समाज शास्‍त्र / Sociology

अपराध तथा बाल अपराध में अन्तर | भारत में बाल अपराध की विशेषताएँ

अपराध तथा बाल अपराध में अन्तर | भारत में बाल अपराध की विशेषताएँ

अपराध तथा बाल अपराध में अन्तर

(Distinction between Crime and Delinquency)

अपराध तथा बाल अपराध में अन्तर निम्नलिखित है

(1) आयु की भिन्नता (Difference of Age)-  बाल अपराध का तात्पर्य केवल एक निश्चित आयु से कम के बच्चों तथा किशोर द्वारा किये जाने वाले अपराध से है। भारत में यह आयु साधारणतया 16 वर्ष तक की निर्धारित की गयी है। इसके विपरीत अपराध का तात्पर्य उन व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले कानूनों की अवहेलना से है जो साधारणतया 21 वर्ष से अधिक आयु के युवा अथवा प्रौढ़ होते हैं।

(2) अपराध की प्रकृति (Nature of Crime)-  बाल अपराध का तात्पर्य केवल साधारण अपराधों से ही है। उदाहरण के लिए बच्चों द्वारा किये गये सामान्य अपराध जैसे- जेब काटना, चोरी, मारपीट, अभद्रता, यौन अनैतिकता, अपराधी गिरोहों की संगति तथा जुआ खेलना आदि ही बाल अपराध के अन्तर्गत आते हैं। यदि कोई बच्चा अथवा किशोर किसी हत्या, देश-द्रोह, घातक आक्रमण अथवा इसी प्रकार के किसी अन्य गम्भीर अपराध का दोषी हो तो उसे बाल अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। अपराध का तात्पर्य उन सभी साधारण तथा गम्भीर प्रकृति के कानून-विरोधी कार्यों से है जो वयस्क व्यक्तियों द्वारा किये जाते हैं तथा जिनके लिए राज्य के द्वारा एक निश्चित दण्ड देने की व्यवस्था की जाती है।

(3) उद्देश्य की विभिन्नता (Difference in Objectives) – अपराध एक समाज विरोधी कार्य है जिसका उद्देश्य उन सुविधाओं को प्राप्त करना है जिन्हें एक अपराधी कानूनी तथा नैतिक रूप से प्राप्त नहीं कर पाता। इस प्रकार सभी अपराधों का उद्देश्य अवैध रूप से धन प्राप्त करना, व्यक्ति को आतांकित करना, बदला लेना या कुत्सित वासना को पूरा करना होता है। इसके विपरीत, अलबर्ट कोहन के अनुसार, “बाल अपराध उद्देश्यहीन होता है। एक बाल अपराधी किसी विशेष आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपराध नहीं करता, बल्कि बिना किसी उपयोगी दृष्टिकोण के ही अपराध कर बैठता है।” तात्पर्य यह है कि अधिकांश बाल अपराध आकस्मिक होते हैं जिनके पीछे कोई निश्चित उद्देश्य अथवा योजना नहीं होती।

(4) परिस्थितियों की भिन्नता (Difference in Situation) – अपराध एवं बाल अपराध की परिस्थितियाँ अथवा कारण भी एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। अधिकांश अपराध आर्थिक कठिनाइयों, प्रतिशोध की भावना अथवा यौनिक तनावों की उपज होते हैं। बाल अपराधक्ष की परिस्थितियाँ इससे पूर्णतया भिन्न हैं। साधारणतया विघटित पारिवारिक वातावरण, कुसंगति, शारीरिक अथवा मानसिक दुर्बलता तथा अपराधी गिरोहों का भय बाल अपराध के प्रमुख कारण हैं। बच्चों की स्वयं कोई विशेष आर्थिक आवश्यकताएँ नहीं होतीं, इसलिए आर्थिक दशाएँ बाल अपराध का कोई महत्त्वपूर्ण कारण नहीं होती।

(5) प्रभाव की भिन्नता (Difference in consequence) – अपराध तथा बाल अपराध की प्रकृति इस दृष्टिकोण से भी एक-दूसरे से भिन्न है कि यह दशाएँ सामाजिक जीवन को भिन्न-भिन्न रूप से प्रभावित करती हैं। अपराधों की मात्रा सामाजिक विघटन का इन्डेक्स होती है। अपराध सम्पूर्ण सामाजिक जीवन को ही विघटित नहीं करते, बल्कि देश की राजनैतिक तथा आर्थिक व्यवस्था को भी बिगाड़ देते हैं। इसके विपरीत, बाल अपराध मूल रूप से एक वैयक्तिक घटना है। इसके फलस्वरूप बच्चे का व्यक्तित्व ही अधिक विघटित होता है, सम्पूर्ण सामाजिक जीवन को इनसे प्रत्यक्ष रूप से कोई गम्भीर खतरा उत्पन्न नहीं होता।

(6) उपचार की भिन्नता (Difference in Treatment)- अपराध उद्देश्यपूर्ण होते तथा बाल अपराध उद्देश्यविहीन। इस दृष्टिकोण से अपराधियों तथा बाल-अपराधियों के लिए निर्धारित न्यायिक प्रक्रिया तथा दण्ड के तरीकों में भी भिन्नता पायी जाती है। अपराधियों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था की जाती है जिससे वे भविष्य में अपराध करने का साहस न करें। दूसरी ओर, बाल अपराधियों की बुद्धि अविकसित होने के कारण उन्हें दण्ड देने की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक उपचारों द्वारा सुधारना अधिक आवश्यक समझा जाता है। प्रकार अपराध  में दण्ड का तत्त्व प्रबल है, जबकि बाल अपराध में उपचार का।

भारत में बाल अपराध की विशेषताएँ

भारत में बाल अपराध की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1. भारत में बाल अपराध प्रति वर्ष किसे जाते हैं। इनमें से मुश्किल से 2 प्रतिशत ही पुलिस एवं न्यायालय के ध्यान में आते हैं। वर्तमान में भारत में लगभग 14,500 बच्चे प्रतिवर्ष विभिन्न अपराधों के अन्तर्गत पकड़े जाते हैं।
  2. भारत में प्रति वर्ष 50 हजार बाल अपराध दण्ड संहिता (IPC) के अन्तर्गत और 85 हजार स्थानीय और विशिष्ट कानूनों के अन्तर्गत किये जाते हैं।
  3. गाँवों की तुलना में बाल अपराध शहरों में अधिक होते हैं। शहरी क्षेत्रों में भी बड़े- बड़े शहर जैसे दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, कोलकाता, चण्डीगढ़, कानपुर आदि में बाल अपराध अधिक होते हैं। शहरों में बाल अपराध अधिक होने के कई कारण हैं जैसे वहाँ जब माता एवं पिता दोनों ही काम पर चले जाते हैं तो घर में बच्चों पर नियन्त्रण रखने वाला कोई नहीं होता, वे अवारागर्दी करने लगते हैं। शहरों में बच्चों से वेश्यावृत्ति में सहायता पहुंचाने, भीख मांगने आदि का कार्य भी करवाया जाता है। शहर का भीड़-भाडयुक्त वातावरण, गन्दी बस्तियाँ, अश्लील एवं अपराधी चलचित्र, अति सम्पन्नता के प्रति आक्रोश, बेकारी एवं नितान्त गरीबी आदि बाल अपराध को प्रोत्साहित करते हैं।
  4. लड़कों में लड़कियों की तुलना में बाल अपराध अधिक पाये जाते हैं। इस अन्तर का कारण यह है कि भारतीय समाज में लड़कियों पर परिवार का नियन्त्रण अधिक होता है। लड़कों में शारीरिक शक्ति की अधिकता, मुक्त वातावरण में रहने तथा बाह्य जीवन में भाग लेने के कारण अपराध करने की प्रवृत्ति अधिक पायी जाती है। नवीन आंकड़े यह बताते हैं कि बाल अपराध की प्रवृत्ति पिछले 10 वर्षों में लड़कों की तुलना में लड़कियों में दुगुनी रही है। लड़कियों में पिछले 10 वर्षों में 216% एवं लड़कों में 108% अपराधों की वृद्धि हुई। 1990 में कुल बाल- अपराधियों में से 18% लड़कियाँ थीं। इस प्रकार एक बाल अपराधी लड़की के पीछे लड़कों की संख्या 5 से अधिक होती है। जिस प्रकार के अपराधों में वृद्धि हुई है उनमें चोरी, शराबवृत्ति एवं जुआ खेलने से सम्बन्धित अपराध अधिक हैं।
  5. सर्वाधिक बाल अपराध महाराष्ट्र में (1994 में 27.9%) और उसके बाद क्रमशः मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब व राजस्थान में होते हैं। सबसे कम बाल अपराध केरल में होते हैं।
  6. भारत में अधिकतर बाल अपराधों में आर्थिक प्रकृति के अपराध जैसे चोरी, सेंधमारी, झगड़े-फसाद, हत्या एवं राहजनी आदि होते हैं (44%)। 17.4% बाल अपराधी दंगों में, 3.4% हत्या में, 2.1% बलात्कार में तथा 1.1% भाग ले जाने के जुर्म में पकड़े गये। इसका कारण यहाँ की गरीबी और परिवार की छिन्न-भिन्न अवस्था, गन्दी बस्तियाँ, अकाल, बाढ़, बेकारी आदि हैं। लड़कों द्वारा आर्थिक अपराध अधिक किये जाते हैं, जबकि लड़कियों द्वारा यौन सम्बन्धी अपराध। इसके अतिरिक्त अपहरण, धोखाधड़ी, जुआ, शराबवृत्ति, आबकारी एवं रेलवे नियमों से सम्बन्धित बाल अपराध भी किये जाते हैं।
  7. बाल अपराधी व्यक्तिगत रूप से अपराध कम करते हैं। वे किसी अपराधी गिरोह के साथ मिलकर ही अपराध करते हैं। यह गिरोह उन्हें प्रशिक्षण देता है एवं संरक्षण प्रदान करता है।
  8. अधिकांश बाल अपराध 12 से 16 वर्ष की आयु में ही किये जाते हैं (लगभग 81%)। यह आयु स्कूल छोड़ने की है। इस समय पौरुष आता है और साहसी प्रवृत्ति पैदा होती है तथा बालक नियंत्रण को तोड़कर मुक्त रहना चाहता है। इसलिए इस आयु में अपराध अधिक किये जाते हैं। 7 वर्ष से 12 वर्ष की आयु समूह के 9% तथा 16 से 18 वर्ष की आयु समूह के 10% बाल अपराधी पाये गये।
  9. शिक्षितों की तुलना में अशिक्षित बालकों द्वारा अपराध अधिक किये जाते हैं। भारत में पकड़े गये बाल-अपराधियों में से 42% अशिक्षित, 52% प्राथमिक, माध्यमिक एवं सेकेण्ड्री तक पढ़े लिखे थे (1988 में)।
  10. कुल बाल-अपराधियों में से लगभग आधे अनुसूचित जाति एवं जनजाति के पाये गये।
  11. भारत में लगभग 81% बाल अपराधी पहली बार अपराध करने वाले होते हैं और केवल 10% ही बार-बार अपराध करने वाले। 1981 से 1987 के बीच अपराध करने वालों में से 87% नये बाल अपराधी थे।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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