समाज शास्‍त्र / Sociology

लैंगिक असमानता का अर्थ | लैंगिक असमानता के प्रमुख क्षेत्र

लैंगिक असमानता का अर्थ | लैंगिक असमानता के प्रमुख क्षेत्र

लैंगिक असमानता का अर्थ

(Meaning of Gender Inequality)

विभिन्न लिंगियों के बीच संबंधों के सामाजिक पक्ष के संदर्भ में ‘जेन्डर’ (Gender) एक ऐसी अवधारणा है जो जैविकीय ‘यौन भेद’ (Sex) से अलग की जाती है।

पिछले कुछ दशकों में सामाजिक विज्ञानों में लिंग के सामाजिक पक्ष को उसके जैवकीय पक्ष से अलग कर जेण्डर के रूप में उसे समझने एवं अध्ययन करने की एक नई शुरूआत हुई है। अन्न ओकले के अनुसार, “सेक्स का आशय पुरुषों तथा स्त्रियों के जैवकीय विभाजन से हैं, जबकि ‘जेन्डर’ का अर्थ स्रीत्व और पुरुषत्व के रूप में सामानान्तर एवं सामाजिक रूप में असमान विभाजन से है। अतः जेन्डर की अवधारणा स्त्रियों एवं पुरुषों के बीच सामाजिक रूप से निर्मित भिन्नता के पहलुओं पर ध्यान आकर्षित करती है परंतु आजकल जेण्डर शब्द का प्रयोग मात्र व्यक्तिगत पहचान एवं व्यक्तिगत को इंगित करने के लिए ही नहीं बल्कि प्रतीकात्मक स्तर पर इसका प्रयोग सांस्कृतिक आदर्शों एवं पुरुषत्व तथा स्रीत्व संबंधी रुढिबद्ध धारणाओं एवं संरचनात्मक अर्थों में, संस्थाओं तथा संगठनों में लैंगिक श्रम विभाजन के रूप में भी किया जाता है।

विभिन्न समाजों में लैंगिक संबंधों के स्वरूप भित्र-भिन्न होते हैं। ऐतिहासिक काल, प्रजातिक और जातीय समूहों, सामाजिक वर्ग और पीढ़ियों में फिर भी पुरुषो एवं स्त्रियों के बीच अंतर के मामलों में सभी समाजों में समानता है, यद्यपि इस अंतर की प्रकृति में काफ़ी सामाजिक भिन्नतायें हैं। लिंग भेद से संबंधित एक सर्वाधिक समान विशेषता हमें लिंग-असमानता में दिखाई देती हैं।

लैंगिक असमानता के प्रमुख क्षेत्र

(Major Scope of Gender Inequality)

भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में स्त्री और पुरुष के बीच पायी जाने वाली लैगिक असमानताओं के दर्शन निम्न क्षेत्रों में होते हैं-

(i) सामाजिक क्षेत्र में (In Social Field)

(ii) आर्थिक क्षेत्र में (In Economic Field)

(iii) राजनीतिक क्षेत्र में (In Political field)

(i) सामाजिक क्षेत्र में असमानता (Inequality in social Field)-

1. परिवार में पिता की प्रस्थिति की तुलना में माता की प्रस्थिति को कम महत्व दिया जाता है। इसी प्रकार से पुत्र की तुलना में पुत्री को पति की तुलना में पत्नी को अपेक्षाकृत कम सम्मान और महत्व प्राप्त है। कुछ परिवारों में आज भी पुत्र के जन्म लेने पर खुशी का प्रदर्शन करते हुए थाली बजायी जाती है जबकि पुत्री के जन्म पर शोका घर के सभी महत्वपूर्ण निर्णय भी पुरुषो के द्वारा ही लिये जाते है।

2. शिक्षा के क्षेत्र में आज भी स्त्री-पुरुष के बीच पर्यापत विभेदीकरण के दर्शन होते है। लड़कियों की तुलना में लड़कों की शिक्षा-दीक्षा विशेष महत्वपूर्ण समझी जाती है। लड़कों की तुलना में लड़कियों को शिक्षा की विशेष सुविधायें नहीं प्रदान की जाती। चूंकि शिक्षा को नौकरी प्राप्त करने का साधन माना जाता है।

(ii) आर्थिक क्षेत्र में असमानता (Inequality in Economic Field)-

भारतीय समाज में कन्या को एक आर्थिक दायित्व माना जाता है अर्थात येन-केन प्रकारेण किसी भी प्रकार उसके हाथ पीले कर देना अभिभावकों का लक्ष्य रहता है। आर्थिक स्थितियों की अनुकूलता न होने से स्त्रियों की एक भारी संख्या अशिक्षित रह जाती है। उनके लिए रोजगार के पर्याप्त साधन अवसर भी नहीं मिल पाते है। संपत्ति- अर्जन में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने पर भी महिलाओं को आजादी के पूर्व तक वंचित रखा गया स्वतंत्रता के पूर्व तक हिन्दू स्त्री को विवाह के पूर्व पिता पर, विवाह के बाद पति पर और विधवावस्था में पुत्र की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता था। आर्थिक दृष्टि से जीवन के सभी चरणों में स्त्री, पुरुष की कृपा पर ही आश्रित रही है।

(iii) राजनीतिक क्षेत्र में असमानता (Inequality in Political Field)-

प्राचीन काल से ही स्त्रियों को राजनीति में भागीदारी लेने से वंचित रखा गया। ब्रिटिश काल में राजनीतिक संरचना में हुए परिवर्तन से कुछ सुधारवादी परिवर्तन अवश्य आये, किंतु व्यावहारिक दृष्टि से यहाँ भी उनका शोषण ही किया गया। भारत जैसे समाज में स्त्रियों की राजनीतिक प्रस्थिति इस तथ्य से ज्ञात की जा सकती है कि सत्ता के स्वरूप निर्धारण तथा उसमें हिस्सेदारी करने के बारे में उन्हें कितनी स्वतंत्रता प्राप्त है, तथा इस संदर्भ में उनके योगदान को समाज द्वारा कितनी मान्यता प्रदान की जाती है। राष्ट्रीय आंदोलन और गाँधी जी के नेतृत्व ने यद्यपि राजनीति के क्षेत्र में स्त्रियों की भागीदारी के द्वार खोले, किंतु वह समाज के एक विशिष्ट वर्ग की महिलाओं तक ही सीमित रहा। स्वतंत्रता के बाद स्त्रियों को राजनीति में भागीदार बनने का अवसर तो मिला, किंतु उसके पीछे भी पुरुषों की प्रधानता रही। भारत में एक राज्य के मुख्यमंत्री जब एक घोटाले में लिप्त पाये गये, तो उन्होंने पद त्याग करके अपनी स्त्री को ही मुख्यमंत्री का ताज पहनाकर पीछे से सत्ता संचालन करना शुरू कर दिया।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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