अतिरेक जनशक्ति को ‘बचत-सम्भाव्य’ (Saving Potential) की संज्ञा दी है, जिसे पूँजी-सृजक परियोजनाओं में लगाया जा सकता है।

  1. कृषि का विकास-

आर्थिक विकास हेतु कषि का सुदृढ़ आधार आवश्यक है, ताकि निरन्तर बढ़ती हुई शहरी जनसंख्या की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके; उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चा माल उत्पन्न हो सके, अर्थ-व्यवस्था के कृषि स्तर क्षेत्रों के विकासार्थ अतिरेक (बचत) उपलब्ध हो सके तथा कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाकर विकास कार्यों के लिये विदेशी विनिमय अर्जित की जा सके। कृषि का आधार सुदृढ़ बनाने के लिये सघन कृषि तकनीक अपनायी जानी चाहिये, जिसके लिये पर्याप्त संख्या में कृषि श्रमिकों की उपलब्धता आवश्यक होती है।

  1. उद्योग एवं वाणिज्य का विकास-

उद्योग एवं वाणिज्य के विकास हेतु बड़ी संख्या में निपुण एवं प्रशिक्षित श्रमिकों की उपलब्धता आवश्यक है। जनसंख्या अथवा श्रमशक्ति की न्यूवता के कारण सूक्ष्म श्रम विभाजन प्रणाली का प्रयोग तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना असम्भव है। डी. ब्राइट सिंह (D. Bright Singh) के अनुसार, जनसंख्या का विकास श्रम विभाजन के विस्तार तथा अधिक विशिष्टीकरण को जन्म देता है तथा पैमान की बचतें उत्पन्न करता है। यह द्रुत तकनीकी प्रगति एवं संगठनात्मक सुधार सम्भव बनाता है।

  1. बाजार का विस्तार-

बढ़ती हुई जनसंख्या उत्पादकों को अपने ही देश में विस्तृत बाजार उपलब्ध कराती है, जिसमें उन्हें उत्पादन बढ़ाने की प्रेरणा मिलती है। एडलमैन (Adelman) के अनुसार, ‘साधन’ के रूप में मनुष्य उत्पादन-क्रियाओं के अन्य साधनों के साथ प्रयुक्त होने के लिये उपलब्ध होता है, जबकि ‘उपभोक्ता'(साध्य) के रूप में आर्थिक विकास का ध्येय उसकी आकांक्षाओं की सन्तुष्टि करना होता है।

  1. तकनीकी प्रगति-

साइमन कुजनेट्स के अनुसार, “आर्थिक उत्पादन की वृद्धि (आर्थिक विकास) परीक्षित ज्ञान (Tested knowledge) के स्टॉक में वृद्धि का फलन है। परीक्षित ज्ञान को जन्म देने वाले वैज्ञानिक, आविष्कारक, इन्जीनियर तथा प्रबन्धक सभी  जनसंख्या के सदस्य होते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या इन सृजनात्मक मस्तिष्कों की संख्या भी बढ़ाती है, जिससे उत्पादन में वृद्धि सम्भव होती है।”

  1. साधनों में समन्वय-

विकास की प्रक्रिया के विभिन्न साधनों का प्रभावी उपयोग तभी सम्भव है, जबकि मानवीय संसाधन योग्यतानुसार और उचित ढंग से कार्य कर रहे हों।

साइमन कुजनेट्स के अनुसार, “आधुनिक समय में जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन में भी वृद्धि हुई है।” अनेक देशों में यह वृद्धि इतनी अधिक रही है कि उनकी प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में दीर्घकालीन वृद्धि दिखाई दी है। इसलिये हैनसन ने जनसंख्या वृद्धि को आर्थिक विकास की पूर्व आवश्यकता माना है। वस्तुतः जनसंख्या की वृद्धि आर्थिक विकास को तभी प्रोत्साहित करती है, जबकि पूँजी तथा प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में श्रम की पूर्ति न्यून हो।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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