हिंदी साहित्य का इतिहास

अमीर खुसरो एक सच्चे देशभक्त | अमीर खुसरो आदिकाल की खड़ी बोली के कवि है।

अमीर खुसरो एक सच्चे देशभक्त | अमीर खुसरो आदिकाल की खड़ी बोली के कवि है।

अमीर खुसरो एक सच्चे देशभक्त थे

अमीर खुसरो को माता हिन्दुस्तानी और पिता तुर्क थे। उनके नामा इमादुलमुल्क हिन्दुस्तानी तो थे ही, उनका रंग भी बना हुआ था वह पानी के बहुत शौकीन थे गोष्ठियों में अपने साथियों को पान खिलाया करते थे। शिष्टाचार और अंदब उनके रग-रग में समाया हुआ था। भारतीयता के गुण उन्हें अपने मामा और माताजी से विरासत में मिले थे। खुसरो को अपने हिन्दुस्तानी होने का बड़ा गर्व था। मसनवी ‘नुह सिपहर’ में उन्होंने लिखा है कि-

‘हस्त मरा मौलिद-ओ-मावा ओ वतन” अर्थात् यही मेरा जन्म स्थान और यही मेरी मात्रभूमि है वह हिन्दुस्तान के सच्चे देशभक्त थे। अपने काव्य में उन्होंने हिन्दुस्तान की जमकर प्रशंसा की है और जहाँ-जहाँ प्रशंसा की है वहाँ उनका रोम-रोम झूम उठा है। मसनवी ‘नुह सिपहर’ का तीसरा सिपहर (परिच्छेद जो सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण है वह पूरा का पूरा हिन्दुस्तान की गौरव गाथाओं से भरा हुआ है। इसमें लगभग पाँच सौ शेर हैं, जिनमें हिन्दुस्तान के निवासियों की विद्वता, ‘बुद्धिमता धर्म, कर्म, आस्था, विश्वास, भाषायें, रस्म-रिवाजों, पक्षियों, मौसमों, फल-फूलों आदि के विषय में अत्यन्त प्रभावकारी एवं भाव प्रवणता के साथ किया गया वर्णन मिलता है। ऐसी मिसाल शायद ही किसी दूसरे के काव्य में मिल सकें एक स्थल पर उन्होंने अपनी पैतृक भाषा तुर्की और फारसी की अपेक्षा हिन्दी को वरीयता देते हुए लिखा है कि ‘फारसी और तुर्की की अपेक्षा हिन्दवी को अपने मधुर शब्दों के कारण अधिक लोकप्रिय है।

इस्वात गुफ्त हिन्द बहुज्जत कि राजेह-अस्त ।

बरपारसी-ओ-तुर्की अज अल्फाज-ए-खुशगवार ॥

अमीर खुसरो ने हिन्दी काव्य के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात अपने फारसी काव्य ‘गुर्रः तुल कमाल’ में कही है। यह दीवान (काव्य संग्रह) सन् ‘265 ई0 में संकलित हुआ था जब खुसरो की उम्र तैंतालिस वर्ष की थी। उसकी भूमिका में उन्होंने लिखा है कि मैं हिन्दुस्तान में जन्मा एक तुर्क हूँ। मैं हिन्दी धाराप्रवाह बोल सकता हूँ। मेरे पास अरबी भाषा की मिठास नहीं है कि उसमें बात-चीत करूं इसी प्रकार खुसरो ने अपने काव्यों में स्थान-स्थान पर देश, देशवासियों उनकी सभ्यता, संस्कृति एवं भाषा की तारीफ के पुल बाँध दिये हैं उनकी अधिकांश पहेलियाँ हिन्दू और हिन्दू संस्कृति से सम्बन्धित हैं।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अमीर खुसरो मुसलमान कवि होते हुए भी हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान के पक्षधर थे। यद्यपि वे तुर्क बादशाहों की संगति एवं संरक्षण में रहे फिर भी उन्होंने अपने देश और देशवासियों के सम्मान को कम नहीं होने दिया। इस दृष्टि से वे सच्चे देशभक्त एवं देशप्रेमी कहलाने के अधिकारी हैं।

‘अमीर खुसरो आदिकाल की खड़ी बोली के कवि है।’

हिन्दी साहित्य का आदिकाल दो दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध है एक काव्य-रूपों की दृष्टि से, दूसरे काव्य परम्पराओं की दृष्टि से इस काल में धार्मिक, लौकिक अनुभूतियों को व्यक्त करने वाले कवि अपने मूल उद्देश्य और अभिव्यंजना की दृष्टि से स्पष्ट रूप से साहित्य की दो कोटियों का निर्धारण करते हैं-(1) धार्मिक साहित्य (2) लौकिक साहित्य।

आदिकाल के लौकिक साहित्य में ही अमीर खुसरो का नाम अग्रगण्य है। अमीर खुसरो खड़ी बोली के प्रथम प्रयोक्ता कवि माने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1254 ई0 में उत्तर प्रदेश के एटा जिले में पटियाली नामक गाँव में हुआ था। लाचन जाति के तुर्क वंशी सैफुद्दीन इनके पिता थे बलबन के युद्ध मंत्री इमादुल मुल्क की लड़की इनकी माँ थीं सात वर्ष की अल्प आयु में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। बच्चे के पालन-पोषण का दायित्व इनकी माँ को ही सम्हालना पड़ा। अमीर खुसरो का बचपन का नाम अबुल हसन था। निजामुद्दीन औलिया से उन्होंने धार्मिक दीक्षा ली थी इनमें आरम्भ से ही काव्य प्रतिभा थी। यही कारण है कि 20 वर्ष की छोटी सी अवस्था में ही उन्हें काव्य सृजन के क्षेत्र में ख्याति मिल गयी थी। ये विद्वान एवं संगीतज्ञ भी थे। आचार्य राम चन्द्र शुक्ल के अनुसार खुसरों ने 1283 ई0 के लगभग रचना आरम्भ की थी अपनी 71 वर्ष की आयु में उन्होंने अनेक वादशाहों का उत्थान-पतन देखा था। इनकी मृत्यु 1325 ई० में हुई थी।

अमीर खुसरो हिन्दी के नहीं फारसी के महान कवि थे। उन्होंने अपनी ऐतिहासिक तथा रोमांटिक मसनदियों में अपने व्यापक अनुभवों तथा भावों को अंकित किया है। इनकी फारसी कविताओं में भारतीय संस्कृति के विविध पक्षों के प्रति गहन आस्था व्यक्त हुई है। ये हिन्दी भाषा के बड़े प्रशंसक थे और अपने हिन्दी ज्ञान के प्रति अधिक गौरवान्वित थी थे। हिन्दी साहित्य में खुसरों की प्रसिद्धि उनकी हिन्दी की (खड़ी बोली) रचनाओं के कारण है। ब्रजरत्न दास ने इनकी कविताओं का संग्रह खुसरो की हिन्दी कविता शीर्षक से प्रकाशित करवाया है। अमीर खुसरों की हिन्दी रचनाएँ ‘जवाहरे खुसरवी’ नाम से प्रकाशित हुई है।

डॉ. नगेन्द्र ने हिन्दी साहित्य का इतिहास ग्रन्थ में अमीर खुसरो के सम्बन्ध में लिखा है, “आदिकाल में खड़ी बोली को काव्य की भाषा बनाने वाले वे पहले कवि थे। उनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या सौ बतायी जाती है। जिनमें अब बीस-इक्कीस ही उपलब्ध हैं ‘खलिक वारी’ ‘पहेलियाँ’ दो सुखने ‘गल’ आदि उनमें अधिक प्रसिद्ध हैं कुछ लोग कहते हैं कि अमीर खुसरो नामक कई व्यक्ति अतः इन सब रचनाओं की पहलीकार अमीर खुसरों की रचनायें मानना एक ग्रथ है। कुछ भी हो, आदिकाल में जो अमीर खुसरो हुये थे, उनकी पहेलियाँ और मुकरियाँ ही प्रसिद्ध हैं। जिनमें मनोरंजन और जीवन पर गहरे व्यंग्य एक साथ मिलते हैं।

डॉ. गुलाब राय ने हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास में लिखा है “खुसरो की कविता से यह बात प्रमाणित होती है कि खड़ी बोली की उत्पत्ति उर्दू भाषा से अरब फारसी शब्द हटा देने से नहीं हुई है वरन् उर्दू भाषा में खड़ी बोली में फारसी, अरबी आदि के शब्द जोड़ने से विकसित हुई है।

अमीर खुसरो को भाव की गहराई की दृष्टि से भले ही महत्व न दिया जाये किन्तु भाषा की दृष्टि से उनके काव्य में खड़ी बोली काव्य भाषा बनने का सफल प्रयास कर रही थी। आदिकाल के ऐसे समय में जब पुरानी हिन्दी में अपभ्रंश शब्दों के अत्यधिक प्रभाव के कारण भाषा की दुरूहता सामने आ रही थी उस समय खुसरों ने खड़ी बोली हिन्दी में अरबी, फारसी के शब्दों को संयुक्त कर जनसामान्य तक सम्प्रेषित करने का एक सफल एवं उत्कृष्ट प्रयास किया। उनकी भाषा के ऐतिहासिक महत्व को समझने के लिए एक पहेली यहाँ प्रस्तुत है-

“तरवर से एक तिरिया उतरी उनने बहुत रिझाया।

बाप का उसने नाम जो पूछा, आधा नाम बताया ॥

आधा नाम पिता पर प्यारा, बूझ पहेली ‘गोरी ।

अमीर खुसरो यो कहें, अपने नाम न बोली ‘निबोरी’ ॥

खुसरों की कही मुकरियों के उदाहरण बड़े ही सुन्दर बन पड़े हैं। इनकी झलक देखिये-

जब मेरे मन्दिर में आवे

सोते मुझको आन जगावे

पड़त फिरत वह विरह के अच्छर

ऐ सखि साजन? ना सखि मच्छर।

X              X                 X

वह आवै तब शादी होय।

उस बिन और न दूजा कोय |

मीठे लागे उसके बोल

ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल ।।

मुकरियों के अनंत में पहेली का उत्तर दिया रहता है।

अलंकार की दृष्टि से ये मुकरियाँ छेकापहुति के अन्तर्गत मानी जायेंगी।

प्रहेलिका (पहेली) के उदाहरण भी देखिये

एक थाल मोती से भरा

सब के सिर पर औंधा धरा।

चारों ओर वह थाली फिरे

मोती उसमें एक न गिरे।।

X           ‌         X                     X

न मारा न खून किया

मेरा सिर क्यों काट लिया।

दूसरी पहेली के प्रकार को ‘अन्तलिपिका’ कहते हैं। इसका उत्तर पहेली में छिपा रहता है। पहली पहेली का अर्थ आकाश है इस तरह की पहेली को ‘बहिर्लापिका’ कहते हैं। इसमें बाहर से अर्थ लगाया जाता है।

इस प्रकार अमीर खुसरो आदिकाल के खड़ी बोली के प्रथम कवि हैं। उनके ही माध्यम से खड़ी बोली हिन्दी का विकास और प्रचार हुआ। आज भी खुसरो की पहेलियाँ जन-जन में प्रसिद्ध हैं। इंशा अल्ला खाँ, सदल मिश्र एवं लल्लू लाल खुसरों की खड़ी बोली द्वारा परिपुष्ट एवं विकसित हुए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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