हिंदी साहित्य का इतिहास

हिन्दी निबन्ध-साहित्य के विकास | हिंदी निबंध के उद्भव और विकास

हिन्दी निबन्ध-साहित्य के विकास | हिंदी निबंध के उद्भव और विकास

हिन्दी निबन्ध-साहित्य के विकास

निबंध की उत्पत्ति और विकास का श्रेय भारतेंदु को है। वह ऐसा युग था, जिसमें भारतीय साहित्य में एक नवीन चेतना का उदय हो रहा था। इस नवीन चेतना का प्रतिनिधित्व ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’, ‘ब्राह्मण’, ‘प्रदीप’ आदि पत्र-पत्रिकाएँ कर रही थी। संपादक इन लेखों के लेखक होते थे। ये संपादक इस नवीन चेतना के प्रतिनिधि थे। इसी कारण उनका व्यक्तित्व अनेकमुखी था। उन्हें साहित्य के नवीन और प्राचीन अंगों को पुष्ट बनाना था, सामाजिक राजनैतिक गतिविधियों की टीका विधियों की टीका-टिप्पणी करना था, शिक्षा का प्रसार करना था। इन कार्यों के लिए निबंध ही सबसे अच्छा साधन बना। इसलिए इस युग में खूब उन्नति किया। भारतेंदु और उनके मंडल के लेखकों ने निबंध को अपने प्रचार का माध्यम इसलिए बनाया कि साहित्य के अन्य अंगों के माध्यम से अपनी बात कहने में अनेक कलात्मक विधि-निषेधों का पालन करना पड़ता था, परंतु निबंध में ऐसे बंधनों का अभाव था। भारतेंदु काल के लेखकों ने साधारण से साधारण और गंभीर से गंभीर विषयों पर लेख लिखे। उस समय गद्य का एक सर्वसम्मत रूप न होने के कारण उनकी शैलियों में गद्य शैली निर्माण के वैयक्तिक प्रयास ही अधिक हुए। उनकी भाषा सर्वसाधारण की थी जिनमें प्रांतीय लोकोक्तियाँ, मुहाविरों, और शब्दों का, खुलकर प्रयोग किया गया था। भारतेंदु युग के निबंध शब्द के वास्तविक अर्थ को ध्वनित करने वाले प्रारंभिक प्रयास थे। उनमें न बुद्धि वैभव है न पाण्डित्य प्रदर्शन। इन निबंधों में वैयक्तिक विशेषताओं, हास्य, विनोद, व्यंग्य, निश्छलता, आदि गुण स्वाभावतः आ गए थे।

विद्वानों ने निबंध साहित्य के इतिहास को तीन उपकालों में विभाजित कर दिया है-

(1) भारतेंदु युग (2) द्विवेदी युग (3) आधुनिक या शुक्ल युग।

(1) भारतेंदु युग- भारतेंदु के निबंध, निबंध साहित्य के क्षेत्र में प्रथम प्रयास है जिनमें निबंध के वास्तविक गुण विद्यमान है। अतः भारतेंदु हिंदी के सर्वप्रथम निबंध लेखक हैं। उन्होंने अनेक विषयों पर निबंध लिखे परंतु उनके उच्चकोटि के निबंध अभी तक प्रकाश में नहीं आये। इसी कारण डॉ0 श्रीकृष्ण ने प्रथम निबंध लेखक बालकृष्ण भट्ट को माना है। डॉ0 राम विलास शर्मा के अप्रकाशित निबंधों का एक संग्रह वृंदावन में एक सज्जन के पास देखकर यह मत प्रकट किया था कि भारतेंदु युगीन निबंधों में ये सर्वश्रेष्ठ है। अतः भारतेंदु को हम उस काल का सर्वश्रेष्ठ निबंधकार और निबंध साहित्य का जन्मदाता मान सकते हैं।

इस काल के अन्य लेखकों में पं. बालकृष्ण भट्ट, उपाध्याय बद्रीनारायण, ‘प्रेमघन’ प्रतापनारायण मिश्र, पं. अम्बिादत्त व्यास, बाबू बालमुकुंद गुप्त, पं. राधा चरण गोस्वामी आदि प्रमुख हैं। इनमें से बालकृष्ण मिश्र और बाबू बालमुकुंद की वृहदत्रयी को हम इस काल के निबंध लेखकों का प्रतिनिधि पान सकते हैं। ये प्रतिभाशाली थे। मिश्रजी की भाषा आकृत्रिन, सजीव, ग्रामीण है। ‘बात’ ‘वृद्ध’, ‘भौ’, ‘मरे को मारे शाह मदार, ‘आदि निबंध उसकी सुंदर व्यक्ति निष्ठ शैली के उदाहरण हैं।

भट्टजी मिश्रजी के सहयोगी थे। वे गंभीर विद्वान थे। भारतेंदु की विचारात्मक, व्याख्यात्मक शैली भट्टजी के निबंधों में विकास पाई। निबंधों में विनोद प्रियता मिलती है। हास्य को वो बहुत महत्व देते थे। कहीं कहीं सुंदर भावाता शैली भी मिलती है। उन्होंने विभिन्न विषयों जैसे साहित्यिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक, आदि पर निबंध लिखे हैं। उनके शैली के भी कई रूप मिलते हैं विश्लेषणात्मक, भावात्मक, व्यंगात्मक आदि, इन के विचारात्मक निबंध तर्क पुष्ठ शैली में व्यवस्थित ढंग से लिखे गये हैं।

बालमुकुंदजी गुप्त ने गद्य को परिमार्जित कर उसे प्रांजलता प्रदान की। इनका व्यंग्य अधिक शालीन, सांकेतिक, और व्यंजक है। गद्य शैली के विकास में गुप्तजी का महत्वपूर्ण स्थान है। गुप्तजी द्वारा संपादित ‘हिंदी बंगबासी’ ‘भाषा गढ़ने की टकसाल’ कहलाता था। विषय की दृष्टि से गुप्तजी ने अनेक प्रकार के निबंध लिखे, जैसे- जीवन चरित, हिंदी भाषी, लिपि, व्याकरण, राष्ट्रभाषा, आदि परंतु इनकी विशेष प्रसिद्धि का कारण इनकी व्यंगात्मक गद्य रचनाएँ ‘शिव शम्मू का चिट्ठा’ और ‘खत’ है। गंभीर बातों को विनोदपूर्ण ढंग से कह देना इनकी विशेषता है। इस युग के अन्य निबंधकारों ने कोई विशेष महत्वपूर्ण निबंध न लिखकर साधारण निबंध और टिप्पणियाँ लिखीं हैं।

(1) भारतेंदु युग के निबंध- लेखकों के विषय में डॉ0 राम विलास शर्मा को निम्नलिखित मत उनकी संपूर्ण विशेषताओं को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं- ‘जितनी सफलता। भारतेंदु युग के लेखकों को निबंध रचना में मिली, उतना कविता और नाटकों में नहीं मिली। इसका एक कारण यह भी था कि पत्रिकाओं में नित्य-प्रति निबंध लिखते रहने से उनकी शैली खूब निखर गई थी। दूसरी बात यह है कि निबंध ही एक ऐसा माध्यम था जिनके द्वारा उस युग के धाकड़ लेखक बेतकल्लुफी से अपना निबंध लिखा। आचार्य शुक्ल ने इस युग की इसी निश्छलता और तनमयता को देखकर कहा था कि” यह युग बच्चों के समान हँसता-खेलता आया था, जिसमें बच्चों की ही निश्छलता, अखड़पन सरलता और तन्मयता थी। बाबू गुलाबराय के शब्दों में निबंधों की पृष्ठभूमि में रहते वाला निजीपन, हृदयोल्लास और चलतेपन के लिए हरिश्चंद्र युग चिर स्मरणीय रहेगा।

(2) द्विवेदी युग- द्विवेदी युग ने भारतेंदु युग की एकत्रित सामग्री को सुव्यवस्थित रूप देने का प्रयत्न किया। हिंदी लेखकों का ध्यान ‘सामाजिक’ मनुष्य की ओर आकृष्ट हुआ क्योंकि इस युग के लेखकों और पाठकों दोनों ही में प्रतिष्ठा की भावना अधिक आ गई। दूसरे शब्दों में इसे ‘अभिजात्य भावना’ का आरंभ भी कह सकते हैं। लेखकों से अपेक्षा की जाने लगी कि वो भारतेंदु युगीन उच्छृंखलता को छोड़कर संस्कृत ढंग से, शिष्टतापूर्वक बात करें। अब लेखक का पाठक से पूछना- तो भला बताइये आप क्या हैं? स्वप्न में भी असंभव हो गया। फलस्वरूप नैतिक निबंध लिखे जाने लगे जिनमें पत्रकारिता की स्वच्छंदता के स्थान पर विवेचना और गांभीर्य की वृद्धि हुई। निबंध का रूप सार्वजनिक न रहकर शिष्ट समाज की वस्तु बन गया। विषय की दृष्टि से निबंधों का पर्याप्त विस्तार हुआ। भाषा की शक्ति बढ़ी। निबंध उपयोगिता के आधार माने जाने लगे। पुरातत्व संबंधी एवं आलोचनात्मक लेख लिखे जाने लगे’ अंग्रेजी एवं मराठी के सुंदर निबंधों के अनुवाद हुए। हिंदी निबंधों में हार्दिकता की अपेक्षा बौद्धिकता का प्राधान्य हो गया। लोगों ने साहित्य की अपेक्षा नैतिक आदर्शों का ध्यान रखा।

द्विवेदीजी के निबंध ‘ज्ञान राशि के संचित कोश’ ही हैं। साहित्य की महत्ता, कवि और कविता, नाटक और उपन्यास, आदि निबंध सरल और सुबोध शैली में पाठकों की ज्ञान वृद्धि करते हैं। इस काल के अन्य निबंधकारों में पं० गोविंद नारायण मिश्र, पं0 माधव नारायण मिश्र प चंद्रधर शर्मा गुलेरी, बाबू गोपालराम गहमरी, बाबू ब्रजनंदन सहाय, पं० पद्यसिंह शर्मा, अध्यापक पूर्णसिंह आदि है। डॉ. श्यामसुंदर दास, गुलाबराय और मिश्रबंधु भी इस युग के हैं परंतु वे प्रेरणा प्राप्त करने में द्विवेदीजी के ऋणी न होकर स्वयं ही प्रभाव के केंद्र में थे। श्यामसुंदर दास ने समाज और साहित्य, कला का विवेचन’ आदि अनेक निबंध लिखे जिनमें पांडित्यपूर्ण, अरेज, अर्जित ज्ञान का गांभीर्य है।

(3) आधुनिक युग- आचार्य शुक्ल के निबंध के क्षेत्र में पदार्पण करने से निबंध साहित्य में एक नया जीवन आया। शुक्ल जी की निबंध शैली अत्यंत सारगर्भित है। इसी कारण आलोचकों ने इन्हें आलोचना सम्राट कहा।

भावात्मक शैली के निबंधकारों में रामकृष्णदास वियोगी ही चतुष्टि यशस्वी, माखनलाल, चतुर्वेदी आदि प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त श्री राम शर्मा जैनेंद्र, भगवती चरण वर्मा, नांवर सिंह, पद्म सिंह शर्मा, रांगेय राघव, प्रभाकर मानवे, महादेवी वर्मा आदि हिंदी निबंध को आगे बढ़ाया।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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