बहुराष्ट्रीय निगमों का अर्थ | बहुराष्ट्रीय निगमों की विशेषताएँ | भारत अर्थव्यवस्था के विकास में बहुराष्ट्रीय निगमों का योगदान | भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय निगमों के योगदान
बहुराष्ट्रीय निगमों का अर्थ | बहुराष्ट्रीय निगमों की विशेषताएँ | भारत अर्थव्यवस्था के विकास में बहुराष्ट्रीय निगमों का योगदान | भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय निगमों के योगदान | Meaning of Multinational Corporations in Hindi | Characteristics of Multinational Corporations in Hindi | Contribution of multinational corporations in the development of India’s economy in Hindi | Contribution of Multinational Corporations in Industrial Economy of India in Hindi
बहुराष्ट्रीय निगमों का अर्थ
बहुराष्ट्रीय निगम से आशय ऐसे निगम से होता हैं, जो विभिन्न राष्ट्रों में सार्वजनिक कम्पनी की सहायक कम्पनी के रूप में कार्य करता हैं। यह निगम सम्बन्धित राष्ट्र के अनुरूप उद्योग का संचालन करता है।
वर्तमान में यह स्वीकार किया जाने लगा हैं कि देश के आर्थिक विकास में बहुराष्ट्रीय निगम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं किन्तु बहुराष्ट्रीय निगमों की भारत में महत्त्वपूर्ण भूमिका का विवेचना करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक हैं कि बहुराष्ट्रीय निगम क्या हैं?
बहुराष्ट्रीय निमम एक ऐसी कम्पनी या उद्यम है, जिसका विस्तार अनेक देशों में रहता हैं और जिसका उत्पादन और सेवाएँ उस देश के बाहर भी होती हैं, जिस देश में वह जन्म लेता हैं। इस प्रकार बहुराष्ट्रीय निगम वह हैं जो अनेक देशों में अनुसन्धान, विकास व निर्माण का कार्य करता है, जिसका प्रबन्ध और स्कन्ध स्वामित्व बहुराष्ट्रीय होता हैं। दूसरे शब्दों में, बहुराष्ट्रीय निगम विशाल आकार वाली ऐसी फर्में हैं जिनका प्रधान कार्यालय एक देश में स्थित होता हैं, किन्तु उसकी व्यापारिक क्रियाओं का विस्तार अन्य अनेक देशों में भी होता हैं। इन निगमों को अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता हैं, जैसे-राष्ट्रपारिय निगम, अन्तराष्ट्रीय कम्पनी या बहुराष्ट्रीय कम्पनी।
संयुक्त राष्ट्रसंघ की रिपोर्ट के अनुसार, “सम्पूर्ण विश्व में इस समय लगभग 37,000 बहुराष्ट्रीय निगम कार्यरत हैं। ये निगम विश्व की कुल निजी सम्पत्ति के 1/3 हिस्से के स्वामी हैं। इन निगमों की बिक्री लगभग 55,000 करोड़ डालर हैं।”
भारत में अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कार्यरत हैं। इन कम्पनियों का व्यवसाय भारत में हैं, किन्तु उनका प्रधान कार्यालय भारत के बाहर किसी अन्य देश में स्थित हैं। भारत में स्थित इन कम्पनियों का भी विश्व के अनेक देशों में व्यवसाय हैं। भारत स्थिति ऐसी बहुराष्ट्रीय में कुछ प्रमुख कम्पनियाँ निम्नांकित हैं-
- दवाइयों का निर्माण करने वाली कम्पनी- शीबा और ग्लैक्सा
- रंग व वार्निश का उत्पादन करने वाली कम्पनी- गुडलस नेरोलेक पेन्ट्स
- साबुन व डालडा वनस्पति का उत्पादन करने वाली कम्पनी- हिन्दुस्तान लीवर
- दन्त मन्जन व शेविंग क्रीम का उत्पादन करने वाली कम्पनी- कॉलगेट और पॉमोलिव
- चेहरे के लिए विभिन्न प्रकार की क्रीम का उत्पादन करने वाली कम्पनी- पॉण्ड्स आदि।
बहुराष्ट्रीय निगमों की विशेषताएँ
बहुराष्ट्रीय निमों की विशेषताओं का विवेचन निम्नानुसार किया जा सकता हैं-
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक गतिविधियाँ- बहुराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियाँ अन्तर्राष्ट्रीय होती हैं। इनके क्रिया-कलाप एक देश में सीमित न होकर अनेक देशों में चलते हैं। ये कम्पनियाँ अपनी गतिविधियों का संचालन विभिन्न देशों में स्थित अपनी शाखाओं अथवा सहायक कम्पनियों के माध्यम से करती हैं। विभिन्न देशों में फैली इन सहायक कम्पनियों में प्रमुख बहुराष्ट्रीय निगम का 51% या इससे अधिक हिस्सा होता हैं। इसकी आधार पर बहुराष्ट्रीय निगम विश्व भर में फैली अपनी शाखाओं पर नियन्त्रण रखता हैं।
- उत्पादनों के प्रचार-प्रसार पर समुचित ध्यान- बहुराष्ट्रीय निगम अपने द्वारा उत्पादित माल की श्रेष्ठा बनाये रखने का प्रयत्न तो करते ही हैं, किन्तु साथ ही ये अपने माल के प्रचार-प्रसार पर भी पर्याप्त धन व्यय करते हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विज्ञापन विश्व की सभी श्रेष्ठ पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन-सेवा पर तो देखे ही जा सकते हैं, रेडियो पर भी सुने जा सकते हैं।
- वित्तीय श्रेष्ठता- बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वित्तीय साधनों की दृष्टि से भी सुदृढ़ व श्रेष्ठ होती हैं। ये कम्पनियाँ अपनी अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के कारण विदेशी पूँजी बाजारों से बहुत सरलता से पूँजी जुटा लेती हैं। इन कम्पनियों में अन्य देशों में पूँजी निवेशक और बैंक भी पूंजी निवेश करने हेतु सदैव उत्सुक बने रहते हैं।
- बहुराष्ट्रीय प्रबन्ध- इन निगमों के प्रबन्ध मण्डल में अनेक देशों के ऐसे व्यक्तियों का मनोनयन रहता हैं, जो तकनीकि, आर्थिक, प्रबन्धकीय आदि क्षेत्रों में निपुण होते हैं।
- विपणन-क्षेत्र में श्रेष्ठता- बहुराष्ट्रीय निगम विपणन की दृष्टि से भी श्रेष्ठ होते हैं। यह निगम अपने उत्पादनों की खपत के लिए बाजार का व्यवस्थित सर्वेक्षण कराते हैं, उपभोक्ताओं की राय जानने का प्रयत्न करते हैं और उसके अनुसार अपने उत्पादनों में और अधिक सुधान करने का प्रयास करते हैं। फलस्वरूप बहुराष्ट्रीय निगमों के उत्पादन अपनी प्रसिद्धि के कारण बाजार बनाने में अधिक सक्षम होते हैं। उनके पास भण्डारण की भी श्रेष्ठ सुविधाएँ उपलब्ध रहती हैं।
- आकार में वृहद्– इन निगमों का आकार बहुत बृहद् होता हैं। इनके द्वारा व्यवसाय में लगायी गयी पूँजी भी वृहद् होती हैं और प्रतिवर्ष की बिक्री भी अरबों रुपयों में होती हैं। उदाहरणार्थ, पॉण्ड्स, कॉलगेट पॉमोलिव आदि कम्पनियों की ब्रिकी राशि का अनुमान अरबों रुपये हैं।
- तकनीकी श्रेष्ठता- बहुराष्ट्रीयता निगमों के पास सर्वश्रेष्ठ टेक्नोलॉजी उपलब्ध रहती हैं। इसीलिए इनके द्वारा उत्पादित माल श्रेष्ठा की कसौटी पर खरा उतरता हैं।
- नये उत्पादों का विकास- बहुराष्ट्रीय निगमों के पास स्वयं की अनुसन्धानशाला और विकास भाग होता हैं। ये निगम अपने उत्पादित माल की श्रेणी में सुधार करने हेतु सदैव प्रयत्न करते रहते हैं। अत उपभोक्ताओं द्वारा माल अधिक पसन्द किया जाता हैं।
भारत अर्थव्यवस्था के विकास में बहुराष्ट्रीय निगमों का योगदान
भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय निगमों की स्थिति बहुत अधिक सुदृढ़ व महत्त्वपूर्ण हैं। देश की अर्थव्यवस्था में इन निगमों ने अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया हैं। भारत में बहुराष्ट्रीय निगमों के योगदान का निम्नानुसार स्पष्ट किया जा सकता हैं-
- बहुराष्ट्रीय निगमों का औद्योगिक विकास में योगदान- बहुराष्ट्रीय निगमों ने भारत के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी हैं। भारत के अनेक उद्योगों में बहुराष्ट्रीय निगमों ने भारी मात्रा में पूँजी का निवेश किया हैं एवं आधुनिक तकनीक उपलब्ध करायी हैं। भारत में आज ऐसे अनेक उद्योग स्थापित हैं जिनमें पूंजी और आधुनिक तकनीक की भूमिका महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसे उद्योगों की स्थापना में बहुराष्ट्रीय निगमों ने महत्त्वपूर्ण दायित्वों को निर्वहन किया है। पेट्रोलियम, रसायन, खनिज आदि इसी श्रेणी के उद्योग हैं। जिनकी भारत में स्थापना बहुराष्ट्रीय निगमों के सहयोग से ही सम्भव हो सकी हैं। बरमा शैल (burmah shell) और कॉलटैक्स (caltex) पेट्रोलियम कम्पनियाँ बहुराष्ट्रीय निगमों के सहयोग का अनुपम उदाहरण हैं।
- प्राकृतिक संसाधनों का दोहन- बहुराष्ट्रीय निगमों ने भारत में उपलब्ध उन प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन का कार्य आरम्भ कर दिया हैं, जो भारत सरकार पूँजी के अभाव में अब तक नहीं कर सकी थी।
- उत्पादन की विकसित तकनीकों का अनुसन्धान- बहुराष्ट्रीय निगमों ने देश के अनेक उद्योगों में सुसज्जित अनुसन्धानशालाएँ स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया हैं। इन अनुसन्धानशालाओं के माध्यम से भारतीय उद्योग नित नयी तकनीकों का उपयोग अपने उत्पादनोंकी श्रेष्ठता बनाये रखने के लिए कर रहे हैं। भारत के अनेक औद्योगिक उत्पादन आज विभिन्न देशों के बाजारों में अपनी श्रेष्ठता और माँग बनाये हुए
- व्यापक पैमाने पर रोजगार- देश के औद्योगिक विकास में बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा दिये गये सहयोग के फलस्वरूप रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई हैं। देश के तकनीकि और प्रशासनिक दृष्टि से योग्य युवकों को रोजगार प्राप्त हुआ हैं।
- विपणन की सुविधाओं में वृद्धि– बहुराष्ट्री निगमों की व्यवस्थित कार्य प्रणाली और अपने उत्पादनों के प्रति सजगता के कारण देश के उद्योगपतियों में भी चेतना आयी हैं। अब बहुराष्ट्रीय निगमों की भाँति भारतीय उद्योग भी अपने उत्पादनों के लिए भरपूर प्रचार-प्रसार करते हैं। विपणन के अन्य उन्नत तरीकों का प्रयोग करते हैं और भण्डारण की उचित सुविधाओं का उपयोग करते हैं।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- विदेशी विनिमय दर | क्रय शक्ति समता सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा | क्रय शक्ति समता सिद्धांत | विनिमय दर निर्धारण के क्रयशक्ति समता सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन
- अवमूल्यन का अर्थ | अधिमूल्यन | अवमूल्यन के उद्देश्य एवं क्रियाविधि | अवमूल्यन के लोच विधि की सविस्तार व्याख्या
- राष्ट्रीय आय तथा आर्थिक कल्याण | निर्धनों के पक्ष में राष्ट्रीय आय का परिवर्तन | राष्ट्रीय आय का आकार तथा वितरण का प्रकार | राष्ट्रीय आय के अपवाद
- लघु एवं कुटीर उद्योगों की समस्याए | लघु एवं कुटीर उद्योगों के सम्बन्ध में सुझाव | लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए राजकीय प्रयास | भारत में सूक्ष्य तथा लघु उपक्रमों के सम्मुख प्रमुख चुनौतियां
- भारत की 1948 की औद्योगिक नीति | 1948 की औद्योगिक नीति का आलोचना | 1956 की भारतीय औद्योगिक नीति | 1956 की औद्योगिक नीति की विशेषताएँ | 1956 की औद्योगिक नीति की आलोचना | 1980 की औद्योगिक नीति | 1980 की औद्योगिक नीति की आलोचनाएँ
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com