अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारत का आधुनिकीकरण | अंग्रेजों का आगमन तथा प्रसार | भारत का आधुनिकीकरण | अंग्रेजों के प्रभाव की विवेचना
अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारत का आधुनिकीकरण | अंग्रेजों का आगमन तथा प्रसार | भारत का आधुनिकीकरण | अंग्रेजों के प्रभाव की विवेचना
अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारत का आधुनिकीकरण
“जीवित मनुष्य कोमल और सुकुमार होता है, मृत्यु के उपरान्त कड़ा और कठोर।’ इसलिए यह कहा जाता है कि कड़ापन और कठोरता मृत्यु के तथा कोमलता और सुकुमारता जीवन के अंग है। सजीव का विशेष गुण है, खुलापन तथा परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने की क्षमता। भारतीय संस्कृति जीवन की उपलब्धियों तथा निधियों की गाथा है यथा उसमें परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने की विलक्षण क्षमता है। ऋग्वेद काल से लेकर आज तक भारतीय संस्कृति का रूप विकसित होता रहा है तथा इसने ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धान्त का अनुशीलन किया है। आधुनिक काल के प्रारम्भ होने के प्राथमिक चरणों में जब अंग्रेजों का भारत में आगमन हुआ तो स्वयं उनकी सांस्कृतिक मान्यताओं का टकराव भारत की परम्परागत संस्कृति से हुआ। इस सांस्कृतिक सम्मेलन तथा आदान-प्रदान की प्रक्रिया ने भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति को अत्यधिक प्रभावित किया।
अंग्रेजों का आगमन तथा प्रसार
लन्दन के जिन व्यापारियों ने महारानी एलिजाबेथ से ‘इन्डीज’ के साथ व्यापार करने की अनुमति माँगी तथा 1600 ई० में महारानी से ‘चार्टर’ प्राप्त करके Governor and Merchants of London Trading into the Eat Indies नामक कम्पनी की स्थापना की, उन्हें स्वप्न में भी यह आशा नहीं रही होगी कि एक दिन यही कम्पनी भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की नींव प्रमाणित होगी। भाग्य, साहस और धैर्य के सहारे एक दिन इसी कम्पनी ने ब्रिटिश साम्राज्य का निर्माण कर डाला।
अंग्रेज व्यापारी 1604 ई० में भारत आये तथा लगभग 150 वर्षों तक वे अपनी व्यापारिक उन्नति के लिए राजनैतिक षड्यन्त्र, चाटुकारिता, कूटनीति आदि दाँवपेच खेलते रहे। अपने इस प्रारम्भिक रूप से उन्होंने भारत में सांस्कृतिक प्रभाव स्थापित करने का गम्भीर प्रयास नहीं किया। किन्तु 1757 ई० में प्लासी की विजय ने अंग्रेजों को भारत में स्थायित्व प्रदान किया! एडमिरल वाटसन ने इस विजय को केवल कम्पनी के लिये ही नहीं, वरन् ब्रिटिश राष्ट्र के लिये असाधारण महत्व का निरूपित किया है। इस विजय के परिणामस्वरूप ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में पूर्ण शक्ति सम्पन्न बन गयी। 1761 ई० में कर्नाटक, 1799 ई० में मैसूर, 1818 ई० में पराठा, पेशवा और नागपुर का भोंसला राज्य, 1843 ई० में सिन्ध, 1848 ई० में पंजाब का सिक्ख राज्य तथा 1857 ई० तक लगभग सारा भारतवर्ष अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। कम्पनी तथा अंग्रेजों के इस विस्तार क्रम में उनकी कूटनीतिक निपुणता तथा दूरदर्शिता ने बड़ी सहायता पहुँचायी।
भारत का आधुनिकीकरण
1757 ई० के प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों को भारत में सबल तथा सफल बना कर, इस देश के आधुनिकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया। यह युद्ध तथा इसका परिणाम भारत के इतिहास में एक चमत्कार प्रमाणित हुआ। सन् 1757 ई० से लेकर 1857 ई० तक ब्रिटिश कम्पनी के अन्तर्गत भारत के बहुअंगी विकास का वर्णन निम्नलिखित है।
(1) औद्योगिक विकास- भारत में अंग्रेजों का आगमन व्यापार के लिये नई भूमि की खोज तथा अपने देश के उत्पादन की खपत को बढ़ाना था। उनके भारत आगमन से पूर्व उनके देश इंगलैड का पूरी तरह से औद्योगीकरण हो चुका था। जब अंग्रेज भारत में आये तो प्रारम्भ में तो उन्होंने इस देश के उद्योगों को बड़ी हानि पहुँचाई परन्तु शनैः शनैः उन्होंने यहाँ पर वस्त्र, लोहा, कागज, सीमेन्ट आदि के कारखानों की स्थापना की। इन कारखानों का निर्माण, सचालन, उत्पादन तथा तकनीकी विधि आधुनिक औद्योगीकरण के सिद्धान्तों तथा उपलब्धियों पर आधारित थी। फलस्वरूप अंग्रेजों को यह श्रेय प्राप्त है कि उन्होंने भारत को औद्योगिक क्षेत्र में आधुनिक बनाया।
(2) यातायात के साधनों का विकास- औद्योगिक विकास के लिये यातायात के साधन परम आवश्यक होते हैं। अगरेजों के आगमन से पूर्व भारत के रातायात के साधन तथा मार्ग आधुनिक दृष्टि से अत्यन्त शोचनीय अवस्था में थे। अंग्रेजों ने इस ओर विशेष ध्यान देते हुये अनेक सड़कों तथा राजमार्गों का निर्माण करवाया। उन्होंने कच्ची सड़कों को पक्का बनवाया। द्रुतगामी यातायात के लिये सड़को पर पत्थर बिछाकर डामर और सोमेन्ट का प्लास्टर किया गया। इस प्रकार की अनेक लम्बी सड़कों द्वारा देश के विभिन्न भागों से यातायात तथा संचार सेवा में कुशलता आ गई।
जो रेलवे व्यवस्था आधुनिक भारत की आर्थिक तथा संचार सेवाओं की रीढ़ है, उसका श्रीगणेश तथा विकास करने का श्रेय भी अंग्रेजों को प्राप्त है। 1853 ई० में रेल का सर्वप्रथम प्रचलन किया गया। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में बड़ी लगन तथा साहस का परिचय देते हुए भारत के सुदूर भागों को एक-दूसरे से सम्बद्ध कर दिया। रेल व्यवस्था के विस्तार द्वारा भारत का आधुनिकीकरण होने के साथ-साथ सांस्कृतिक क्षेत्र पर भी गहरा प्रभाव पड़ा!
अंग्रेजों को सामुद्रिक यातायात से विशेष लगाव था। अपनी सामुद्रिक श्रेष्ठता के कारण ही वे भारत में आकर सर्वोपरि सत्ताधारी बने थे। यथा, उन्होंने भारत में जलमार्गों का जाल सा बिछा दिया। उन्होंने नावों की अपेक्षा स्वचालित जहाजों का प्रचलन किया।
(3) डाक, तार तथा दूरभाष (पोस्ट, टेलीग्राफ तथा टेलीफोन)- भारत में डाक व्यवस्था स्थापित करने का श्रेय भी अंग्रेजों को प्राप्त है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत 2 पैसे का पोस्ट कार्ड चलवाने तथा तार की लाइनें बिछवाने का कार्य लार्ड डलहौजी द्वारा सम्पन्न हुआ। इस व्यवस्था ने शनैः शनैः विकास करके जीवन का एक अति आवश्यक साधन होने का महत्व प्राप्त कर लिया। डाक, तार तथा टेलीफोन व्यवस्था द्वारा शासन, व्यापार, वाणिज्य तथा सांस्कृतिक गतिविधियों पर गहरा और अमिट प्रभाव पड़ा।
(4) कृषि एवं सिंचाई व्यवस्था- अंग्रेजों में परम्परागत कृषि के तरीकों तथा साधनों को स्थानापन्न करके नवीन खोजों द्वारा प्राप्त साधनों से युक्त किया। अब पूर्व गंगा के मैदान में, जो मुगलकाल में अनुर्वरक समझा जाता था, खेती होने लगी। अनेक लम्बे-चौड़े जंगलों को साफ करवा कर उन्हें कृषि योग्य बनाया गया। इसके अतिरिक्त सिंचाई की व्यवस्था में सुधार करके कृषि योग्य भूमि की उपज तथा क्षेत्रफल में वृद्धि की गयी। परिणामस्वरूप उपज में वृद्धि हुई। 1835 ई० में लार्ड बैंटिक के शासन काल में अनेक भूमि सुधार भी किये गये।
(5) शिक्षा प्रणाली में सुधार- प्रारम्भ में ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ के समस्त प्रयास व्यापार की ओर ही लगे रहे परन्तु शासनाधिकार प्राप्त होते ही उन्होंने अपनी शिक्षा सम्बन्धी मान्यताओं द्वारा अपनी संस्कृति के प्रचार तथा प्रसार हेतु शिक्षा की ओर ध्यान दिया। अपनी शिक्षा प्रणाली के प्रसार द्वारा अंग्रेजों ने भारतीय मस्तिष्क को पाश्चात्य विचारों से प्रभावित करना चाहा। अंग्रेजों का उद्देश्य पाश्चात्य साहित्य तथा विज्ञान का भी प्रसार करना था। 1854 ई० में, सर चार्ल्स वुड ने शिक्षा के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण नीति निर्धारित की। इसके अनुसार प्रत्येक प्रान्त में एक शिक्षा विभाग खोला गया। कलकत्ता. बम्बई तथा मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। व्यक्तिगत विद्यालयों को राजकीय अनुदान, शिक्षण संस्थाओं का निरीक्षकों द्वारा निरीक्षण तथा अध्यापकों के लिये अध्यापन प्रशिक्षण की परिपाटियाँ निकाली गईं। नारी-शिक्षा लिये भी विशेष प्रबन्ध किये गये। इन नवीन उपलब्धियों के परिणामस्वरूप भारतीय भाषाओं में नवीन साहित्य का विकास हुआ, छापेखाने खोले गये, समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे तथा विभिन्न शैक्षिक विषयों में शोध कार्य किये गये।
शिक्षा के आधुनिकीकरण में ईसाई मिशनरियों का योगदान भी कुछ कम नहीं था। वैसे तो उनका उद्देश्य धर्म प्रचार था परन्तु उन्होंने योरोपीय लोगों को भारतीय तथा भारतीयों को योरोपीय साहित्य और संस्कृति में परिचित कराने के लिये कर्मठ प्रयत्न किये। इस शिक्षा समन्वय द्वारा अनेक भारतीय सुधारक धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों के प्रति जागरूक बने और उन्होंने भारतीय संस्कृति का समयानुकूलन करने के लिये उत्साही प्रयत्न किये।
(6) सामाजिक प्रभाव- पाश्चात्य जगत की संस्कृति के पहले झोंके से अनेक भारतीय, अंग्रेजी पढ़ लिख कर अंग्रेजों के वस्त्राभूषण, खाने-पीने के तरीकों तथा रहन-सहन को अपनाने लगे। अनेक हिन्दू गोमांस भी खाने लगे। कुछ लोग तो इतने प्रभावित हुये कि उन्हें भारतीय होने में लज्जा अनुभव होने लगी। इस बातावरण में स्वामी विवेकानन्द, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, केशव चन्द्र सेन, रानाडे, दादा भाई नौरोजी, सर सैय्यद अहमद खाँ आदि ने सामाजिक अधोगति पर अंकुश लगाया! अंग्रेजों, को इस बात का श्रेय प्राप्त है कि उन्होंने 1789 ई० में अन्तन्तिीय दास व्यापार को अवैध घोषित करके, 1843 ई० तक दासता को समूलरूप से समाप्त कर दिया।
अंग्रजों ने सामाजिक सुधारों द्वारा भारत के समाज का आधुनिकीकरण किया। उन्होंने सती, ठगी, बालवध का उन्मूलन करके सामाजिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया। एक अंग्रेज इतिहासकार के अनुसार, “हमने (अंग्रेजों ने) उस चिता की लपटों को बुझाया, जो विधवाओं को भस्म कर रही थी, और हमने शिशुओं की रक्तधार को रोका जो अस्वाभाविक माता-पिता के हाथों बहाई जा रही थी,……हमने ठंग और डकैतों के गिरोहों को तोड़ा और नष्ट किया।” निष्कर्ष स्वरूप हम यह कह सकते हैं कि अनेक सामाजिक बुराइयों का उन्मूलन करके अंग्रेजों ने अपने मानवोचित गुणों का परिचय दिया तथा भारतीय समाज को मध्यकालीन वातावरण से मुक्ति दिलाई।
(7) शासकीय सुधार- भारत में अंग्रेजों का शासन स्थापित होने से देश एक राजनैतिक तथा प्रशासनिक इकाई बन गया। अंग्रेजों ने विधि के समक्ष समानता स्थापित की। उनकी नवीन प्रशासनिक व्यवस्था ग्राम स्तर तक पहुँची तथा ग्रामों का प्रशासन भी राज्य के नियन्त्रण में आ गया। इससे पूर्व ग्रामों का प्रशासन ग्राम पंचायत द्वारा होता था, चाहे देश पर हिन्दू या मुसलान ‘शासक का शासन हो। यद्यपि यह सब इंगलैण्ड के हित को ध्यान में रखकर किया गया था तथापि यह राजनैतिक तथा प्रशासनिक एकता आधुनिक भारत के निर्माण में बड़ी सहायक सिद्ध हुई। अंग्रेजों के प्रशासनिक सुधारों द्वारा अनेक लाभ हुये। इनमें विधि विधान का शासन, स्वतन्त्रता में विश्वास, देश का आधुनिकीकरण, राज्य की दृढ़ आर्थिक नौंव, कृषि सम्बन्धी स्रोतों में वृद्धि, शिक्षा की प्रगति आदि मुख्य हैं।
(8) राष्ट्रीयता की भावना का दृढीकरण- यद्यपि अंग्रेजों के लिये यह रुचिकर नहीं था कि भारत एक राष्ट्र के रूप में सांस ले, तथापि उन्होंने जो कुछ भी किया उसके प्रत्यक्ष परिणामों के फलस्वरूप भारत में प्रथम बार राष्ट्रीयता की भावना विकट रूप से बलवती हो गई। अंग्रेजों के शासन काल के प्रारम्भिक एक सौ वर्षों में भारत प्रशासनिक इकाई के रूप में उभरने लगा और पूर्व कालीन सांस्कृतिक एकता होते हुए भी अनेक भागों, वर्गों और सम्प्रदायों में विभाजित भारत, राष्ट्रीयता का दावा करने लगा। इस भावना के फलस्वरूप ही 1857 की क्रान्ति ने राष्ट्रव्यापी रूप धारण किया था।
(9) पाश्चात्य देशों में भारतीय साहित्य तथा दर्शन का प्रसार- किसी भी देश का आधुनिकीकरण इस बात से भी प्रभावित होता है कि अन्य देशों में उसका क्या सम्मान, प्रसार एवं प्रभाव है। 1757 के प्लासी युद्ध के परिणामस्वरूप यह तो स्पष्ट ही हो चुका था कि भारत की सैन्य शक्ति निर्बल थी। इस आधार पर भारत के प्रभाव तथा प्रसार की बात तो सोचना भी भूल है। परन्तु इस समय में योरोपीय विद्वानों पर भारतीय साहित्य तथा दर्शन का गहरा प्रभाव पड़ा। 1801-02 ई० में उपनिषदों का फ्रेन्च भाषा में अनुवाद हुआ। शापेनहावर ने इनके महत्व को पश्चिमी जगत में प्रसारित किया। विलियम जोन्स ने ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम’ का अनुवाद किया। बाद में, मैक्समुलर ने वेदों का अनुवाद करके संस्कृत साहित्य और दर्शन का बड़ा प्रसार किया। इसके अलावा अन्य कर्मठ प्रयत्नों द्वारा भारतीय संस्कृति के रूप और गुणों में गुणात्मक वृद्धि हुई।
अंग्रेजों के प्रभाव की विवेचना
भारतीय संस्कृति कभी भी कठोर नहीं रही है। अपने आदि काल से उसने अनेक विदेशी संस्कृतियों से सम्मिलन तथा सहवास किया है परन्तु उन सभी कालों में भारतीय संस्कृति का रूप परिवर्तित होने की अपेक्षा प्रभावशाली ही बना रहा। अंग्रेजों के भारत आगमन तथा यहाँ पर उनका प्रभुत्व स्थापित हो जाने पर, भारतीय संस्कृति ने अंग्रेजों की संस्कृति को खूब परखा और उससे परिचय स्थापित किया। इस बात को कहने में हमें कोई संकोच नहीं है कि इस समय में भारतीय जीवन, विचारों तथा विश्वासों में बड़े परिवर्तन आये परन्तु भारतीय संस्कृति का रूप फिर भी प्रभावशाली ही बना रहा। शरीर पर विदेशी वस्त्र धारण करके, पाश्चात्य साहित्य, दर्शन और धर्म के प्रति आकर्षण रखते हुए भी भारतीयों की सांस्कृतिक आत्मा-भारतीय परिवेश ही पहने रही।
भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में जब हम भारत पर अंग्रेजों के प्रभाव तथा उनके द्वारा भारत का आधुनिकीकरण किये जाने के विषय में विचार करते हैं तो हमें समष्टि रूप में यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि विधि की दृष्टि में समानता, देशव्यापी औद्योगिक विकास, यातायात तथा संचार की व्यवस्था, शान्ति और सुव्यवस्था, शिक्षा की नवीन प्रणाली, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शोधकार्य, पक्षपात रहित-न्याय, नई भूमि व्यवस्था, अकाल व्यवस्था, सामाजिक सुधार आदि के क्षेत्र में कम्पनी काल अथवा 1757 ई० से लेकर 1850 ई० तक के समय में अंग्रेजों ने भारत का आधुनिकीकरण करने का श्रेय प्राप्त किया है। प्रो० डाडवेल ने इस काल में अंग्रेजों के भारत पर पड़ने वाले प्रभाव के विषय में लिखा है-
“The forces of change had been enough to alarm but not enough to influence.”
‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रभुत्व काल में अंग्रेजों के भारत में किये गये कृत्य को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। भारत आधुनिक काल में चरण रखने के लिये उत्सुक था। अंग्रेजों को यह श्रेय प्राप्त है कि उन्होंने उत्सुक भारत को आगे बढ़ाने के लिये अपने कन्धों का सहारा दिया।
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