इतिहास / History

सिन्धु घाटी सभ्यता का राजनीतिक जीवन | सिन्धु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन

सिन्धु घाटी सभ्यता का राजनीतिक जीवन | सिन्धु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन

सिन्धु घाटी सभ्यता का राजनीतिक जीवन

अब तक की खुदाई और अनुसंधानों से सिन्धु प्रदेशवासियों की राजनीतिक व्यवस्था की कोई उल्लेखनीय जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। लेकिन यह भी निश्चित है कि इतने बड़े क्षेत्र में फैले हुए व्यवस्थित ढाँचे शासन सत्ता के सूत्र में अवश्य ही बंधे हुए होंगे। उनकी व्यवस्था को देखकर नगरपालिका जैसी संस्था का अनुमान लगाया जाता है। ऐसा अनुमान है कि उस समय की शासन-सत्ता बड़ी शक्तिशाली रही होगी और उसकी मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा दो विशाल राज्यों की राजधानियाँ रही होंगी।

स्टुअर्ट पिग्गट के शब्दों में, ‘मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के राज्यों पर पुरोहित राजाओं द्वारा दो राजधानियों में शासन किया जाता था। डॉ. विमलचन्द्र पाण्डेय के मतानुसार, यहाँ सम्भवतः सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया था।” हण्टर के अनुसार, ”मोहनजोदड़ो का शासन जनतन्त्रात्मक था।” व्हीलर के मतानुसार, ‘हड़प्पा के शासक अपने नगरों का शासन लगभग वैसे ही करते थे, जैसे सुमेर और अक्काद के राजा । इस प्रकार के राज्य को वास्तव में नौकरशाही राज्य कहा जा सकता है। इस प्रकार के राज्य में साधारण व्यक्ति को राजनीतिक दृष्टि से कोई अधिकार प्राप्त नहीं थे।” अधिकांश विद्वानों के अनुसार केन्द्रीय सत्ता का विकेन्द्रीयकरण हो गया था और लोगों को स्थानीय शासन का दायित्व सौंप दिया गया था। स्थानीय लोग अपने प्रतिनिधियों अथवा अधिकारियों के माध्यम से स्थानीय शासन तन्त्र चलाते थे। खुदाई में अस्त्र-शस्त्र बहुत कम संख्या में मिले हैं जिससे ज्ञात होता है कि सिन्धु- निवासी शान्तिप्रिय थे तथा उनका जीवन राजनीतिक दृष्टि से भी शान्तिपूर्वक था।

आर्थिक जीवन

सिन्धु निवासियों के आर्थिक जीवन की विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है-

  1. कृषि-

खेती यहाँ का प्रमुख व्यवसाय था। गेहूँ, जौ, चावल, खजूर, तिल, मटर आदि की खेती होती थी। कपास की भी खेती होती थी। ये लोग नारियल, केला, अनार आदि की भी खेती करते थे। यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि खेती में हलों का प्रयोग किया जाता था। डॉ० राजबली पाण्डेय तथा कौसाम्बी के मतानुसार सिन्धु-निवासी हल से परिचित नहीं थे। परन्तु प्रो० लाल का मत है कि सिन्धु-निवासी हल से परिचित थे।

  1. पशु-पालन-

गाय, बैल, भैंस आदि के अतिरिक्त बकरी, सुअर, कुत्ता, हाथी आदि भी यहाँ के लोग पालते थे। भालू, चीता, गैण्डा, बन्दर, खरगोश आदि से भी ये लोग परिचित थे। शिकार मनोरंजन का साधन होने के साथ-साथ भोजन प्राप्ति का भी साधन था। मछली पकड़ना भी उनका व्यवसाय था। पशुओं के बाल, खाल आदि से विभिन्न उपयोगी वस्तुयें बनायी जाती थीं और उनका व्यापार भी होता था। मुर्गी पालन भी होता था।

  1. उद्योग-धन्धे-

खुदाई में प्राप्त हुए तकुए और सूत की नलियों की प्राप्ति सिद्ध करती है कि कताई से साधारण जनता परिचित थी। ऊन का प्रयोग गर्म कपड़ा बनाने के लिए किया जाता था। यहाँ सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र तैयार किये जाते थे। उस समय सोना, चाँदी, काँसे और शीशे का प्रयोग किया जाता था। ताम्र और कांस्य के सुन्दर बर्तन बनते थे। कुल्हाड़ियां और तांबे के बने औजार, पत्थर काटने की छेनियाँ आदि भी यहाँ मिलती हैं। यहाँ मिट्टी के सुन्दर बर्तन तथा खिलौने भी बनाये जाते थे। यहाँ के स्वर्णकार आभूषण बनाने में बड़े निपुण थे। यहाँ सोने-चाँदी के सुन्दर आभूषण बनाये जाते थे। यहाँ कुर्सियाँ, तिपाइयाँ, चौकियाँ, बैलगाड़ियाँ, इक्के, खिड़कियाँ, लकड़ी के दरवाजे आदि भी बनाये जाते थे।

  1. व्यापार-

सिन्धु घाटी का व्यापार भी उन्नत अवस्था में था। व्यापार जल और थल दोनों मार्गों से होता था। जल यातायात के लिए नावों तथा जहाजों का एवं थल यातायात के लिए बैलगाड़ियों, बैलों, गधों आदि का प्रयोग किया जाता था। सिन्धु निवासी, सोना, चांदी, टिन, सीसा आदि अफगानिस्तान, ईरान आदि देशों से मंगाते थे। राजस्थान से तांबा, बदख्शां से कीमती पत्थर, हिमालय के आस-पास के प्रदेश से देवदार की लकड़ी तथा काठियावाड़ से सीपी, शंख, मोती, मूंगा आदि मंगाये जाते थे। सैन्धव लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत अवस्था में था। इन लोगों का सुमेरिया, ईरान, अफगानिस्तान, मित्र आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था।

  1. नाप-तौल का साधन-

खुदाई में तराजू और बांट मिले हैं। कुछ बांट तो इतने बड़े थे कि उन्हें रस्सी से बांधकर उठाया जाता था। एक सीपी का बना हुआ खण्ड भी मिला है, जो सम्भवतः नापने में प्रयोग में लाया जाता था। इस पर एक समान 9 विभाग अंकित हैं। एक विभाग 0.264 इंच के बराबर है।

  1. आवागमन के साधन-

आने-जाने के लिए थल और जल दोनों ही मार्गों का प्रयोग होता था। स्थल मार्ग के लिए बैलगाड़ी व इक्के थे। कुछ चित्रों में नाव अंकित हैं, जो जहाजों और नावों का प्रयोग सिद्ध करती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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