हिंदी साहित्य का इतिहास

अमीर खुसरो का जीवन परिचय | अमीर खुसरो की रचनाएँ बताते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएँ | अमीर खुसरो का काव्य रूप

अमीर खुसरो का जीवन परिचय | अमीर खुसरो की रचनाएँ बताते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएँ | अमीर खुसरो का काव्य रूप

अमीर खुसरो का जीवन परिचय

अमीर खुसरो का जन्म सन् 1253 ई० में उत्तर प्रदेश के एटा जिले के पटियाली गाँव में हुआ था। इनका वास्तविक नाम अबुल हसन था। आठ वर्ष की अवस्था में इनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद इनके नाना इवादुलमुल्क ने इनका पालन पोषण किया जो सुल्तान गयासुद्दीन बलबन के काल में अमीरों में गिने जाते थे अमीर खुसरो के नाना गयासुद्दीन बलवन के यहाँ तीस वर्ष तक अजीज-ए-ममालिक (सैनिकों की उपस्थित लेने वाले अधिकारी) रहे अतः स्पष्ट है कि सन् 1261 ई0 में अमीर खुसरो अपने नाना के पास दिल्ली आ गय होंगे। सन् 1273 ई0 में इनके नाना इमादुलमुल्क का निधन हो गया। इसके बाद खुसरो सुल्तान बलवन के भतीजे आलउद्दीन किशलू उर्फ मलिक छज्जू के यहाँ नौकरी करने लगे। दो वर्ष के अन्दर बलवन के पुत्र बुगरा खाँ से खुसरों का परिचय हो गया। बुकरा खाँ सामाना का शासक था जो अब पटियाला (पंजाब) में है। अमीर खुसरो कुछ वर्ष तक सामाना में बुगरा खाँ से सम्बद्ध रहे।

सन् 1280 ई0 में लखनौती (बंगाल) के शासक तुग्रिल ने जब विद्रोह कर दिया तो सुल्तान बलवन अपने पुत्र बुगरा खाँ को लेकर बंगाल गये और तुग्रिल को अपदस्थ करके बुगरा खाँ को बंगाल का शासक बना दिया। उस समय ‘बुलबुल-ए-हजार दास्तान अर्थात् अमीर खुसरो भी बबुगर खाँ के साथ थे और इस प्रकार अभीर खुसरों की वाणी कुछ दिनों तक बंगाल में भी चहकती रही। इसके बाद अमीर खुसरों पुनः दिल्ली आ गये और बलवन के बड़े बेटे मुहम्मद काआन के संरक्षण में मुल्तान चले गये। सन् 1283 ई0 में उत्तरी पश्चिमी हिन्दुस्तान तातारियों के हमलों से रक्तरंजित था। शाहजहाँ काआन ने मुल्तान पहुंचकर अपनी सूझ-बूझ से लड़ाई बन्द करा दी किन्तु बाद में एक तालाब के किनारे नमाज पढ़ते हुए विद्रोहियों के द्वारा बादशाह शहीद हो गया। अमीर खुसरो भी सैनिकों के साथ बन्दी बनाकर बल्ख भेज दिये गये। दो वर्ष बाद वहाँ से रिहा होकर दिल्ली आयें सुल्तान बलवन के बाद उसका पौत्र (बुगरा खाँ का पुत्र) कैकुवान बादशाही हुआ। अमीर खुसरा उस समय अवध प्राप्त के शासक ख्वाजा अहसान के साथ अवध चले गये और दो वर्ष तक वहाँ रहे इधर कैकुवाद दिल्ली के सिंहासन पर बैठकर विलासिता में पड़ गया। यह देखकर उसके पिता बुगरा खाँ ने बंगाल से दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। बेटे ने अपने कुपूत होने का प्रमाण देकर पिता का सामना करना चाहा, किन्तु अमीर खुसरो ने बीच-बचाव करके पिता-पुत्र की सुलह करा दी। अमीर खुसरो ने इस घटना पर एक रोचक कसीदा (प्रशंसात्मक पद्य) लिखा।

सन् 1290 में कैकुवाद ने अमीर खुसरो से अनुरोधकरके अपने ऊपर एक मसनवी लिखवाई जिसका नाम ‘किरान उस्सादैन’ (दो शुभ ग्रहों का मिलन) है। अब खुसरो कैकुवाद के पार्षद और मित्र ही नहीं बल्कि कवि सम्राट हो गये। सन् 1291 ई0 में कैकुवाद की मृत्यु के बाद अमीर खुसरो जलालुद्दीन फिरोज खिलजी से सम्बद्ध हो गये और यहीं उन्होंने सन् 1292 ई० में बादशाह की विजयों पर मसनवीं लिखी जिसका नाम ‘मिप्ताहुल फुतूह (विजय की कुजी) है। सन् 1297 ई० में अलाउद्दीन खिलजी गद्दी पर बैठा। इसी समय अमीर खुसरो का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण दीवान ‘गुर्रतुल कमाल’ संकलित हुआ। डॉ० वहीद मिर्जा लिखते हैं कि ‘अलाउद्दीन का समय अमीर खुसरो के चरमोत्कर्ष का युग था। उनकी अधिकांश रचनाएँ इसी समय पूरी हुई। गुर्रतुल कमाल’ की रचना भी अलाउद्दीन के काल में ही हुई। इसके बाद सन 1318 ई0 में अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन के लिए एक मसनवी ‘नुह सिपहर (नौ आकाश) की रचना की। उनकी इस रचना पर प्रसन्न होकर सुल्तान अलाउद्दीन ने उन्हें हाथी के बराबर तौलकर रुपये इनाम में दिये।

खिलजियों के बाद तुगलकों का बोलबाला हुआ तो उन्होंने भी खुसरो के सम्मान में कोई कमी नहीं होने दी। गयासुद्दीन तुगलक ने जब बंगाल की यात्रा की तो अमीर खुसरो भी उनके साथ गये। इसी बची खुसरो के पीर (गुर सुल्तान उल औलिया हजरत निजामुउद्दीन का निधन हो गया। दिल्ली आये तो यह शोक समाचार सुनकर खुसरो बहुत दुखी हुए। अपने पीर के देहान्त के बाद खुसरो अधिक समय तक जीवित न रह सके और सन् 1325 ई0 में उनका देहावसान हो गया।

अमीर खुसरो की रचनाएँ बताते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएँ

अथवा

अमीर खुसरो का काव्य रूप

अमीर खुसरो, हिन्दी साहित्य के आदिकाल के शृंगारी तथा मनोरंजन साहित्य के कवि रहे हैं। वे मिलनसार प्रवृत्ति के विनोदी व्यक्ति थे। उनका साहित्य विविध रंगों से अनुरंजित था। विनोद और मनोरंजन की झलक उनके स्वभाव की देन है। उस समय के संघर्षपूर्ण जीवन को उन्होंने स्वच्छन्दतापूर्वक जिया। खुसरो ने गयासुद्दीन बलवन से लेकर अलाउद्दीन, कुतुबुद्दीन मुबारक शाह तक कई पठान बादशाहों का जमाना देखा था। उस समय फारसी का बहुत बोलबाला था। खुसरो फारसी के बहुत अच्छे ग्रन्थकार और नामी’ कवि थे।

रचनाएँ- खुसरो ने फारसी में अनेक मसनवियों लिखी जिनमें किरान उस्सादैन मिफ्ताहुल फुतूह और गुर्रतुलकमाल प्रमुख हैं। ये शुद्ध फारसी की रचनाएँ हैं इनके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी में भी कविताएँ लिखीं। खुसरो खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में सबसे पहले सफल हुए। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या सौ बताई गई जिनमें से लगभग बीस रचनाएँ उपलब्ध हैं। इनके द्वारा रची गई खालिक बारी, पहेलियाँ, मुकरियाँ दो सुखने, गजल आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।

खुसरो ने विविध विषयों पर मनोरंजन और विनोद की सामग्री प्रस्तुत कर भारतीय और इस्लामी संस्कृति के समन्वय का प्रयास किया। यद्यपि विनोद के कारण खुसरो का साहित्य सतही माना जाता है तथापि उन्होंने अपने साहित्य को जीवन की एक मनोरंजक वस्तु बनाया। इसीलिए उन्होंने जनता के मनोरंजन के लिए पहेलियाँ और मुकरियाँ लिखीं। खुसरो जनता के मनोभावों को पूर्ण रूप से समझते थे और उसमें अपना सहयोग करना चाहते थे, अतः उस समय इन्हें जिस ढंग दोहे, तुकबन्धियों और पहेलियाँ साधारण बोलचाल की भाषा में मिली, उसी ढंग की पहेलियाँ और मुकरियाँ इन्होंने भी लिखीं खुसरों की रचनाओं के कुछ उदाहरण देखिये-

दो सुखने- जिसमें दो या तीन प्रश्नों का उत्तर हो उसे दो सुखने कहते हैं- यथा-

  1. रोटी क्यों सूखी? बस्ती क्यों उजड़ी? इसका उत्तर है- (खाई न थी)
  2. पान क्यों सड़ा? घोड़ा क्यों अड़ा? रोटी क्यों जली? (फेरे न थे)
  3. ब्राह्मण प्यासा क्यों? गधा उदासा क्यों? (लोटा न था)

पहेलियाँ- जिन पहेलियों का अर्थ उसी में निहित होता है उसे अन्तर्लापिका तथा जिसका अर्थ बाहर से लेना पड़ता है उसे बहिलपिका कहा जाता है। खुसरों ने दोनों प्रकार की पहेलियाँ लिखी हैं। यथा-

  1. जब मेरे मन्दिर में आते, सोते मुझको आन जगावें

पढ़त फिरत वह विरह के अच्छर, ऐ सखि साजन? ना सखि मच्छर

उत्तर- मच्छर (सन्तलोपिका पहेली)

  1. एक थाल मोती से भरा, सबके सिर पर आँधा धरा।

चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उससे एक न गिरे।

उत्तर- आकाश (वहिलपिका पहेली)

खुसरो केवल कवि ही नहीं थे, वह योद्धा भी थे और सच्चे क्रियाशील व्यक्ति भी। उन्होंने बादशाहों के साथ अनेक चढ़ाइयों में भाग लिया था, जिसका वर्णन उन्होंने अपनी रचनाओं में किया है। खुसरो कवि के साथ-साथ अच्छे गायक भी थे। इन्होंने अनेक राग-रागनियों को जन्म दिया। कव्वाली गाने में इनका कोई जोड़ नहीं था। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि खुसरों कवि, योद्धा, नायक, संगीत प्रेमी और गद्य लेखक थें चारणकालीन रक्तरंजित इतिहास में जब पश्चिम के चारणों की डिंगल कविता गूंज रही थी तथा पूर्व में गोरखनाथ की धार्मिक प्रवृत्ति आत्मशासन की शिक्षा दे रही थी, उस काल में अमीर खुसरो की विनोदपूर्ण कविता हिन्दी साहित्य के इतिहास की एक महान निधि थी। मनोरंजन और रसिकता के अवतार अमीर खुसरों अपनी मौलिकता के लिए हिन्दी साहित्य में सदैव स्मरणीय रहेंगे।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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